अध्याय : 5 अधिकार / Right

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अधिकार अधिकार का अर्थ अधिकारों के प्रकार व्यक्तिगत व सामाजिक अधिकार मनुष्य के तीन प्राकृतिक अधिकार जीवन का अधिकार
स्वतंत्रता का अधिकार संपत्ति का अधिकार भारतीय संविधान में अधिकार राष्ट्रीय मानवाधिकार मानवाधिकारों की सूची लगातार बढ़ती गई है अधिकार और दावे में अंतर

 

 ★ अधिकार :- अधिकार मूल रूप से हकदारी अथवा ऐसा दावा है जिसका औचित्य सिद्ध हो। यह बताता है कि नागरिक, व्यक्ति और मनुष्य होने के नाते हम किसके हकदार हैं।

 

★ अधिकार क्या है :– अधिकार किसी व्यक्ति का अपने लोगों , अपने समाज और अपने सरकार से दावा है।

● दावा तार्किक होना चाहिए।
● दूसरों के अधिकारों का आदर करें।
● पूरे समाज से भी स्वीकृति मिलनी चाहिए।
● अदालतों द्वारा मान्यता मिली हो।

 

 

अधिकारों की दावेदारी :ये हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं। ये लोगों को उनकी दक्षता और प्रतिभा विकसित करने में सहयोग देते हैं।

●  दाहरण के लिए :-  शिक्षा का अधिकार हमारी तर्क शक्ति विकसित करने में मदद करता है, हमें उपयोगी कौशल प्रदान करता है और जीवन में सूझ-बूझ के साथ चयन करने में सक्षम बनाता है। व्यक्ति के कल्याण के लिए इस हद तक शिक्षा को अनिवार्य समझा जाता है कि इसे सार्वभौम अधिकार माना गया है।

 

● अधिकार का अर्थ :- अधिकारों का व्यक्ति के जीवन मे बहुत बड़ा स्थान है, क्योंकि अधिकारों के अभाव मे व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास सम्भव नही है। मानव के पूर्ण विकास के लिए स्वतंत्रता आवश्यक है तथा स्वतंत्रता का महत्व तभी है, जब मनुष्य उसका उपयोग कर सके एवं राज्य और समाज उसे मान्यता दें।

● अधिकार उन बातों का द्योतक है, जिन्हें मैं और अन्य लोग सम्मान और गरिमा का जीवन बसर करने के लिए महत्वपूर्ण और आवश्यक समझते हैं।

● उदाहरण के लिए :- आजीविका का अधिकार सम्मानजनक जीवन जीने के लिए जरूरी है।

● उदाहरण के लिए :- बुनियादी जरूरतों की पूर्ति हमें अपनी प्रतिभा और रूचियों की ओर प्रवृत्त होने की स्वतंत्रता प्रदान करती है।

 

 

★ अधिकार कहाँ से आते हैं ?

● सतरहवीं और अठारहवीं शताब्दी में राजनीतिक सिद्धांतकार तर्क देते थे कि हमारे लिए अधिकार प्रकृति या ईश्वर प्रदत्त हैं। हमें जन्म से वे अधिकार प्राप्त हैं। परिणामतः कोई व्यक्ति या शासक उन्हें हमसे छीन नहीं सकता।

मनुष्य के तीन प्राकृतिक अधिकार

1. जीवन का अधिकार
2.स्वतंत्रता का अधिकार
3. संपत्ति का अधिकार

 

 ★ हाल के वर्षों में प्राकृतिक अधिकार शब्द से ज्यादा मानवाधिकार शब्द का प्रयोग हो रहा है।

● ऐसा इसलिए क्योंकि उनके प्राकृतिक होने का विचार आज अस्वीकार्य लगता है। ऐसा मानना भी मुश्किल होता जा रहा है कि कुछ नियम आदर्श ऐसे हैं जिन्हें प्रकृति या ईश्वर ने रचा है।अधिकारों को ऐसी गारंटियों के रूप में देखने को प्रवृत्ति बढ़ी है जिन्हें मनुष्य ने एक अच्छा जीवन जीने के लिए स्वयं ही खोजा या पाया है।

 ● अधिकारों की इसी समझदारी पर मानव अधिकार संबंधी संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र बना है। यह उन दावों को मान्यता देने का प्रयास करता है, जिन्हें विश्व समुदाय सामूहिक रूप से गरिमा और आत्मसम्मान से परिपूर्ण जिंदगी जीने के लिए आवश्यक मानता है।

