अध्याय 1 : भूगोल एक विषय के रूप में

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भूगोल क्या है?

 

अत्यंत सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि भूगोल पृथ्वी का वर्णन है।

 

इरेटोस्थनीज 276 ईसापूर्व से 195-194 ईसा पूर्व को भूगोल का पिता कहा जाता है । इरेटोस्थनीज यूनान के एक गणितज्ञ, भूगोलविद, कवि, खगोलविद एवं संगीत सिद्धानतकार थे । Geography शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ग्रीक विद्वान इरेटॉस्थेनीज़ ने किया था ।

 

भूगोल ‘ ग्रीक भाषा में दो शब्दों GEO अर्थात पृथ्वी तथा Graphos अर्थात वर्णन करना से बना है । इस तरह इसका शाब्दिक अर्थ ‘ पृथ्वी का वर्णन करना है ।

• ‘ इरेटॉस्थनीज नामक ग्रीक विद्वान ने ( , 276-194 ई. पू.) में Geography शब्द का प्रयोग किया था । वर्तमान समय में भूगोल शब्द का अर्थ है कि ‘ पृथ्वी के धरातल पर पाई जाने वाली स्थानिक (Spatial ) तथा सामायिक ( Temporal) विभिन्नताओं (Variations ) के अध्ययनं को भूगोल कहते हैं ।

 

 

 वैज्ञानिक विषय के रूप में भूगोल :-

भूगोल एक वैज्ञानिक विषय है। एक परिपक्व वैज्ञानिक विषय के रूप में भूगोल निम्नलिखित तीन वर्गों के प्रश्नों से संबंधित है :-

 

 

(1) क्या ?

• कुछ प्रश्न ऐसे होते है जो भूतल पर पाई जाने वाली प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक विशेषताओं के प्रतिरूप की पहचान से जुड़े हुए होते हैं, जो ‘क्या ‘ प्रश्न का उत्तर देते है ।

 

( 2 ) कहाँ ?

• कुछ ऐसे भी प्रश्न होते हैं जो पृथ्वी पर भौतिक एंव सांस्कृतिक तत्वों के वितरण से जुड़े हुए होते हैं, ये कहाँ ‘ प्रश्न से संबद्ध होते हैं ।

 

(3) कब ?

• कुछ प्रश्न कौन से तत्व कहाँ स्थित हैं, , से – संबंधित सूचीबद्ध सूचनाओं से जुड़े हुए होते हैं । ये प्रश्न व्याख्या अथवा तत्वों एवं तथ्यों के मध्य कार्य कारण संबंध से जुड़े हुए होते हैं। भूगोल का यह पक्ष क्यों प्रश्न जुड़ा हुआ होता है ।

 

 

 

 हमें भूगोल विषय का अध्ययन क्यों करना चाहिये ?

 

भूगोल का अध्ययन हमारे लिए अति आवश्यक है क्योंकि :- भूगोल के अध्ययन से हमें मानव समाजों में पायी जाने वाली विभिन्नता को समझने में आसानी होती है । भूगोल हमको भूपृष्ठ की विविधताओं को समझने तथा स्थान व समय अर्थात Space and Time के संदर्भ में ऐसी विभिन्नताओं को पैदा करने वाले कारकों की तलाश करने की योग्यता देता है ।

भूगोल मानचित्र के जरिये वास्तविक पृथ्वी को जानने और धरातल पर विभिन्न तत्वों के दृश्य ज्ञान की कुशलता विकसित करता है ।

भूगोल में आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों जैसे :- भौगोलिक सूचना तंत्र ( GIS ) संगणक मानचित्र- कला (Computer Cartography ) दूर संवेदन (Remote Sensing ) अध्ययन ने ज्ञान और कुशलता को प्राप्त करने तथा राष्ट्रीय विकास में सहयोग करने की दक्षता प्रदान की है।

• इसने विश्व में व्यापार – वाणिज्य में वृद्धि के साथ — साथ प्रशासन चलाने, भ्रमण व पर्यटन को बढ़ावा दिया है ।

 

 

 

भूगोल के अध्ययन की दो प्रमुख उपागम है

(1) क्रमबद्ध उपागम

(2) प्रादेशिका उपागम

 

 

 

