पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बन्धित प्रारम्भिक संकल्पनायें
नीहारिका परिकल्पना :- इस परिकल्पना के जनक इमैनुअल कान्ट थे । इनके अनुसार गैस एंव अन्य पदार्थों के घूमते हुए बादल से ग्रहों की उत्पत्ति हुई।
लाप्लेस :- 1796 ई० में लप्लेस ने इसका संशोधन प्रस्तुत किया जो नीहारिका परिकल्पना (Nebular hypothesis) के नाम से जाना जाता है।
इस परिकल्पना के अनुसार ग्रहों का निर्माण धीमी गति से घूमते हुए पदार्थों के बादल से हुआ जो कि सूर्य की युवा अवस्था से संबद्ध थे।
ऑटो शिमिड और कार्ल वाइज़ास्कर :- उनके विचार से सूर्य एक सौर नीहारिका से घिरा हुआ था जो मुख्यतः हाइड्रोजन, हीलीयम और धूलिकणों की बनी थी। इन कणों के घर्षण व टकराने (Collision) से एक चपटी तश्तरी की आकृति के बादल का निर्माण हुआ और अभिवृद्धि (Accretion) प्रक्रम द्वारा ही ग्रहों का निर्माण हुआ।
द्वैतारक सिद्धांत”
कुछ समय बाद के तर्क सूर्य के साथ एक और साथी तारे के होने की बात मानते हैं। ये तर्क “द्वैतारक सिद्धांत” (Binary theories) के नाम से जाने जाते हैं।
आधुनिक सिद्धांत (ब्रह्मांड की उत्पत्ति) :-
बिग बैंग सिद्धांत :-
आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधी सर्वमान्य सिद्धांत बिग बैंग सिद्धांत (Big bang theory) है।इसे विस्तरित ब्रह्मांड परिकल्पना (Expanding universe hypothesis) भी कहा जाता है।
1920 ई० में एडविन हब्बल (Edwin Hubble) ने प्रमाण दिये कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। समय बीतने के साथ आकाशगंगाएँ एक दूसरे से दूर हो रही हैं।
इसे उदाहरण से समझे :-
एक गुब्बारा लें और उसपर कुछ निशान लगाएँ जिनको आकाशगंगायें मान लें। जब आप इस गुब्बारे को फुलाएँगे, गुब्बारे पर लगे ये निशान गुब्बारे के फैलने के साथ-साथ एक दूसरे से दूर जाते प्रतीत होंगे। इसी प्रकार आकाशगंगाओं के बीच की दूरी भी बढ़ रही है और परिणामस्वरूप ब्रह्मांड विस्तारित हो रहा है।
बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार निम्न अवस्थाओं में हुआ है :-
(1) आरम्भ में वे सभी पदार्थ, जिनसे ब्रह्मांड बना है, अति छोटे गोलक (एकाकी परमाणु) के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे। जिसका आयतन अत्यधिक सूक्ष्म एवं तापमान तथा घनत्व अनंत था ।
(ii) बिग बैंग की प्रक्रिया में इस अति छोटे गोलक में भीषण विस्फोट हुआ। इस प्रकार की विस्फोट प्रक्रिया से वृहत् विस्तार हुआ। वैज्ञानिकों का विश्वास है कि बिग बैंग की घटना आज से 13.7 अरब वर्षो पहले हुई थी। ब्रह्मांड का विस्तार आज भी जारी है। विस्तार के कारण कुछ ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो गई। विस्फोट के बाद एक सैकेंड के अल्पांश के अंतर्गत ही वृहत् विस्तार हुआ। इसके बाद विस्तार की गति धीमी पड़ गई। बिग बैंग होने के आरंभिक तीन मिनट के अंतगत ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ।
iii) बिग बैंग से 3 लाख वर्षों के दौरान तापमान 4500 केल्विन तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ। ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया
स्थिर अवस्था संकल्पना :- हॉयल (Hoyle) ने इस संकल्पना को प्रस्तुत किया इस संकल्पना के अनुसार ब्रह्मांड किसी भी समय में एक ही जैसा रहा है।
तारों का निर्माण
आकाशगंगाओं का विकास :-
प्रारंभिक ब्रह्मांड में ऊर्जा व पदार्थ का वितरण समान नहीं था। घनत्व में आरंभिक भिन्नता से गुरुत्वाकर्षण बलों में भिन्नता आई, जिसके परिणामस्वरूप पदार्थ का एकत्रण हुआ । यही एकत्रण आकाशगंगाओं के विकास का आधार बना।
एक आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह है। आकाशगंगाओं का विस्तार इतना अधिक होता है कि उनकी दूरी हजारों प्रकाश वर्षों में (Light years) मापी जाती है। एक अकेली आकाशगंगा का व्यास 80 हजार से 1 लाख 50 हजार प्रकाश वर्ष के बीच हो सकता है।
नीहारिका :- एक आकाशगंगा के निर्माण की शुरूआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से होती है जिसे नीहारिका (Nebula) कहा गया।
इस बढ़ती हुई नीहारिका में गैस के झुंड विकसित हुए। ये झुंड बढ़ते-बढ़ते घने गैसीय पिंड बने, जिनसे तारों का निर्माण आरंभ हुआ। ऐसा विश्वास किया जाता है कि तारों का निर्माण लगभग 5 से 6 अरब वर्षों पहले हुआ।
प्रकाश वर्ष (Light year) समय का नहीं वरन् दूरी का माप है। प्रकाश की गति 3 लाख कि0 मी0 प्रति सैकेंड है। विचारणीय है कि एक साल में प्रकाश जितनी दूरी तय करेगा, वह एक प्रकाश वर्ष होगा। यह 9.46×10 कि०मी० के बराबर है। पृथ्वी व सूर्य की औसत दूरी 14 करोड़ 95 लाख 98 हजार किलोमीटर है। प्रकाश वर्ष के संदर्भ में यह प्रकाश वर्ष का केवल 8.311 है।
ग्रहों का निर्माण
ग्रहों का निर्माण की अवस्थाएं
(i) तारे नीहारिका के अंदर गैस के गुथित झुंड हैं। इन गुथित झुंडों में गुरुत्वाकर्षण बल से गैसीय बादल में क्रोड का निर्माण हुआ और इस गैसीय क्रोड के चारों तरफ गैस व धूलकणों की घूमती हुई तश्तरी (Rotating disc) विकसित हुई।
ii) अगली अवस्था में गैसीय बादल का संघनन आरंभ हुआ और क्रोड को ढकने वाला पदार्थ छोटे गोलों के रूप में विकसित हुआ। ये छोटे गोले संसंजन (अणुओं में पारस्परिक आकर्षण) प्रक्रिया द्वारा ग्रहाणुओं (Planetesimals) में विकसित हुए। संघ (Collision) की क्रिया द्वारा बड़े पिंड बनने शुरू हुए और गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप ये आपस में जुड़ गए। छोटे पिंडों की अधिक संख्या ही ग्रहाणु है।
iii) अंतिम अवस्था में इन अनेक छोटे ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिंड ग्रहों के रूप में बने।
पार्थिव ग्रहों एवं बाह्य ग्रहों में अन्तर :-
पार्थिव ग्रह जनक तारे के समीप थे अतः अधिक तापमान के कारण वहाँ गैसें संघनित नहीं हो पायीं जबकि जोवियन ग्रह दूर होने के कारण वहाँ गैसें संघनित हो गयीं ।
• सौर वायु के प्रभाव से पार्थिव ग्रहों के गैस व धूलकण उड़ गये किन्तु जोवियन ग्रहों की गैसों को सौर पवन नहीं हटा पायी ।
• पार्थिव ग्रह छोटे थे एवं इनमें गुरुत्वाकर्षण शक्ति कम थी अतः इन पर सौर पवनों के प्रभाव से गैसे रूकी नहीं । जबकि जोवियन ग्रह भारी थे तथा दूर होने के कारण सौर पवनों के प्रभाव अतः उन पर गैसें रूकी रहीं ।
सौरमंडल
हमारे सौरमंडल में आठ ग्रह हैं। नीहारिका को सौरमंडल का जनक माना जाता है उसके ध्वस्त होने व क्रोड के बनने की शुरूआत लगभग 5 से 5.6 अरब वर्षों पहले हुई व ग्रह लगभग 4.6 से 4.56 अरब वर्षों पहले बने।
