शांति का अर्थ अहिंसा संरचनात्मक हिंसा संरचनात्मक हिंसा के विभिन्न रूप हिंसा को समाप्त करने के तरीके क्या हिंसा कभी शांति को प्रोत्साहित कर सकती है ? शांति और राज्यसत्ता शांति कायम करने के विभिन्न तरीकें संयुक्त राष्ट्र संगठन समकालीन चुनौतियां
★ शांति का अर्थ :-
● शांति को परिभाषा अक्सर युद्ध को अनुपस्थिति के रूप में की जाती है। यह परिभाषा सरल तो है पर भ्रामक भी है। सामान्य रूप से हम युद्ध को देशों के बीच हथियारबंद स समझते है।
● हालाँकि रवांडा या बोस्निया में जो हुआ वह इस तरह का युद्ध नहीं था लेकिन यह एक प्रकार से शांति का उल्लंघन या स्थगन तो था ही। हालांकि प्रत्येक युद्ध शांति के अभाव की ओर जाता है, लेकिन शांति का हर अभाव युद्ध का रूप से यह जरूरी नहीं ।
● शांति की परिभाषा करने में दूसरा कदम होगा इसे युद्ध दंगा नरसंहार कत्ल या सामान्य शारीरिक प्रहार समेत सभी प्रकार के हिंसक संघर्षो के अभाव के रूप में देखना।
★ शांति :-
● एक ऐसी स्थिति जहां किसी भी प्रकार का कोई तनाव ना हो।
● हॉब्स , लॉक व रूसों सामाजिक समझौते के अनुसार शांति कायम रखना राज्य का उत्तरदायित्व है ईसामसीह सुकरात, गौतम बुद्ध तथा अनेक राजनीतिज्ञों ने शांति को महत्व दिया गांधी जी ने भी अहिंसा को अपनाया।
● इनके विपरीत दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे संघर्ष को ही सभ्यता की उन्नति का मार्ग मानते थे सिद्धान्तकार विल्फ्रेडा पैरेटो (18481923) ने ताकत का
इस्तेमाल करने वालों की तुलना शेर से की।
● उन्नत तकनीक जहां एक ओर शति व विकास में सहायक है वहीं दूसरी ओर पिछले विश्वयुद्धों में तकनीक का इस्तेमाल ही विध्वंस का कारण बना था। जापान के शहर हिरोशिमा व नागासाकी ऐसे उदाहरण है जिन्हें विश्व भूल नहीं सकता।
● शांति का गुणगान राष्ट्र अच्छा लगने के लिये नहीं अपितु इसलिये करते है. क्योंकि उसकी भारी कीमत उन्होंने चुकाई है।
★ शांति का अर्थ:-
● शांति का अर्थ युद्ध न होने से लिया जाता है। दो देशों के बीच हथियारों के साथ आमना-सामना होना युद्ध कहलाता है। जबकि रवांडा या बोस्निया में ऐसी स्थिति नहीं थी लेकिन शांति का अभाव था। शांति को हम हिंसक संघर्षों के अभाव के रूप में देख सकते हैं। (संघर्ष म होना) जाति, वर्ग, लिंग, उपनिवेशवादी, साम्प्रदायिक किसी भी प्रकार का संघर्ष न होना।
★ हिंसा के विभन्न रूप या प्रकार :-
1. जातीय दंगे :- भारत में छुआछूत कि समाप्ति के साथ ही जाती प्रथा से जुड़े बहुत से विशेषाधिकार एक-2 करके लुप्त हो गए बाद में जमीदारी उन्मूलन किए जाने से मंझोली जातियों के किसान भी इतने सब हो गए कि वे जो पहले दबंग जातीय होती थी, उनके नेत्व्य को चुनौती देने लगे!
