विकास क्या है। अर्थशास्त्र में विकास क्या है। अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है?अर्थशास्त्र का महत्व क्या है? अर्थशास्त्र को कैसे समझें?उत्पादक और उपभोक्ता में क्या अंतर है?अर्थशास्त्र के पिता कौन माने जाते हैं?अर्थव्यवस्था अर्थशास्त्र में क्या अंतर है? मिश्रित अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं।
☆ अर्थशास्त्र :- सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है।
‘अर्थशास्त्र‘ शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है – ‘धन का अध्ययन’।
अर्थशास्त्र दो प्रकार की होती है – व्यष्टि और समष्टि (There is two types of economics). व्यष्टि या सूक्ष्म यानि माइक्रो…. जैसा कि इसके नाम से ही इसके बारे में समझ में आता है। यह अर्थशास्त्र एक व्यक्ति या एक फर्म के व्यवहार का अध्ययन करता है।
अर्थशास्त्र समाज की आर्थिक गतिविधियों को विश्लेषण करती है। वह हमें यह बताती है कि समाज के आवश्यकताएं अनंत और उनकी पूर्ति करने वाले साधन सीमित है। इसलिए इन साधनों का कैसे संतुलित तरीके से उपयोग किया जाए कि मनुष्य को अधिकतम संतुष्टि हो सके और समाज की आर्थिक उन्नति और कल्याण हो।
एडम स्मिथ (५जून १७२३ से १७ जुलाई १७९०) एक ब्रिटिश नीतिवेत्ता, दार्शनिक और राजनैतिक अर्थशास्त्री थे। उन्हें अर्थशास्त्र का पितामह भी कहा जाता है। आधुनिक अर्थशास्त्र के निर्माताओं में एडम स्मिथ (जून 5, 1723—जुलाई 17, 1790) का नाम सबसे पहले आता है.
अर्थव्यवस्था अर्थशास्त्र में क्या अंतर है?
अर्थशास्त्र बाजार के सिद्धांतों, रोजगर इत्यादि की बात करता है जबकि अर्थव्यवस्था खास क्षेत्रों में सिद्धांतों को अपनाने के बाद की वास्तविक तस्वीर होती है। इसे इस रूप में भी समझा जा सकता है-अर्थव्यवस्था किसी खास इके का अर्थशास्त्र होता है।
मिश्रित अर्थव्यवस्था
भारत को एक मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा जाता है क्योंकि भारत न तो पूरी तरह समाजवादी है न और न ही पूरी तरह पूंजीवादी है। हम अमेरिका तथा क्यूबा का उदाहरण ले सकते हैं। … परंतु भारत में हम दोनों तरह के उद्यम देख सकते हैं इसलिए भारत को एक मिश्रित अर्थव्यवस्था कहते हैं।
अर्थव्यवस्था :- एक ढाँचा जिसके अन्तर्गत लोगों की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है ।
आर्थिक विकास :– एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अर्थव्यवस्था की वास्तविक ‘ प्रति व्यक्ति आय ‘ दीर्घ अवधि में बढ़ती है ।
☆ विकास क्या है।
विकास के कई पहलू हैं। विकास की अलग-अलग धारणाएँ हैं और ऐसे उपाय हैं जिनके द्वारा हम विकास के सामूहिक सूचकांको को जान सकते हैं। और आर्थिक विकास को मापा जा सकता है।
• लोगों के विकास के लक्ष्य भिन्न हो सकते है।
• एक के लिए जो विकास है वह दूसरे के लिए विकास न हो।
• यहाँ तक कि वह दूसरे के लिए विनाशकारी भी हो सकता है।
• विभिन्न लोगों के लिये विकास की विभिन्न आवश्यकताएँ हो सकती हैं। किसी भी व्यक्ति की जिंदगी की परिस्थिति इस बात को तय करती है उसके लिये किस प्रकार के विकास की आवश्यकता है
विकास के लक्ष्य :
प्रति व्यक्ति आय :- जब देश की कुल आय को उस देश की जनसंख्या से भाग दिया जाता है तो जो राशि मिलती है उसे हम प्रति व्यक्ति आय कहते हैं। वर्ष 2006 की विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति सालाना आय 28,000 रुपये है।
सकल राष्ट्रीय उत्पाद :- किसी देश में उत्पादित कुल आय को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं। सकल राष्ट्रीय उत्पाद में हर प्रकार की आर्थिक क्रिया से होने वाली आय की गणना की जाती है।
सकल घरेलू उत्पाद :- किसी देश में उत्पादित कुल आय में से निर्यात से होने वाली आय को घटाने के बाद जो बचता है उसे सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं।