● पूरी दुनिया के उत्पीड़ित जन सार्वभौम मानवाधिकार की अवधारणा का इस्तेमाल उन कानूनों को चुनौती देने के लिए कर रहे हैं, जो उन्हें पृथक करने वाले और समान अवसरों तथा अधिकारों से वंचित करते हैं। वे मानवता की अवधारणा की पुनर्व्याख्या के लिए संघर्ष कर रहे हैं, ताकि वे खुद को इसमें शामिल कर सकें।

 

 

 ◆ मानवाधिकारों की सूची लगातार बढ़ती गई है :-

● जिनका लोगों ने दावा किया है। मसलन, हम आज प्राकृतिक पर्यावरण को सुरक्षा की जरूरत के प्रति काफी सचेत है और इसने स्वच्छ हवा शुद्ध जल, टिकाऊ विकास जैसे अधिकारों की मांगें पैदा की है।

● युद्ध या प्राकृतिक संकट के दौरान अनेक लोग, खास कर महिलाएँ, बच्चे या बीमार जिन बदलावों को झेलते हैं, उनके बारे में नई जागरूकता ने आजीविका के अधिकार बच्चों के अधिकार।

● ऐसे अन्य अधिकारों की माँग भी पैदा की है। ऐसे दावे मानव गरिमा के अतिक्रमण के प्रति नैतिक आक्रोश का भाव व्यक्त करते हैं ।

◆ लास्की के अनुसार :- ” अधिकार सामाजिक जीवन की वे शर्तें हैं जिनके बिना कोई व्यक्ति अपनी सर्वोत्तम अवस्था को प्राप्त नही कर सकता। “

◆ बार्कर के अनुसार :- ” अधिकार व्यकितत्व के अधिकतम विकास की बाहरी आवश्यकताएँ हैं। “

◆ बोसके के अनुसार :- ” अधिकार वह माँग है जिसे समाज स्वीकार करता है एवं लागू करता है। “

 

 

 

 ★ अधिकारों की उत्पत्ति :-

● पुरुषों के अधिकारों को प्राकृतिक कानून से प्राप्त किया गया था। इसका मतलब यह था कि किसी शासक या समाज द्वारा अधिकारों को प्रदान नहीं किया गया था, बल्कि हम उनके साथ पैदा हुए थे। जैसे कि ये अधिकार अक्षम्य हैं और कोई भी हमें इनसे दूर नहीं कर सकता है।

● उन्होंने मनुष्य के तीन प्राकृतिक अधिकारों की पहचान की: जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता और संपत्ति – इसके साथ पैदा हुए

● अन्य सभी अधिकार व्युत्पन्न रूप हैं; कोई भी राज्य इसे दूर नहीं कर सकता – राज्यों और सरकारों द्वारा मनमानी शक्ति के अभ्यास का विरोध करना और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करना

● संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा जीवन और – गरिमा – मुक्त होने के समान अवसर – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, उत्पीड़न के खिलाफ विद्रोही, मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना, व्य- क्तिगत प्रगति, सामाजिक प्रगति की गरिमा, मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता का निरीक्षण करना ।

● गुलामी को समाप्त कर दिया गया है लेकिन लैंगिक भेदभाव अभी भी मौजूद है

● पर्यावरण की रक्षा करने की जरूरत है और स्वच्छ हवा, पानी, सतत विकास के अधिकारों की मांग करता है।

● अफ्रीका में गरीबी खत्म करने के लिए पॉप स्टार बॉब जेल्डोफ़ की हालिया अपील- सामाजिक परिवर्तन और सुधार।

 

 

 

★ अधिकारों के प्रकार :-

1. प्राकृतिक अधिकार :- वह अधिकार जो किसी व्यक्ति को प्राकृतिक रूप से प्राप्त है, प्राकृतिक अधिकार कहलाता है |

(क) स्वतंत्रता का अधिकार

(ख) संपति का अधिकार

(ग) जीवन जीने का अधिकार

 

2. नैतिक अधिकार :- वह अधिकार जो व्यक्ति के भावनाओं पर आधारित होते हैं, नैतिक अधिकार कहलाता है इन अधिकारों को क़ानूनी मान्यता प्राप्त नहीं होता है |

जैसे – एक गुरु का अपने शिष्य पर अधिकार, एक बाप पर अपने बेटे पर अधिकार इत्यादि परन्तु ऐसे अधिकार को क़ानूनी मान्यता नहीं मिली है

 

3. क़ानूनी अधिकार :- वह अधिकार जो राज्य की मान्यता प्राप्त होती है और राज्य के कानून इन्हें लागु करते है क़ानूनी अधिकार कहलाते हैं । कानून से प्राप्त अधिकार निम्नलिखित हैं |

(क) मौलिक अधिकार

(ख) सामाजिक अधिकार

(ग) राजनितिक अधिकार

(घ) आर्थिक अधिकार

 

