अध्याय 10 : मानव बस्ती

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मानव बस्ती

एक स्थान जो साधारणतया स्थायी रूप से बसा हुआ हो उसे मानव बस्ती कहते हैं। किसी भी क्षेत्र में बस्तियों का रूप उस क्षेत्र के वातावरण से मानव का संबंध दर्शाता है।

 

 

बस्तियों का वर्गीकरण :

बस्तियों को मुख्यरूप से दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। ग्रामीण बस्ती और नगरीय बस्ती ।

 

बस्तियों के ये विभाजन जनसंख्या के आधार पर होता है। परंतु यह मापदंड सर्वव्यापी नही है। क्योंकि भारत, चीन जैसे देशों में ग्रामीण बस्ती यूरोप अमेरिका जैसे देशो की नगरीय बस्ती से भी बड़े है।

 

दूसरा आधार व्यवसाय है।

ग्रामीण बस्ती में रहने वाले निवासियों का मुख्य व्यवसाय प्राथमिक गतिविधियों जैसे कृषि, मछली पकड़ना, लकड़ी काटना, खनन कार्य पशुपालन इत्यादि से संबंधित होता है।

 

 

नगरीय बस्ती : नगरों या शहरों के निवासियों का मुख्य व्यवसाय द्वितीयक एवं तृतीयक गतिविधियों से संबंधित है।

 

उप नगरीकरण :  यह एक नवीन प्रवृत्ति है जिसमे मनुष्य शहर के घने बसे क्षेत्रो से हटकर रहन-सहन को अच्छी गुणवत्ता की खोज में शहर के बाहर स्वच्छ एवं खुले क्षेत्रों में जा रहे श्री बड़े शहरों के समीप ऐसे महत्वपूर्ण उपनगर विकसित हो जाते है, जहाँ से प्रतिदिन हारा व्यक्ति अपने घरो से कार्यस्थलों पर आते-जाते हैं।

 

 

बस्तियों के प्रकार एवं प्रतिरूप : बस्तियों का वर्गीकरण उनकी आकृति एवं प्रतिरूपों के आधार पर किया जाता है।

 

आकृति के आधार पर बस्ती को मुख्य निम्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है.

 

1) संहत बस्ती : इस प्रकार की बस्तियाँ वे होती है जिनमें मकान एक दूसरे के समीप बनाए जाते हैं। इस तरह की बस्तियों का विकास नदी घाटियों के सहारे या उपजाऊ मैदानों में होता है। यहाँ रहने वाला समुदाय मिलकर रहते है एवं उनके व्यवसाय भी समान होते हैं

 

2) प्रकीर्ण बस्ती : इन बस्तियों में मकान दूर-दूर होते हैं तथा खेतों के द्वारा एक दूसरे से अलग होते हैं। एक सांस्कृतिक आकृति जैसे पूजा-स्थत अथवा बाजार बस्तियों को एक साथ बँधता है।

 

 

 ग्रामीण बस्तियाँ

● ग्रामीण बस्ती अधिक निकटता तथा प्रत्यक्ष रूप से भूमि से जुड़ी होती है।

● यहाँ के निवासी अधिकतर प्राथमिक गतिविधियों में लगे होते है। जैसे , कृषि , मछली पकड़ना, पशुपालन आदि इनके प्रमुख व्यवसाय होते हैं।

● बस्तियों का आकार छोटा होता है।

 

 

ग्रामीण बस्तियों को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित :

 

1) जल आपूर्ति : ग्रामीण बस्तियाँ जल स्रोतों या जलराशियों जैसे नदियाँ, झीलें एवं झरनों इत्यादि के समीप स्थित होती हैं, जहाँ जल आसानी से उपलब्ध हो जाता है। अधिकांश जल आधारित ‘नम ‘बिंदु’ बस्तियों में पीने, खाना बनाने, वस्त्र धोने आदि के लिए जल की उपलब्धि जैसे अनेक लाभ उपलब्ध होते हैं। फार्म भूमि की सिंचाई के लिए नदियों और झीलों का उपयोग किया जा सकता है।

 

2) भूमि :

