अध्याय 3 : अपवाह तंत्र

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अपवाह

निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जलप्रवाह को ‘अपवाह’ कहते हैं। इन वाहिकाओं के जाल को ‘अपवाह तंत्र’ कहा जाता है। किसी क्षेत्र का अपवाह तंत्र वहाँ के भूवैज्ञानिक समयावधि, चट्टानों की प्रकृति एवं संरचना, स्थलाकृति, ढाल, बहते जल की मात्रा और बहाव की | अवधि का परिणाम है।

एक नदी विशिष्ट क्षेत्र से अपना जल बहाकर लाती है जिसे ‘जलग्रहण’ (Catchment) क्षेत्र कहा जाता है।

 

 

 

 मुख्य अपवाह प्रतिरूप

(i) जो अपवाह प्रतिरूप पेड़ की शाखाओं के अनुरूप हो, उसे वृक्षाकार (Dendritic) प्रतिरूप कहा जाता है, जैसे उत्तरी मैदान की नदियाँ।

(ii) जब नदियाँ किसी पर्वत से निकलकर सभी दिशाओं में बहती हैं, तो इसे अरीय (Radial ) प्रतिरूप कहा जाता है। अमरकंटक पर्वत श्रृंखला से निकलने वाली नदियाँ इस अपवाह प्रतिरूप के अच्छे उदाहरण हैं।

(iii) जब मुख्य नदियाँ एक-दूसरे के समांतर बहती हों तथा सहायक नदियाँ उनसे समकोण पर मिलती हों, तो ऐसे प्रतिरूप को जालीनुमा (Trellis) अपवाह प्रतिरूप कहते हैं।

(iv) जब सभी दिशाओं से नदियाँ बहकर किसी झील या गर्त में विसर्जित होती हैं, तो ऐसे अपवाह प्रतिरूप को अभिकेंद्री (Centripetal) प्रतिरूप कहते हैं।

 

अपवाह द्रोणी : एक नदी एवं उस की सहायक नदियों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को ‘अपवाह द्रोणी’ कहते हैं।

जल-संभर’ (Watershed) : एक अपवाह द्रोणी को दूसरे से अलग करने वाली सीमा को ‘जल विभाजक’ या ‘जल-संभर’ (Watershed) कहते हैं बड़ी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र को नदी द्रोणी जबकि छोटी नदियों व नालों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को ‘जल-संभर’ ही कहा जाता है। नदी द्रोणी का आकार बड़ा होता है. जबकि जल संभर का आकार छोटा होता है।

 

 

 

 भारतीय अपवाह तंत्र का वर्गीकरण

समुद्र में जल विसर्जन के आधार पर इसे दो समूहों में बाँटा जा सकता है

(1) अरब सागर का अपवाह तंत्र 

(2) बंगाल की खाड़ी का अपवाह तंत्र

 

 

कुल अपवाह क्षेत्र का लगभग 77 प्रतिशत भाग, जिसमें गंगा, ब्रह्मपुत्र महानदी कृष्णा आदि नदियाँ शामिल हैं, बंगाल की खाड़ी में जल विसर्जित करती हैं, जबकि 23 प्रतिशत क्षेत्र, जिसमें सिंधु नर्मदा, तापी माही व पेरियार नदियाँ हैं, अपना जल अरब सागर में गिराती हैं।

 

 

 

 जल-संभर क्षेत्र के आकार के आधार पर भारतीय अपवाह द्रोणियों को तीन भागों में बाँटा गया है :

(1) प्रमुख नदी द्रोणी जिनका अपवाह क्षेत्र 20,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक है। इसमें 14 नदी द्रोणियाँ शामिल हैं, जैसे गंगा बह्मपुत्र, कृष्णा, तापी नर्मदा माही. पेन्नार, साबरमती. बराक आदि

(2) मध्यम नदी द्रोणी जिनका अपवाह क्षेत्र 2,000 से 20.000 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 44 नदी द्रोणियाँ हैं, जैसे कालिंदी, पेरियार, मेघना आदि।

(3) लघु नदी द्रोणी, जिनका अपवाह क्षेत्र 2,000 वर्ग किलोमीटर से कम है। इसमें न्यून वर्षा के क्षेत्रों में बहने वाली बहुत सी नदियाँ शामिल हैं

 

 

 

भारत के अपवाह तंत्र

 

