सूर्य के ताप के कारण जल वाष्पित हो जाता है। ठंडा होने पर जलवाष्प संघनित होकर बादलों का रूप ले लेता है। यहाँ से यह वर्षा ,हिम अथवा सहिम वृष्टि के रूप में धरती या समुद्र पर नीचे गिरता है।
जिस प्रक्रम में जल लगातार अपने स्परूप को बदलता रहता है और महासगरों ,वायुमडंल एवं धरती के बीच चक्कर लगतता रहता है। उस को जल चक्र कहते हैं।
हमारी पृथ्वी थलशाला के समान है। जो जल , शताब्दियों पूर्व उपस्थित था , वही आज भी मौजूद है।
जल का वितरण :- पृथ्वी की सतह की तीन-चौथाई भाग जल से ढँका हुआ है। यदि धरती पर थल की अपेक्षा जल अधिक है , तो अनेक देशों में जल की कमी का सामना क्यों करना पड़ता है ?निम्नलिखित तालिका में जल विवरण का प्रतिशत दिया गया है। :- महासागर : 97.3 बर्फ़ : 02.0 भूमिगत जल : 00.68 झीलों का अलवण जल : 0.009 स्थलीय समुद्र एवं नमकीन झीलें : 0.009 वायुमंडल नदियाँ : 0.0001 =100.00
इजराइल के मृत सागर में 340 ग्राम प्रति लीटर लवणता होती है। तैराक इसमें प्लव क्र सकते है , क्योंकि नमक की अधिकता इसे सघन बना देती है। ‘ लवणता ‘ 1000 ग्राम में मौजूद नमक की मात्रा होती है। महासागर की औसत लवणता 35 भाग प्रति हजार ग्राम है।
22 मार्च ‘ विश्व जल दिवस ‘ के रूप में मनाया जाता है।
महासागरीय परिसंचरण :- महासागरों की गतियों को इस प्रकार वर्गीकृत कर सकते हैं जैसे – तरंगे , ज्वार – भाटा एवं धाराएँ।
तरगें :- जब महासागरीय सतह पर लगातार उठता और गिरता रहता है , तो इन्हें कहते है।भूकंप , ज्वालामुखी उदगार , या जल के नीचे भूस्खलन के कारण महासागरीय जल अत्यधिक विस्थापित होता है। इसके परिणामस्वरूप 15 मीटर तक की ऊँचाई वाली ज्वारीय तरंगे उठ सकती हैं , जिसे सुनामी कहते हैं।
ज्वार-भाटा :-दिन में दो बार नियम से महासागरीय जल का उठना एवं गिरना ‘ ज्वार-भाटा ‘कहलाता देता है। सूर्य और चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण जब समुद्र का जल ऊपर की ओर उठता है तो उसे ज्वार तथा जल का नीचे गिरता है तो उसे भाटा कहते है।
सूर्य एवं चंद्रमा के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी की सतह पर ज्वार-भाटे आते हैं।
पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिनों में सूर्य , चंद्रमा एवं पृथ्वी एक सीध में होते हैं जिसके कारण ऊँचे ज्वार उठते है इस ज्वार को बृहत् ज्वार कहते है।
चाँद एवं सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल विपरीत दिशाओं से महासागरीय जल पर पड़ता है जिसके कारण निम्न ज्वार आता हैइस ज्वार को लघु ज्वर-भाटा कहते है।
महासागरीय धाराएँ :- निश्चित दिशा में महासागरीय सतह पर नियमित रूप से बहने वाली जल धाराएँ होती हैं। महासागरीय धाराएँ गर्म या ठंडी हो सकती हैं।
गर्म महासागरीय धाराएँ :- भूमध्य रेखा के निकट उत्पन्न होती हैं एवं ध्रुवों की ओर प्रवाहित होती है। गल्फस्ट्रीम गर्म जलधाराएँ होती है। गर्म धाराओं से स्थलीय सतह का तापमान गर्म हो जाता है।
ठंडी महासागरीय धाराएँ :- ध्रुवों या उच्च अक्षांशो से उष्णकटिबंधीय या निम्न अक्षांशो की ओर प्रवाहित होती है। ये लेब्राडोर शीत महासागरीय धाराएँ होती है।
जिस स्थान पर गर्म एवं शीत जलधाराएँ मिलती है , वह स्थान विश्वभर में सर्वोत्तम मत्स्यन क्षेत्र माना जाता है। जापान के आस-पास एवं उत्तर अमेरिका के पूर्वी तट इसके उदाहरण है