मनुष्य बसने के लिए उस जगह का चुनाव करता है जहाँ की भूमि कृषि कार्य के लिए उपयुक्त व उपजाऊ हो।
किसी भी क्षेत्र में प्रारंभिक अधिवासी उपजाऊ एवं समतल क्षेत्रों में ही बसते थे। जैसे, यूरोप में दलदली क्षेत्र एवं निचले क्षेत्र में बस्तियाँ नहीं बसाई जाती हैं जबकि दक्षिणी पूर्वी एशिया में रहने वाले लोग नदी घाटियों के निम्न भाग एवं तटवर्ती मैदानों के निकट बस्तियाँ बसाते हैं जो कि उन्हें नम चावल की कृषि के लिए सहायक होते हैं।

 

3) उच्च भूमि के क्षेत्र :

मानव ने अपने अधिवास हेतु ऊँचे क्षेत्रों को इसलिए चुना कि वहाँ पर बाढ़ के समय होने वाली क्षति से बचा जा सके एवं मकान व जीवन सुरक्षित रह सके। नदी बेसिन के निम्न भाग में बस्तियाँ नदी वेदिकाओं एवं तटबंधों पर बसाई जाती हैं क्योंकि ये भाग ‘शुष्क बिंदु होते हैं।

 

4) गृह निर्माण सामग्री

गृहनिर्माण सामग्री की उपलब्धता भी एक बड़ा कारक होती है। जहाँ आसानी से लकड़ी, पत्थर आदि प्राप्त हो जाते हैं मनुष्य वहीं अपनी बस्तियाँ बसाता है। वनों को काट कर प्राचीन गाँवों को बनाया गया था जहाँ लकड़ी बहुतायत में थी।

 

5) सुरक्षा :

राजनीतिक अस्थिरता, बुद्ध या पड़ोसी समूहों के उपद्रवी होने की स्थिति में गाँवों को सुरक्षात्मक पहाड़ियों एवं द्वीपों पर बसाया जाता था। नाइजीरिया में खड़े इंसेलवर्ग अच्छी सुरक्षित स्थिति प्रदान करते हैं। भारत में अधिकतर दुर्ग ऊँचे स्थानों अथवा पहाड़ियों पर स्थित हैं।

 

6) नियोजित बस्तियाँ

इस तरह की बस्तियाँ सरकार द्वारा बसाई जाती हैं। ग्रामवासियों द्वारा स्वतः जिन बस्तियों की स्थिति का चयन नहीं किया जाता, सरकार द्वारा अधिगृहित को गई ऐसी भूमि पर निवासियों को सभी प्रकार की सुविधाएँ जैसे आवास, पानी तथा अन्य अवसंरचना आदि उपलब्ध कराकर बस्तियों को विकसित करती हैं।

 

 

 

 ग्रामीण बस्तियों के वर्गीकरण

 

(i) विन्यास के आधार पर इनके मुख्य प्रकार हैं – : मैदानी ग्राम, पठारी ग्राम, तटीय ग्राम, वन ग्राम एवं मरुस्थलीय ग्राम।

 

(ii) कार्य के आधार पर इसमें कृषि ग्राम, मछुवारों के ग्राम, लकड़हारों के ग्राम ,पशुपालक ग्राम आदि आते हैं।

 

iii) बस्तियों की आकृति के आधार पर इसमें कई प्रकार की ज्यामितिक आकृतियाँ हो सकती हैं : जैसे कि रेखीय, आयताकार, वृत्ताकार तारे के आकार की, ‘टी’ के आकार की, चौक पट्टी, दोहरे ग्राम इत्यादि ।

 

(क) रैखिक प्रतिरूप : उस प्रकार की बस्तियों में मकान सड़कों, रेल लाइनों, नदियों, नहरों, घाटी के किनारे अथवा तटबंधों पर स्थित होते हैं।

 

(ख) आयताकार प्रतिरूप : ग्रामीण बस्तियों का यह प्रतिरूप समतल क्षेत्रों अथवा चौड़ी अंतरा पर्वतीय घाटियों में पाया जाता है। इसमें सड़कें आयताकार होती हैं जो एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं।

 

(ग) वृत्ताकार प्रतिरूप : इस प्रकार के गाँव झीलों व तालाबों आदि क्षेत्रों के चारों ओर बस्ती बस जाने से विकसित होते हैं। कभी-कभी ग्राम को इस योजना से बसाया जाता है कि उसका मध्य भाग खुला रहे जिसमें पशुओं को रखा जाए ताकि वे जंगली जानवरों से सुरक्षित रहें।

 

घ) तारे के आकार का प्रतिरूप : जहाँ कई मार्ग आकर एक स्थान पर मिलते हैं और उन मार्गों के सहारे मकान बन जाते हैं। वहाँ तारे के आकार की बस्तियाँ विकसित होती हैं। ‘टी’ आकार, ‘वाई’ आकार, क्रॉस आकार टी के आकार की बस्तियाँ सड़क के तिराहे पर विकसित होती है।

