उद्योगों के प्रकार
स्वामित्व के आधार पर उद्योग
(i) सार्वजनिक सेक्टर : सार्वजनिक सेक्टर उद्योग सरकार द्वारा नियंत्रित कंपनियाँ या निगम हैं जो सरकार द्वारा निधि प्रदत्त होते हैं। सार्वजनिक सेक्टर में सामान्यतः सामरिक और राष्ट्रीय महत्व के उद्योग-धंधे आते हैं।
(ii) व्यक्तिगत सेक्टर
(iii) मिश्रित और सहकारी सेक्टर
उत्पादों के उपयोग के आधार पर
(i) मूल पदार्थ उद्योग
(ii) पूँजीगत पदार्थ उद्योग
(iii) मध्यवर्ती पदार्थ उद्योग
(iv) उपभोक्ता पदार्थ उद्योग
कच्चे माल के आधार पर
(i) कृषि आधारित उद्योग
(ii) वन आधारित उद्योग
(iii) खनिज आधारित उद्योग
(iv) उद्योगों द्वारा निर्मित कच्चे माल पर आधारित उद्योग।
निर्मित उत्पादकों की प्रकृति पर आधारित
1) धातुकर्म उद्योग
(2) यांत्रिक इंजीनियरी उद्योग
( 3 ) रासायनिक और संबद्ध उद्योग
(4) वस्त्र उद्योग
( 5 ) खाद्य संसाधन उद्योग
(6) विद्युत उत्पादन उद्योग
(7) इलेक्ट्रॉनिक और
(8) संचार उद्योग
उद्योगों की स्थिति को प्रभावित करने वाले कारक :
1) कच्चा माल :
भार- ह्रास वाले कच्चे माल का उपयोग करने वाले उद्योग उन प्रदेशों में स्थापित किए जाते हैं जहाँ ये उपलब्ध होते हैं। लोहा-इस्पात उद्योग में लोहा और कोयला दोनों ही भार ह्रास वाले कच्चे माल हैं। इसीलिए लोहा-इस्पात उद्योग की स्थिति के लिए अनुकूलतम स्थान कच्चा माल स्रोतों के निकट होना चाहिए। यही कारण है कि अधिकांश लोहा-इस्पात उद्योग या तो कोयला क्षेत्रों (बोकारो, दुर्गापुर आदि) के निकट स्थित हैं अथवा लौह अयस्क के स्रोतों (भद्रावती, भिलाई और राउरकेला) के निकट स्थित हैं।
2) शक्ति
शक्ति मशीनों के लिए गतिदायी बल प्रदान करती है और इसीलिए किसी भी उद्योग की स्थापना से पहले इसकी आपूर्ति सुनिश्चित कर ली जाती है। एल्युमिनियम और कृत्रिम नाइट्रोजन निर्माण उद्योग की स्थापना शक्ति स्रोत के निकट की जाती है क्योंकि ये अधिक शक्ति उपयोग करने वाले उद्योग हैं, जिन्हें विद्युत की बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है।
3) बाज़ार
बाजार, निर्मित उत्पादों के लिए निर्गम उपलब्ध कराती हैं। भारी मशीन, मशीन के औजार, भारी रसायनों की स्थापना उच्च माँग वाले क्षेत्रों के निकट की जाती है सूती वस्त्र उद्योग में शुद्ध (जिसमें भार- ह्रास नहीं होता) कच्चे माल का उपयोग होता है और ये प्रायः बड़े नगरीय केंद्रों में स्थापित किए जाते हैं, उदाहरणार्थ- मुंबई, अहमदाबाद, सूरत आदि।
4) परिवहन
प्रारंभ में ही परिवहन मार्गों को जोड़ने वाले केंद्र बिंदु (Node) बन गए। रेलवे लाइन बिछने के बाद ही उद्योगों को आंतरिक भागों में स्थानांतरित किया गया। सभी मुख्य उद्योग मुख्य रेल मार्गों पर स्थित हैं।
5) श्रम
उद्योगों को कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। भारत में श्रम बहुत गतिशील है तथा जनसंख्या अधिक होने के कारण बड़ी संख्या में उपलब्ध है।
