अपवाह : शब्द एक क्षेत्र के नदी तंत्र की व्याख्या करता है विभिन्न देशों से छोटी-छोटी धार है आकर एक साथ मिल जाती है तथा एक मुख्य नदी का निर्माण करती है अतः इनका विकास किसी बड़े जलाशय जैसे झील या समुद्र या महासागर में होता है
अपवाह द्रोणी : एक नदी तंत्र द्वारा जिस क्षेत्र का जल प्रवाहित होता है उसे एक अपवाह द्रोणी कहते हैं
जल विभाजक : कोई भी ऊंचा क्षेत्र जैसे पर्वत या उच्च भूमि दो पड़ोसी अपवाह द्रोणी ओं को एक दूसरे से अलग करती है इस प्रकार की उच्च भूमि को जल विभाजक कहते हैं विश्व की सबसे बड़ी अपवाह द्रोणी अमेजन नदी है
भारत में अपवाह तंत्र
भारतीय नदियों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है
1, हिमालय की नदियां
2, प्रायद्वीपीय नदियां
हिमालय नदियों की प्रमुख विशेषता
1 हिमालय की अधिकतर नदिया बारहमासी होती है इन में वर्ष भर पानी रहता है क्योंकि इन्हें वर्षा के अतिरिक्त ऊंचे पर्वत से पिघलने वाले हिम द्वारा भी जल प्राप्त होता है
2 हिमालय की दो प्रमुख नदियां सिंधु तथा ब्रह्मपुत्र इस पर्वतीय श्रृंखला के उत्तरी भाग से निकलती हैं इन नदियों ने पर्वतों को काटकर गार्ज का निर्माण किया है
3 हिमालय की नदियां अपने उत्पत्ति के स्थान से लेकर समुद्र तक के लंबे रास्ते को तय करती हैं
4 यह अपने मार्ग के ऊपरी भागों में तीन अपरदन क्रिया करती हैं तथा अपने साथ भारी मात्रा में सिल्ट एवं बालू का संवहन करती हैं मध्य एवं निचले भागों में यह नदियां विसर्प गोखुर झील तथा अपने वार्ड वाले मैदानों में बहुत सी अन्य निक्षेपण आकृतियों का निर्माण करती हैं यह पूर्ण विकसित डेल्टा ओं का भी निर्माण करती हैं
A, सिंधु नदी तंत्र
सिंधु नदी का उद्गम मानसरोवर झील के निकट तिब्बत में है पश्चिम की ओर बहती हुई यह नदी भारत में जम्मू कश्मीर के लद्दाख जिले में प्रवेश करती है
इस भाग में यह एक बहुत ही सुंदर दर्शनीय गार्ज का निर्माण करती है। इस क्षेत्र में बहुत-सी सहायक नदियाँ जैसे – जास्कर, नुबरा श्योक तथा हुंजा इस नदी में मिलती हें। सिंधु नदी बलूचिस्तान तथा गिलगित से बहते हुए अटक में पर्वतीय क्षेत्र से बाहर निकलती है। सतलुज, ब्यास, रावी, चेनाब तथा झेलम आपस में मिलकर पाकिस्तान में मिठानकोट के पास सिंधु नदी में मिल जाती हैं। इसके बाद यह नदी दक्षिण की तरफ बहती हे तथा अंत में कराची से पूर्व की ओर अरब सागर में मिल जाती है। सिंधु नदी के मैदान का ढाल बहुत धीमा है। सिंधु द्रोणी का एकतिहाई से कुछ अधिक भाग भारत के जम्मू-कश्मीर, हिमाचल तथा पंजाब में तथा शेष भाग पाकिस्तान में स्थित हे। 2,900 कि-मी० लंबी सिंधु नदी विश्व की लंबी नदियों में से एक है।
B, गंगा नदी तंत्र
गंगा की मुख्यधारा भागीरथी गंगोत्री हिमानी से निकलती है तथा अलकनंदा उत्तराखंड के देवप्रयाग मैं इस से मिलती है हरिद्वार के पास गंगा पर्वतीय भाग को छोड़कर मैदानी भाग में प्रवेश करती है
हिमालय से निकलने वाली बहुत सी नदियाँ आकर गंगा में मिलती हैं, इनमें से कुछ प्रमुख नदियाँ हैं – यमुना, घाघरा, गंडक तथा कोसी। यमुना नदी हिमालुय॒ के यमुनोत्री हिमानी से निकलती है यह गंगा के दाहिने, किनारे के समानांतर बहती है तथा इलाहाबाद में गंगा मिल जाती है। घाघरा, गंडक तथा कोसी, नेपाल हिमालयु से निकलती हैं। इनके कारण प्रत्येक वर्ष उत्तरी मैदान के – कुछ हिस्से में बाढ़ आती है, जिससे बडे पैमाने पर _ जान-माल का नुकसान होता है, लेकिन ये, वे नदियाँ हैं, “जो मिटटी को उपजाऊपन प्रदान कर कृषि योग्य भूमि बना देती हैं