हमारे सौरमंडल में सूर्य (तारा), 8 ग्रह, 63 उपग्रह, लाखों छोटे पिंड जैसे – क्षुद्र ग्रह ( ग्रहों के टुकड़े) (Asteroids), धूमकेतु (Comets) एवं वृहत् मात्रा में धूलिकण व गैस हैं।
पहले चार ग्रह पार्थिव (Terrestrial) ग्रह भी कहे जाते हैं। इसका अर्थ है कि ये ग्रह पृथ्वी की भाँति ही शैलों और धातुओं से बने हैं और अपेक्षाकृत अधिक घनत्व वाले ग्रह हैं। अन्य चार ग्रह गैस से बने विशाल ग्रह या जोवियन (Jovian) ग्रह कहलाते हैं। जोवियन का अर्थ है बृहस्पति (Jupiter) की तरह ।
चंद्रमा का निर्माण
चंद्रमा पृथ्वी का अकेला प्राकृतिक उपग्रह है। चंद्रमा के निर्माण के अनेकों मत है।
1838 ई० में सर जार्ज डार्विन ने एक मत प्रस्तुत किया पृथ्वी व चंद्रमा तेजी से घूमते एक ही पिंड थे। यह पूरा पिंड डंबल (बीच से पतला व किनारों से मोटा ) की आकृति में परिवर्तित हुआ और अंततोगत्वा टूट गया। उनके अनुसार चंद्रमा का निमार्ण उसी पदार्थ से हुआ है जहाँ आज प्रशांत महासागर एक गर्त के रूप में मौजूद है।
द ‘बिग स्प्लैट
पृथ्वी के बनने के कुछ समय बाद ही मंगल ग्रह के 1 से 3 गुणा बड़े आकार का पिंड पृथ्वी से टकराया। इस टकराव से पृथ्वी का एक हिस्सा टूटकर अंतरिक्ष में बिखर गया। टकराव से अलग हुआ यह पदार्थ फिर पृथ्वी के कक्ष में घूमने लगा और क्रमशः आज का चंद्रमा बना। यह घटना या चंद्रमा की उत्पत्ति लगभग 4.44 अरब वर्षों पहले हुई पृथ्वी के उपग्रह के रूप में चंद्रमा की उत्पत्ति एक बड़े टकराव (Giant impact) का नतीजा है जिसे ‘द ‘बिग स्प्लैट’ (The big splat ) कहा गया है।
पृथ्वी के विकास अवस्था
प्रारंभ में हमारी पृथ्वी चट्टानी गर्म तथा विरान थी । इसका वायुमण्डल भी बहुत ही विरल था, जिसकी रचना हाइड्रोजन तथा हीलयम गैसों से हुई थी। कालांतर में कुछ ऐसी घटनाएँ घटी, जिनके कारण पृथ्वी सुन्दर बन गई और इसपर जल तथा जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियों विकसित हुई ।
पृथ्वी पर जीवन आज से लगभग 460 करोड़ वर्ष पूर्व विकसित हुआ। पृथ्वी की संरचना परतदार है, जिसमें वायुमण्डल की बाहरी सीमा से पृथ्वी के केन्द्र तक प्रत्येक परत की रचना एक- दूसरे से भिन्न है । कालांतर में स्थलमण्डल तथा वायुमण्डल की रचना हुई । पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति इसके निर्माण के अन्तिम चरण में हुई ।
स्थलमंडल का विकास
बहुत से ग्रहाणुओं के इकट्ठा होने से ग्रह बनें। पृथ्वी की रचना भी इसी प्रकम के अनुरूप हुई है।
● जब पदार्थ गुरुत्वबल के कारण संहत हो रहा था, तो उन इकट्ठा होते पिंडों ने पदार्थ को प्रभावित किया
● इससे अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न हुई। यह क्रिया जारी रही और उत्पन्न ताप से पदार्थ पिघलने / गलने लगा। ऐसा पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान और उत्पत्ति के तुरंत बाद हुआ। अत्यधिक ताप के कारण, पृथ्वी आशिक रूप से द्रव अवस्था में रह गई और तापमान की अधिकता के कारण ही हल्के और भारी घनत्व के मिश्रण वाले पदार्थ घनत्व के अंतर के कारण अलग होना शुरू हो गए।