6) ऐतिहासिक कारक
कुछ राज्य औपनिवेशिक अतीत द्वारा अत्यधिक प्रभावित थे। उपनिवेशीकरण के प्रारंभिक चरणों में निर्माण क्रियाओं को यूरोप के व्यापारियों द्वारा नव प्रोत्साहन दिया गया। मुर्शिदाबाद, ढाका, भदोई, सूरत, वडोदरा, कोझीकोड, कोयम्बटूर, मैसूर आदि स्थान महत्वपूर्ण निर्माण केंद्रों के रूप में उभरे।
मुख्य उद्योग
1) लौह-इस्पात उद्योग
लौह-इस्पात उद्योग के विकास ने भारत में तीव्र औद्योगिक विकास के दरवाज़े खोल दिए। भारतीय उद्योग के लगभग सभी सेक्टर अपनी मूल आधारिक अवसंरचना के लिए मुख्य रूप से लोहा इस्पात उद्योग पर निर्भर करते हैं।
लौह इस्पात उद्योग के लिए लौह अयस्क और कोककारी कोयला के अतिरिक्त चूनापत्थर, डोलोमाइट, मैंगनीज और अग्निसहमृत्तिका आदि कच्चे माल की भी आवश्यकता होती है
ये सभी कच्चे माल स्थूल (भार ह्रास वाले) होते हैं। इसलिए लोहा-इस्पात उद्योग की सबसे अच्छी स्थिति कच्चे माल स्रोतों के निकट होती है। भारत में छत्तीसगढ़, उत्तरी उड़ीसा, झारखंड और पश्चिमी पश्चिम बंगाल के भागों को समाविष्ट करते हुए एक अर्धचंद्राकार प्रदेश है
भारतीय लौह-इस्पात उद्योग के अंतर्गत बड़े एकीकृत इस्पात कारखानों और छोटी इस्पात मिलें भी सम्मिलित हैं। इसके अंतर्गत द्वितीयक उत्पादक, ढलाई मिलें और आनुषंगिक उद्योग भी आते हैं।
एकीकृत इस्पात कारखाने
टाटा लौह-इस्पात कंपनी (TISCO) :
टाटा लौह-इस्पात मुंबई-कोलकाता रेलवे मार्ग के बहुत निकट स्थित है। यहाँ के इस्पात के निर्यात के लिए सबसे नजदीक (लगभग 240 किलोमीटर दूर) पत्तन कोलकाता है।
संयंत्र को पानी सुवर्ण रेखा एवं खारकोई नदियों से लोहा नोआमंडी और बादाम पहाड़ से, और कोयला जोड़ा खानों (उड़ीसा) से और कोककारी कोयला झरिया और पश्चिमी बोकारो कोयला क्षेत्रों से प्राप्त होता है।
भारतीय लोहा और इस्पात कंपनी (IISCO) :
1937 में भारतीय लोहा और इस्पात कंपनी (IISCO) के साहचर्य से बंगाल स्टील कार्पोरेशन की स्थापना की गई बर्नपुर (पश्चिम बंगाल) में लोहा और इस्पात के उत्पादन की दूसरी इकाई की स्थापना की गई। ‘इंडियन आयरन स्टील कंपनी के अधिकार क्षेत्र में आने वाले तीनों संयंत्र दामोदर घाटी कोयला क्षेत्रों (रानीगंज, झरिया और रामगढ़) के निकट कोलकाता- आसनसोल रेल मार्ग पर स्थित हैं।
1972-73 में भारतीय लोहा और इस्पात कारखानें से इस्पात उत्पादन बहुत कम हो गया और संयंत्र सरकार द्वारा अधिग्रहित किया गया ।
विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील वर्क्स (VISW) :
तीसरा एकीकृत इस्पात संयंत्र विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील वर्क्स जो प्रारंभ में मैसूर लोहा और इस्पात वर्क्स के नाम से जाना जाता था, बाबाबूदन की पहाड़ियों के केमान गुंडी के लौह-अयस्क क्षेत्रों के निकट स्थित है। चूना पत्थर और मैंगनीज भी आसपास के क्षेत्रों में उपलब्ध है। लेकिन इस प्रदेश में कोयला नहीं मिलता।