बाएँ तथा दाहिने किनारे की सहायक नदियों के जल से परिपूर्ण होकर गंगा पूर्व दिशा में, पश्चिम बंगाल के फरक्का तक बहती हे। यह गंगा डेल्टा का सबसे उत्तरी बिंदु है। यहाँ नदी दो भागों में बँट जाती है, _भागीरथी.. हुगली (जो इसकी एक वितरिका है), दक्षिण की तरफ बहती. है. तथा. डेल्टा के मैदान से होते हुए बंगाल की. खाड़ी में मिल जाती हे। मुख्य धारा दक्षिण की ओर बहती. हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है एवं ब्रह्मपुत्र नदी
इससे आकर मिल जाती हे। अंतिम चरण में गंगा और
ब्रह्मपुत्र समुद्र में विलीन होने से पहले मेघना के नाम से जानी जाती हैं। गंगा एवं ब्रह्मपुत्र के जल वाली यह वृहद् नदी बंगाल की खाडी में मिल जाती है। इन नदियों के द्वारा बनाए गए डेल्टा_को सुंद्रवन डेल्टा के नाम से जाना जाता है
की लंबाई 2500 किलोमीटर है अंबाला नगर सिंधु तथा गंगा नदी तंत्रों के बीच जल विभाजक पर स्थित है
C, ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र
ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत के मानसरोवर झील के पूर्व तथा सिंधु एवं सतलुज के स्रोतों के काफी नजदीक से निकलती है इसकी लंबाई सिंधु से कुछ अधिक है परंतु इसका अधिकतम मार्ग भारत से बाहर स्थित है यह हिमालय के समानांतर पूर्व की ओर बहती है नामचा बरवा शिखर के पास बहुत पहुंचकर यह अंग्रेजी के यू अक्षर जैसा मोड बनाकर भारत के अरुणाचल प्रदेश में गार्ज के माध्यम से प्रवेश करती है
यहां इसे देहांग के नाम से जाना जाता है तथा दिबांग लोहित केनुला एवं दूसरे सहायक नदियां इससे मिलकर असम में ब्रह्मपुत्र का निर्माण करती है
प्रायद्वीप नदियों की प्रमुख विशेषताएं
1 अधिकतर प्रायद्वीप नदिया मौसमी होती हैं क्योंकि इनका प्रभाव वर्षा पर निर्भर करता है शुष्क मौसम में बड़ी नदियों का जल भी घटकर छोटी-छोटी धाराओं में बहने लगता है
2 हिमालय की नदियों की तुलना में प्रायद्वीपीय नदियों की लंबाई कम तथा छिछली है फिर भी कुछ नदियां केंद्रीय उच्च भूमि से निकलती है
3 प्रायद्वीपीय भारत की अधिकतर नदियां पश्चिमी घाट से निकलती है तथा बंगाल की खाड़ी में गिरती है
4 प्रतिभा की अधिकतर प्रमुख नदियां जैसे महानदी गोदावरी कृष्णा तथा कावेरी पूर्व की ओर बहती है तथा बंगाल की खाड़ी में गिरती है यह नदियां अपने मुहाने पर डेल्टा का निर्माण करती हैं
5 पश्चिमी घाट से पश्चिम में बहने वाली अनेक छोटी धाराएं हैं नर्मदा एवं ताप्ती दो ही बड़ी नदियां हैं जो कि पश्चिम की तरफ बहती हैं और ज्वारनदमुख का निर्माण करती हैं
6 प्रायद्वीपीय नदियों की अपवाह द्रोणी ओं का आकार अपेक्षाकृत छोटा होता है
नर्मदा द्रोणी
नर्मदा का उद्गम मध्य प्रदेश में अमरकंटक पहाड़ी के निकट है यह पश्चिम की ओर एक भ्रश घाटी में “बहती है। समुद्र तक पहुँचने के क्रम में यह नदी बहुत से स्थलों का निर्माण करती है। जबलपुर के निकट संगमरमर के शैलों में यह नदी गहरे गार्ज से बहती है तथा जहाँ यह नदी तीव्र ढाल से गिरती है, वहाँ ‘धुँआधार प्रपात’ का निर्माण करती है। नर्मदा द्रोणी मध्य प्रदेश तथा गुजरात के कुछ भागों में विस्तृत है
तापी द्रोणी
तापी का उद्गम मध्य प्रदेश के बेतुल जिले में सतपुड़ा की श्रृंखलाओं में है। यह भी नर्मदा के समानांतर एक भ्रंश घाटी में बहती. है, लेकिन इसकी लंबाई बहुत कम है। इसको द्रोणी मध्यप्रदेश, गुजरात तथा महाराष्ट्र राज्य में है। पश्चिम की ओर बहने वाली मुख्य नदियां साबरमती माही भरत पूजा तथा पेरियार है