 

 

 

ग्रामीण बस्तियों की समस्याएँ :

 

1. पेयजल का अभाव – संसार के अधिकतर गाँवों में पेयजल की गम्भीर समस्या है। महिलाओं व बच्चों को कई-कई किमी दूर से पानी लाना पड़ता है। रेगिस्तानी और पर्वतीय भागों में पेयजल की समस्या अत्यधिक गम्भीर है।

 

2. जलवाहित रोग – पेयजल की गुणवत्ता ठीक न होने से जलवाहित रोग जैसे हैजा, पीलिया आदि फैलते हैं।

 

3. बाढ़ और सूखा – दक्षिण एशिया के देशों के गाँव बाढ़ और सूखे दोनों की ही मार सहने को अभिशप्त हैं। सिंचाई के अभाव में सूखा पड़ने पर फसलों को भारी हानि होती है।

 

4.शौचालयों और कचरे की समस्या – गाँव में शौचालयों के न होने से महिलाओं को अधिक कठिनाई उठानी पड़ती है। वे इसी कारण अनेक रोगों का शिकार हो जाती हैं। गाँवों में कचरे की निपटान की कोई सुचारु व्यवस्था नहीं है।

 

5. मानव और पशु एक साथ – पशुओं को और उनके चारे को अपने घर में या घर के अति निकट घेर में रखना किसान की मजबूरी है, लेकिन इससे अनेक रोगों के फैलने का खतरा बना रहता है।

 

6. परिवहन और संचार साधनों का अभाव – गाँव में पक्की सड़कों का अभाव है। टेलीफोन सविधा सभी गाँवों में नहीं है, अत: आपातकाल में गाँव शेष दुनिया से कट जाते हैं। अनेक गाँव वर्षा ऋतु में सम्पर्कविहीन बने रहते हैं।

 

7.स्वास्थ्य और शिक्षा का अभाव – गाँवों में स्वास्थ्य और शिक्षा का अभाव है। यदि कहीं सुविधा है भी तो उसका स्तर बहुत घटिया है।

 

 

 

नगरीय बस्तियाँ

 

प्रथम नगरीय बस्ती लंदन नगर की जनसंख्या लगभग 1810 ई. तक 10 लाख हो गई थी। 1982 में विश्व में करीब 175 नगर 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले थे। 1800 में विश्व के केवल 3 प्रतिशत जनसंख्या नगरीय बस्तियों में काम करती थी जबकि वर्तमान समय में 54 प्रतिशत जनसंख्य नगरों में निवास करती है

 

 

नगरीय बस्तियों का वर्गीकरण :

नगरीय क्षेत्रों की परिभाषा एक देश से दूसरे देश में भिन्न है। वर्गीकरण के कुछ सामान्य आधार जनसंख्या का आकार मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले व्यवसाय एवं प्रशासकीय ढाँचा है।

 

 

जनसंख्या का आकार :

नगरीय क्षेत्र की श्रेणी में आने के लिए जनसंख्या के आकार की निचली सीमा कोलंबिया में 1500 अर्जेंटाइना एवं पुर्तगाल में 2000 संयुक्त राज्य अमेरिका एवं थाईलैंड में 2500, भारत में 5000 एवं जापान में 30,000 व्यक्ति हैं।

भारत में जनसंख्या के अतिरिक्त जनसंख्या घनत्व भी 400 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर होना चाहिए एवं साथ ही साथ गैर कृषि कार्य में लगी जनसंख्या को भी ध्यान में रखा जाता है

विभिन्न देशों में जनसंख्या घनत्व अधिक या कम होने की स्थिति में घनत्व वाला मापदंड उसी के अनुरूप बढ़ा या घटा दिया जाता है। डेनमार्क, स्वीडन एवं फिनलैंड में 250 व्यक्तियों की जनसंख्या वाले सभी क्षेत्र नगरीय क्षेत्र कहलाते हैं।

 

 

व्यावसायिक संरचना :

भारत में प्रमुख आर्थिक गतिविधियों को भी नगरीय बस्तियाँ निर्दिष्ट करने के लिए मापदंड माना जाता है। इसी प्रकार इटली में उस वस्ती को नगरीय कहा जाता है जिसकी आर्थिक रूप से उत्पादक जनसंख्या का 50 प्रतिशत गैर कृषि कार्यों में संलग्न हो। भारत में यह मापदंड 75 प्रतिशत का रखा गया है।

 

प्रशासन :

कुछ देशों में किसी बस्ती को नगरीय बस्ती में वर्गीकृत करने हेतु प्रशासनिक ढाँचे को मापदंड माना जाता है।

भारत में किसी भी आकार की बस्तियों को नगर के रूप में वर्गीकृत किया जाता है यदि वहाँ नगरपालिका, छावनी बोर्ड या अधिसूचित नगरीय क्षेत्र समिति है। इसी प्रकार लैटिन अमेरिका के देश ब्राजील एवं बोलीविया में जनसंख्या आकार का ध्यान नहीं रखते हुए किसी भी प्रशासकीय केंद्र को नगरीय केंद्र माना जाता है।

 

 

स्थिति :

नगरीय केंद्रों की स्थिति उनके द्वारा संपन्न कार्यों के आधार पर देखी जाती है। सामरिक नगरों की स्थिति ऐसी जगह हो जहाँ इसे प्राकृतिक सुरक्षा मिले; खनिज नगरों के लिए क्षेत्र में आर्थिक दृष्टिकोण से उपयोगी खनिजों का पाया जाना आवश्यक है

 

औद्योगिक नगरों के लिए स्थानीय शक्ति के साधन एवं कच्चा माल पर्यटन केंद्र के लिए आकर्षक दृश्य या सामुद्रिक तट, औषधीय जल वाला झरना या कोई ऐतिहासिक अवशेषः पत्तन के लिए पोताश्रय का होना।

 

 

 

 नगरीय क्षेत्रों के कार्य :

प्राचीन नगर प्रशासन, व्यापार, उद्योग, सुरक्षा एवं धार्मिक महत्त्व के केंद्र हुआ करते थे।

आजकल कई नए कार्य जैसे मनोरंजनात्मक, यातायात, खनन निर्माण, आवासीय तथा सबसे नवीन सूचना प्रौद्योगिकी आदि कुछ विशिष्ट नगरों में संपन्न होते हैं।

 

 

प्रशासनिक नगर :

 

राष्ट्र की राजधानियाँ जहाँ पर केंद्रीय सरकार के प्रशासनिक कार्यालय होते हैं उन्हें प्रशासनिक नगर कहा जाता है। जैसे नयी दिल्ली, केनबेरा, बीजिंग, अदीस अबाबा, वाशिंगटन डी.सी. एवं लंदन इत्यादि प्रशासनिक नगर हैं।

राज्यों में भी ऐसे नगर हो सकते हैं जिनका कार्य प्रशासनिक हो, उदाहरण के लिए विक्टोरिया (ब्रिटिश कोलंबिया), अलबैनी (न्यूयार्क), चेन्नई (तमिलनाडु) इत्यादि।

 

 

व्यापारिक एवं व्यावसायिक नगर :

कृषि बाजार कस्बे जैसे विनियेग एवं कंसास नगर, बैंकिंग एवं वित्तीय कार्य करने वाले नगर, जैसे फ्रैंकफर्ट एवं एमसटर्डम, विशाल अंतर्देशीय केंद्र जैसे मैनचेस्टर एवं सेंट लूइस एवं परिवहन के केंद्र जैसे लाहौर, बगदाद एवं आगरा प्रमुख व्यापारिक केंद्र रहे हैं

 

 

 सांस्कृतिक नगर :

तीर्थस्थान जैसे जैरूसलम, मक्का, जगन्नाथ पुरी एवं बनारस आदि सांस्कृतिक नगर हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से इनका बहुत महत्त्व है।

इनके अतिरिक्त जो कार्य नगर करते हैं उनमें स्वास्थ्य एवं मनोरंजन (मियामी एवं पणजी), औद्योगिक (पिट्सबर्ग एवं जमशेदपुर), खनन (ब्रोकन हिल एवं धनबाद) एवं परिवहन (सिंगापुर एवं मुगलसराय) आदि सम्मिलित किए जाते हैं

 

 

आकृति के आधार पर नगरों का वर्गीकरण :

एक नगरीय वस्ती रेखीय वर्गाकार, तारा के आकार या अर्ध चंद्राकार (चापाकार) हो सकती है।

विकसित एवं विकासशील देशों के कस्बे एवं नगर उनके विकास एवं नगर नियोजन में कई तरह की विभिन्नताएँ रखते हैं। विकसित देशों में अधिकतर नगर योजनाबद्ध तरीके से बसाये गए हैं जबकि विकासशील देशों में अधिकतर नगरों की उत्पत्ति ऐतिहासिक है तथा उनकी आकृति अनियमित है।

 

 

अदीस अबाबा (नवीन पुष्प )

इथोपिया का राजधानी नगर अदीस अबाबा (अदीस-नया, अबाबा-पुष्प) एक नया नगर है जिसकी स्थापना 1878 में हुई थी। संपूर्ण नगर पर्वतीय घाटी स्थलाकृति पर स्थित है सड़कों का प्रारूप स्थानीय धरातल से प्रभावित है।

राजकीय मुख्यालय प्याज्जा, अरात एवं आमिस्ट किलो से चारों ओर सड़कें जाती हैं। मरकाटो में एक बहुत विकसित बाजार है, जिसके विषय में मान्यता है कि उत्तर में काहिरा एवं दक्षिण में जोहानसबर्ग के बीच ये सबसे बड़ा बाजार है।

अदीस अबाबा जहाँ एक बहु संकाय विश्वविद्यालय, चिकित्सा महाविद्यालय एवं कई अच्छे स्कूल होने की वजह से शिक्षा का भी एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है।

 

जिबूती – अदीस अबाबा रेलमार्ग का अंतिम स्टेशन है। बोले हवाई अड्डा सापेक्षतः एक नया हवाई अड्डा है। इस नगर का तेजी से विकास हुआ है

 

 

केनबेरा

अमेरिकन वास्तुविद वाल्टर बरली ग्रिफिन ने 1912 में आस्ट्रेलिया की राजधानी के लिए इस नगर की योजना बनाई। भू-दृश्य की प्राकृतिक आकृतियों को ध्यान में रखते हुए लगभग 25,000 निवासियों के रहने के लिए इस उद्यान नगर की कल्पना की थी।

इसमें पाँच मुख्य केंद्र थे, प्रत्येक के अलग-अलग कार्य थे। पिछले कुछ दशकों में कई उपनगर इसके समीप बन गए हैं जिनके अपने केंद्र हैं। नगर में बहुत खुले क्षेत्र हैं एवं कई उद्यान तथा पार्क हैं।

 

 

नगरीय बस्तियों के प्रकार :

 

नगरीय बस्ती अपने आकार उपलब्ध सुविधाओं एवं उनके द्वारा संपन्न किए जाने वाले कार्यों के आधार पर कई नामों से पुकारी जाती हैं जैसे नगर, शहर, मिलियन सिटी, सन्नगर, विश्वनगरी ।

 

 नगर :

नगरों एवं ग्रामों में कार्यों की विषमता सदैव स्पष्ट नहीं होती है परंतु कुछ विशेष कार्य जैसे निर्माण, खुदरा एवं थोक व्यापार एवं व्यावसायिक सेवाएँ नगरों में ही विद्यमान होती हैं।

 

 

शहर :

यह अग्रणी नगर होता है। शहर नगरों से बड़े होते हैं एवं इनके आर्थिक कार्य भी अधिक होते हैं। यहाँ पर प्रमुख वित्तीय संस्थान, प्रादेशिक प्रशासकीय कार्यालय एवं यातायात के केंद्र होते हैं। जब इनकी जनसंख्या 10 लाख से अधिक हो जाती है तब इन्हें मिलियन सिटी कहा जाता है

लेविस ममफोर्ड के शब्दों में ‘वास्तव में शहर उच्च एवं अधिक जटिल प्रकार के सहचारी जीवन का भौतिक रूप हैं।’

 

 

सन्नगर :

1915 में पैट्रिक गिडिज ने इस शब्द का इस्तेमाल किया था। यह विशाल विकसित नगरीय क्षेत्र होते हैं जो कि मूलतः अलग-अलग नगरों या शहरों के आपस में मिल जाने से एक विशाल नगरीय विकास क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता है। ग्रेटर लंदन, मानचेस्टर, शिकागो एवं टोक्यो इसके उदाहरण हैं।

 

 

मिलियन सिटी :

विश्व में मिलियन सिटी की संख्या पहले की अपेक्षा निरंतर बढ़ रही है। 1800 में लंदन इस श्रेणी में आया, 1850 में पेरिस, 1860 में न्यूयार्क तथा 1950 तक विश्व में 80 शहर मिलियन सिटी थे

