आधुनिक चरवाहा क्या है? घुमंतू चरवाहे और उनकी आवाजाही। चरवाहे किसे कहते है। भारत के मुख्य चरवाहा समुदायों के नाम। औपनिवेशिक शासन और चरवाहों का जीवन। अफ़्रीका में चरवाहा।
इस अध्याय में भारत और अफ़्रीका के पहाड़ों और रेगिस्तान और पठारों में चरवाहों के जीवन के बारे में अध्ययन करेंगें।
◆घुमंतू :- घुमंतू ऐसे लोग होते हैं जो किसी एक जगह टिक कर नही रहते बल्कि रोज़ी-रोटी के जुगाड़ में यहाँ से वहाँ घूमते रहते हैं।
● डेढ़ कई हिस्सों में हम घुमंतू चरवाहों को अपने जानवरों के साथ आते-जाते देख सकते हैं।
●चरवाहों की किसी टोली के पास भेड़-बकरियों का रेवड़ या झुंड होता है तो किसी के पास ऊँट या अन्य मवेशी रहते हैं।
◆ घुमंतू चरवाहे और उनकी आवाजाही :- चरवाहे लोग अपने मवेशियों के लिए चरागाहों की तलाश में यहाँ आये थे।
● पहाड़ो में :- चरवाहे सर्दी-गर्मी के हिसाब से अलग-अलग चरागाहों में जाने लगे।
● जाड़ो में जब ऊँची पहाड़ियाँ बर्फ़ से ढक जाती तो वे शिवालिक की निचली पहाड़ियो में आकर डेरा डाल लेते थे।
● अप्रैल के अंत तक वे उत्तर दिशा में जाने लगते – गर्मियों के चरागाहों के लिए।
● इस सफ़र में कई परिवार काफ़िला बना कर साथ-साथ चलते थे।
○ भाबर :– गढ़वाल और कुमाऊँ के इलाके में पहाड़ियों के निचले हिस्से के आसपास पाए जाने वाला शुष्क या सूखे जंगल का इलाका।
○ बुग्याल :- ऊँचे पहाड़ो में स्थित घास के मैदान।
☆ पठारों में :- धंगर महाराष्ट्र का एक जाना-माना चरवाहा समुदाय है। जो मध्य पठारों में रहते थे।
● बीसवीं सदी की शुरुआत में इस समुदाय की आबादी लगभग 4,67,000 थी।
● उनमें से ज्यादातर गड़रिये या चरवाहे थे जिसमें कुछ लोग कम्बल और चादरें भी बनाते थे।जबकि कुछ भैंस पालते थे।
○ रबी :- जाड़ो की फ़सले जिनकी कटाई मार्च के बाद शुरू होती हैं।
○ खरीफ़ :- सितंबर-अक्टूबर में कटने वाली फ़सले।
○ ठूँठ :- पौधों की कटाई के बाद ज़मीन में रह जाने वाली उनकी जड़।
फसल के प्रकार :- फसल को दो वर्गों में बँटा जा सकता है।
○ खरीफ़ फ़सल :- वह फसल जिन्हें वर्षा ऋतु में बोया जाता है, खरीफ़ फ़सल कहलाती है। भारत में वर्षा ऋतु जून से सितम्बर तक होती है। धान , मक्का , सोयाबीन , मूँगफली आदि
○ रबी फ़सल :- वह फसल जिन्हें शीत ऋतु में बोया जाता है। भारत में शीत ऋतु अक्टूबर से मार्च तक होती है। गेंहूँ , चना , मटर , सरसों आदि।
☆ रेगिस्तानों में :- राजस्थान के रेगिस्तानी में ‘ राइका ‘ समुदाय रहता था।
● इस इलाके में बारिश का कोई भरोसा नही थी। होती भी थी तो बहुत कम।
● राइका समुदाय खेती के साथ-साथ चरवाही का भी काम करते थे।
● अक्टूबर आते-आते ये चरागाह सूखने लगते थे। तो ये लोग नए चरागाहों की तलाश में दूसरे इलाकों की तरफ चले जाते थे।
● अगली बरसात में ही वापस लौटते थे। अपनी रोज़ी-रोटी के जुगाड़ में उन्हें खेती , व्यापार , और चरवाही काम करने पड़ते थे।