उद्गम के प्रकार, प्रकृति व विशेषताओं के आधार पर भी भारतीय अपवाह तंत्र दो भागों में बाँटा गया है

 

1) हिमालयी अपवाह तंत्र

2) प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र

 

 

 

1)  हिमालयी अपवाह

हिमालयी अपवाह तंत्र भूगर्भिक इतिहास के एक लंबे दौर में विकसित हुआ है। इसमें मुख्यतः गंगा, सिंधु व बह्मपुत्र नदी द्रोणियाँ शामिल हैं। यहाँ की नदियाँ बारहमासी हैं,

ये नदियाँ अपने पर्वतीय मार्ग में V-आकार की घाटियाँ, क्षिप्रिकाएँ व जलप्रपात भी बनाती हैं। जब ये मैदान में प्रवेश करती हैं, तो निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ जैसे-समतल घाटियों, गोखुर झीलें, बाढ़कृत मैदान, गुंफित वाहिकाएँ और नदी के मुहाने पर डेल्टा का निर्माण करती हैं।

कोसी नदी, जिसे बिहार का शोक (Sorrow of Bihar) कहते हैं. अपना मार्ग बदलने के लिए कुख्यात रही है। यह नदी पर्वतों के ऊपरी क्षेत्रों से भारी मात्रा में अवसाद लाकर मैदानी भाग में जमा करती है। इससे नदी मार्ग अवरूद्ध हो जाता है व परिणामस्वरूप नदी अपना मार्ग बदल लेती है। |

 

 

 हिमालय पर्वतीय अपवाह तंत्र का विकास

हिमालय पर्वतीय नदियों के विकास के बारे में मतभेद है। यद्यपि भूवैज्ञानिक मानते हैं कि मायोसीन कल्प में (लगभग 2.4 करोड़ से 50 लाख वर्ष पहले)

ऐसा माना जाता है कि कालांतर में इंडो-ब्रह्म नदी तीन मुख्य अपवाह तंत्रों में बँट गई :

(1) पश्चिम में सिंध और इसकी पाँच सहायक नदियाँ,

(2) मध्य में गंगा और हिमालय से निकलने वाली इसकी सहायक नदियाँ और

(3) पूर्व में बह्मपुत्र का भाग व हिमालय से निकलने वाली इसकी सहायक नदियाँ

 

 

 

 हिमालयी अपवाह तंत्र की नदियाँ

हिमालयी अपवाह में अनेक नदी तंत्र हैं, मगर निम्नलिखित नदी तंत्र प्रमुख हैं:

 

 

सिंधु नदी तंत्र : यह विश्व के सबसे बड़े नदी द्रोणियों में से एक है.

क्षेत्रफल : 11 लाख 65 हजार वर्ग किलोमीटर है। भारत में इसका क्षेत्रफल 3,21,289 वर्ग कि.मी. है। इसकी कुल लंबाई 2880 कि.मी. है और भारत में इसकी लंबाई 1114 किलोमीटर है। भारत में यह हिमालय की नदियों में सबसे पश्चिमी है।

उत्पन्न : तिब्बती क्षेत्र में कैलाश पर्वत श्रेणी में बोखर चू (Bokhar chu) के निकट एक हिमनद ( 31°15′ और 80°40′ पू.) से होता है, जो 4.164 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। तिब्बत में इसे सिंगी खंबान (Singl khamban) अथवा शेर मुख कहते हैं।

सिंधु नदी की बहुत सी सहायक नदियाँ हिमालय पर्वत से निकलती हैं, जैसे शयोक, गिलगित, जास्कर हुंजा, नुबरा, शिगार, गास्टिंग व द्रास

 

 

झेलम

जो सिंधु की महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है, कश्मीर घाटी के दक्षिण-पूर्वी भाग में पीर पंजाल गिरिपद में स्थित वेरीनाग झरने से निकलती है। पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले यह नदी श्रीनगर और वूलर झील से बहते हुए एक तंग व गहरे महाखड्ड से गुजरती है,

 

चेनाव

सिंधु की सबसे बड़ी सहायक नदी है। यह चंद्रा और भागा दो सरिताओं के मिलने से बनती है। ये सरिताएँ हिमाचल प्रदेश में केलाँग के निकट तांडी में आपस में मिलती हैं। इसलिए इसे चंद्रभागा के नाम से भी जाना जाता है। पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले यह नदी 1180 कि०मी० बहती है।

