अध्याय 4 : मानव विकास

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महत्वपूर्ण परिभाषाएँ :

 

1. मानव विकास  : दीर्घ जीविता शिक्षा तथा उच्च जीवन स्तर तथा स्वस्थ जीवन के संदर्भ में लोगों के विकल्पों को परिवर्धित करने की प्रक्रिया।

2. आर्थिक विकास  : आर्थिक विकास से तात्पर्य उत्पादन व उत्पादकता के संदर्भ में मानव की आय बढ़ाने की प्रक्रिया।

3. जीवन प्रत्याशा : मानव की औसत आयु जिस पर उसकी मृत्यु होती है। शिशु मृत्यु दर में परिवर्तन के साथ यह भी बदलती है।

4. प्रौढ़ साक्षरता : कुल प्रौढ़ जनसंख्या में साक्षर लोगों का अनुपात जो साक्षरता का न्यूनतम स्तर प्राप्त करते हैं। इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

5. क्रय शक्ति समता : समायोजित प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद को व्यसन करने के लिए उच्च जीवन स्तर का संकेतक ।

 

 

वृद्धि और विकास

 

वृद्धि : वृद्धि और विकास दोनों समय के संदर्भ में परिवर्तन को इंगित करते हैं। वृद्धि मात्रात्मक और मूल्य निरपेक्ष है। इसका चिह्न धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकता है। इसका अर्थ है कि परिवर्तन धनात्मक (वृद्धि दर्शाते हुए) अथवा ऋणात्मक (ह्रास इंगित करते हुए) हो सकता है।

 

विकास : विकास का अर्थ गुणात्मक परिवर्तन है जो मूल्य सापेक्ष होता है इसका अर्थ है-विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक वर्तमान दशाओं में वृद्धि न हो। विकास उस समय होता है जब सकारात्मक वृद्धि होती है। तथापि सकारात्मक वृद्धि से हमेशा विकास नहीं होता विकास उस समय होता है जब गुणवत्ता में सकारात्मक परिवर्तन होता है।

 

 

 

 विकास की प्राचीन व आधुनिक अवधारणा

जिस देश की अर्थव्यवस्था जितनी बड़ी होती उसे उतना ही अधिक विकसित माना जाता था लेकिन इस वृद्धि का अधिकांश लोगों के जीवन में परिवर्तन से कोई संबंध नहीं था। किसी देश में लोग जीवन की गुणवत्ता का जो आनंद लेते हैं, उन्हें जो अवसर उपलब्ध है और जिन स्वतंत्रताओं का ये भोग करते हैं, विकास के महत्वपूर्ण पक्ष है,

 

पहली बार इन विचारों को 80 के दशक के अंत और 90 के दशक के आरंभ में स्पष्ट किया गया था। इस संबंध में दक्षिण एशियाई अर्थशास्त्रियों महबूब -उल-हक और अमर्त्य सेन का कार्य महत्त्वपूर्ण है।

 

 

 

मानव विकास की अवधारणा:

इस अवधारण का प्रतिपादन डॉ. महबूब-उल-हक के द्वारा किया गया था। डॉ. हक ने मानव विकास का वर्णन एक ऐसे विकास के रूप में किया जो लोगों के विकल्पों में वृद्धि करता है और उनके जीवन में सुधार लाता है। इस अवधारणा में सभी प्रकार के विकास का केंद्र बिंदु मनुष्य है। संसाधनों तक पहुँच, स्वास्थ्य एवं शिक्षा मानव विकास के केंद्र बिंदु हैं। इन पक्षों में से प्रत्येक के मापन के लिए उपयुक्त सूचकों का विकास किया गया है।

 

लोगों में अपने आधारभूत विकल्प को तय करने की क्षमता और स्वतंत्रता नहीं होती। यह ज्ञान प्राप्त करने की अक्षमता उनकी भौतिक निर्धन, सामाजिक संस्थाओं की अक्षमता और अन्य कारणों की वजह से हो सकता है। लोगों के विकल्पों में वृद्धि करने के लिए स्वास्थ्य शिक्षा और संसाधनों तक पहुँच में उनको क्षमताओं का निर्माण करना महत्त्वपूर्ण है। यदि इन क्षेत्रों में लोगों की क्षमता नहीं विकल्प भी सीमित हो जाते हैं।

 

 

 

मानव विकास के चार स्तंभ

 

1. समता :

समता का आशय प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों के लिए समान पहुँच की व्यवस्था करना है। लोगों को उपलब्ध अवसर लिंग, प्रजाति, आय और भारत के संदर्भ में जाति के भेदभाव के विचार के बिना समान होने चाहिए।

 

 