* क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography ) :-

क्रमबद्ध भूगोल में एक विशिष्ट भौगोलिक तत्व का अध्ययन किया जाता है ।

• क्रमबद्ध विधि किसी क्षेत्र का समाकलित ( Integrated ) रूप प्रस्तुत करती है ।

• यह विधि राजनैतिक इकाइयों पर आधारित होती है ।

• यह अध्ययन, खोज व तथ्यों को प्रस्तुत करती है ।

इस अध्ययन एक घटक जैसे जलवायु आधार पर विभिन्न प्रकार व उप- प्रकार निश्चित किए जाते हैं ।

 

 

 

* प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography ) :-

• प्रादेशिक भूगोल में किसी एक प्रदेश का सभी भौगोलिक तत्वों के संदर्भ में एक इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है । प्रादेशिक विधि एकाकी रूप प्रस्तुत करती है ।

• यह विधि भौगोलिक इकाइयों पर आधारित है ।

• यह विधि किसी प्रदेश के वातावरण तथा मानव के बीच अंतर्संबंध प्रस्तुत करती है ।

• इस अध्ययन में प्रदेशों का सीमांकन किया

 इस अध्ययन में प्रदेशों का सीमांकन किया जाता है। इसे प्रादेशीकरण कहते हैं ।

 

 

 

 प्रादेशिक भूगोल की विभिन्न शाखाएँ :-

• प्रादेशिक उपागम पर आधारित प्रादेशिक भूगोल की निम्नलिखित शाखाएँ हैं –

• क) प्रादेशिक / क्षेत्रीय अध्ययन

• ख ) प्रादेशिक नियोजन

• ग ) प्रादेशिक विकास

• घ) प्रादेशिक विवेचना / विश्लेषण

 

 

 

भूगोल की दो मुख्य शाखाएँ हैं :-

• 1 ) भौतिक भूगोल (Physical Geography )

• 2 ) मानव भूगोल (Human Geography )

 

 

 

* भौतिक भूगोल :-

भौतिक भूगोल का प्राकृतिक भूगोल से प्रत्यक्ष सम्बन्ध है ।

• भौतिक भूगोल की सभी शाखाएं प्राकृतिक भूगोल के अंतर्गत आती हैं ।

भूगोल की सभी शाखाएँ – आर्थिक भूगोल, जनसंख्या भूगोल, अधिवास भूगोल, सामाजिक भूगोल, राजनीतिक भूगोल, आदि विषयों से घनिष्ठता से जुड़ी हैं, क्योंकि इनमें सभी स्थानिक विशेषताएँ जुडी हुई हैं ।

• एक भूगोलवेत्ता को गणित एवं कला में निपुण होना चाहिए क्योकि भूगोल में अक्षांश एवं देशान्तरों का अध्ययन करना पड़ता है जिसके लिए गणित का ज्ञान आवश्यक है एवं मानचित्र तैयार करने के लिए कला का ज्ञान होना आवश्यक है ।

 

 

भौतिक भूगोल का महत्त्व :-

भौतिक भूगोल में भूमंडल, वायु मंडल, जल मंडल, जैव मंडल, खाद्य श्रृंखला, मिट्टियाँ, मृदा पार्श्विका (Profile ) आदि का अध्ययन किया जाता है, ये प्रत्येक तत्व मानव के लिए महत्व पूर्ण है।

• भौतिक भूगोल प्राकृतिक संसाधनों के मूल्यांकन तथा प्रबंधन से जुड़े विषय के रूप में

विकसित हो रहा है ।

• भौतिक पर्यावरण संसाधन प्रदान करता है तथा मानव इन संसाधनों का उपयोग करते हुए अपना आर्थिक और सांस्कृतिक विकास सुनिश्चित करता है

• सतत विकास के लिए भौतिक वातावरण का ज्ञान नितांत आवश्यक है जो भौतिक भूगोल के

महत्त्व को रेखांकित करता है ।

 

 

 

भौतिक भूगोल की प्रमुख शाखाएँ ।

 

1 ) भू-आकृति विज्ञान: यह भू-आकृतियों, उनके क्रम विकास एवं संबंधित प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है।

2 ) जलवायु विज्ञान: इसके अंतर्गत वायुमंडल की संरचना, मौसम तथा जलवायु के तत्त्व, जलवायु के प्रकार तथा जलवायु प्रदेश का अध्ययन किया जाता है।