☆ औपनिवेशिक शासन :- जब एक देश पर दूसरे देश पर दूसरे देश के दबदबे से इस तरह के राजनीतिक , आर्थिक , सामाजिक और सासंकृतिक बदलाव आते हैं तो इस प्रक्रिया को औपनिवेशीकरण कहा जाता है ।
○ औपनिवेशिक क्या होता है :-
अंग्रेजों ने हमारे देश को जीता और स्थानीय नवाबों और राजाओं को दबाकर अपना शासन स्थापित किया। उन्होंने अर्थव्यवस्था व समाज पर नियंत्रण स्थापित किया ,अपने सारे खर्चों को निपटाने के लिए राजस्व वसूल किया। ब्रिटिश शासन के कारण यहाँ की मूल्यों-मान्यताओं और पसंद-नापसंद , रीती-रिवाज व तौर-तरीकों में बदलाव आए।
☆ औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों के जीवन में आए बदलाव
◇ पहला :- अंग्रेज़ सरकार चरागाहों को खेती की जमीन में तब्दील कर देना चाहती थी।
● जमीन से मिलने वाला लगन उसकी आमदनी का एक बड़ा स्रोत था।
● खेती का क्षेत्रफल बढ़ने से सरकार की आय में बढ़ोतरी हो सकती थी।
● इस तरह खेती के फैलाव से चरागाह सिमटने लगे और चरवाहों के लिए समस्याएँ पैदा होने लगीं।
◇ दूसरा :- उन्नीसवीं सदी के मध्य तक आते-आते देश के विभिन्न प्रांतों में वन अधिनियम भी पारित किए जाने लगे थे।
● इन कानूनों की आड़ में सरकार ने कई जंगलो को ‘ आरक्षित ‘ वन घोषित कर दिया।
● इन जंगलो में चरवाहों के घुसने पर पाबंधी लगा दी गई। कई जंगलो को ‘ संरक्षित ‘ घोषित कर दिया ।
● वन अधिनियमो ने चरवाहों की जिंदगी बदल डाली। अब उन्हें उन जंगलो में जाने से रोक दिया गया।
◇ तीसरा :- अंगेज़ अफ़सर घुमंतू किस्म के लोगों को शक की नजर से देखते थे।
● घुमंतू चरवाहों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने पर पाबंधी लगा दी गई।
● घुमंतुओं को अपराधी माना जाता था। 1871 में औपनिवेशिक सरकार ने अपराधी जनजाति अधिनियम पारित किया।
● बिना परमिट आवाजाही पर रोक लगा दी गई । पुलिस उन पर सदा नजर रखने लगी।
◇ चौथा :- अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए अंग्रेजों ने लगन वसूलने का हर संभव रास्ता अपनाया।
● उन्होंने ज़मीन , नहरों के पानी , नमक , खरीद-फरोख्त और मवेशियों पर भी टैक्स वसूलने का एलान कर दिया।
● चरवाहों से चरागाहों में चरने वाले एक-एक जानवर पर टैक्स वसूल किया जाने लगा।
● 1850 से 1880 के बीच टैक्स वसूली का काम ज्यादा बोली लगा कर ठेकेदारों को सौंपा जाता था।
◇ चरवाहों की जिंदगी में क्या बदलाव आया ?
● ज्यादा से ज्यादा चरागाहों को सरकारी कब्ज़े में लेकर उन्हें खेतों में बदला जाने लगा।
● जंगलो में गड़रिये और पशुपालक अपने मवेशियों को जंगलो में पहले जैसी आज़ादी से नही चरा सकते थे।
● जब चरागाह खेतों में बदलने लगे तो बचे-कूचे चरागाहों में चरने वाले जानवरों की तादाद बढ़ने लगी।
◇ चरवाहों ने इस बदलावों के सामना कैसे किया?
