❍ श्वसन :- सभी जीवों के जीवित रहने के लिए अनिवार्य है। यह जीव द्वारा लिए गए भोजन से ऊर्जा को निर्मुक्त करता है।
○ श्वसन द्वारा :- जो वायु शरीर के अंदर लेते हैं , उसमें उपस्थित ऑक्सीजन का उपयोग ग्लूकोस को कार्बन डाइऑक्साइड और जल में विखंडन के लिए किया जाता हैं, यह प्रक्रम में ऊर्जा निर्मुक्त होती है।
○ जीव :- जीव की प्रत्येक कोशिका पोषण , परिवहन , उत्सर्जन , जनन जैसे कार्यों में भूमिका निभाती है।
○ कोशिकीय श्वसन :- कोशिका में भोजन के विखंडन के प्रक्रम में ऊर्जा होती है , जिसे कोशिकीय श्वसन कहते हैं। सभी जीवों की कोशिकाओं में कोशिकीय श्वसन होता है।
○ वायवीय श्वसन :- जब ग्लूकोस का विखंडन ऑक्सीजन के उपयोग द्वारा होता है , तो यह वायवीय श्वसन कहलाता है।
○ अवायवीय श्वसन ;- ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में भी भोजन विखंडित हो सकता है , यह प्रक्रम अवायवीय श्वसन कहलाता है।भोजन के विखंडन से ऊर्जा निमूर्क्त होती है।
ऑक्सीजन की उपस्थिति में
ग्लूकोस ——————————
कार्बन डाइऑक्साइड + जल + ऊर्जा
○ अनेक जीव , वायु की अनुपस्थिति में जीवित रह सकते है।
ऑक्सीजन की उपस्थिति में
ग्लूकोस ——————————
ऐल्कोहॉल +कार्बन डाइऑक्साइड + ऊर्जा
○ यीस्ट एक-कोशिका जीव है। यह अवायवीय रूप से श्वसन करते है इस प्रक्रिया के समय ऐल्कोहॉल निर्मित करते हैं।
○ व्यायाम करते समय हमारे शरीर की कुछ पेशियाँ अवायवीय द्वारा श्वसन की अतिरिक्त माँग को पूरा करती हैं।
ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में
ग्लूकोस ——————————
लैक्टिक अम्ल+ ऊर्जा
○ अनेक जीव , वायु की अनुपस्थिति में जीवित रह सकते है।
ऑक्सीजन की अनुस्थिति में
ग्लूकोस ——————————
ऐल्कोहॉल +कार्बन डाइऑक्साइड + ऊर्जा
❍ श्वसन :- ऑक्सीजन से समृद्ध वायु को अंदर खींचना और कार्बन डाइऑक्साइड से समृद्ध वायु को बाहर निकलना ।
○ अंत: श्वसन :- ऑक्सीजन से समृद्ध वायु को बाहर निकालना अंत: श्वसन कहलाता है।
○ उच्छवसन :- कार्बन डाइऑक्साइड से समृद्ध वायु को बाहर निकालना उच्छवसन
कहलाता है।
○ श्वसन दर :- कोई व्यक्ति एक मिनट में जितनी बार श्वसन करता है , वह उसकी श्वसन दर कहलाती है।
• साँस का अर्थ :- एक अंत:श्वसन और एक उच्छवसन ।
• कोई वयस्क व्यक्ति विश्राम की अवस्था में एक मिनट में औसतन 15-18 बार साँस अंदर लेता है और बाहर निकालता है। अधिक व्यायाम करने में श्वसन दर 25 बार प्रति मिनट तक बढ़ सकती है। सामान्य व्यक्ति हर मिनट 15 बार सांस लेता छोड़ता है। पूरे दिन में लगभग 21,600 बार सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया करता है.
○ हम श्वसन कैसे लेते :- हम अपने नथुनों (नासा-द्वार) अंदर लेते हैं । नाक और मुंह: उद्घाटन जो बाहरी हवा को फेफड़ों में जाने की अनुमति देते हैं।
ग्रसनी (गला): नाक और मुंह से स्वरयंत्र तक हवा को निर्देशित करता है। स्वरयंत्र (वॉयस बॉक्स): वायु को श्वासनली की ओर निर्देशित करता है और इसमें स्वर के लिए मुखर तार होते हैं। श्वासनली (विंडपाइप): बाएं और दाएं ब्रोन्कियल ट्यूबों में विभाजित होती है जो बाएं और दाएं फेफड़ों में हवा को निर्देशित करती है।
○फेफड़े: छाती गुहा में युग्मित अंग जो रक्त और वायु के बीच गैस विनिमय को सक्षम करते हैं। फेफड़ों को पांच पालियों में बांटा गया है।ब्रोन्कियल ट्यूब: फेफड़ों के भीतर नलिकाएं जो हवा को ब्रोंचीओल्स में निर्देशित करती हैं और फेफड़ों से हवा को बाहर निकलने देती हैं।
○ ब्रोन्कियल ट्यूब: फेफड़ों के भीतर नलिकाएं जो हवा को ब्रोंचीओल्स में निर्देशित करती हैं और फेफड़ों से हवा को बाहर निकलने देती हैं।
○ब्रोन्किओल्स : फेफड़ों के भीतर छोटी ब्रोन्कियल नलिकाएं जो वायु को छोटे वायुकोशों में निर्देशित करती हैं जिन्हें एल्वियोली कहा जाता है।
○ एल्वियोली: ब्रोन्किओल टर्मिनल थैली जो केशिकाओं से घिरी होती है और फेफड़ों की श्वसन सतह होती है।
○पल्मोनरी धमनियां: रक्त वाहिकाएं जो ऑक्सीजन-रहित रक्त को हृदय से फेफड़ों तक ले जाती हैं।