★ अधिकार की आवश्यकता :-

(i) सामाजिक जीवन में अधिकार जीवन का महत्वपूर्ण पक्ष है |

(ii) व्यक्ति के पूर्ण विकास के लिए अधिकार की आवश्यकता होती है |

(iii) अधिकार व्यक्ति के जीवन को सुरक्षा और सुदृढ़ता प्रदान करते हैं और उसे शोषण से बचाते है |

(iv) अधिकारों के बिना व्यक्ति न तो अपना आर्थिक प्रगति कर सकता है और न तो समाज प्रगति कर सकता है।

 

 

 ★ अधिकारों की विशेषताएँ :-

(i) अधिकार सर्वव्यापी होते हैं।

(ii) अधिकार व्यक्ति का दावा है ।

(iii) अधिकार असीमित नहीं होते हैं ।

(iv) अधिकार समाज द्वारा मान्य होता है ।

(v) अधिकारों के साथ कर्तव्य जुड़ें होते हैं।

(vi) अधिकार समाज में ही संभव हो सकते हैं |

(vii) अधिकार राज्य द्वारा प्रदत एवं सुरक्षित होता है |

(viii) अधिकार किसी व्यक्ति का विशिष्ट कार्य करने की शक्ति है |

 

 

★ अधिकारों का महत्व :-

1. व्यक्ति की स्वतंत्रता को लागू करना।

2. राज्य की निरंकुशता पर रोक।

3. व्यक्ति के जीवन विकास में आवश्यक।

4. समाज व राज्य के लिए उपयोगी।

5. सरकार का सकारात्मक आदेश।

6. व्यक्तियों का जीवन अच्छा और व्यवस्थित बनाना।

7. सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखना ।

 

★ अधिकारों को शक्तिशाली बनाने के तरीके

1. लोकतंत्र

2. स्वतन्त्र प्रेस

3. सतत् जागरुकता

4. कानून का शासन

5. स्वतंत्र न्यायपालिका

6. संविधान द्वारा मान्यता

7. शक्तियों का विकेन्द्रीयकरण

 

 

★ अधिकार और शक्तिशाली कैसे हों :-

1. स्वतंत्र प्रैस

2.संविधान लिखित हो

3.जनता की जागरूकता

4.स्वतंत्र न्यायपालिका अधिकारों की संरक्षक

5.संघात्मक सरकार और शक्तियों का विभाजन

6. राज्य का नागरिकों के आंतरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं

● यदि राज्य अधिकारों को सुरक्षित करता हे तो उसे यह अधिकार भी प्राप्त होता है कि वह अधिकारों के दुरूपयोग को रोके इसलिए संविधान के अनुच्छेद 19(2) में मौलिक कर्तव्यों का भी वर्णन किया गया है।

● अधिकार और कर्तव्य सिक्के के दो पहलुओं की तरह है। एक पहलू अधिकार है तो दूसरा पहलू कर्तव्य । समाज में हमें जो अधिकार मिलते हैं उनके बदले में हमें कुछ ऋण चुकाने पड़ते है। ये ऋण ही हमारे कर्त्तव्य हैं।

 

 

★ कर्तव्य :- सामाजिक जीवन कर्तव्य के बिना ठीक-ठाक नहीं चल सकता | सफल लोकतंत्र के लिए नागरिकों को अपने कर्तव्य के प्रति सचेत रहना चाहिए |

● “समाज ने हमें बहुत कुछ दिया है जिसके हम ऋणी है इसलिए कर्तव्य एक प्रकार का समाज के प्रति हमारा ऋण है जो हमें अधिकारों के बदले चुकाना पड़ता है | समाज के प्रति जो हमारी जिम्मेवारी है उसे ही कर्तव्य कहते है |

● कर्तव्य दो प्रकार का होता है

(1) नैतिक कर्तव्य वह कर्तव्य जो किसी के द्वारा लादा नहीं जाता अपितु व्यक्ति के भावनाओं से उत्पन्न कर्तव्य होता है जिसे एक व्यक्ति जिम्मेवारी के रूप में निर्वाह करता है |

(i) चरित्र : प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने चरित्र का निर्माण करे और समाज में नैतिक विकास के लिए सदाचारी बने |

(ii) सेवा : प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता, गुरुजन, अपने से बड़ों, का आदर एवं सम्मान करे उनकी सेवा करे | गरीब, असहाय, अनाथ एवं दिन-दुखियों जितना संभव हो मदद करे और सेवा करे |