स्वतंत्रता के बाद, द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-57) में विदेशी सहयोग से तीन नए एकीकृत इस्पात संयंत्रों की स्थापना की गई। ये संयंत्र हैं- राउरकेला (ओडिशा), भिलाई (छत्तीसगढ़) और दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल)। ये सभी सार्वजनिक सेक्टर संयंत्र हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड (HSL) के अधिकार में थे। 1973 में, इन संयंत्रों के प्रबंधन के लिए स्टील अथॉरिटी आफ इंडिया (SAIL) की स्थापना की गई।
राउरकेला इस्पात संयंत्र :
राउरकेला इस्पात संयंत्र जर्मनी के सहयोग से 1959 में ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले में स्थापित किया गया था। संयंत्र को कच्चे माल की निकटता के आधार पर स्थापित किया गया था, इस प्रकार भार ह्रास वाले कच्चे माल का परिवहन मूल्य कम हो जाता है। इस संयंत्र को विशिष्ट अवस्थितिक लाभ प्राप्त हैं क्योंकि इसे निकटस्थ झरिया (झारखंड) से कोयला और सुंदरगढ़ और केंदुझर से लौह अयस्क प्राप्त हो जाता है। विद्युत भट्टियों के लिए विद्युत शक्ति हीराकुड परियोजना से तथा जल कोइल और शंख नदियों से प्राप्त होता है।
भिलाई इस्पात संयंत्र :
भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना रूस के सहयोग से छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में की गई एवं 1959 में इसमें उत्पादन प्रारंभ हो गया। यहाँ लौह अयस्क डल्ली राजहरा खानों से तथा कोयला कोरबा और करगाली कोयला खानों से प्राप्त होता है। जल तंदुला बाँध से और विद्युतशक्ति कोरबा ताप शक्तिगृह से प्राप्त होती है।
बोकारो इस्पात संयंत्र :
यह इस्पात संयंत्र रूस के सहयोग से 1964 में बोकारो में स्थापित किया गया था। इस संयंत्र की स्थापना परिवहन लागत न्यूनीकरण सिद्धांत के आधार पर की गई थी कच्चे माल बोकारो को लगभग 350 किलोमीटर की परिधि के अंदर प्राप्त हो जाते हैं। जल और जलविद्युत शक्ति की आपूर्ति दामोदर घाटी कार्पोरेशन द्वारा की जाती है।
अन्य इस्पात संयंत्र
विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश) स्थित विजाग इस्पात संयंत्र पहला पत्तन आधारित संयंत्र है। इसकी शुरुआत 1992 में हुई थी। इसकी पत्तन स्थिति लाभप्रद है।
विजयनगर इस्पात संयंत्र होसपेटे (कर्नाटक) में विकसित किया गया। इसमें स्वदेशी तकनीकी का उपयोग किया जा रहा है। यह संयंत्र आस पास के क्षेत्रों से प्राप्त लौह-अयस्क और चूना पत्थर का उपयोग करता है। सेलम (तमिलनाडु) इस्पात संयंत्र 1982 में चालू किया गया।
2) सूती वस्त्र उद्योग
● सूती वस्त्र उद्योग भारत के परंपरागत उद्योगों में से एक है। प्राचीन और मध्यकाल में ये केवल एक कुटीर उद्योग के रूप में थे।
● भारत में इस उद्योग का विकास कई कारणों से हुआ।
● पहला भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है एवं सूती कपड़ा गर्म और आर्द्र जलवायु के लिए एक आरामदायक वस्त्र है।