• शिशु मृत्यु दर :- हर 1000 जन्म में एक साल की उम्र से पहले मरने वाले बच्चों की संख्या को शिशु मृत्यु दर कहते हैं। यह आँकड़ा जितना कम होगा वह विकास के दृष्टिकोण से उतना ही बेहतर माना जायेगा। शिशु मृत्यु दर एक महत्वपूर्ण पैमाना है। इससे किसी भी क्षेत्र में उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता का पता चलता है। सन 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में शिशु मृत्यु दर 15 है। इससे यह पता चलता है कि भारत में आज भी स्वास्थ्य सेवाएँ अच्छी नहीं हैं।
पुरुष और महिला का अनुपात :- प्रति हजार पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या को लिंग अनुपात कहते हैं। यदि यह आँकड़ा कम होता है तो इससे यह पता चलता है कि उस देश या राज्य में महिलाओं के खिलाफ कितना खराब माहौल है। भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति हजार पुरुषों की तुलना में केवल 940 महिलाएँ हैं।
जन्म के समय संभावित आयु :- एक औसत वयस्क अधिकतम जितनी उम्र तक जीता है उसे संभावित आयु कहते हैं। सन 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में पुरुषों की संभावित आयु 67 साल है और महिलाओं की संभावित आयु 72 साल है। इससे देश में व्याप्त जीवन स्तर का पता चलता है। यदि किसी देश में मूलभूत सुविधाएँ बेहतर होंगी, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएँ होंगी और लोगों की आय अच्छी होती तो वहाँ संभावित आयु भी अधिक होगी। दूसरे शब्दों में वहाँ एक औसत वयस्क लंबी जिंदगी जिएगा।
साक्षरता दर :- 7 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में साक्षर जनसंख्या का अनुपात को साक्षरता दर कहते हैं । निवल उपस्थिति [ अनुपात : 6-10 वर्ष की आयु के स्कूल जाने वाले कुछ बच्चों का उस आयु वर्ग के कुल बच्चों के साथ प्रतिशत उपस्थिति अनुपात कहलाता है
राष्ट्रीय आय :- देश के अंदर उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य तथा विदेशों से प्राप्त आय के जोड को राष्ट्रीय आय कहते है ।
बी . एम . आई :- शरीर का द्रव्यमान सूचकांक पोषण वैज्ञानिक , किसी व्यस्क के अल्पपोषित होने की जाँच कर सकते हैं । यदि यह 5 से कम है तो व्यक्ति कुपोषित है अगर 25 से ऊपर है तो वह मोटापे से ग्रस्त हैं ।
मानव विकास सूचकांक :- मानव विकास सूचकांक एक सांख्यिकीय सूचकांक है जिसमें जीवन प्रत्याशा, शिक्षा, और आय सूचकांकों को शामिल किया जाता है. मानव विकास सूचकांक में किसी देश के जीवन स्तर को मापा जाता है. इसमें देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) तथा उपलब्ध स्वास्थ्य एवं शिक्षा के स्तर आदि को भी देखा जाता है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहला मानव विकास सूचकांक साल 1990 में जारी किया गया था. प्रत्येक वर्ष इसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा प्रकाशित किया जाता है
जीवन प्रत्याशा के मामले में : मानव विकास रिपोर्ट 2020 के मुताबिक, साल 2019 में जन्मे भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 69.7 साल आंकी गई, जबकि बांग्लादेश में यह 72.7 साल रही. जीवन प्रत्याशा के मामले में पड़ोसी देश पाकिस्तान पीछे रहा. वहां जीवन प्रत्याशा 67.3 साल आंकी गई.
रिपोर्ट के मुताबिक, मानव विकास सूचकांक में नॉर्वे शीर्ष स्थान पर रहा, जबकि आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग व आइसलैंड क्रमश: दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर रहे.
मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका और भूटान जैसे छोटे देश भी सूचकांक में भारत से अच्छा हैं. मालूम हो कि श्रीलंका 72वें और भूटान 129वें स्थान पर है. वहीं भारत के पड़ोसी श्रीलंका और चीन क्रमशः 72वें और 85वें स्थान पर हैं.
मानव विकास सूचकांक में भूटान (129), बांग्लादेश (133), नेपाल (142), म्यांमार (147), पाकिस्तान (154) और अफगानिस्तान (169) आदि मध्यम मानव विकास की श्रेणी वाले देशों में शामिल रहे. भारत साल 2018 में इस सूची में 130वीं रैंक पर रहा था.
अध्याय 2 : भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक