अध्याय 1: स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था / Indian Economy on the Eve of Independence

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स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था औपनिवेक शासन के अंतर्गत निम्न स्तरीय आर्थिक विकास कृषि क्षेत्राक औद्योगिक क्षेत्राक विदेशी व्यापार ब्रिटिश उपनिवेश काल से पूर्व भारत की अर्थव्यवस्था ” सोने की चिड़िया’ के रूप में जानी जाती थी

 

 

 

★ स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था :-

 

परिचय :- भारतीय अर्थव्यवस्था में स्वतंत्रता के पूर्व उसकी आर्थिक विकास का पता कराता है |

● हम इस अध्याय में स्वतंत्रता के पूर्व भारत के विकास की रणनीति के निर्धारण करने में महत्वपूर्ण योगदान की जानकारी लेंगे | जब हमारा देश ब्रिटिश शासन के अधीन था |

 

★ स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था’ :-

●ब्रिटिश उपनिवेश काल से पूर्व भारत की अर्थव्यवस्था ” सोने की चिड़िया’ के रूप में जानी जाती थी। उपनिवेश काल में अत्यधिक और लगातार आर्थिक शोषण के कारण पिछड़ती चली गई ।

● अंग्रेजी औपनिवेशिक शासन का मुख्य उदेश्य भारत को ब्रिटेन में तेजी से विकसित हो रही आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिए आधार के रूप में उपयोग करना था ।

 

 

★ अर्थशास्त्र :- सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है।

◆ ‘अर्थशास्त्र’ शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है – ‘धन का अध्ययन’

 

 

★अर्थशास्त्र दो प्रकार की होती है

● व्यष्टि और समष्टि यानि माइक्रो…. जैसा कि इसके नाम से ही इसके बारे में समझ में आता है। यह अर्थशास्त्र एक व्यक्ति या एक फर्म के व्यवहार का अध्ययन करता है।

● वर्तमान में अर्थशास्त्र का अध्ययन दो भागों में किया जाता है – व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र।

 

 

◆समष्टि और व्यष्टि अर्थशास्त्र में क्या अंतर है?

 

व्यष्टि का अर्थ है – छोटा, सूक्ष्म । अतः जब अध्ययन अथवा समस्या एक इकाई या अर्थव्यवस्था के एक भाग से संबंधित होती है तो इस अध्ययन विषय को व्यष्टि अर्थशास्त्र कहा जाता है ।

व्यष्टि अर्थशास्त्र मे वैयक्तिक इकाइयों, जैसे, वैयक्तिक परिवार, फर्म, उद्योग आदि का अध्ययन किया जाता है। 

● समष्टि का अर्थ है – बड़ा । समष्टि अर्थशास्त्र मे कुल आय, कुल रोजगार, कुल विनियोग, कुल उपभोग, कीमत स्तर, नियोजन आदि का अध्ययन किया जाता है।

जबकि समष्टि अर्थशास्त्र मे संपूर्ण अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया जाता है

 

◆ अर्थशास्त्र समाज की आर्थिक गतिविधियों को विश्लेषण करती है। वह हमें यह बताती है कि समाज के आवश्यकताएं अनंत और उनकी पूर्ति करने वाले साधन सीमित है। इसलिए इन साधनों का कैसे संतुलित तरीके से उपयोग किया जाए कि मनुष्य को अधिकतम संतुष्टि हो सके और समाज की आर्थिक उन्नति और कल्याण हो।

◆ एडम स्मिथ (५ जून १७२३ से १७ जुलाई १७९०) एक ब्रिटिश नीतिवेत्ता, दार्शनिक और राजनैतिक अर्थशास्त्री थे। उन्हें अर्थशास्त्र का पितामह भी कहा जाता है।

 

 

 

★ अर्थव्यवस्था अर्थशास्त्र में क्या अंतर है?

● अर्थशास्त्र बाजार के सिद्धांतों, रोजगर इत्यादि की बात करता है जबकि अर्थव्यवस्था खास क्षेत्रों में सिद्धांतों को अपनाने के बाद की वास्तविक तस्वीर होती है। इसे इस रूप में भी समझा जा सकता है-अर्थव्यवस्था किसी खास इके का अर्थशास्त्र होता है।

 

 

◆ मिश्रित अर्थव्यवस्था

● भारत को एक मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा जाता है क्योंकि भारत न तो पूरी तरह समाजवादी है न और न ही पूरी तरह पूंजीवादी है। हम अमेरिका तथा क्यूबा का उदाहरण ले सकते हैं। … परंतु भारत में हम दोनों तरह के उद्यम देख सकते हैं इसलिए भारत को एक मिश्रित अर्थव्यवस्था कहते हैं।

 

अर्थव्यवस्था :- एक ढाँचा जिसके अन्तर्गत लोगों की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है

● आर्थिक विकास :- एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अर्थव्यवस्था की वास्तविक ‘ प्रति व्यक्ति आय ‘दीर्घ अवधि में बढ़ती है।