● दूसरा, भारत में कपास का बड़ी मात्रा में उत्पादन होता था। देश में इस उद्योग के लिए आवश्यक कुशल श्रमिक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे
● 1854 में, पहली आधुनिक सूती मिल की स्थापना मुंबई में की गई। इस शहर को सूती वस्त्र निर्माण केंद्र के रूप में कई लाभ थे। यह गुजरात और महाराष्ट्र के कपास उत्पादक क्षेत्रों के बहुत निकट था। कच्ची कपास इंग्लैंड को निर्यात करने के लिए
● भारत में सूती वस्त्र उद्योग को दो सेक्टर्स में बाँटा जा सकता है संगठित सेक्टर और असंगठित सेक्टर। विकेंद्रित सेक्टर के अंतर्गत हथकरघों (खादी सहित) और विद्युतकरघों में उत्पादित कपड़ा आता है।
● 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मुंबई और अहमदाबाद में पहली मिल की स्थापना के पश्चात् सूती वस्त्र उद्योग का तेजी से विस्तार हुआ। मिलों की संख्या आकस्मिक रूप से बढ़ गई।
● वर्तमान में अहमदाबाद, भिवांडी, शोलापुर, कोल्हापुर, नागपुर, इंदौर और उज्जैन सूती वस्त्र उद्योग के मुख्य केंद्र हैं। ये सभी केंद्र परंपरागत केंद्र हैं और कपास उत्पादक क्षेत्रों के निकट स्थित हैं।
● तमिलनाडु राज्य में सबसे अधिक मिलें हैं और उनमें से अधिकांश कपड़ा न बनाकर सूत का उत्पादन करती हैं। कोयंबटूर, जहाँ तमिलनाडु की लगभग आधे से अधिक मिलों के अवस्थित होने के कारण सबसे महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरा है।
3) चीनी उद्योग
भारत विश्व में गन्ना और चीनी दोनों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और यह विश्व के कुल चीनी उत्पादन का लगभग 8 प्रतिशत उत्पादन करता है।
आधुनिक आधार पर उद्योग का विकास 1903 में प्रारंभ हुआ जब बिहार में एक चीनी मिल की स्थापना की गईं। इसके बाद, बिहार और उत्तर प्रदेश के दूसरे भागों में चीनी मिलें खोली गईं। 1950-51 में 139 कारखानें प्रचालन में थे 2010-11 में चीनी मिलों की संख्या बढ़कर 662 हो गयी।
उद्योग की अवस्थिति
चीनी और गन्ने का अनुपात 9 प्रतिशत से 12 प्रतिशत के बीच होता हैं जो इसकी गुणवत्ता पर निर्भर करता है।
● महाराष्ट्र देश में अग्रणी चीनी उत्पादक राज्य के रूप में विकसित हुआ और देश में कुल चीनी उत्पादन के एक-तिहाई से अधिक भाग का उत्पादन करता है। राज्य में 119 चीनी मिलें हैं जो एक सँकरी पट्टी के रूप में उत्तर में मनमाड से लेकर दक्षिण में कोल्हापुर तक विस्तृत हैं। इनमें से 87 मिलें सहकारी सेक्टर में हैं
● चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश का द्वितीय स्थान है। चीनी उद्योग दो पेटियों- गंगा-यमुना दोआब और तराई प्रदेश में केंद्रित है। गंगा-यमुना दोआब में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, बागपत और बुलंदशहर मुख्य चीनी उत्पादक जिले हैं,
