अध्याय 6 : जल संसाधन

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जल

जल एक चक्रीय संसाधन है जो पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत धरातल पानी से आच्छादित है परंतु अलवणीय जल कुल जल का केवल लगभग 3 प्रतिशत ही है। वास्तव में अलवणीय जल का एक बहुत छोटा भाग ही मानव उपयोग के लिए उपलब्ध है।

 

 

भारत के जल संसाधन

भारत में विश्व के धरातलीय क्षेत्र का लगभग 2.45 प्रतिशत, जल संसाधनों का 4 प्रतिशत जनसंख्या का लगभग 16 प्रतिशत भाग पाया जाता है।

देश में एक वर्ष में वर्षण से प्राप्त कुल जल की मात्रा लगभग 4,000 घन कि.मी. है। धरातलीय जल और पुनः पूर्तियोग भौम जल से 1869 घन कि.मी. जल उपलब्ध है। इसमें से केवल 60 प्रतिशत जल का लाभदायक उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार देश में कुल उपयोगी जल संसाधन 1.122 घन कि.मी. है

 

 

 धरातलीय जल संसाधन :

 

धरातलीय जल के चार मुख्य स्रोत हैं-

नदियाँ,
झीलें,
तलैया
तालाब

 

देश में कुल नदियों तथा उन सहायक नदियों, जिनकी लंबाई 1.6 कि.मी. से अधिक है, को मिलाकर 10,360 नदियाँ हैं। भारत में सभी नदी बेसिनों में औसत वार्षिक प्रवाह 1,869 घन कि.मी. होने का अनुमान किया गया है।

 स्थलाकृतिक जलीय और अन्य दबावों के कारण प्राप्त धरातलीय जल का केवल लगभग 690 घन कि मी. (326) जल का ही उपयोग किया जा सकता है। भारत मे अधिकतर जल मौनसून में प्राप्त होता है। कुछ नदियाँ जैसे- गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु के जल ग्रहण क्षेत्र बहुत बड़े हैं। यह नदी कुल जल का 1/3 भाग धरातलीय जल संसाधनों का 60 प्रतिशत भाग प्राप्त करती है।

 

 

 भौम जल संसाधन

● देश में कुल पुनः पूर्तियोग्य भीम जल संसाधन लगभग 432 घन कि.मी. है। उत्तर-पश्चिमी प्रदेश और दक्षिण भारत के कुछ भागों के नदी बेसिनों में भीम जल उपयाग अपेक्षाकृत अधिक है

● पंजाब, हरियाणा राजस्थान और तमिलनाडु राज्यों में भौम जल का उपयोग बहुत अधिक है।

● छत्तीसगढ़, ओडिशा, केरल आदि अपने भौम जल क्षमता का बहुत कम उपयोग करते हैं।

● गुजरात , उत्तर प्रदेश, बिहार, त्रिपुरा और महाराष्ट्र अपने भीम जल संसाधनों का मध्यम दर से उपयोग कर रहे हैं।

 

 

लैगून और पश्च जल

भारत की समुद्र तट रेखा विशाल है और कुछ राज्यों में समुद्र तर बहुत दतुरित (Indented) है। इसी कारण बहुत-सी लैगून और झील बन गई है। केरल, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में इन लैगूनों और झीलों में बड़े धरातलीय जल संसाधन हैं।

 

 

 जल की माँग और उपयोग

पारंपरिक रूप से भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है और इसकी जनसंख्या का लगभग दो-तिहाई भाग कृषि पर निर्भर है।

कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए सिंचाई के विकास को एक अति उच्च प्राथमिकता प्रदान की गई है और बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ जैसे- भाखड़ा नांगल, हीराकुड, दामोदर घाटी. नागार्जुन सागर, इंदिरा गांधी नहर परियोजना आदि शुरू की गई हैं।

परातलीय और नौम जल का सबसे अधिक उपयोग कृषि में होता है। इसमें धरातलीय जल का 89 प्रतिशत और भौम जल का 92 प्रतिशत जल उपयोग किया जाता है।

 

 

औद्योगिक सेक्टर में : सतह जल का केवल 2 प्रतिशत, भौम जल का 5 प्रतिशत

 

 

 

सिंचाई के लिए जल की माँग

 

कृषि में जल का उपयोग मुख्य रूप से सिंचाई के लिए होता है। देश में वर्षा के स्थानिक सामयिक परिवर्तिता के कारण सिंचाई की आवश्यकता होती है।

देश के अधिकांश भागों में शीत और ग्रीष्म ऋतुओं में न्यूनाधिक शुष्कता पा जाती है इसलिए शुष्क ऋतुओं में बिना सिंचाई के खेती करना कठिन होता है।  सिंचाई की व्यवस्था बहुफ़सलीकरण को संभव बनाती है। ऐसा पाया गया है कि सिंचित भूमि की कृषि उत्पादकता असिंचित भूमि की अपेक्षा ज्यादा होती है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में निवल बोए गए क्षेत्र का 85 प्रतिशत भाग सिंचाई के अंतर्गत है।