 (2) क़ानूनी कर्तव्य :- कानून द्वारा प्रदत कर्तव्य को कानूनी कर्तव्य कहते है | यह देशभक्ति और देश सेवा से जुड़ा होता है । लोकतंत्र में अपने मताधिकार के प्रयोग द्वारा सही सरकार की चुनाव करे यह भी उसका क़ानूनी कर्तव्य है ।

(i) देश भक्ति : प्रत्येक नागरिक के लिए प्रथम कर्तव्य यह है कि वह अपने देश के प्रति वफादार हो और देशभक्ति उसकी देश सेवा के जुडी होती है जो कि एक राज्य के नागरिक का कर्तव्य है

(ii) मताधिकार का प्रयोग : प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि उचित और लोकतान्त्रिक सरकार के चुनाव करने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करे ताकि गलत और अलोकतांत्रिक सरकार शासन में नहीं आ सके |

(iii) आय कर चुकाना : लोकतंत्र में सरकारें जनता द्वारा चुकाए गए करों से ही चलता है अत: प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह ईमानदारी से अपने आय पर कर चुकाए ।

 

 

 ★ अधिकार और दावे में अंतर

अधिकार :-

(1) प्रत्येक राज्य द्वारा अपने लोगो को कुछ अधिकार दिये जाते है अधिकार ऐसे सामाजिक व्यवस्था का नाम है जिनके बिना व्यक्ति पूर्ण रूप से विकास नहीं कर सकता |

(2) अधिकार राज्य द्वारा सुरक्षित होते है

(3) अधिकार को लागू करने के लिये संविधान में आवश्यक व्यवस्था की जाती है

(4) संविधान में अंकित अधिकारों को राज्य कि कानूनी मान्यता प्राप्त होती होती है ।

(5) राज्य उन अधिकारो को लागू करता है एवं उन अधिकारों कि अवहेलना करने वाले के विरुद्ध आवश्यक क़ानूनी कार्यवाही भी करता है ।

◆ दावे :-

(1) दावे वास्तव में व्यक्ति कि मांगे होती है जो मांगे नैतिक या समाजिक पक्ष में उचित हो जिनको समाज स्वीकार करता हो ।

(2) दावें राज्य द्वारा सुरक्षित नहीं होते हैं ।

(3) व्यक्ति कि प्रत्येक मांगे दावे नहीं हो सकती |

(4) केवल उस मांग को अधिकार का दर्जा दिया जाता हैं जो मांग राज्य द्वारा स्वीकार एव लागू कि जाती है

(5) दावें को क़ानूनी चुनौती दी जा सकती है |

 

 ★ अधिकार और जिम्मेदारियाँ :-

● अधिकार राज्य पर यह जिम्मेदारी डालते हैं कि वह विशेष तरीके से कार्य करे। इसी प्रकार ये हम पर भी अधिकारों के ‘सावधानी से प्रयोग की जिम्मेदारी डालते हैं।

● अधिकार यह अपेक्षा करते हैं कि हम अन्य लोगों के अधिकारों का भी सम्मान करें।

● नागरिकों को अपने अधिकारों पर लगाए जाने वाले नियन्त्रणों के बारे में जागरूक रहना चाहिए।

● नागरिक स्वतन्त्रता में कटौती करते वक्त हमें अत्यन्त सावधान होने की जरूरत है क्योंकि इनका आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है।

● हमें अपने और दूसरों के अधिकारों की रक्षा करने हेतु जागरूक रहने की जरूरत है क्योंकि ये लोकतांत्रिक समाज की बुनियाद का निर्माण करते हैं।

 

 

★ मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा

● 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा ने मानवाधिकारों की सार्वजनिक घोषणा को स्वीकार कर उन्हें लागू किया।

● संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा ने सभी सदस्य देशों से मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के पाठ को प्रचारित करने का आह्वान किया।

 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग :-

● वर्ष 1993 में सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग’ का गठन किया। मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतें मिलने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पीड़ित व्यक्ति की याचिका पर जाँच कर सकता है। मानव अधिकार के क्षेत्र में शोध कर सकता है। सरकार या न्यायालय को अपनी जाँच के आधार पर मुकदमा चलाने की सिफारिश कर सकता है।

 

★ मानवाधिकार क्या हैं?