 

★ स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था’ :-

●ब्रिटिश उपनिवेश काल से पूर्व भारत की अर्थव्यवस्था ” सोने की चिड़िया’ के रूप में जानी जाती थी। उपनिवेश काल में अत्यधिक और लगातार आर्थिक शोषण के कारण पिछड़ती चली गई ।

● अंग्रेजी औपनिवेशिक शासन का मुख्य उदेश्य भारत को ब्रिटेन में तेजी से विकसित हो रही आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिए आधार के रूप में उपयोग करना था ।

 

 

★ कृषि क्षेत्रक :-

● ब्रिटिश शासन काल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि-प्रधान ही बनी रही।

● ब्रिटिश शासनकाल में कृषि अत्यन्त पिछड़ गई, कृषि उत्पादकता में कमी आई, जमींदारों द्वारा शोषण किया गया तथा भारी मात्रा में लगान वसूल किया गया।

● कृषि में निम्न उत्पादकता के कई कारण थे, जैसे दोषपूर्ण जमींदारी व्यवस्था, प्रौद्योगिकी का निम्न स्तर, सिंचाई सुविधाओं का अभाव, उर्वरकों का नगण्य प्रयोग आदि।

● ब्रिटिश काल में देश के कुछ क्षेत्रों में कृषि का व्यवसायीकरण भी हुआ, जिससे नकदी फसलों की उत्पादकता में वृद्धि हुई। लेकिन कुल मिलाकर भारतीय कृषि पिछड़ी हुई अवस्था में थी।

 

 

 

★ औद्योगिक क्षेत्रक :-

● औपनिवेशिक व्यवस्था के अन्तर्गत परम्परागत उद्योगों एवं शिल्पकलाओं का पतन हुआ।

● भारत मुख्य रूप से कच्चे माल का निर्यातक एवं निर्मित माल का आयातक बन गया जिसका भारतीय उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

● उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अवश्य कुछ आधुनिक उद्योगों का धीमी गति से विकास हुआ।

●  बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में लोहा एवं इस्पात उद्योग तथा दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् सीमेन्ट, कागज आदि के कुछ कारखाने स्थापित हुए।

 

 

 

★ औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत निम्न स्तरीय आर्थिक विकास :-

● जब भारत देश अंग्रेजो के अधीन नहीं था तब भारत की आजीविका और सरकार की मुख्य स्रोत कृषि था |

● भारत सूती व रेशमी वस्त्रों धातु आधारित तथा बहुमूल्य मणि- रत्नों आदि से भारत पूरे विश्व में सुविख्यात हो चुका था|

● औपनिवेशिक शासकों द्वारा बनाई गई नीतियों ने भारत की अर्थव्यवस्था को बदल डाला | भारत इंग्लैंड को कच्चा माल निर्यात करता और वहां से तैयार माल का आयात करने लगा|

● औपनिवेशिक शासकों ने कभी इस देश की राष्ट्रीय तथा प्रतिव्यक्ति आय का आकलन करने का भी प्रयास नहीं किया |

 

 

कुछ लोगों ने निजी स्तर पर आकलन किए जैसे :-

● दादा भाई नौरोजी , विलियम डीग्बी, फिंडले शिराज, डॉ. वी. के.आर . वी.राव तथा आर. सी. देसाई प्रमुख रहे हैं |

● जब औपनिवेशिक काल चल रहा था उस समय डॉ.राव द्वारा लगाए गए अनुमान को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है|

 

 

कृषि क्षेत्रक :-

● ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन काल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था मूल रूप से एक कृषि अर्थव्यवस्था ही बना रहा |

● देश की लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या जो गाँवो मे रहती थी उनका जीवन व्यापन कृषि के माध्यम से ही होता था |

● कृषि पर आश्रत क्षेत्र के प्रसार के कारण कुल कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई हो लेकिन कृषि उत्पादकता में कमी आती रहीं हैं |

● कृषि क्षेत्र में वृद्धि ना होने का कारण अंग्रेजों द्वारा लागू किया गया भू- व्यवस्था के तरीकों को ही माना जा सकता है |

 

 

■ कृषि उत्पादकता के स्तर को निम्न रखने का निम्न कारणो को उत्तरदायी माना जाता है:-

▪︎ प्रौद्योगिकी के निम्न स्तर
▪︎ सिंचाई सुविधाओं का अभाव
▪︎ उर्वरक का नगण्य प्रयोग |

● देश के कुछ हिस्सों में कृषि के कारण नकदी फ़सलों की उच्च उत्पादकता के प्रमाण मिलते हैं|

● लेकिन इसका लाभ किसानों को नहीं मिल पाता था | क्योंकि उन्हें खाद्यान्न की खेती के जगह नकदी फ़सलों उत्पादन करना पड़ता था|

● नकदी फसलों का उपयोग इंग्लैंड में लगे कारखाने में किया जाता था|

● जब सिंचाई करने की व्यवस्था में सुधार हुआ तब तक भारत बाढ़ नियंत्रण और भूमि की उपजाऊ शक्ति के मामले में पिछड़ा हुआ था |