● कुछ चरवाहों ने तो अपने जानवरों की संख्या ही कम कर दी।
● जानवरों को चराने के लिए पहले की तरह बड़े-बड़े मैदान नही बचे थे।
● कुछ धनी चरवाहे ज़मीन खरीद कर एक जगह बस कर व्यापार और खेती करने लगे।
● कुछ चरवाहे आज भी जिंदा है बल्कि कई जगह पर तो उनकी संख्या में वृद्धि भी हुई है।
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○ हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में रहने वाला चरवाहों का समुदाय ‘गद्दी’ कहलाता है।
○ कुमाऊँ तथा गुजर चरवाहे पाये जाते हैं। सर्दियों में ये भाबर तथा गर्मियों में बुग्याल की तरफ चले जाते हैं।
○ हिमालय के पर्वतों में भोटिया, शेरपा और किन्नौरी समुदाय के लोग भी इसी तरह के चरवाहे हैं।
○ पठारों, मैदानों तथा रेगिस्तानों में भी चरवाहे पाये जाते हैं।
○ धंगर, गोल्ला, कुरुमा, कुरुबा आदि पठारी प्रदेश के चरवाहे हैं।
○ मैदानी प्रदेश का प्रमुख चरवाहा समुदाय ‘बंजारा’ है।
○ राजस्थान के रेगिस्तान में ‘राइका’ समुदाय चरवाही का काम करता है।
◇ अफ्रीका में चरवाहा जीवन|
● अफ्रीका में दुनिया की आधी से भी ज्यादा चरवाहा आबादी रहती है। इनमें बेदुईन्स, बरबेर्स, मासाई, सोमाली, बोरान और तुर्काना जैसे समुदाय शामिल हैं।
● ये अर्द्धशुष्क घास के मैदानों या सूखे रेगिस्तानों में रहते हैं तथा गाय-बैल, ऊँट, बकरी, भेड़ व गधे पालते हैं। कुछ चरवाहे व्यापार और यातायात सम्बन्धी कार्य भी करते हैं।
● कुछ चरवाहे चरवाही के साथ-साथ खेती भी करते हैं।
●इन चरवाहों के जीवन में औपनिवेशिक तथा उत्तर-औपनिवेशिक काल में गहरे बदलाव आए जैसे-इनकी जमीनें छीन ली गईं, इनकी आवाजाही पर पाबंदियाँ लगा दी गईं आदि।
◇ सरहदें बन्द हो गईं
● औपनिवेशिक काल में मासाइयों की तरह अन्य चरवाहों को भी विशेष आरक्षित क्षेत्रों की सीमाओं में कैद कर दिया गया।
● अब ये समुदाय इन आरक्षित क्षेत्रों की सीमाओं के पार आ-जा नहीं सकते थे।
● चरवाहों को गोरों के क्षेत्रों में पड़ने वाले बाजारों में दाखिल होने से भी रोक दिया गया।
● नई पाबंदियों और बाधाओं के कारण इनकी चरवाही तथा व्यापारिक दोनों प्रकार की गतिविधियों पर बुरा असर पड़ा।
◇ भारत के चरवाहे
गुज्जर बकरवाल जम्मू कश्मीर के घुमन्तू चरवाहे, गद्दी हिमाचल प्रदेश के घुमंतू चरवाहे, धंगर महाराष्ट्र के घुमंतू चरवाहे, कुरुमा, कुरुबा तथा गोल्ला कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के चरवाहे, बंजारे उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के घुमंतू चरवाहे, राइका राजस्थान के घुमंतू चरवाहे आदि प्रमुख हैं।
◇ चरवाहा कहाँ रहता था?
चरवाहों में एक जाना-पहचाना नाम बंजारों का भी है। बंजारे, उत्तर-प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कई इलाकों में रहते थे। ये लोग बहुत दूर-दूर तक चले जाते थे और रास्ते में अनाज और चारहे के बदले गाँव वालों को खेत जोतने वाले जानवर और दूसरी चीजें बेचते जाते थे।
◇ चरवाहों का घुमंतू होने का क्या कारण था?
औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिंदगी में गहरे बदलाव आए। उनके चरागाह सिमट गए, इधर-उधर आने जाने पर बंदिशें लगने लगीं और उनसे जो लगान वसूल किया जाता था उसमें भी वृद्धि हुई। खेती में उनका हिस्सा घटने लगा और उनके पेशे और हुनरों पर भी बहुत बुरा असर पड़ा।
◇ चरवाहे किसे कहते है in Hindi
● वैसे लोग जो मवेशियों को पालकर अपना जीवन यापन करते हैं चरवाहे कहलाते हैं ।
● वे लोग जो अपने मवेशियों के लिए चारे की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमते रहते हैं उन्हें घुमंतू चरवाहा कहते हैं ।