1975 में इनकी संख्या 160 थी जो बढ़कर 2005 में 438 हो गई। 70 के मध्य में 162 मिलियन सिटी थे और 2005 में इन की संख्या में तीन गुना वृद्धि हुई और संख्या 438 तक पहुँच गई। 2016 में, दुनिया भर में 512 शहरों में कम से कम 1 मिलियन ( 10 लाख) निवासी थे। 2030 तक अनुमानित 662 शहरों में कम से कम मिलियन निवासी होंगे।

 

 

विश्वनगरी

यह यूनानी शब्द ‘मेगालोपोलिस’ से बना है जिसका अर्थ होता है ‘विशाल नगर’। इसका प्रयोग 1957 में जीन गोटमेन ने किया। यह बड़ा महानगर प्रदेश होता है जिसमें सन्नगरों का समूह होता है।

विश्वनगरी का सबसे अच्छा उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका में है जहाँ उत्तर में बोस्टन से दक्षिण में वाशिंगटन तक नगरीय भूदृश्य के रूप में दिखाई देता है।

 

 

मेगासिटी का वितरण :

वह नगर जिनकी जनसंख्या मुख्य नगर व उपनगरों को मिलाकर एक करोड़ से अधिक हो। सबसे पहले 1950 में न्यूयार्क ने यह श्रेय प्राप्त किया था जब उसकी जनसंख्या 1 करोड़ 25 लाख हो गई। वर्तमान में 25 मेगासिटी हैं।

 

 

 विकासशील देशों में मानव बस्तियों की समस्याएँ :

 

बस्तियों से संबंधित कई प्रकार की समस्याएँ हैं जैसे अवहनीय जनसंख्या का केंद्रीकरण, छोटे व तंग आवास एवं गलियाँ, पीने योग्य जल जैसी सुविधाओं की कमी। इसके अतिरिक्त इनमें आधारभूत ढाँचा जैसे बिजली, गंदे पानी की निकासी, स्वास्थ्य एवं शिक्षा आदि सुविधाओं की भी कमी होती है।

 

 

नगरीय बस्तियों की समस्याएँ

 

1) विकासशील देशों में अधिकतर शहर अनियोजित हैं जिस के कारण भीड़ भाड़ का अधिक होना

2) विकासशील देशों के आधुनिक शहरों में आवासों की कमी लंबवत विस्तार (बहुमंजिला मकान) तथा गंदी बस्तियों की वृद्धि

3) निम्न स्तरीय आवासों जैसे गंदी बस्तियों, अनधिकृत बस्तिया इत्यादि भारत के अधिकांश मिलीयन सिटी 25 प्रतिशत निवासी अवैध वस्तियों में रहते हैं

4) एशिया पेसिफिक देशों में नगरीय जनसंख्या का 60 प्रतिशत भाग अनधिकृत बस्तियों में रहता है।

 

 

आर्थिक समस्याएँ

1) ग्रामीण व छोटे नगरीय क्षेत्रों में रोज़गार के घटते अवसरों के कारण जनसंख्या का शहरों की ओर पलायन करना

2) अकुशल एवं अर्धकुशल श्रमिकों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि

 

 

सामाजिक सांस्कृतिक समस्याएँ

अपर्याप्त वित्तीय संसाधनों के कारण बहुसंख्यक निवासियों की आधारभूत सामाजिक ढाँचागत आवश्यकताएँ पूरा न होना

उपलब्ध स्वास्थ्य एवं शिक्षा संबंधी सुविधाएँ गरीब नगरवासियों की पहुँच से बाहर रहती हैं।

बेरोजगारी एवं शिक्षा की कमी के कारण अपराध अधिक होना

नगरों में जनसंख्याका नगरों की ओर प्रयास क्रमशः बढ़ा है। जिसने लिंग अनुपात असंतुलित होना

 

 

 पर्यावरण संबंधी समस्याएँ :

 

जल आपूर्ति :

विकासशील देशों के अनेक नगरों में पीने योग्य पानी को न्यूनतम आवश्यकता की पूर्ति तथा घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए जल की उपलब्धता सुनिश्चित करना अत्यधिक कठिन है। परंतु एवं औद्योगिक कार्यों के लिए परंपरागत ईंधन के व्यापक उपयोग के कारण वायु प्रदूषित हो जाती है।

अनुपयुक्त मल निस्तारण व्यवस्था अस्वास्थ्य दशाएँ।

 

 

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