● तमिलनाडु में चीनी मिलें कोयंबटूर, वेलौर, तिरुवनमलाई, विल्लुपुरम और तिरुचिरापल्ली जिलों में स्थित हैं। कर्नाटक में बेलगावि, बेल्लारि, माण्डया, शिवमोगा, विजयपुर और चित्रदुर्ग मुख्य चीनी उत्पादक जिले हैं।
● बिहार, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और गुजरात अन्य चीनी उत्पादक राज्य हैं। बिहार में सारन, चंपारन, मुजफ्फरपुर, सीवान, दरभंगा और गया (मानचित्र) मुख्य गन्ना उत्पादक जिले हैं।
पेट्रो रसायन उद्योग
● उद्योगों की इस श्रेणी के अंतर्गत कई प्रकार के उत्पाद आते हैं। 1960 में जैव रसायनों की माँग इतनी तेजी से बढ़ी कि इसको पूरा करना कठिन हो गया। उस समय पेट्रोल परिशोधन उद्योग का तेजी से विस्तार हुआ।
उद्योगों के इस वर्ग को चार उपवर्गों में विभाजित किया गया है-
1) पॉलीमर
2) कृत्रिम रेशे,
3) इलैस्टोमर्स
4) पृष्ठ संक्रियक
पेट्रो-रसायन सेक्टर के अंतर्गत तीन संस्थाएँ कार्य कर रही हैं।
पहली, भारतीय पेट्रो- रासायनिक कार्पोरेशन लिमिटेड (IPCL) सार्वजनिक सेक्टर में आती है।
दूसरा पेट्रोफिल्स कोऑपरेटिव लिमिटेड है जो भारत सरकार एवं बुनकरों की सहकारी संस्थाओं का संयुक्त प्रयास है।
तीसरा, सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (CIPET) है
भारत में उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण एवं औद्योगिक विकास
नई औद्योगिक नीति की घोषणा 1991 में की गई।
इस नीति के मुख्य उद्देश्य थे : – अब तक प्राप्त किए गए लाभ को बढ़ाना, इसमें विकृति अथवा कमियों को दूर करना, उत्पादकता और किया गया। लाभकारी रोज़गार में स्वपोषित वृद्धि को बनाए रखना और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता प्राप्त करना ।
इस नीति के अंतर्गत किए गए उपाय हैं:
(1) औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था का समापन
(2) विदेशी तकनीकी का निःशुल्क प्रवेश
(3) विदेशी निवेश नीति
(4) पूँजी बाज़ार में अभिगम्यता
(5) खुला व्यापार
(6) प्रावस्थबद्ध निर्माण कार्यक्रम का उन्मूलन,
(7) औद्योगिक अवस्थिति कार्यक्रम
नई औद्योगिक नीति के तीन मुख्य लक्ष्य हैं – उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण
प्रभावी संबंध को सुसाध्य बनाकर वैश्वीकरण को आगे बढ़ाना है। भारतीय संदर्भ में इसका अर्थ है :-
(1) भारत में आर्थिक क्रियाओं के विभिन्न क्षेत्रों में, विदेशी कंपनियों को पूँजी निवेश की सुविधा उपलब्ध कराकर, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए अर्थव्यवस्था को खोलना
2) भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश पर लगे प्रतिबंधों और बाधाओं को ख़त्म करना
(3) भारतीय कंपनियों को देश में विदेशी कंपनियों के सहयोग से उद्योग खोलने की अनुमति प्रदान करना
(4) पहले शुल्क दर के मात्रात्मक प्रतिबंधों में कमी लाकर बड़ी मात्रा में आयात उदारता कार्यक्रम को कार्यान्वित करना
5) निर्यात प्रोत्साहन के एक वर्ग के बजाय निर्यात को बढ़ाने के लिए विनिमय दर व्यवस्था को चुनना।