2.नस्लवाद :-नस्लवाद के मूल में यह भावना रही है कि कुछ जातिया या नसले प्रकृति से ही श्रेष्ठ है और उन्हें अन्य नस्लों को दबाकर रखने का पूरा अधिकार है नस्लवाद जर्मनी में नाजीवाद और दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद कि नीति के रूप प्रकट हुआ
3. लिंग आधारित हिंसा :- पुरे विश्व में विशेषकर मुस्लिम समुदायों में महिलाओ कि सामाजिक आथिक विश्व समुदाय के समक्ष एक महाभीशण सर्वनाश के रूप में सामने आया
4. जातिगत व्यवस्था पर आधारित :- कुछ खास समूह व जातियों को अस्पृश्य मान कर व्यवहार करना। जिसे कानून बना कर संविधान के आधार पर समाप्त करने का प्रयास किया गया।
5. पितृसत्ता के आधार पर आधारित:- ऐसे समाजों में स्त्रियों को अधीन बना उनके साथ भेद भाव किया जाता है। कन्या भ्रूणहत्या, अपर्याप्त पोषण, दहेज, आदि के रूप में इसके परिणोत देखी जा सकती है।
6.उपनिवेशवाद :- उपनिवेशवाद यूँ तो समाप्त हो गया परन्तु असितत्व आज भी कायम है। इजरायली प्रभुत्व के खिलाफ फिलिस्तीनी संघर्ष, यूरोपीय देशों के पूर्ववर्ती उपनिवेशों का शोषण आदि इसके उदाहरण है।
7. रंगभेद, साम्प्रदायिकता व नस्ल आधारित समूह आज भी देखे जा सकते हैं। (हिटलर से लेकर आज तक के उदाहरण लिये जा सकते है।) हिंसा व भेदभाव का प्रभाव व्यक्ति की मनोवैज्ञातिक व शारीरिक दोनों स्थितियों पर पड़ता है।
★ क्या हिंसा कभी शांति को प्रोत्साहित कर सकती है?
● गाँधीजी से प्रेरणा लेकर मार्टिन लूथर किंग ने सन् 1960 में संयुक्त राज्य अमेरिका में गोरे लोगों द्वारा काले लोगों के साथ किए जाने वाले भेदभाव के विरुद्ध एक आन्दोलन चलाया।
★ शांति और राज्यसत्ता
● प्रत्येक राज्य स्वयं को पूर्णतः स्वतंत्र एवं सर्वोच्च इकाई के रूप में देखता है। इससे राज्य की अपने हितों को बचाने एवं बढ़ाने की प्रवृत्ति जन्म लेती है।
● शान्ति को सर्वोच्च मूल्य मानने वाले शांतिवादी किसी न्यायपूर्ण संघर्ष में भी हिंसा के प्रयोग के विरुद्ध नैतिक रूप से खड़े हो जाते हैं।
★ शांति कायम करने के विभिन्न तरीके :-
● राष्ट्रों द्वारा एक-दूसरे की सत्ता का सम्मान करना,
● राष्ट्रों की आपसी निर्भरता व सहयोग ।
● समस्त विश्व को ही एक राष्ट्र बना दिया जाना।
● आधुनिक विश्व में संयुक्त राष्ट्रसंघ शान्ति स्थापित करने की प्रचलित तीनों पद्धतियों के प्रमुख तत्वों को साकार कर सकता है।
◆समकालीन चुनौतियाँ हालांकि संयुक्त राष्ट्रसंघ ने अनेक उल्लेखनीय उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं ।
● आज हमें शान्ति की खोज को राजनीतिक कार्यवाहियों के साधन और लक्ष्यों, दोनों के रूप में सम्मिलित करना चाहिए।
★ हिंसा के विभिन्न रूप
● फासीवाद – 20वीं सदी में उदित होने वाली एक धारणा है। इसमें राष्ट्र को सर्वोपरि माना जाता है तथा राष्ट्र के नाम पर व्यक्तियों से सब कुछ न्यौछावर कर देने की अपेक्षा की जाती है।