○फुफ्फुसीय शिराएँ: रक्त वाहिकाएँ जो फेफड़ों से ऑक्सीजन युक्त रक्त को वापस हृदय तक पहुँचाती हैं।
श्वसन की मांसपेशियां
○डायाफ्राम: पेशीय विभाजन जो छाती गुहा को उदर गुहा से अलग करता है। यह सांस लेने को सक्षम करने के लिए सिकुड़ता है और आराम करता है।
○ इंटरकोस्टल मांसपेशियां: पसलियों के बीच स्थित मांसपेशियों के कई समूह जो सांस लेने में सहायता के लिए छाती गुहा को विस्तार और सिकोड़ने में मदद करते हैं। पेट की मांसपेशियां: हवा को तेजी से बाहर निकालने में सहायता करती हैं।
○ हमारे श्वसन तंत्र के अंगों में मुख्यतः नासिका, नासामार्ग, ग्रसनी, कंठ नली, वायुनाल, श्वसनी, श्वासनली तथा फेंफड़े सम्मिलित होते हैं।
○ जब हम हवा को अंदर खींचते हैं तो इसमें मुख्यतः 79 प्रतिशत नाइट्रोजन, लगभग 21 प्रतिशत ऑक्सीजन तथा 0.04 प्रतिशत कार्बन-डाइ-ऑक्साइड होती है। श्वसन क्रिया में एक अणु ग्लूकोज के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प तथा लगभग 686 किलो कैलोरी ऊर्जा निकलती है।
○ हम श्वसन कैसे लेते :- हम अपने नथुनों (नासा-द्वार) अंदर लेते हैं नाक और मुंह: उद्घाटन जो बाहरी हवा को फेफड़ों में जाने की अनुमति देते हैं। ग्रसनी (गला): नाक और मुंह से स्वरयंत्र तक हवा को निर्देशित करता है।
○स्वरयंत्र (वॉयस बॉक्स): वायु को श्वासनली की ओर निर्देशित करता है और इसमें स्वर के लिए मुखर तार होते हैं।
श्वासनली (विंडपाइप): बाएं और दाएं ब्रोन्कियल ट्यूबों में विभाजित होती है जो बाएं और दाएं फेफड़ों में हवा को निर्देशित करती है।
○फेफड़े: छाती गुहा में युग्मित अंग जो रक्त और वायु के बीच गैस विनिमय को सक्षम करते हैं। फेफड़ों को पांच पालियों में बांटा गया है।
○ ब्रोन्कियल ट्यूब: फेफड़ों के भीतर नलिकाएं जो हवा को ब्रोंचीओल्स में निर्देशित करती हैं और फेफड़ों से हवा को बाहर निकलने देती हैं।
○ब्रोन्किओल्स : फेफड़ों के भीतर छोटी ब्रोन्कियल नलिकाएं जो वायु को छोटे वायुकोशों में निर्देशित करती हैं जिन्हें एल्वियोली कहा जाता है।
○ एल्वियोली: ब्रोन्किओल टर्मिनल थैली जो केशिकाओं से घिरी होती है और फेफड़ों की श्वसन सतह होती है।
○पल्मोनरी धमनियां: रक्त वाहिकाएं जो ऑक्सीजन-रहित रक्त को हृदय से फेफड़ों तक ले जाती हैं।
○फुफ्फुसीय शिराएँ: रक्त वाहिकाएँ जो फेफड़ों से ऑक्सीजन युक्त रक्त को वापस हृदय तक पहुँचाती हैं।
श्वसन की मांसपेशियां
○डायाफ्राम: पेशीय विभाजन जो छाती गुहा को उदर गुहा से अलग करता है। यह सांस लेने को सक्षम करने के लिए सिकुड़ता है और आराम करता है।
○ इंटरकोस्टल मांसपेशियां: पसलियों के बीच स्थित मांसपेशियों के कई समूह जो सांस लेने में सहायता के लिए छाती गुहा को विस्तार और सिकोड़ने में मदद करते हैं।
○पेट की मांसपेशियां: हवा को तेजी से बाहर निकालने में सहायता करती हैं। हमारे श्वसन तंत्र के अंगों में मुख्यतः नासिका, नासामार्ग, ग्रसनी, कंठ नली, वायुनाल, श्वसनी, श्वासनली तथा फेंफड़े सम्मिलित होते हैं। जब हम हवा को अंदर खींचते हैं तो इसमें मुख्यतः 79 प्रतिशत नाइट्रोजन, लगभग 21 प्रतिशत ऑक्सीजन तथा 0.04 प्रतिशत कार्बन-डाइ-ऑक्साइड होती है। श्वसन क्रिया में एक अणु ग्लूकोज के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प तथा लगभग 686 किलो कैलोरी ऊर्जा निकलती है।
❍ जंतुओं में श्वसन :- गाय , भैंस , कुत्ते , और बिल्ली जैसे जीवों में श्वसन अंग और श्वसन प्रक्रम मानव के समान ही होते है।
○कॉकरोच :- कीटों में गैस के विनिमय के लिए वायु नलियों का जाल बिछा होता है।
○ केंचुआ :- केंचुए में गैसों का विनिमय उसकी आर्द्र त्वचा के माध्यम से होता है।
○ मछली :- मछलियों में क्लोम या गिल का प्रयोग करते है।
○ पादप :- पादप में प्रत्येक अंग वायु से स्वतंत्र रूप से ऑक्सीजन ग्रहण करके कार्बन डाइऑक्साइड को निर्मुक्त करते है।
अध्याय 11 जंतुओं और पादप में परिवहन | Transport in Animals and Plants