भारत के औद्योगिक प्रदेश
उद्योगों के समूहन को पहचानने के लिए कई सूचकांकों का उपयोग किया जाता है, जिनमें प्रमुख हैं:
(1) औद्योगिक इकाइयों की संख्या
(2) औद्योगिक कर्मियों की संख्या
(3) औद्योगिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली प्रयुक्त शक्ति की मात्रा
(4) कुल औद्योगिक निर्गत (output)
( 5 ) उत्पादन प्रक्रिया जन्य मूल्य आदि ।
देश के प्रमुख औद्योगिक प्रदेशों का सविस्तार विवरण
मुंबई-पुणे औद्योगिक प्रदेश
यह मुंबई – थाने से पुणे तथा नासिक और शोलापुर ज़िलों के संस्पर्शी क्षेत्रों तक विस्तृत है। इस प्रदेश का विकास मुंबई में सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना के साथ प्रारंभ हुआ। मुंबई में कपास के पृष्ठ प्रदेश में स्थिति होने और नम जलवायु के कारण मुंबई में सूती वस्त्र उद्योग का विकास हुआ। 1869 में स्वेज नहर के खुलने के कारण मुंबई पत्तन के विकास को प्रोत्साहन मिला।
हुगली औद्योगिक प्रदेश
इसका विकास हुगली नदी पर पत्तन के बनने के बाद प्रारंभ से हुआ।
हुगली नदी के किनारे बसा हुआ, यह प्रदेश उत्तर में बाँसबेरिया से दक्षिण में बिडलानगर तक लगभग 100 किलोमीटर में फैला है। इसका विकास हुगली नदी पर पत्तन के बनने के बाद प्रारंभ से हुआ। देश में कोलकाता एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा। इसके बाद, कोलकाता भीतरी भागों से रेलमार्गों और सड़क मार्गों द्वारा जोड़ दिया गया।
इस प्रदेश के महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र कोलकाता, हावड़ा, हल्दिया, सीरमपुर, रिशरा, शिवपुर, नैहाटी गुरियह, काकीनारा, श्यामनगर, टीटागढ़, सौदेपुर, बजबज, बिडलानगर, बाँसबेरिया, बेलगुरियह, त्रिवेणी, हुगली, बेलूर आदि हैं
बेंगलूरु-चेन्नई औद्योगिक प्रदेश
यह प्रदेश स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अत्यधिक तीव्रता से औद्योगिक विकास का साक्षी है। 1960 तक उद्योग केवल बेंगलूरु सेलम और मदुरई जिलों तक सीमित थे लेकिन अब वे तमिलनाडु के विल्लुपुरम को छोड़कर लगभग सभी जिलों में फैल चुके हैं। कपास उत्पादक क्षेत्र होने के कारण सूती वस्त्र उद्योगा ने सबसे पहले पैर जमाए थे। सूती मिलों के साथ ही करघा उद्योग का भी तेजी से विकास हुआ
अनेक भारी अभियांत्रिकी उद्योग बंगलौर में एकत्रित हो गए। वायुयान (एच.ए.एल.). मशीन उपकरण, टेलीफ़ोन और भारत इलेक्ट्रानिक्स इस प्रदेश के औद्योगिक स्तंभ हैं। टेक्सटाइल, रेल के डिब्बे, डीजल इंजन, रेडियो, हल्की अभियांत्रिकी वस्तुएँ, रबर का सामान दवाएँ एल्युमीनियम शक्कर, सीमेंट, ग्लास, कागज, रसायन, फ़िल्म, सिगरेट, माचिस, चमड़े का सामान आदि महत्वपूर्ण उद्योग हैं।
गुजरात औद्योगिक प्रदेश
इस प्रदेश का केंद्र अहमदाबाद और वडोदरा के बीच है लेकिन यह प्रदेश दक्षिण में वलसाद और सूरत तक और पश्चिम जामनगर तक फैला है। इस प्रदेश का विकास 1860 में सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना से भी संबंधित है। यह प्रदेश एक महत्वपूर्ण सूती वस्त्र उद्योग क्षेत्र बन गया।