● किसानों के छोटे से वर्ग ने फसल पैटर्न को बदल कर खाद्यान्न फसले के जगह वाणिज्यिक फसल उगाना शुरू किया |

 

 

☆ औद्योगिक क्षेत्रक :-
● औपनिवेशिक व्यवस्था के अंतर्गत प्रसिद्ध शिल्पकलाओं का पतन हुआ |

 

■ भारत के वी – औद्योगिकरण के पीछे विदेशी शासकों के दो उद्देश्य थे :-

● भारत को इंग्लैंड में विकसित हो रहे नये उद्योगों के लिए कच्चे माल का निर्यातक बनाना

● वे उन उद्योगों के उत्पादन के लिए भारत को ही एक बड़ा बाजार बनाना ताकि वो अपने देश के लिए अधिक लाभ उपलब्ध करवा सके |

● उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में नये उद्योगों की स्थापना हुई, परंतु उनका विकास धीमी गति से हुई |

● सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना का श्रेय भारतीय उद्यमियों को दिया जाता है |

● पटसन उद्योग की स्थापना का श्रेय विदेशियों को दिया जाता है यह उद्योग बंगाल प्रांत तक सीमित रहा|

● बीसवीं शताब्दी के शुरुआत में लोहा और इस्पात उद्योग तथा दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात चीनी ,सीमेंट ,कागज आदि के कुछ कारखाने स्थापित हुए |

● आयरन स्टील कंपनी ( Tisco) की स्थापना 1907 में हुईl

 

 

☆ पूँजीगत उद्योग की विशेषता :-

● पूँजीगत उद्योग से कहने का तात्पर्य यह है कि वे उद्योग जो वर्तमान में उपयोग करने वाले वस्तुओं के उत्पादन के लिए मशीनो और कलपुर्जों का निर्माण करते हैं |

● सार्वजनिक क्षेत्र वास्तव में प्रायः रेलों, विद्युत उत्पादन,संचार , बंदरगाहो तक ही सीमित है |

 

☆ विदेशी व्यापार :-

● भारत कच्चे माल का निर्यातक और उद्योग में बने तैयार माल का आयातक बन गया |

● भारत के आयात – निर्यात व्यापार पर इंग्लैंड अपना एकाधिकार जमाए रखा |

● स्वेज नहर वर्तमान में आर्थिक और सामरिक दृष्टि से विश्व का सबसे महत्वपूर्ण जलमार्ग है |

● 1869 में स्वेज नहर का मार्ग खुल गया था |

 

 

☆ जनांकिकीय परिस्थिति :-

● भारत की पहली जनगणना 1881 में शुरू हुई|

● 1921 को जनसंख्या महाविभाजक वर्ष कहा जाता है |

● कुल मिलाकर साक्षरता दर 16% से भी कम थी |

● 16 % में महिला साक्षरता दर नगण्य थी |

● आजादी के समय शिशु मृत्यु दर 33 प्रति हजार हो गई |

● उस समय एक हजार बच्चों पे 218 बच्चों की मौत होती थी |

● जीवन प्रत्याशा वर्तमान में 69 वर्ष माना जाता है |

● अंग्रेजो के समय जीवन प्रत्याशा मात्र 44 वर्ष था |

 

 

☆ व्यावसायिक संरचना :-

● बीसवीं सदी के दौरान कृषि सबसे बड़ा व्यवसाय था, जिसमें 70- 75 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्यो में लगी हुई थी |

● विनिर्माण क्षेत्र में 10 प्रतिशत लोगों को रोजगार मिल पा रहा था |

● सेवा क्षेत्रको में 15-20 प्रतिशत लोगों को ही रोजगार मिल पा रहा था |

● बीसवीं सदी में ही पंजाब और राजस्थान और उड़ीसा के क्षेत्र में कृषि में लगे मजदूरों के अनुपात में वृद्धि हुई |

 

 

☆ आधारिक संरचना :-

☆ औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत देश में निम्न वस्तुओं का विकास हुआ:-

● रेलवे का विकास
● पतनो का विकास
● जल परिवहन का विकास
● डाक- तार विभाग का विकास और सुविधाएं आदि |

● अंग्रेजो ने 1850 में भारत में रेलों की आरंभ किया |

● यही काम उनका सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है |

 

 

☆ रेलों ने भारत की अर्थव्यवस्था की संरचना को दो तरीकों से प्रभावित किया :-

● इससे लोगों को भूक्षेत्रिय तथा सांस्कृतिक व्यवधानों को कम करके आसानी से यात्राएं करने का अवसर मिला|

● भारत के कृषि व्यावसायीकरण को बढ़ावा मिला |

● उड़ीसा के तटवर्ती नहर का निर्माण सरकारी कोष से किया गया है |

● भारत में तार का मुख्य ध्येय कानून को बनाए रखना है |

 

 

 

 

 

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