तुर्को का आक्रमण :- अलप्तगीन गजनवी वंश का संस्थापक (तुर्क राज्य) ,सुबुक्तगीन -भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम तुर्क शासक। महमूद गजनी – सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला प्रथम तुर्क शासक। मुहम्मद गोरी भारत में तुर्की राज्य का संस्थापक।
प्रारंभिक तुर्की शासक –क़ुतुबुद्दीन ऐबक , इल्तुतमिश , रज़िया , ख़िलजी वंश – जलालुद्दीन , अलाउद्दीन ,तुगलक वंश – गयासुद्दीन , मुहम्मद , फिरोज़ शाह , सैयद वंश – ख़िज्र ,मुहम्मद लोदी वंश – बहलोल , इब्राहिम लोदी। तेरहवीं सदी के आरंभ में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई और इसके साथ दिल्ली एक ऐसी राजधानी में बदल गई जिसका नियंत्रण इस उपमहाद्वीप के बहुत बड़े क्षेत्र पर फैला था।
दिल्ली के सुलतानों के बारे में जानकारी -कैसे :- अभिलेख , सिक्कों और स्थापत्य (भवन निर्माण कला) के माध्यम से काफ़ी सुचना मिलती है , मगर और भी महत्वपूर्ण वे ‘इतिहास ‘ तारीख (एकवचन) /तवारीख (बहुवचन )हैं जो सुल्तानों के शासनकाल में , प्रशासन की भाषा फ़ारसी में लिखे गए थे। तवारीख के लेखक सचिव , प्रशासक , कवि और दरबारियों जैसे सुशिक्षित व्यक्ति होते थे जो घटनाओं का वर्णन भी करते थे और शासको को प्रशासन संबंधी सलाह भी देते थे। वे न्यायसंगत शासन के महत्त्व पर बल देते थे। सैनिकों को वेतन दिया जाता थाकिसान भी राजस्व तभी चुकाते जब वे खुशहाल और प्रसन्न हो।
जन्मसिद्ध अधिकार :- जन्म के आधार पर विशेषाधिकार का दावा उदाहरण के लिए , लोग मानते तह की कुलीन व्यक्तियों को , कुछ खास परिवारों में जन्म लेने के कारण शासन करने का अधिकार विरासत में मिलता है। मिन्हाज-ए-सिराज :- ईश्वर ने जो आदर्श समाज व्यवस्था बनाई है उसके अनुसार महिलाओं को पुरुषों के अधीन होना चाहिए।
दिल्ली सल्तनत का विस्तार :- तेरहवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में दिल्ली के सुल्तानों का शासन गैरीसनों ( रक्षक सैनिकों की टुकड़ियों ) के निवास के लिए बने मज़बूत किलेबंद शहरों से परे शायद ही कभी फैला हो। शहरों से संबद्ध , लेकिन उनसे दूर भीतरी प्रदेशों पर उनका नियंत्रण न के बराबर था और इसलिए उन्हें आवश्यक सामग्री , रसद आदि के लिए व्यापर , कर या लूटमार पर ही निर्भर रहना पड़ता था।
दूसरा विस्तार सल्तनत की बाहरी सीमा पर हुआ। बारहवीं सदी के आखिरी दशक में बनी कुव्वत अल-इस्लाम मसजिद तथा उसकी मीनारें। यह जामा मसजिद दिल्ली के सुलतानों द्वारा बनाए गए सबसे पहले शहर में स्थित है। इतिहास में इस शहर को ” देहली-ए कुहना (पुराना शहर ) खा गया है। इस मसजिद का विस्तार इल्तुतमिश और अलाउद्दीन ख़िलजी ने किया। मीनार तीन सुलतानों -क़ुतबुद्दीन ऐबक , इल्तुतमिश और फिरोज शाह तुग़लक़ द्वारा बनवाई गई थी।
मसजिद :- यह अरबी का शब्द है , जिसका शाब्दिक अर्थ – ऐसा स्थान जहाँ मुसलमान अल्लाह की आराधना में सजदा ( घुटने और माथा टेककर )करते हैं। जामा मसजिद ( या मसजिद-ए -जामी ) वह मसजिद होती है , जहाँ अनेक मुसलमान एकत्र होकर साथ-साथ नमाज़ पढ़ते हैं। नमाज़ की रस्म के लिए एक विद्वान पुरुष को इमाम ( नेता ) के रूप में चुना जाता है। इमाम शुक्रवार की नमाज़ के दौरान धर्मोपदेश ( खुतबा ) भी देता हैं। नमाज़ के दौरान मुसलमान मका की तरफ़ मुँह करके खड़े होते हैं। मक्का की ओर की दिशा को ‘ किबला ‘ कहा जाता है।
ख़िलजी और तुग़लक़ वंश :- दिल्ली सल्तनत जैसे विशाल साम्रज्य के समेकन के लिए विश्वसनीय सूबेदारों तथा प्रशासकों की जरूरत थी। दिल्ली के आंरभिक सुलतान विशेषकर इल्तुतमिश , सामंतों और जमींदारों के स्थान पर अपने विशेष गुलामों को सूबेदार नियुक्त करना अधिक पसंद करते थे। इन गुलामों को फ़ारसी में बंदगाँ कहा जाता है तथा इन्हें सैनिक सेवा के लिए खरीदा जाता था।
उन्हें राज्य के कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण राजनितिक पदों पर काम करने के लिए बड़ी सावधानी से प्रशिक्षित किया जाता था। वे चूँकि पूरी तरह अपने मालिक पर निर्भर होते थे , इसलिए सुल्तान भी विश्वास करके उन पर निर्भर हो सकते थे।
सेनानायकों को भिन्न-भिन्न आकार के इलाकों के सूबेदार के रूप में नियुक्त किया। ये इलाके इक्ता कहलाते थे और इन्हें सँभालने वाले अधिकारी इक्तदार या मुक्ती कहे जाते थे। मुक्ती का फ़र्ज था सैनिक अभियानों का नेतृत्व करना और अपने इक्तों में कानून और व्यवस्था बनाए रखना अपनी सैनिक सेवाओं के बदले वेतन के रूप में मुक्ती अपने इलाकों से राजस्व की वसूली किया करते थे। राजस्व के रूप में मिली रकम सर ही वे सैनिकों को भी तनख्वाह देते थे।
उस समय तीन तरह कर थे :1. कृषि पर , जिसे खराज कहा जाता था और किसान की उपज का लगभग पचास प्रतिशत होता था। २. मवेशियों पर तथा 3. घरों पर।
अफ़्रीकी देश :- मोरक्को से चौदहवीं सदी में भारत आए यात्री इबन बतूता ने बतलाया है की सरदार की रक्षा-व्यवस्था के बारे में। दिल्ली सल्तनत ने 1526 तक दिल्ली तथा आगरा पर सैयद तथा लोदी वंशों का राज्य रहा। इसके बाद धीरे-धीरे छोटे-छोटे शक्तिशाली शासको क उदय हुआ जैसे अफ़गान , राजपूत , शेरशाह सूरी , और मुग़ल साम्रज्य।
अध्याय 4 : मुग़ल साम्राज्य