गोदावरी द्रोणी
गोदावरी सबसे बडी प्रायद्वीपीय नदी है। यह महाराष्ट के
नासिक जिले में पश्चिम घाट की ढालों से निकलती है। इसकी लंबाई लगभग 1,500 कि०्मी० है। यह बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। प्रायद्वीपीय नदियों में इसका अपवाह तंत्र सबसे बड़ा है।गोदावरी में अनेक सहायक नदियाँ मिलती हैं, जेसे – पूर्णा, वर्धा, प्रान्हिता, मांजरा, बेनगंगा तथा पेनगंगा। इनमें से अंतिम तीनों सहायक नदियाँ बहुत बड़ी हैं। बड़े आकार और विस्तार के कारण इसे “दक्षिण गंगा’ के नाम से भी जाना जाता है।
महानदी द्रोणी
इसका उद्गम छत्तीसगढ़ की उच्च भूमि से है तथा यह उड़ीसा से बहते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है इसकी कुल लंबाई 860 किलोमीटर है इसकी अपवाह द्रोणी महाराष्ट्र छत्तीसगढ़ झारखंड तथा उड़ीसा में है
कृष्णा द्रोणी
यह महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में महाबलेश्वर के निकट एक स्रोत से निकलकर लगभग 1400 किलोमीटर बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है तुंगभद्रा , कोयना , घाटप्रभा, मूसी तथा भीमा सहायक नदियां है
कावेरी द्रोणी
कावेरी पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी श्रंखला से निकलती है तथा तमिलनाडु के कुडलूर के दक्षिण में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है कुल लंबाई 760 किलोमीटर सहायक नदियां अमरावती भवानी हेमावती तथा काबिनी है
कुछ छोटी नदियां पूर्व की तरफ होती हैं जैसे दामोदर ब्राह्मनी वैतरणी तथा सुवर्ण रेखा
झीलें पृथ्वी की सतह के गर्त वाले भागो में जहाँ जल जमा हो जाता है उसे झील कहते है ।
झीलो का निर्माण
अधिकतर झीलें स्थाई होती हैं तथा कुछ में केवल वर्षा ऋतु में ही पानी होता है जैसे अंतर्देशीय अफवाह वाले अर्ध शुष्क क्षेत्रों की द्रोणी वाली झीले।
कुछ ऐसी चीजें हैं जिनका निर्माण बीमारियों एवं वर्ग चादर की क्रिया के फल शुरू हुआ है जबकि कुछ अन्य झीलो का निर्माण वायु नदियों एवं मानवीय क्रियाकलापों के कारण हुआ है
एक विसर्प नदी बाढ़ वाले क्षेत्रों में कट कर गोखुर झील का निर्माण करती हैं स्पीट तथा बार ( रोधिका ) तटीय क्षेत्रों में लैगूर का निर्माण करते हैं जैसे चिल्का झील पुलिकट झील कोलेरू झील
लवणीय झील
राजस्थान की सांभर झील एक लवणीय जल वाली झील है इसके जल का उपयोग नमक के निर्माण के लिए किया जाता है
मीठे पानी की झील
मीठे पानी की झीले अधिकांश हिमालय क्षेत्र में है यह मुख्यता हिमानी द्वारा बनी है जम्मू तथा कश्मीर की बुलर झील भूगर्भीय क्रियाओं से बनी है यह भारत की सबसे बड़ी मीठे पानी वाली प्राकृतिक झील है मीठे पानी की अन्य जिले डल झील भीमताल नैनीताल लोकताक बड़ापानी
झीलों से होने वाले प्रमुख लाभ
1 नदी के बहाव को सुचारू बनाने मैं सहायक होती है
2 अत्यधिक वर्षा के समय यह बाढ़ को रोकती हैं
3 सूखे के मौसम में यह पानी के बहाव को संतुलित करने में सहायता करती हैं
4 जल विद्युत उत्पादन करने में इस्तेमाल
5 चलिए पारितंत्र को संतुलित करने में तथा प्राकृतिक सुंदरता व पर्यटन को बढ़ावा देने में सहायक है
नदी प्रदूषण
नदी चल की घरेलू औद्योगिक तथा कृषि में बढ़ती मांग के कारण इसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है इसके परिणाम स्वरूप नदियों में अधिक चल की निकासी होती है तथा इसका आयतन घटता है दूसरी और उद्योगों का प्रदूषण तथा आप परिष्कृत कचरे नदी में मिलते रहते हैं जिसके कारण नदी प्रदूषण बढ़ता है