निवल सिंचित क्षेत्र का 76.1 प्रतिशत पंजाब में और 51.3 प्रतिशत हरियाणा में, कुओं और नलकूपों द्वारा सिंचित है। इन राज्यों में भौम जल संसाधन के अत्यधिक उपयोग से भौम जल स्तर नीचा हो गया है।

 

 

संभावित जल समस्या

 

जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता, जनसंख्या बढ़ने से दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। उपलब्ध जल संसाधन औद्योगिक, कृषि और घरेलू निस्सरणों से प्रदूषित होता जा रहा है और इस कारण उपयोगी जल संसाधनों की उपलब्धता और सीमित होती जा रही है।

 

 

 

 जल संरक्षण और प्रबंधन :

अलवणीय जल की घटती हुई उपलब्धता और बढ़ती माँग से, सतत पोषणीय विकास के लिए इस महत्वपूर्ण जीवनदायी संसाधन के संरक्षण और प्रबंधन की आवश्यकता बढ़ गई है।

भारत को जल संरक्षण के लिए तुरंत कदम उठाने हैं विकास के अतिरिक्त, प्रदूषण से बचाव के प्रयास भी करने चाहिए। जलसंभर विकास व जलसंण जल पुनः चक्रण और पुन: उपयोग और लंबे समय तक जल की आपूर्ति के लिए जल के संयुक्त उपयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

 

 

जल प्रदूषण का निवारण :

उपलब्ध जल संसाधनों का देशी से निम्नीकरण हो रहा है।

पहाड़ी इलाको में कम बसे क्षेत्रों में अच्छी जल गुणवत्ता पाई जाती है।

नदी जल का उपयोग गहन रूप से कृषि, पीने घरेलू और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

नदी जल में उर्वरक और कीटनाशक घरेलू (ठोस और अपशिष्ट पदार्थ) और औद्योगिक बहि: स्राव नदी में मिल जाते हैं। जो जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बनते है।

 

 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एस.पी.सी.) के साथ मिलकर 507 स्टेशनों को राष्ट्रीय जल संसाधन को गुणवत्ता का मानीटरन किया जा रहा है

 दिल्ली और इटावा के बीच यमुना नदी देश में सबसे अधिक प्रदूषित नदी है। दूसरी प्रदूषित नदियाँ अहमदाबाद में साबरमती, लखनऊ में गोमती, मदुरई में काली, अडयार, कूअम (संपूर्ण विस्तार), वैगई, हैदराबाद में मूसी तथा कानपुर और वाराणसी में गंगा है।

जल अधिनियम 1974 (प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण) और पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986, प्रभावपूर्ण ढंग से कार्यान्वित नहीं हुए हैं। परिणाम यह है कि 1997 में प्रदूषण फैलाने वाले 251 उद्योग, नदियों और झीलों के किनारे स्थापित किए गए थे। जल उपकर अधिनियम 1977, जिसका उद्देश्य प्रदूषण कम करना है, उसके भी सीमित प्रभाव हुए

 

 

जल का पुनः चक्र और पुनः उपयोग

पुनः चक्र और पुन: उपयोग, दूसरे रास्ते हैं जिनके द्वारा अलवणीय जल की उपलब्धता को सुधारा जा सकता है।

कम गुणवत्ता के जल का उपयोग, जैसे शोधित अपशिष्ट जल, उद्योगों के लिए एक आकर्षक विकल्प हैं

इसी तरह नगरीय क्षेत्रों में स्नान और बर्तन धोने में प्रयुक्त जल को पुनः उपयोग किया जा सकता है पेड़ पौधों के लिए ।

 

 

जल संभर प्रबंधन :

जल संभर प्रबंधन से तात्पर्य, मुख्य रूप से धरातलीय और भौम जल संसाधनों के दक्ष प्रबंधन से है। इसके अंतर्गत बहते जल को रोकना और विभिन्न विधियों, जैसे- अंतः स्रवण तालाब, पुनर्भरण, कुओं आदि के द्वारा भौम जल का संचयन और पुनर्भरण शामिल हैं।

विस्तृत अर्थ में जल संभर प्रबंधन के अंतर्गत सभी संसाधनों – प्राकृतिक (जैसे- भूमि, जल, पौधे और प्राणियों) और जल संभर सहित मानवीय संसाधनों के संरक्षण, पुनरुत्पादन और विवेकपूर्ण उपयोग को सम्मिलित किया जाता है।

 

उद्देश्य :

प्राकृतिक संसाधनों और समाज के बीच संतुलन लाना है। जल-संभर व्यवस्था की सफलता मुख्य रूप से संप्रदाय के सहयोग पर निर्भर करती है।
केंद्रीय और राज्य सरकारों ने देश में बहुत से जल- संभर विकास और प्रबंधन कार्यक्रम चलाए हैं।

 

हरियाली :