● मानवाधिकार वैसे अधिकार हैं जो हमारे पास इसलिये हैं क्योंकि हम मनुष्य हैं।

● राष्ट्रीयता, लिंग, राष्ट्रीय या जातीय मूल, रंग, धर्म, भाषा या किसी अन्य स्थिति की परवाह किये बिना ये हम सभी के लिये सार्वभौमिक अधिकार हैं।

● इनमें सबसे मौलिक, जीवन के अधिकार से लेकर वे अधिकार शामिल हैं जो जीवन को जीने लायक बनाते हैं, जैसे कि भोजन, शिक्षा, काम, स्वास्थ्य और स्वतंत्रता का अधिकार।

● प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय समुदाय 10 दिसंबर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाता है। यह वर्ष 1948 के उस दिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

● जब संयुक्त राष्ट्र (UN) महासभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) को अपनाया था। UDHR मानव अधिकारों के अंतर्राष्ट्रीय विधेयक का एक हिस्सा है।

● कई क्षेत्रीय कार्यालयों के साथ जिनेवा में इसका मुख्यालय है, मानवाधिकारों के उच्चायुक्त के कार्यालय ने मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण के लिये संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में अग्रणी ज़िम्मेदारी निभाई है।

 

 

★ भारत में मानवाधिकारों से संबंधित प्रावधान क्या हैं?

● भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार, संविधान द्वारा गारंटीकृत व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और सम्मान से संबंधित अधिकारों के रूप में मानवाधिकार या अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों में सन्निहित तथा भारत में अदालतों द्वारा लागू किये जाने योग्य हैं।

● राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग:- भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की स्थापना वर्ष 1993 में की गई थी। जिस कानून के तहत इसे स्थापित किया गया है वह है- मानवाधिकार अधिनियम (PHRA), 1993 का संरक्षण। अधिनियम राज्य मानवाधिकार आयोगों की स्थापना का प्रावधान करता है।

 

◆ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग :

● 2000 में राष्ट्रीय मानवाधिकार का गठन हुआ । इसमे सदस्य – एक भूतपूर्व सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, एक भूतपूर्व उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश तथा मानवधिकारों के संबंध में ज्ञान रखने या व्यवहारिक अनुभव रखने वाले दो सदस्य होते हैं कार्य – शिकायते सुनना, जांच करना तथा पीड़ित को राहत पहुंचाना ।

◆ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी व्याख्या में कहा कि भोजन का अधिकार भारतीयों का मौलिक अधिकार है। साथ ही 2003 में इसे और स्पष्ट करते हुए कहा कि ‘भूख से मुक्त होने का अधिकार मौलिक अधिकार है। ‘… इसमें कहा गया कि भोजन का अधिकार मौलिक अधिकार है (धारा 21 के अंतर्गत मगर केंद्र और राज्य सरकार इसका उल्लंघन कर रहे हैं।

 

भारतीय कानूनों में शामिल मानवाधिकार:- भारतीय संविधान में मानवाधिकारों के कई प्रावधानों को शामिल किया गया है।

मौलिक अधिकारों का भाग III अनुच्छेद 14 से 32 तक।

● संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक भारत के प्रत्येक नागरिक को समानता के अधिकार की गारंटी देते हैं।

● अनुच्छेद 19 भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है।

● अनुच्छेद 21 जीवन एवं स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।

● मौलिक मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में:-नागरिक अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय और अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय जा सकते हैं।

● राज्य के नीति निदेशक तत्त्व अनुच्छेद 36 से 51 तक। भारत मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा का हस्ताक्षरकर्त्ता है और उसने ICESCR एवं ICCPR की पुष्टि की है।

 

● भारत ने निम्न की पुष्टि की है: नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीयअभिसमय महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय बाल अधिकारों पर अभिसमय विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर अभिसमय

 

 ◆ भारत में कुछ अन्य संबंधित कानून और नीतियाँ:

● अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम (वर्ष 2006)

● भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापना अधिनियम (वर्ष 2013) में उचित मुआवज़ा तथा पारदर्शिता का अधिकार

● स्ट्रीट वेंडर्स (आजीविका का संरक्षण और स्ट्रीट वेंडिंग का विनियमन) अधिनियम (वर्ष 2014)

● जन धन खाता
●उज्ज्वला गैस कनेक्शन
●प्रधानमंत्री आवास योजना
● तीन तलाक
● ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये राष्ट्रीय पोर्टल, गरिमा गृह

 

 
 ★ मौलिक अधिकार :- संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35 तक) में मौलिक अधिकारों का विवरण है।

मौलिक अधिकार: भारत का संविधान छह मौलिक अधिकार प्रदान करता है:

● समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)

● स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)

●शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)

●धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)

●संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)

● संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)

 

 

● सूचना का अधिकार :- राईट टू इन्फॉरमेशन सूचना का अधिकार का तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार, जो सूचनाअधिकारकानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को प्रदान करता है। सूचना अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने
नागरिकों को, अपने कार्य को और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है।

 

अध्याय 6 : नागरिकता 

 

 

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