 

रावी

सिंधु की एक अन्य महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है। यह हिमाचल प्रदेश की कुल्लू पहाड़ियों में रोहतांग दर्रे के पश्चिम से निकलती है और राज्य की चंबा घाटी से बहती है।

 

व्यास

सिंधु की अन्य महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है, जो समुद्र तल से 4,000 मीटर की ऊँचाई पर रोहतांग दर्रे के निकट व्यास कुंड से निकलती है। यह नदी कुल्लू घाटी से गुजरती है और धौलाधर श्रेणी में काती और लारगी में महाखड्ड का निर्माण करती है।

 

सतलुज

सतलुज नदी तिब्बत में 4.555 मीटर की ऊँचाई पर मानसरोवर के निकट राक्षस ताल से निकलती है, जहाँ इसे लॉगचेन खंबाब के नाम से जाना जाता है। भारत में प्रवेश करने से पहले यह लगभग 400 किलोमीटर तक सिंधु नदी के समांतर बहती है और रोपड़ में एक महाखड़ से निकलती है।

 

 

 गंगा नदी तंत्र

यह नदी उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी जिले में गोमुख के निकट गंगोत्री हिमनद से 3,900 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। यहाँ यह भागीरथी के नाम से जानी जाती है।

गंगा नदी हरिद्वार में मैदान में प्रवेश करती है। यहाँ से यह पहले दक्षिण की ओर फिर दक्षिण-पूर्व की ओर और फिर पूर्व की ओर बहती है। अंत में, यह दक्षिणमुखी होकर दो जलवितरिकाओं (धाराओं) भागीरथी और पदमा में विभाजित हो जाती है। इस नदी की लंबाई 2525 किलोमीटर है। यह उत्तराखण्ड में 110 किलोमीटर, उत्तरप्रदेश में 1450 किलोमीटर, बिहार में 445 किलोमीटर और पश्चिम बंगाल में 520 किलोमीटर मार्ग तय करती है। गंगा द्रोणी केवल भारत में लगभग 86 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है।

 

 यह भारत का सबसे बड़ा अपवाह तंत्र है. जिससे उत्तर में हिमालय से निकलने वाली बारहमासी व अनित्यवाही नदियाँ और दक्षिण में प्रायद्वीप से निकलने वाली अनित्यवाही नदियाँ शामिल हैं। सोन इसके दाहिने किनारे पर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदी है। बाँये तट पर मिलने वाली महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ रामगंगा, गोमती. घाघरा, गंडक, कोसी व महानंदा हैं। सागर द्वीप के निकट यह नदी अंततः बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है।

 

नमामी गंगे परियोजना”. एक एकीकृत संरक्षण मिशन है, जिसे जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा ‘प्रमुख कार्यक्रम’ के रूप में अनुमोदित किया गया। इसमें राष्ट्रीय नदी गंगा से संबंधित दो उद्देश्य हैं प्रदूषण के प्रभाव को कम करना तथा उसके संरक्षण और कायाकल्प को पूरा करना ।

नमामी गंगे कार्यक्रम के मुख्य स्तंभ हैं-

सीवेज ट्रीटमेंट व्यवस्था

नदी किनारे का विकास

नदी सतह सफ़ाई जैव विविधता

वनीकरण जन जागरूकता

गंगा ग्राम

 

 

 यमुना,

गंगा की सबसे पश्चिमी और सबसे लंबी सहायक नदी है। इसका स्रोत यमुनोत्री हिमनद है, जो हिमालय में बंदरपूँछ श्रेणी की पश्चिमी ढाल पर 6,316 मीटर ऊँचाई पर स्थित है। प्रयाग (इलाहाबाद) में इसका गंगा से संगम होता है ।

 

चंबल नदी

मध्य प्रदेश के मालवा पठार में महु के निकट निकलती है और उत्तरमुखी होकर एक महाखड्ड से बहती हुई राजस्थान में कोटा पहुँचती है, जहाँ इस पर गांधीसागर बाँध बनाया गया है। कोटा से यह बूँदी, सवाई माधोपुर और धौलपुर होती हुई यमुना नदी में मिल जाती है।

 

