आदिवासी :- बिरसा का जन्म एक मुंडा परिवार में हुआ था। बिरसा ने खुद यह ऐलान कर दिया था कि उसे भगवान ने लोगों की रक्षा और उनकी दिकुओं ( बाहरी लोगों ) की गुलामी से आजाद कराने के लिए भेजा है।
जनजातीय समूह :- उन्नीसवीं सदी तक देश के विभिन्न भागों में आदिवासी तरह-तरह की गतिविधियों में सक्रिय थे।
झूम की खेती :- झूम खेती घुमंतू खेती को कहा जाता है। इस तरह की खेती अधिकांशत: जंगलो में छोटे-छोटे भूखण्डो पर की जाती थी। घुमंतू किसान मुख्य रूप से पूर्वोत्तर और मध्य भारत की पर्वतीय व जंगली पट्टियों में ही रहते थे।
शिकारी और संग्राहक :- आदिवासी मुख्ययात: पशुओं का शिकार करके और वन्य उत्पादों को इकठ्ठा करके अपना काम चलाते थे। खाना पकाने के लिए साल और महुआ के बीजों का तेल इस्तेमाल करते थे। इलाज के लिए बहुत सारी जंगली जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल करते थे और जंगलों से इकट्ठा हुईं चीजों को स्थानीय बाजारों में बेच देते थे।
मध्य भारत के बैगा :- औरों के लिए काम करने से कतराते थे। बैगा खुद को जंगल की संतान मानते थे जो केवल जंगल की उपज पर ही जिंदा रह सकती है। मजदूरी करना बैगाओं के लिए अपमान की बात थी।
पशुपालन :- बहुत सारे आदिवासी समूह जानवर पालकर अपनी जिंदगी चलाते थे। वे चरवाहे थे जो मौसम के हिसाब से मवेशियों या भेड़ो के रेवड़ लेकर यहाँ से वहाँ जाते रहते थे।
– पंजाब के पहाड़ों में रहने वाले वन गुज्जर और आंध्र प्रदेश के लबाड़िया आदि समुदाय गाय-भैंस के झुंड पालते थे।
– कुल्लु के गद्दी समुदाय ले लोग गड़रिये थे और कश्मीर के बकरवाल बकरियाँ पालते थे।
खेती :- अंग्रेजों को लगता था कि उन्नसवीं सदी से पहले गोंद और संथाल आदिवासी समूह शिकारी-संग्राहक या घुमंतू खेती करने वाले लोगों को स्थायी रूप से एक जगह बसना और सभ्य बनाना जरूरी था। औपनिवेशिक शासन से आदिवासीयोन के जीवन पर क्या असर पड़े।
आदिवासी मुखिया :- आदिवासीयों के मुखियाओं का महत्वपूर्ण स्थान होता था। उनके पास औरों से ज्यादा आर्थिक ताकत होती थी और वे अपने इलाके पर नियंत्रण रखते थे। कई जगह उनकी पुलिस होती थी और वे जमीन एवं वन प्रबंधन के स्थानीय नियम खुद बनाते थे। ब्रिटिश शासन से उनकी शक्तियाँ छीन गई।
घुमंतू काश्तकार :- ऐसे समूहों से अंग्रेजों को काफ़ी परेशानी थी जो यहाँ-यहाँ भटकते रहते थे और एक जगह ठहरकर नही रहते थे।वे चाहते थे कि आदिवासीयों के समूह एक जगह स्थायी रूप से रहें और खेती करें। स्थायी रूप से एक जगह रहने वाले किसानों को नियंत्रित करना आसान था । अंग्रेज अपने शासन के लिए आमदनी का नियमित स्रोत भी चाहते थे । इसलिए जमीन को मापकर लगन तय कर दिया
वन कानून :- अंग्रेजों ने सारे जंगलों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था और जंगलों को राज्य की संपत्ति घोषित कर दिया था। कुछ जंगलों को आरक्षित वन घोषित कर दिया गया। ये ऐसे जंगल थे जहाँ अंग्रेजो की जरूरतों के लिए इमारती लकड़ी पैदा होती थी। इन जंगलों में लोगों को स्वतंत्र रूप से घूमने , झूम की बातखेती करने , फल इकठ्ठा करने या पशुओं का शिकार करने की इजाजत नही थी।
स्लीपर :- लकड़ी के क्षैतिज तख्ते जिन पर रेल की पटरियाँ बिछाई जाती हैं।
व्यापार समस्या :- अठारहवीं सदी में भरतीय रेशम की यूरोपीय बाजारों में भारी माँग थी। भारतीय रेशम की अच्छी गुणवत्ता सबको आकर्षित करती थी और भारत का निर्यात तेजी से बढ़ रहा था। जैसे -जैसे बाज़ार फैला ईस्ट इंडिया कंपनी के अफ़सर इस माँग को पूरा करने के लिए रेशम उत्पादन पर जोर देने लगे।
काम की तलाश :- उन्नीसवीं सदी के आखिर से ही चाय बागान फैलने लगे थे। खदानों में काम करने के लिए आदिवासीयों को बड़ी संख्या में भर्ती किया गया। 1831-32 में कोल आदिवासीयों ने और 1855 में संथालो ने बगावत कर दी थी। मध्य भारत मे बस्तर विद्रोह 1910 में हुआ और 1940 में महाराष्ट्र में वर्ली विद्रोह हुआ।
बिरसा मुंडा :- बिरसा का जन्म 1870 के दशक के मध्य मध्य में हुआ। बिरसा का आंदोलन आदिवासी समाज को सुधारने का आंदोलन था। और मिशनरियों और हिंदू जमीदारों का भी लगातार विरोध किया। यह आंदोलन दो मायनों में महत्वपूर्ण था।
पहला- इसने औपनिवेशिक सरकार को ऐसे कानून लागू करने के लिए मजबूर किया जिनके जरिए दिकु लोग आदिवासीयों की जमीन पर आसानी से कब्जा न कर सके।
दूसरा- इसने एक बार फिर जता दिया कि अन्याय का विरोध करने और औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध अपने गुस्से को अभिव्यक्त करने में आदिवासी सक्षम हैं।
वैष्णव :- विष्णु की पूजा करने वाले वैष्णव कहलाते हैं।
अध्याय : 5 जब जनता बग़ावत करती है 1857 और उसके बाद