अध्याय 6: रोजगार संवृद्धि, अनौपचारीकरण एवं अन्य मुद्दे

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कार्य : – हमारे व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।

श्रमिक : वह व्यक्ति जो अपनी आजीविका अर्जित करने के लिये किसी उत्पादक क्रियाओं में लगा है ।

उत्पादक क्रियाएँ :- वे क्रियाएँ हैं जिन्हें वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है और जिससे आय का सृजन होता है ।

श्रम बल – श्रम बल से अभिप्राय श्रमिकों की उस संख्या से है जो वास्तव में कार्य कर रहे हैं और कार्य करने के इच्छुक हैं।

कार्यबल : कार्यबल से अभिप्राय वास्तव में कार्य करने वाले व्यक्तियों की संख्या से है। इसमें इन व्यक्तियों को शामिल नहीं किया जाता जो कार्य करने के इच्छुक तो हैं परन्तु बेरोजगार हैं ।

सहभागिता की दर : इसका अर्थ है उत्पादन क्रिया में वास्तव में भाग लेने वाली जनसंख्या का प्रतिशत ।

 

 

श्रम आपूर्ति :

 

इससे अभिप्राय विभिन्न मजदूरी दरों के अनुरूप श्रम की आपूर्ति से हैं। इसे मनुष्य दिनों के रूप में मापा जाता है। एक मनुष्य दिन से अभिप्राय 8 घंटे का काम है। देश की जनसंख्या के पाँच में से दो व्यक्ति विभिन्न आर्थिक क्रियाओं में लगे हैं। मुख्यतः ग्रामीण पुरुष देश के श्रमबल का सबसे बड़ा वर्ग है। भारत में अधिकांश श्रमिक स्वनियोजक हैं। अनियमित दिहाड़ी मजदूर तथा नियमित वेतनभोगी कर्मचारी मिलकर भी

भारत की समस्त श्रमशक्ति के अनुपात के आधे से भी कम रह जाते हैं। भारत में कुल श्रम बल का लगभग पाँच में से तीन श्रमिक कृषि और संबंद्ध कार्यों से ही अपनी आजीविका का प्राप्त करता है।

 

 

रोजगार रहित संवृद्धि :- इससे अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर में तो वृद्धि होती है परन्तु रोजगार में उसी अनुपात में वृद्धि नहीं होती । श्रम बल का अनियमतिकरण इससे अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें समय के साथ कुल श्रमबल में भाड़े पर लिए गए आकस्मिक श्रमिकों के प्रतिशत में बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है ।

 

श्रमबल का अनौपचारीकरण – इसका अभिप्राय उस स्थिति से है जब लोगों में अर्थव्यवस्था के औपचारिक क्षेत्र के स्थान पर अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर अधिक पाने की प्रवृति पाई जाती है ।

बेरोजगारी बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो कि बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम तो करना चाहता है लेकिन उसे काम नही मिल पा रहा है. बेरोजगारी की परिभाषा हर देश में अलग अलग होती है. जैसे अमेरिका में यदि किसी व्यक्ति को उसकी क्वालिफिकेशन के हिसाब से नौकरी नही मिलती है तो उसे बेरोजगार माना जाता है.

 

 

बेरोजगारी वर्गीकरण

बेरोजगारी के कारणों एवं उनके स्वरूप के आधार पर बेरोजगारी को 10 रूपों में वर्गीकरण किया गया है जिसका विवरण निम्नवत है-

1. सामान्य बेरोजगारी : यह वह स्थिति होती है जिसमें कि व्यक्ति प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य करने को तैयार है परन्तु उसे कोई भी रोजगार न मिल पाये।

 

2. स्वैच्छिक बेरोजगारी जब किसी व्यक्ति को वर्तमान मजदूरी दर पर काम मिल रहा हो लेकिन वह अपनी इच्छा से काम नहीं करना चाहता तो उसे स्वैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति अपने मनपसंद रोजगार के लिए किसी अन्य रोजगार को छोड़ता है।

 

3. अक्षमता बेरोजगारी जब कोई व्यक्ति शारीरिक अथवा मानसिक रूप से काम करने में सक्षम नहीं है तब इस प्रकार की बेरोजगारी को अक्षमता बेरोजगारी कहा जाता है।

 

4. संरचनात्मक बेरोजगारी जब किसी राष्ट्र में भौतिक, वित्तीय और मानवीय संरचना कमजोर होने के कारण रोजगारों का अभाव होता है तब उस बेरोजगारी को संरचनात्मक बेरोजगारी कहते है। भौतिक संरचना परिवहन, बिजली, उत्पादन आदि।वित्तीय राष्ट्र में निवेश का अभाव होना। मानवीय कुशल मानव संसाधन का अभाव, कौशल, ज्ञान और तकनीक  का अभाव।