● विभेदन :- इसी अलगाव से भारी पदार्थ (जैसे लोहा), पृथ्वी के केन्द्र में चले गए और हल्के पदार्थ पृथ्वी की सतह या ऊपरी भाग की तरफ आ गए। समय के साथ यह और ठंडे हुए और ठोस रूप में परिवर्तित होकर छोटे आकार के हो गए। अंततोगत्वा यह पृथ्वी की भूपर्पटी के रूप में विकसित हो गए। हल्के व भारी घनत्व वाले पदार्थों के पृथक होने की इस प्रक्रिया को विभेदन कहा जाता है।
● चंद्रमा की उत्पत्ति के दौरान विभेदन का दूसरा चरण प्रारम्भ हुआ इस प्रक्रिया द्वारा पृथ्वी का पदार्थ अनेक परतों में अलग हो गया। पृथ्वी के धरातल से क्रोड तक कई परतें पाई जाती हैं। जैसे-पर्पटी (Crust) प्रावार (Mantle), बाह्य क्रोड (Outer core) और आंतरिक कोड (Inner core) ।
वायुमण्डल का विकास
पृथ्वी पर वायुमण्डल के विकास की तीन अवस्थाएं हैं।
पहली अवस्था में :- सौर पवन के कारण हाइड्रोजन व हीलियम पृथ्वी से दूर हो गयी ।
दूसरी अवस्था में पृथ्वी के ठंडा होने व विभेदन के दौरान पृथ्वी के अंदर से बहुत सी गैसें व जलवाष्प बाहर निकले जिसमें जलवाष्प नाइट्रोजन, कार्बन डाई आक्साइड, मीथेन व अमोनिया अधिक मात्रा में निकलीं, किंतु स्वतन्त्र ऑक्सीजन बहुत कम थी ।
तीसरी अवस्था में पृथ्वी पर लगातार ज्वालामुखी विस्फोट हो रहे थे जिसके कारण वाष्प एंव गैसें बढ़ रही थीं। यह जलवाष्प संघनित होकर वर्षा के रूप में परिवर्तित हुयी जिससे पृथ्वी पर महासागर बने एंव उनमें जीवन विकसित हुआ ।
जलमंडल का विकास
लगातार ज्वालामुखी विस्फोट से वायुमंडल में जलवाष्प व गैस बढ़ने लगी। पृथ्वी के ठंडा होने के साथ-साथ जलवाष्प का संघनन शुरू हो गया। वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाई ऑक्साइड के वर्षा के पानी में घुलने से तापमान में और अधिक गिरावट आई। फलस्वरूप अधिक संघनन व अत्यधिक वर्षा हुई। पृथ्वी के धरातल पर वर्षा का जल गर्तों में इकट्ठा होने लगा, जिससे महासागर बनें।
पृथ्वी पर उपस्थित महासागर पृथ्वी की उत्पत्ति से लगभग 50 करोड़ सालों के अंतर्गत बनें।
महासागर 400 करोड़ साल पुराने हैं। लगभग 380 करोड़ साल पहले जीवन का विकास आरंभ हुआ।
लगभर 250 से 300 करोड़ साल पहले प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया विकसित हुई। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा ऑक्सीजन में बढ़ोतरी महासागरों की देन है। धीरे-धीरे महासागर ऑक्सीजन से संतृप्त हो गए और वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा 200 करोड़ वर्ष पूर्व पूर्ण रूप से भर गई।
जीवन की उत्पत्ति
पृथ्वी की उत्पत्ति का अंतिम चरण जीवन की उत्पत्ति व विकास है ।
● वैज्ञानिक जीवन की उत्पत्ति को एक तरह की रासायनिक प्रतिक्रिया बताते हैं, जिससे पहले जटिल जैव (कार्बनिक) अणु (Complex organic molecules) बने और उनका समूहन हुआ
● यह समूहन ऐसा था जो अपने आपको दोहराता था । (पुनः बनने में सक्षम था) और निर्जीव पदार्थ को जीवित तत्त्व में परिवर्तित कर सका। 300 करोड़ साल पुरानी भूगर्भिक शैलों में पाई जाने वाली सूक्ष्मदर्शी संरचना आज की शैवाल (Blue green algae) की संरचना से मिलती जुलती है।
● जीवन का विकास लगभग 380 करोड़ वर्ष पहले आरंभ हुआ। एक कोशीय जीवाणु से आज के मनुष्य तक जीवन के विकास का सार भूवैज्ञानिक काल मापक्रम से प्राप्त किया जा सकता है।