गंडक नदी

गंडक नदी दो धाराओं कालीगंडक और त्रिशूलगंगा के मिलने से बनती है। यह नेपाल हिमालय में धौलागिरी व माऊंट एवरेस्ट के बीच निकलती है और मध्य नेपाल को अपवाहित करती है। बिहार के चंपारन जिले में यह गंगा मैदान में प्रवेश करती है और पटना के निकट सोनपुर में गंगा नदी में जा मिलती है।

 

घाघरा नदी

घाघरा नदी मापचाचुँगों हिमनद से निकलती है तथा तिला सेती व बेरी नामक सहायक नदियों का जलग्रहण करने के उपरांत यह शीशापानी में एक गहरे महाखड्ड का निर्माण करते हुए पर्वत से बाहर निकलती हैं। शारदा नदी (काली या काली गंगा) इससे मैदान में मिलती है और अंततः छपरा में यह गंगा नदी में विलीन हो जाती है।

 

कोसी नदी

कोसी नदी एक पूर्ववर्ती नदी है जिसका स्रोत तिब्बत में माऊंट एवरेस्ट के उत्तर में है, जहाँ से इसकी मुख्य धारा अरुण निकलती है। नेपाल में मध्य हिमालय को पार करने के बाद इसमें पश्चिम से सोन, कोसी और पूर्व से तमुर कोसी मिलती है।

 

रामगंगा नदी

गैरसेन के निकट गढ़वाल की पहाड़ियों से निकलने वाली अपेक्षाकृत छोटी नदी है।

 

 

शोक नदी

छोटानागपुर पठार के पूर्वी किनारे पर दामोदर नदी वहती है और भ्रंश घाटी से होती हुई हुगली नदी में गिरती है। बराकर इसकी एक मुख्य सहायक नदी है। कभी बंगाल का शोक ( Sorrow of Bengal) कही जाने वाली इस नदी को दामोदर घाटी कार्पोरेशन नामक एक बहुद्देशीय परियोजना ने वश में कर लिया है।

 

शारदा नदी
शारदा या सरयू नदी का उद्गम नेपाल हिमालय में मिलाम हिमनद में है, जहाँ इसे गौरीगंगा के नाम से जाना जाता है। यह भारत-नेपाल सीमा के साथ बहती हुई, जहाँ इसे काली या चाइक कहा जाता है, घाघरा नदी में मिल जाती है।

 

 

ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र

विश्व की सबसे बड़ी नदियों में से एक ब्रह्मपुत्र का उद्गम कैलाश पर्वत श्रेणी में मानसरोवर झील के निकट चेमायुंगडुंग (Chemayungdung) हिमनद में है। यहाँ से यह पूर्व दिशा में अनुदैर्ध्य रूप में बहती हुई दक्षिणी तिब्बत के शुष्क व समतल मैदान में लगभग 1200 किलोमीटर की दूरी तय करती है, जहाँ इसे सांपो (Tsangpo) के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है ‘शोधक‘। असम घाटी में अपनी 750 किलोमीटर की यात्रा में ब्रह्मपुत्र में असंख्य सहायक नदियाँ आकर मिलती हैं। महत्त्वपूर्ण सहायक नदियों में सुबनसिरी, कामेग मानस व संकोश हैं।

बह्मपुत्र नदी बाढ़ मार्ग परिवर्तन एवं तटीय अपरदन के लिए जानी जाती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इसकी अधिकतर सहायक नदियाँ बड़ी हैं और इनके जलग्रहण क्षेत्रों में भारी वर्षा के कारण इनमें अत्यधिक अवसाद बहकर आ जाता है।

 

 

 

2)  प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र

प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र हिमालयी अपवाह तंत्र से पुराना है। नर्मदा और तापी को छोड़कर अधिकतर प्रायद्वीपीय नदियाँ पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं प्रायद्वीप के उत्तरी भाग में निकलने वाली चंबल, सिंध, बेतवा, केन व सोन नदियाँ गंगा नदी तंत्र का अंग है।

 प्रायद्वीप के अन्य प्रमुख नदी – तंत्र महानदी, गोदावरी कृष्णा और कावेरी हैं । प्रायद्वीपीय नदियों की विशेषता है कि ये एक सुनिश्चित मार्ग पर चलती हैं, विसर्प नहीं बनातीं और ये बारहमासी नहीं हैं, यद्यपि भ्रंश घाटियों में बहने वाली नर्मदा और तापी इसका अपवाद हैं।

 

 