हरियाली’ केंद्र सरकार द्वारा प्रवर्तित जल-संभर विकास परियोजना है जिसका उद्देश्य ग्रामीण जनसंख्या को पीने, सिंचाई, मत्स्य पालन और वन रोपण के लिए जल संरक्षण के लिए योग्य बनाना है। परियोजना लोगों के सहयोग से ग्राम पंचायतों द्वारा निष्पादित की जा रही है।

 

 

नीरू मीरू :

नीरू मीरू (जल और आप) कार्यक्रम (आंध्र प्रदेश में) और अरवारी पानी संसद (अलवर राजस्थान में) के अंतर्गत लोगों के सहयोग से विभिन्न जल संग्रहण संरचनाएँ जैसे- अंतः स्रवण तालाब ताल (जोहड़) की खुदाई की गई है और रोक बाँध बनाए गए हैं।

 

 

वर्षा जल संग्रहण

वर्षा जल संग्रहण विभिन्न उपयोगों के लिए वर्षा के जल को रोकने और एकत्र करने की विधि है।

इसका उपयोग भूमिगत जलभृतों के पुनर्भरण के लिए भी किया जाता है। यह एक कम मूल्य और पारिस्थितिकी अनुकूल विधि है जिसके द्वारा पानी की प्रत्येक बूँद संरक्षित करने के लिए वर्षा जल को नलकूपों, गड्ढों और कुओं में एकत्र किया जाता है।

वर्षा जल संग्रहण पानी की उपलब्धता को बढ़ाता है, भूमिगत जल स्तर को नीचा होने से रोकता है, देश में विभिन्न समुदाय लंबे समय से अनेक विधियों से वर्षाजल संग्रहण करते आ रहे हैं।

 

 

 

राजस्थान में वर्षा जल संग्रहण

राजस्थान में वर्षा जल संग्रहण ढाँचे जिन्हें कुंड अथवा टाँका (एक ढका हुआ भूमिगत टंकी) के नाम से जानी जाती है जिनका निर्माण घर अथवा गाँव के पास या घर में संग्रहित वर्षा जल को एकत्र करने के लिए किया जाता है।

 

 

 

भारतीय राष्ट्रीय जल नीति, 2002 की मुख्य विशेषताएँ

 

राष्ट्रीय जल नीति 2002 जल आवंटन प्राथमिकताएँ विस्तृत रूप में निम्नलिखित क्रम में निर्दिष्ट की गई हैं: पेयजल, सिंचाई, जलशक्ति, नौकायान, औद्योगिक और अन्य उपयोग। इस नीति में जल व्यवस्था के लिए प्रगतिशील नए दृष्टिकोण निर्धारित किए गए हैं। इसके मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं-

सिंचाई और बहुउद्देशीय परियोजनाओं में पीने का जल घटक में सम्मिलित करना चाहिए जहाँ पेय जल के स्रोत का कोई भी विकल्प नहीं है।

पेय जल सभी मानवजाति और प्राणियों को उपलब्ध कराना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। भौम जल के शोषण को सीमित और नियमित करने के लिए उपाय करने चाहिए ।

सतह और भौम जल दोनों की गुणवत्ता के लिए नियमित जाँच होनी चाहिए। जल की सुधारने के लिए एक चरणबद्ध कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए। ubist

जल के सभी विविध प्रयोगों में कार्यक्षमता सुधारनी चाहिए।

दुर्लभ संसाधन के रूप में, जल के लिए जागरूकता विकसित करनी चाहिए ।

शिक्षा विनिमय, उपक्रमणों, प्रेरकों और अनुक्रमणों द्वारा संरक्षण चेतना बढ़ानी चाहिए।

 

 

 

जल क्रांति अभियान (2015-16)

 

जल क्रांति अभियान भाषा सरकार द्वारा 2015-16 में आरंभ किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य देश में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना है। भारत के विभिन्न धा में लोग पारंपरिक तरीकों से जल संरक्षण और प्रबंधन सुनिश्चित करते हैं।

 

जलक्रांति अभियान का लक्ष्य स्थानीय निकायों और सरकारी संगठन एवं नागरिकों को सम्मिलित करके इस अभियान के उद्देश्य के बारे में जागरूकता फैलाना है।

 

1. जल ग्राम बनाने के लिए देश के 632 जिलों में से प्रत्येक जिले में एक ग्राम जिसमें जल की कमी है, उसे चुना गया है।

 

2) भारत के विभिन्न भागों में 1000 हेक्टेयर मॉडल कमांड क्षेत्र की पहचान की गई। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा ,कर्नाटक, तेलंगाना, गुजरात (पश्चिम) उड़ीसा (पूर्व) मेघालय (उत्तर-पूर्व)।

 

3) प्रदूषण को कम करने के लिए

जल संरक्षण और कृत्रिम पुनर्भरण

भूमि जल प्रदूषण को कम करना

देश के चयनित क्षेत्रों में आसैनिक मुक्त कुओं का निर्माण

4) लोगों में जाने के लिए माध्यम जैसे रेडियो , टी.बी. मीडिया,निबंध का इस्तेमाल करना

 

 

 

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