3 ) जल-विज्ञान: यह धरातल के जल परिमंडल जिसमें समुद्र, नदी, झील तथा अन्य जलाशय सम्मिलित हैं तथा उसका मानव सहित विभिन्न प्रकार के जीवों एवं उनके कार्यों पर प्रभाव का अध्ययन है।

4) मृदा भूगोल: यह मिट्टी निर्माण की प्रक्रियाओं मिट्टी के प्रकार, उनका उत्पादकता स्वर वितरण एवं उपयोग आदि के अध्ययन से संबंधित है

 

 

भौतिक भूगोल के अध्ययन का मानव जीवन से अंतः संबंध :-

भौतिक भूगोल, भूगोल की एक महत्वपूर्ण शाखा है, क्योंकि यह समस्त भूगोल के अध्ययन को ठोस आधार प्रदान करता है ।

भूगोल की यह सबसे महत्वपूर्ण तथा आधारभूत शाखा भूमंडल, वायुमंडल, जल मंडल तथा जैव मंडल के अध्ययन संबंधित है।

भौतिक भूगोल के इन सभी तत्वों (भू- आकृतियों, जल-प्रवाह व उच्चावच ) का विशेष महत्व है क्योंकि ये मानव के क्रियाकलापों को प्रभावित करते हैं ।

• उदाहरणतया मैदानों का प्रयोग कृषि के लिए किया जाता है । उपजाऊ मिट्टी, कृषि को ठोस आधार प्रदान करती है। सभी मानवीय क्रियाकलाप को ठोस आधार प्रदान करती है। सभी मानवीय

 

 

 

 

मानव भूगोल :-

• मानव भूगोल भूपृष्ठ पर मानवीय अथवा सांस्कृतिक तत्वों का अध्ययन करता है। घर, गाँव, कस्बे, नगर, रेलवे, सड़कें, पुल आदि मनुष्य द्वारा बनाए जाते हैं और मानवीय तत्व कहलाते हैं । इसलिए मानव भूगोल बहुत ही विस्तृत विषय है ।

 

 

मानव भूगोल की प्रमुख शाखाएं :

 

1) सामाजिक सांस्कृतिक भूगोल: इसके अंतर्गत समाज तथा इसकी स्थानिक / प्रादेशिक गत्यात्मकता (Dynamism) एवं समाज के योगदान से निर्मित सांस्कृतिक तत्वों का अध्ययन आता है ।

2) जनसंख्या एवं अधिवास भूगोल : यह ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि उसका वितरण, घनत्व, लिंग अनुपात प्रवास एवं
व्यावसायिक संरचना आदि का अध्ययन करता है जबकि अधिवास भूगोल में ग्रामीण तथा नगरीय अधिवासों के वितरण प्रारूप तथा अन्य विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है।

 

3) आर्थिक भूगोल: यह मानव की आर्थिक क्रियाओं, जैसे- कृषि, उद्योग, पर्यटन, व्यापार एवं परिवहन, अवस्थापना तत्त्व एवं सेवाओं का अध्ययन है।

 

4 ) ऐतिहासिक भूगोल : यह उन ऐतिहासिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है जो क्षेत्र को संगठित करती हैं। प्रत्येक प्रदेश वर्तमान स्थिति में आने के पूर्व ऐतिहासिक अनुभवों से गुजरता है। भौगोलिक तत्त्वों में भी सामयिक परिवर्तन होते रहते हैं और इसी की व्याख्या ऐतिहासिक भूगोल का ध्येय है।

 

5 ) राजनीतिक भूगोल: यह क्षेत्र को राजनीतिक घटनाओं की दृष्टि से देखता है एवं सीमाओं, निकटस्थ पड़ोसी इकाइयों के मध्य भू-वैन्यासिक संबंध, निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन एवं चुनाव परिदृश्य का विश्लेषण करता है। साथ ही जनसंख्या के राजनीतिक व्यवहार को समझने के लिए सैद्धांतिक रूपरेखा विकसित करता है।

 

 

जीव-भूगोल की प्रमुख शाखाएँ :

भौतिक भूगोल एवं मानव भूगोल के अंतरापृष्ठ (Interface) के फलस्वरूप जीव भूगोल का अभ्युदय हुआ। इसके अंतर्गत निम्नलिखित शाखाएँ आती हैं।