● नाजीवाद – 20वीं सदी में जर्मनी में उदित हुई वह धारणा जिसमें जर्मनी को विश्व में श्रेष्ठ स्थान दिलाने पर बल दिया गया तथा जर्मन (नाजी) लोगों को अन्य लोगों की तुलना में श्रेष्ठ माना गया।
● विश्वयुद्ध – विश्व में बहुत बड़े स्तर पर लड़ा जाने वाला युद्ध ‘विश्वयुद्ध’ कहलाता है। इसमें विश्व के अधिकांश राष्ट्र प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हो जाते हैं। उदाहरण—1914-18 ई. तथा 1939-1945 ई. में लड़े गये दोनों युद्ध विश्वयुद्ध थे।
● परमाणु हथियार – वह हथियार जो परमाणु ऊर्जा और विकिरण (रेडिएशन) पर आधारित होते हैं, जैसे-अणु बम, परमाणु बम, मिसाइल आदि।
● नरसंहार – किसी राज्य में सत्ता या अन्य पक्ष से असहमत लोगों को खुलेआम बड़ी संख्या में जान से मार दिया जाना ‘नरसंहार’ कहलाता है। कई बार विभिन्न समुदायों के बीच आपसी असहमति के मामले में भी ‘नरसंहार’ देखने को मिलते हैं।
● संरचनात्मक हिंसा – विभिन्न सामाजिक समस्याओं जैसे-असमानता, भेदभाव, नस्लवाद इत्यादि के चलते होने वाली हिंसा ‘संरचनात्मक हिंसा’ कहलाती है। जैसे—जातिभेद, वर्गभेद, पितृसत्ता एवं साम्प्रदायिकता आदि।
● औपनिवेशिक काल – 16वीं, 17वीं सदी से 19वीं, 20वीं सदी के मध्य का वह समय जब शक्तिशाली देशों द्वारा विभिन्न राष्ट्रों को अपना उपनिवेश बनाकर रखा गया था, ‘औपनिवेशिक काल’ कहलाता है।
● आतंकवाद – आतंकवाद उन हिंसात्मक गतिविधियों व कार्यवाहियों का सामूहिक नाम है जिनके द्वारा सरकार तथा नागरिकों को भयभीत करके कुछ लोग अपनी बात मनवाना चाहते हैं। जैसेट्रेन में बम विस्फोट, इमारतों पर हमला आदि आतंकवाद के ही उदाहरण हैं।
वर्तमान विश्व युद्ध, संघर्ष, पलायन, महामारी एवं पर्यावरण संकट जैसी अनगिनत समस्याओं का सामना कर रहा है
★ वर्तमान दौर :-
● हम एक वैश्वीकृत दुनिया में रह रहे हैं। यह दुनिया एक गाँव के रूप में तब्दील हो गई है जिसे मैकलुहान ने “ग्लोबल विलेज” की संज्ञा दी है। एक प्रक्रिया और प्रवाह के रूप में वैश्वीकरण ने दुनिया को एक दूसरे से जोड़ते हुए अंतरनिर्भरता को बढ़ावा दिया है।
● वैश्वीकरण के इस दौर में युद्ध, असंतोष, अवसाद, पलायन, पर्यावरणीय असंतुलन संपूर्ण विश्व के समक्ष प्रमुख चुनौती है। इसलिए वर्तमान विश्व की एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता शांति एवं भाईचारे की स्थापना करना है।
● वैश्विक शांति की स्थापना हेतु प्रतिवर्ष 21 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस या ‛विश्व शांति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इसकी घोषणा 1981 में की गई तथा 1982 में पहली बार ‛अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ मनाया गया।
● इसका प्रमुख उद्देश्य है अहिंसा और संघर्ष विराम का अवलोकन करते हुए शांति के आदर्शों को मजबूत करना।
●संयुक्त राष्ट्र संघ कला, साहित्य, सिनेमा संगीत एवं खेल जैसे क्षेत्रों से अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देने के लिए शांति दूतों की नियुक्ति भी करता है।