 

5. प्रच्छन्न बेरोजगारी जब किसी राष्ट्र में किसी भी कार्य स्थल पर आवश्यकता से ज्यादा लोग नियोजित हों तो इस स्थिति में जो अतिरिक्त कार्यबल है उसे प्रचछन्न बेरोजगारी के अंतर्गत रखा जाता है। इस प्रकार की बेरोजगारी ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि में पायी जाती है। अगर कुछ लोगों को कम भी कर दिया जाए तो उत्पादन में कोई कमी नहीं आयेगी।

 

6. मौसमी बेरोजगारी मौसमी बेरोजगारी के अंतर्गत कार्य समूह को साल में कुछ ही महीने के लिए कार्य मिलता है तथा बाकी महीने उसे कोई कार्य नहीं मिल पाता है।

 

7. शिक्षित बेरोजगारी शिक्षित बेरोजगारी शहरी क्षेत्र में पायी जाती है तथा इस प्रकार की बेरोजगारी में शिक्षित कार्य समूह के लोग रोजगार पाने में असमर्थ होते हैं।

 

8. चक्रीय बेरोजगारी जब अर्थव्यवस्था के चक्र में मंदी का दौर आता है, तब मंदी से उत्पादन प्रभावित होती है तथा उत्पादन प्रभावित होने से रोजगार प्रभावित होता है। ज्यादातर यह विक सित देशों में पायी जाती है।

 

9. अल्प रोजगार जब किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता के आधार पर काम न मिले या फिर योग्यता से कम का काम करना पड़े। उदाहरण के लिए समूह स्नातक व्यक्ति को जब समूह घ के पद पर कार्य करना पड़े जिसकी अहर्ता मात्र 10वीं कक्षा है।

 

10. घर्षणात्मक बेरोजगारी  जब किसी उद्योग के उत्पाद की मांग किन्ही कारणों (फैशन आदि) से कम हो जाती है। ऐसी स्थितियों में थोड़े समय के लिए बेरोजगारी उत्पन्न होती है जिसे घर्षणात्मक बेरोजगारी कहते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी अधिकतर विकसित देशों में पायी जाती है।

 

 

 बेरोजगारी का मापन

बेरोजगारी को मापने के लिए वर्ष 1970 में भगवती समिति बनायी गयी थी। इस समिति की सिफारिशों के आधार पर बेरोजगारी को मापने के लिए तीन तरीके बनाये गये।

1. दीर्घकालिक बेरोजगारी यदि किसी सर्वेक्षण वर्ष में किसी व्यक्ति को 183 दिन 8 घंटे प्रति दिन) रोजगार नहीं मिलता है तो वह व्यक्ति दीर्घकालिक बेरोजगारी के अंतर्गत आता है। वर्तमान में इस 183 दिन के मानक को बदल कर 273 दिन कर दिया गया है।

2. साप्ताहिक बेरोजगारी यदि किसी व्यक्ति को सप्ताह में 1 दिन ( 8 घंटे) का काम न मिले तो उसे साप्ताहिक बेरोजगारी के अंतर्गत रखा जाता है।

3. दैनिक बेरोजगारी : यदि किसी को प्रति दिन आधे दिन (4 घंटे) का काम न मिले तो उसे दैनिक बेरोजगारी के अंतर्गत रखा जाता है।

 

 

 बेरोजगारी के कारण

  1. धीमी आर्थिक विकास दर
  2. जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
  3. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली
  4. अल्प विकसित कृषि क्षेत्र
  5. धीमा औद्यागिक क्षेत्र का विकास
  6. महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)
  7. लघु एंव कुटीर उद्योगों का अभाव अपर्याप्तता
  8. दोषपूर्ण रोजगार नियोजन
  9. धीमी पूँजी निर्माण दर

 

 

बेरोजगारी की समस्या को हल करने के उपाय :-

  1. सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि
  2. जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण
  3. कृषि क्षेत्र का विकास
  4. लघु व कुटीर उद्योगों का विकास
  5. आधारिक संरचना में सुधार
  6. विशेष रोजगार कार्यक्रम
  7. तीव्र औद्योगीकरण
  8. गरीबी व बेरोजगारी उन्मूलन विशेष कार्यक्रम
  9. स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना |
  10. प्रधानमंत्री रोजगार योजना
  11. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना ।

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