प्रवास :
वास्तव में प्रवास को 1881 ई. में भारत की प्रथम संचालित जनगणना से ही दर्ज करना आरंभ कर दिया गया था। इन आँकड़ों को जन्म के स्थान के आधार पर दर्ज किया गया था।
1961 की जनगणना में पहला मुख्य संशोधन किया गया था और उसमें दो घटक अर्थात् जन्म स्थान अर्थात् गाँव या नगर और (यदि अन्यत्र जन्मा है) तो निवास की अवधि सम्मिलित किए गए, प्रवास के कारणों पर सूचना का समावेश 1981 की जनगणना में किया गया था।
1971 में पिछले निवास के स्थान और गणना के स्थान पर रुकने की अवधि की अतिरिक्त सूचना को समाविष्ट किया गया।
भारत की जनगणना में प्रवास की गणना दो आधारों पर की जाती है
1) जन्म का स्थान यदि जन्म का स्थान गणना के स्थान से भिन्न है (इसे जीवनपर्यंत प्रवासी के नाम से जाना जाता है);
2) निवास का स्थान, यदि निवास का पिछला स्थान गणना के स्थान से भिन्न है (इसे निवास के पिछले स्थान से प्रवासी के रूप में जाना जाता है)।
2011 की जनगणना के अनुसार देश के 121 करोड़ लोगों में से 45.6 करोड़ (37 प्रतिशत) ऐसे प्रवासियों की संख्या थी जो निवास के पिछले स्थान के संदर्भ में थे। निवास के पिछले स्थान के संदर्भ में यह संख्या 31.5 करोड़ (31 प्रतिशत ) थी।
प्रवास की धाराएँ :
प्रवास की दो प्रकार की धारणाएँ है।
1) आंतरिक प्रवास (देश के भीतर)
2) अंतर्राष्ट्रीय प्रवास (देश सर्वाधिक हैं। के बाहर और अन्य देशों से देश के अंदर)
1) आंतरिक प्रवास के अंतर्गत चार धाराओं की पहचान की गई है
(क) ग्रामीण से ग्रामीण
ख) ग्रामीण से नगरीय
ग) नगरीय से नगरीय
(घ) नगरीय से ग्रामीण
2011 के दौरान पिछले निवास के आधार पर परिकलित 45.6 करोड़ प्रवासियों में से 14.2 करोड़ ने पिछले दस वर्षों में अपने निवास का स्थान बदल लिया है। इनमें से 11.9 करोड़ अंत: राज्यीय प्रवासी थे। इस धारा में स्त्री प्रवासी प्रमुख थी
थोड़ी दूरी के ग्रामीण से ग्रामीण प्रवास की धाराओं में स्त्रियों की संख्या सर्वाधिक है। इसके विपरीत आर्थिक कारणों की वजह से अंतरराज्यीय प्रवास ग्राम से नगर धारा में पुरुष सर्वाधिक हैं।
आंतरिक प्रवास की इन धाराओं के अतिरिक्त भारत में पड़ोसी देशों से आप्रवास और उन देशों की ओर भारत से उत्प्रवास भी हुआ है। जनगणना 2011 में अंकित है कि भारत में अन्य देशों से 50 लाख व्यक्तियों का प्रवास हुआ है। इनमें से 88.9 प्रतिशत पड़ोसी देशों से आए हैं बांग्लादेश, नेपाल इसके बाद पाकिस्तान प्रमुख है ।
प्रवास में स्थानिक विभिन्नता :
महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात और हरियाणा जैसे राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान इत्यादि जैसे अन्य राज्यों से प्रवासियों को आकर्षित करते हैं. प्रवासियों में महाराष्ट्र का सूची में प्रथम स्थान है, इसके बाद दिल्ली, गुजरात और हरियाणा आते हैं। दूसरी और उत्तर प्रदेश और बिहार में राज्य है जहाँ से उत्प्रवासियों की संख्या सर्वाधिक है
प्रवास के कारण :
1) प्रतिकर्ष कारक (Push factor) जो लोगों को निवास स्थान अथवा उद्गम को छुड़वाने का कारण बनते हैं
2) अपकर्ष कारक (Pull factor) जो विभिन्न स्थानों से लोगों को आकर्षित करते हैं।
भारत मे प्रवास का मुख्य कारण :
भारत में लोग ग्रामीण से नगरीय क्षेत्रों में मुख्यतः गरीबी, कृषि भूमि पर जनसंख्या के अधिक दबाव स्वास्थ्य सेवाओं शिक्षा जैसी आधारभूत अवसंरचनात्मक सुविधाओं के अभाव इत्यादि के कारण प्रवास करते हैं।
इन कारकों के अतिरिक्त बाद सूखाती तूफान भूकम्प, सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएँ, युद्ध, स्थानीय संघर्ष मी प्रवास के लिए अतिरिक्त प्रतिकर्ष पैदा करते है। दूसरी और अपकर्ष कारक है, जो लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों की ओर आकर्षित करते हैं।