1) जीव-भूगोल: इसमें पशुओं एवं उनके निवास क्षेत्र के स्थानिक स्वरूप एवं भौगोलिक विशेषताओं का अध्ययन होता है।

2) वनस्पति भूगोल: यह प्राकृतिक वनस्पति का उसके निवास क्षेत्र (Habitat) में स्थानिक प्रारूप का अध्ययन करता है।

3) पारिस्थैतिक विज्ञान: इसमें प्रजातियों (Species) के निवास / स्थिति क्षेत्र का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।

4) पर्यावरण भूगोल : संपूर्ण विश्व में पर्यावरणीय प्रतिबोधन के फलस्वरूप पर्यावरणीय समस्याओं, जैसे- भूमि-हास, प्रदूषण, संरक्षण की चिंता आदि का अनुभव किया गया, RT जिसके अध्ययन हेतु इस शाखा का विकास हुआ

 

 

 

प्रादेशिक उपागम पर आधारित भूगोल की शाखाएँ

 

(i) वृहद्, मध्यम, लघुस्तरीय प्रादेशिक / क्षेत्रीय अध्ययन

(ii) ग्रामीण / इलाका नियोजन तथा शहर एवं नगर नियोजन सहित प्रादेशिक नियोजन

(iii) प्रादेशिक विकास

(iv) प्रादेशिक विवेचना / विश्लेषण

दो ऐसे पक्ष हैं जो सभी विषयों के लिए उभयनिष्ठ / सर्वनिष्ठ हैं। ये हैं:

क) दर्शन

1) भौगोलिक चिंतन

2 ) भूमि एवं मानव अंतक्रिया/ मानव पारिस्थितिकी

 

(ख) विधि एवं तकनीक

1) सामान्य एवं संगणक आधारित मानचित्रण

2) परिनामात्मक तकनीक/ साख्यिकी तकनीक

3) क्षेत्र सर्वेक्षण विधियों

4) भू-सूचना विज्ञान तकनीक (Geolnformatics), जैसे- दूरसंवेदन तकनीक, भौगोलिक सूचना तंत्र (G.I.S.), वैश्विक स्थितीय तंत्र (G.P.S.)

 

 

आगमन पद्धति (Inductive Method)

• आगमन पद्धति के अन्तर्गत भूगोलवेत्ता तथ्यों का एक समुच्चय (Set of Facts ) एकत्रित कर लेता है । इनमें पाई जाने वाली समानताओं को छाँट लेता है और नियम निर्मित करता है। यह अध्ययन विशेष से सामान्य के सिद्धांत ‘ ( From specific to general ) पर आधारित है ।

 

निगमन पद्धति ( Deductive Method)

• इसके अन्तर्गत कहे गये आधार पर वाक्य से निष्कर्ष निकाले जाते हैं । यह विधि सामान्य से विशेष ( From general to specific ) के सिद्धांत’ पर आधारित है ।

 

 

भूगोल का अन्य विषयों से संबंध :-

अर्थशास्त्र :- आर्थिक भूगोल

इतिहास :- ऐतिहासिक भूगोल

राजनीति शास्त्र :- राजनैतिक भूगोल

जल विज्ञान :- समुद्र विज्ञान

जलवायु विज्ञान :- मौसम विज्ञान

पादप और प्राणी भूगोल :- वनस्पति एवं प्राणी विज्ञान

जनसंख्या भूगोल :- जनांकिकी

पर्यावरण विज्ञान :- पर्यावरण भूगोल

 

 

मानव और प्रकृति के अन्तर्संबंध :-

• मानव के अनुकूलन (Adaptation ) तथा आपरिवर्तन अर्थात (Modification) के माध्यम से प्रकृति के साथ समझौता किया है।

• मानव ने उच्च तकनीकी एंव प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग करके प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन किए हैं।

• तकनीकी के क्रमिक विकास के साथ मानव अपने ऊपर भौतिक पर्यावरण के द्वारा कसे बंधन को ढीला करने में सक्षम हो गया है । तकनीकी ने श्रम की कठोरता को कम करके श्रम क्षमता को बढ़ाया है तथा कार्य के दौरान अवकाश का प्रावधान किया है ।

 

 

 

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