प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र का विकास 

तीन प्रमुख भूगर्भिक घटनाओं ने आज के प्रायद्वीपीय भारत के अपवाह तंत्र को स्वरूप प्रदान किया है:

(1) आरंभिक टर्शियरी काल के दौरान प्रायद्वीप के पश्चिमी पार्श्व का अवतलन या धँसाव जिससे यह समुद्रतल से नीचे चला गया। इससे मूल जल संभर के दोनों ओर नदी की सामान्यतः सममित योजना में गड़बड़ी हो गई।

(2) हिमालय में होने वाले प्रोत्थान के कारण प्रायद्वीप खंड के उत्तरी भाग का अवतलन हुआ और परिणामस्वरूप भ्रंश द्रोणियों का निर्माण हुआ । नर्मदा और तापी इन्हीं भ्रंश घाटियों में बह रही हैं और अपरद पदार्थ से मूल दरारों को भर रही हैं। इसीलिए इन नदियों में जलोढ़ व डेल्टा निक्षेप की कमी पाई जाती है।

(3) इसी काल में प्रायद्वीप खंड उत्तर-पश्चिम दिशा से, दक्षिण-पूर्व दिशा में झुक गया। परिणामस्वरूप इसका अपवाह बंगाल की खाड़ी की ओर उन्मुख हो गया।

 

 प्रायद्वीपीय नदी तंत्र

 

 

महानदी

छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में सिहावा के निकट निकलती है और ओडिशा से बहती हुई अपना जल बंगाल की खाड़ी में विसर्जित करती है। यह नदी 851 किलोमीटर लंबी है और इसका जलग्रहण क्षेत्र लगभग 1.42 लाख वर्ग किलोमीटर है। इसके निचले मार्ग में नौसंचालन भी होता है। इस नदी की अपवाह द्रोणी का 53 प्रतिशत भाग मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में और 47 प्रतिशत भाग ओडिशा राज्य में विस्तृत है।

 

गोदावरी

सबसे बड़ा प्रायद्वीपीय नदी तंत्र है। इसे दक्षिण गंगा के नाम से जाना जाता है। यह महाराष्ट्र में नासिक जिले से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में जल विसर्जित करती है। इसकी सहायक नदियाँ महाराष्ट्र मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश राज्यों से गुजरती हैं। यह 1.465 किलोमीटर लंबी नदी है, जिसका जलग्रहण क्षेत्र 3.13 लाख वर्ग किलोमीटर है।

 

 

कृष्णा

पूर्व दिशा में बहने वाली दूसरी बड़ी प्रायद्वीपीय नदी है, जो सह्याद्रि में महाबलेश्वर के निकट निकलती है। इसकी कुल लंबाई 1,401 किलोमीटर है। कोयना, तुंगभद्रा और भीमा इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। इस नदी के कुल जलग्रहण क्षेत्र का 27 प्रतिशत भाग महाराष्ट्र में, 44 प्रतिशत भाग कर्नाटक में और 29 प्रतिशत भाग आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पड़ता है।

 

कावेरी नदी

कर्नाटक के कोगाडु जिले में बह्मगिरी पहाड़ियों (1.341 मीटर) से निकलती है। इसकी लंबाई 800 किलोमीटर है और यह 81,155 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपवाहित करती है। प्रायद्वीप की अन्य नदियों की अपेक्षा कम उतार चढ़ाव के साथ यह नदी लगभग सारा साल बहती है,इस नदी की द्रोणी का 3 प्रतिशत भाग केरल में 41 प्रतिशत भाग कर्नाटक में और 56 प्रतिशत भाग तमिलनाडु में पड़ता है। इसकी महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ काबीनी, भवानी और अमरावती हैं।

 

 

नर्मदा नदी

अमरकंटक पठार के पश्चिमी पार्श्व से लगभग 1.057 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। दक्षिण में सतपुड़ा और उत्तर में विध्याचल श्रेणियों के मध्य यह भ्रंश घाटी से बहती हुई संगमरमर की चट्टानों में खूबसूरत महाखड्ड और जबलपुर के निकट धुआँधार जल प्रपात बनाती है। लगभग 1,312 किलोमीटर दूरी तक बहने के बाद यह भड़ौच के दक्षिण में अरब सागर में मिलती है और 27 किलोमीटर लंबा ज्वारनदमुख बनाती है। सरदार सरोवर परियोजना इसी नदी पर बनाई गई है।