प्रयास के परिणाम :
1) प्रयास, क्षेत्र पर अवसरों के असमान वितरण के कारण होता है।
2) लोगों में कम अवसरों और कम सुरक्षा वाले स्थान से अधिक अवसरों और बेहतर सुरक्षा वाले स्थान को और जाने की प्रवृति होती है।
3) यह प्रवास के उद्गम और गंतव्य क्षेत्रों के लिए लाभ और हानि दोनों उत्पन्न करता है।
परिणामों को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और किकीय संदर्भों में देखा जा सकता है।
आर्थिक परिणाम
1) उद्गम प्रदेश के लिए मुख्य लाभ प्रथामियों द्वारा भेजी गई डी है। अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों द्वारा भेजी गई डि विदेशी विनिमय के प्रमुख स्रोत में से एक हैं। पंजाब केरल और तमिलनाडु प्रमुख राज्य
2) अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों की तुलना में आंतरिक प्रवासयों द्वारा भेजी गई हुडियों की राशि बहुत थोड़ी है, किंतु यह उद्गम क्षेत्रको आर्थिक वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
3) हुंडियों द्वारा राज्य की अर्थव्यवस्था, कृषि, तथा राज्य के विकास में अहम भूमिका होती है। जैसे : बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
4) अनियंत्रित प्रवास ने भारत के महानगरों को अति संकुलित कर दिया है। महाराष्ट्र गुजरात कर्नाटक, तमिलनाडु और दिल्ली
5) विकसित राज्यों में गंदी बस्तियों (स्लम) का विकास देश में अनियंत्रित प्रयास का नकारात्मक परिणाम है।
जनांकिकीय परिणाम
1) प्रयास से देश के अंदर जनसंख्या का पुनर्वितरण होता है। ग्रामीण नगरी प्रवास नगरों में जनसंख्या को वृद्धि में योगदान देते है।
2) ग्रामीण क्षेत्रों में होने बाले युवा आयु कुशल एवं दक्ष लोगों का बाह्य प्रवास ग्रामीण जनसंघटन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
3) उत्तराखण्ड राजस्थान, मध्य प्रदेश और पूर्वी महाराष्ट्र से होने वाले बाह्य प्रयास ने इन राज्यों की आयु एवं लिंग संरचना में गंभीर असंतुलन पैदा कर दिया है।
सामाजिक परिणाम
1) प्रवासी सामाजिक परिवर्तन के अभिकर्ताओं के रूप में कार्य करते हैं।
2) नवीन प्रौद्योगिकियों, परिवार नियोजन बालिका शिक्षा इत्यादि से संबंधित नए विचारों का नगरीय क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर विसरण इन्हीं के माध्यम से होता है।
3) प्रवास से विविध संस्कृतियों के लोगों का अंतमिश्रण होता है। इसका संकीर्ण विचारों को मिस्र संस्कृति के उद्विकास में सकारात्मक योगदान होता है ओर नकारात्मक भी।
4) खिन्नता की भावना लोगों को अपराध और औषध दुरुपयोग (drug abuse) जैसी असामाजिक क्रियाओं के पाश में फँसने के लिए अभिप्रेरित कर सकती है
पर्यावरणीय परिणाम
1) ग्रामीण से नगरीय प्रवास के कारण लोगों का अति संकुलन नगरीय क्षेत्रों में वर्तमान सामाजिक और भौतिक संरचना पर दबाव डालता है।
2) इससे नगरी बस्तियों की अनिय वृद्धि होती है और गंदी बस्तियों और क्षुद्र कॉलोनियों का निर्माण होता है।
3) प्राकृतिक संसाधनों के अतिदोहन के कारण नगर भौमजल स्तर के अवक्षया प्रदूषण वाहित मल के निपटान और ठोस कचरे के प्रबंधन जैसी गंभीर समस्याओं होती है।
अन्य
1) स्त्रियों के जीवन स्तर को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभावित करता है। ( विवाह के कारण)
2) ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष वरणात्मक बाह्य प्रवास के कारण पत्नियाँ पीछे छूट जाती है
3) प्रदेश के दृष्टिकोण से यदि सुडियाँ (remittances) प्रवास के प्रमुख लाभ हैं तो मानव संसाधन, विशेष रूप से कुशल लोगों का हास उसको गंभीर लागत है।