● इस दिवस को सफेद कबूतर उड़ाकर शांति का पैगाम भी दिया जाता है।
★ विश्व शांति के उपाय-
वैश्विक शांति हेतु अब तक अनगिनत उपाय किए गए हैं। युद्ध की परिस्थितियों तथा हथियारों की होड़ को खत्म करने के लिए निशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण जैसी अवधारणाएं काम कर रही हैं। दुनिया भर को परमाणु खतरों से बचाने के लिए अब तक पीटीबीटी(1963), एनपीटी(1968) तथा सीटीबीटी(1996) जैसी अनेक महत्त्वपूर्ण संधियाँ की गई हैं।
● विश्व शांति एवं भारत-
वैश्विक शांति स्थापित करने में भारत सदैव अग्रणी देशों में शामिल रहा है। प्राचीन काल से ही शांति एवं सद्भाव भारतीय संस्कृति की मूल विशेषताएं रही हैं। भारत अनेक धर्मो की जन्मस्थली है। इन धर्मों ने दुनिया भर में शांति एवं मानवता का संदेश दिया। “वसुधैव कुटुंबकम” की अवधारणा हिंदू धर्म की प्रभु प्रमुख विशेषता रही है।
● आज वैश्विक शांति संपूर्ण विश्व की आवश्यकता है। यह एक दिन में संभव नहीं हो सकता। इसके लिए संपूर्ण विश्व को अपने निजी स्वार्थों का त्याग करते हुए मानवता को साध्य बनाना होगा। ‛विश्व नागरिकता’ की अवधारणा को साकार करते हुए मानव हितों के साथ-साथ प्रकृति का भी संरक्षण करना होगा।
★ शांतिवाद
● शांतिवाद विवादों को सुलझाने के औजार के बतौर युद्ध या हिंसा के बजाय शांति का उपदेश देता है। इसमें विचारों की अनेक छवियाँ शामिल हैं। इसके दायरे में कूटनीति को अंतर्राष्ट्रीय विवादों का समाधान करने में प्राथमिकता देने से लेकर किसी भी हालत में हिंसा और ताकत के इस्तेमाल के पूर्ण निषेध तक आते हैं।
● शांतिवाद सिद्धांतों पर भी आधारित हो सकता है और व्यवहारिकता पर भी। सैद्धांतिक शांतिवाद का जन्म इस विश्वास से होता है कि युद्ध, सुविचारित घातक हथियार, हिंसा या किसी प्रकार की ज़ोर-ज़बरदस्ती नैतिक रूप से गलत है। व्यावहारिक शांतिवाद ऐसे किसी चरम सिद्धांत का अनुसरण नहीं करता है। यह मानता है कि विवादों के समाधान में युद्ध से बेहतर तरीके भी हैं या फिर यह समझता है कि युद्ध पर लागत ज्यादा आती है, फायदे कम होते हैं।
● युद्ध से बचने के पक्षधर लोगों के लिए ‘श्वेत कपोत’ जैसे अनौपचारिक शब्दों का प्रयोग होता है। शब्द सुलह-समझौते के पक्षधरों की सौम्य प्रकृति की ओर इशारा करते हैं। कुछ लोग सुलह-समझौते के पक्षधरों को शांतिवादी के दर्जे में नहीं रखते, क्योंकि वे कतिपय परिस्थितियों में युद्ध को औचित्यपूर्ण मान सकते हैं। ‘बाज़’ या युद्ध-पिपासु लोग कपोत प्रकृति के विपरीत होते हैं।
● युद्ध का विरोध करने वाले कुछ शांतिवादी सभी प्रकार की ज़ोर-ज़बरदस्ती मसलन शारीरिक बल प्रयोग या संपत्ति की बर्बादी के विरोधी नहीं होते।उदाहरणस्वरूप, असैन्यवादी आम तौर पर हिंसा के बजाए आधुनिक राष्ट्र-राज्यों की सैनिक संस्थाओं के विशेष रूप से विरोधी होते हैं। अन्य शांतिवादी अहिंसा के सिद्धांतों का अनुसरण करते हैं, क्योंकि वे सिर्फ अहिंसक कार्रवाई के स्वीकार्य होने का विश्वास करते हैं।