 

 नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए प्रारंभ की गई योजना “नमामि देवि नर्मदे एक यात्रा”

 

 

 तापी नदी

पश्चिम दिशा में बहने वाली एक अन्य महत्त्वपूर्ण नदी है। यह मध्य प्रदेश में बेतूल जिले में मुलताई से निकलती है। यह 724 किलोमीटर लंबी नदी है और लगभग 65.145 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपवाहित करती है। इसके अपवाह क्षेत्र का 79 प्रतिशत भाग महाराष्ट्र में 15 प्रतिशत भाग मध्य प्रदेश में और शेष 6 प्रतिशत भाग गुजरात में पड़ता है।

 

लूनी नदी

अरावली के पश्चिम में लूनी राजस्थान का सबसे बड़ा नदी – तंत्र है। यह पुष्कर के समीप दो धाराओं (सरस्वती और सागरमती) के रूप में उत्पन्न होती है, जो गोबिंदगढ़ के निकट आपस में मिल जाती हैं।

 

 

पश्चिम की ओर बहने वाली छोटी नदियाँ

भद्रा नदी राजकोट जिले के अनियाली गाँव के निकट से निकलती है। ढाढर नदी पंचमहल जिले के घंटार गाँव से निकलती है। साबरमती और माही गुजरात की दो प्रसिद्ध नदियाँ हैं।

 

नासिक जिले में त्रिंबक पहाड़ियों में 670 मीटर की ऊँचाई पर वैतरणा नदी निकलती है। कालिंदी नदी बेलगाँव जिले से निकलकर करवाड़ की खाड़ी में गिरती है। बेति नदी हुबली (धारवाड़) से निकलती है और 161 किलोमीटर लंबा मार्ग तय करती है। शरावती पश्चिम की ओर बहने वाली कर्नाटक की एक अन्य महत्त्वपूर्ण नदी है।

 

गोवा में दो महत्त्वपूर्ण नदियाँ हैं
मांडवी ,
जुआरी

 

पेरियार केरल की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। इसका जलग्रहण क्षेत्र लगभग 5.243 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।

 

 पूर्व की ओर बहने वाली छोटी नदियाँ : पूर्व की ओर बहने वाली कुछ छोटी नदियाँ स्वर्णरेखा, वैतरणी ब्रह्मणी. वामसाधारा, पेंनर, पालार और वैगाई महत्त्वपूर्ण नदियाँ हैं।

 

 

 नदी बहाव प्रवृत्ति

एक नदी के चैनल में वर्षपर्यंत जल प्रवाह के प्रारूप को नदी बहाव प्रवृत्ति (River regime) कहा जाता है।

उत्तर भारत की हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बारहमासी हैं, क्योंकि ये अपना जल बर्फ पिघलने तथा वर्षा होने से प्राप्त करती हैं।

दक्षिण भारत की नदियाँ हिमनदों से नहीं निकलती जिससे इनकी बहाव प्रवृत्ति में उतार-चढ़ाव देखा जा सकता है। इनका बहाव मानसून ऋतु में काफी ज्यादा बढ़ जाता है

जल विसर्जन (Discharge) नदी में समयानुसार जल प्रवाह के आयतन का माप हैं इसे क्यूसेक्स ( क्यूबिक फुट प्रति सैकेंड) या क्यूमैक्स (क्यूबिक मीटर प्रति सैकेंड) में मापा जाता है।

 

 

 नदी जल उपयोग की सीमा

भारत की नदियाँ प्रतिवर्ष जल की विशाल मात्रा का वहन करती हैं, लेकिन समय व स्थान की दृष्टि से इसका वितरण समान नहीं है। बारहमासी नदियाँ वर्ष भर जल का वहन करती हैं, परंतु अनित्यवाही नदियों में शुष्क ऋतु में बहुत कम जल होता है।

 

नदी जल उपयोग से संबंधित समस्याओं को देखा जा सकता है

(1) पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध न होना;

(ii) नदी जल प्रदूषण;

(iii) नदी जल में गादः

(iv) ऋतुवन जल का असमान प्रवाह;

(v) राज्यों के बीच नदी जल विवाद:

(vi) मध्य धारा की ओर बस्तियों के विस्तार के कारण नदी वाहिकाओं का सिकुड़ना ।

 

 

 

 

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