कपड़ा (सूती, सिल्क और कृत्रिम कपड़े ) और पेट्रो- रासायनिक उद्योगों के अतिरिक्त अन्य उद्योग भारी और आधार रासायनिक, मोटर, ट्रैक्टर, डीज़ल इंजन, टेक्सटाइल मशीनें, इंजीनियरिंग, औषधि, रंग रोगन, कीटनाशक, चीनी, दुग्ध उत्पाद और खाद्य प्रक्रमण हैं।
छोटानागपुर प्रदेश
यह प्रदेश झारखंड, उत्तरी ओडिशा और पश्चिमी पश्चिम बंगाल में फैला है और भारी धातु उद्योगों के लिए जाना जाता है। यह प्रदेश अपने विकास के लिए दामोदर घाटी में कोयला और झारखंड तथा उत्तरी उड़ीसा में धात्विक और अधात्विक खनिजों की खोज का ऋणी है।
ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए ऊष्मीय और जलविद्युतशक्ति संयंत्रों का निर्माण दामोदर घाटी में किया गया है। प्रदेश के चारों ओर घने बसे प्रदेशों से सस्ता श्रम प्राप्त होता है और हुगली प्रदेश अपने उद्योगों के लिए बड़ा बाजार उपलब्ध कराता है।
भारी इंजीनियरिंग मशीन औजार, उर्वरक, सीमेंट, कागज, रेल इंजन और भारी विद्युत उद्योग इस प्रदेश के कुछ महत्वपूर्ण उद्योग हैं राँची, धनबाद, चैबासा, सिंदरी हजारीबाग, जमशेदपुर, बोकारो, राउरकेला, दुर्गापुर आन और डालमियानगर महत्वपूर्ण केंद्र हैं।
विशाखापट्नम-गुंटूर प्रदेश
यह औद्योगिक प्रदेश विशाखापत्तनम् जिले से लेकर दक्षिण में कुरूनूल और प्रकासम जिलों तक फैला है। इस प्रदेश का औद्योगिक विकास विशाखापट्नम और मछलीपटनम पत्तनों, इसके भीतरी भागों में विकसित कृषि तथा खनिजों के बड़े संचित भंडार पर निर्भर है।
जलयान निर्माण उद्योग का प्रारंभ 1941 में विशाखापट्नम में हुआ था। आयातित पेट्रोल पर आधारित पेट्रोलियम परिशोधनशाला ने कई पेट्रो- रासायनिक उद्योगों की वृद्धि को सुगम बनाया है। शक्कर, वस्त्र, जूट, कागज, उर्वरक, सीमेंट, एल्युमीनियम और हल्की इंजीनियरिंग इस प्रदेश के मुख्य उद्योग हैं। विशाखापट्नम, विजयवाड़ा, विजयनगर, राजमुंदरी, गुंटूर, एलूरू और कुरनूल महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र हैं।
गुरुग्राम- दिल्ली-मेरठ प्रदेश
इस प्रदेश में स्थित उद्योगों में पिछले कुछ समय से बड़ा तीव्र विकास दिखाई देता है। खनिजों और विद्युतशक्ति संसाधनों से बहुत दूर स्थित होने के कारण यहाँ उद्योग छोटे और बाज़ार अभिमुखी हैं।
इलेक्ट्रॉनिक, हल्के इंजीनियरिंग और विद्युत उपकरण इस प्रदेश के प्रमुख उद्योग हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ सूती, ऊनी और कृत्रिम रेशा वस्त्र होजरी, शक्कर, सीमेंट, मशीन उपकरण, ट्रैक्टर, साईकिल, कृषि उपकरण, रासायनिक पदार्थ और वनस्पति घी उद्योग हैं जो कि बड़े स्तर पर विकसित हैं। प्रमुख औद्योगिक केंद्रों में गुरुग्राम, दिल्ली, मेरठ, मोदीनगर, गाज़ियाबाद, अंबाला, आगरा और मथुरा का नाम लिया जा सकता है।