2. सतत पोषणीयता : सतत पोषणीयता विकास के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक पीढ़ी को समान अवसर मिले। समस्त पर्यावरणीय वित्तीय एवं मानव संसाधनों का उपयोग भविष्य को ध्यान में रखकर करण चाहिए। इन संसाधनों में से किसी भी एक का दुरुपयोग भावी पीढ़ियों के लिए अवसरों को कम करेगा।

 

 

3. उत्पादकता : उत्पादकता का अर्थ मानव श्रम उत्पादकता अथवा मानव कार्य के सन्दर्भ उत्पादकता है। लोगों में क्षमताओं का निर्माण करके ऐसी उत्पादकता में निरंतर वृद्धि की जानी चाहिए। अंततः जनसमुदाय हो राष्ट्रों के वास्तविक धन होते हैं।

 

4. सशक्तीकरण : अपने विकल्प चुनने के लिए शक्ति प्राप्त करना। ऐसी शक्ति बढ़ती हुई स्वतंत्रता और क्षमता से आती है। लोगों को सशक्त करने के लिए सुशासन एवं लोकोन्मुखी नीतियों को आवश्यकता होती है।

 

 

 

 

 मानव विकास के उपागम

 

आय उपागम

यह मानव विकास के सबसे पुराने उपागमों में से एक है। इसमें मानव विकास को आप के साथ जोड़ कर देखा जाता है। विचार यह है कि आय का स्तर किसी व्यक्ति द्वारा मांगी जा रही स्वतंत्रता के स्तरको परिमित करता है। आपका स्तर होने पर मानव विकास का स्तर भी ऊंचा होगा।

 

कल्याण उपागम

यह उपागम मानव को लाभार्थी अथवा सभी गतिविधियों के लक्ष्य के रूप में देखता है यह उपागम शिक्षा, स्वास्थ्य सामाजिक सुरक्षा और सुख-साधनों पर उच्चतर सरकारी व्यय का तर्क देता है।

 

आधारभूत आवश्यकता उपागम

इस उपागम को मूल रूप से अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने प्रस्तावित किया था। इसमें न्यूनतम आवश्यकताओं जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन, जलापूर्ति, स्वच्छता और आवास की पहचान की गई थी इसमें मानव विकल्पों के प्रश्न की उपेक्षा की गई है और परिभाषित वर्गों की मूलभूत आवश्यकताओं की पर और दिया गया है।

 

क्षमता उपागम

इस उपागम का संबंध प्रो अमर्त्य सेन से है। संसाधनों तक पहुँच के क्षेत्रों में मान्य क्षमताओं का निर्माण बढ्ते मानव विकास की कुंजी है।

 

 

अन्तराष्ट्रीय तुलनायें (International Comparisions) :

सीमाओं का आकार तथा प्रति व्यक्ति आय का सीधा सम्बन्ध मानव विकास से नहीं है। प्रायः छोटे देश बड़े देशों की अपेक्षा मानव विकास अच्छा कर लेते है। अपेक्षाकृत गरीब देश धनी देशों से मानव विकास में अधिक आगे है।

उदाहरण के लिए लंका ट्रिनीडाड तथा टोवेगो मानव विकास में भारत से आगे है। उसी प्रकार भारत में केरल पंजाब गुजरात की अपेक्षा अधिक अच्छा है जबकि उसकी प्रति व्यक्ति आय कम है।

 

 

अति उच्च सूचकांक वाले देश : अति उच्च संकेतक विकास वाले देश के हैं जहाँ 0.8 से अधिक स्कोर है। इन देशों की संख्या 66 है। 2020 के अनुसार ये देश हैं 1. नावें. 2. आइमलैंड, 3. आस्ट्रेलिया, 4. लब – समवर्ग, 5. कनाड, 6. स्वेडन, 7. स्विटजर लैंड, 8. आयरलैंड, 9. वेल्जियम, 10. संयुक्त राज्य

 

उच्च सूचकांक वाले देश : इस समूह में 53 देश सम्मिलित है। इन देशों कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध कराना सरकार की महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता रही है। और एक स्थिर सरकार , स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार अर्थव्यवस्था में ये देश विकास कर रहे है ।

 

मध्यम संकेतक वाले देश : इस वर्ग में 37 देश है। इनमें से बहुत से देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उभरे हैं। इनमें से कुछ देश उपनिवेश रह चुके हैं। इनमें में बहुत से देश शीघ्रता से उन्नति कर रहे हैं।

 

निम्न संकेतक वाले देश  : इस वर्ग के देश 37 हैं। इनमें से बड़ा भाग छोटे देशों का है । जिन में राजनैतिक संघर्ष, तथा आन्तरिक संघर्ष अकाल और महामारियाँ फैली हैं।

 

 

 

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