अध्याय 11 : इमारतें चित्र तथा किताबें

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लौह स्तंभ :- महरौली (दिल्ली) में कुतुबमीनार के परिसर में खड़ा यह लौह स्तंभ भारतीय शिल्पकरों की कुशलता का एक अद्भुत उदाहरण है। इसकी ऊँचाई 7.2 मीटर और वजन 3 टन से भी ज़्यादा है। इसका निर्माण लगभग 1500 साल पहले हुआ। इसके बनने के समय की जानकारी हमें इस पर खुदे अभिलेख से मिलती है। इतने वर्षों के बाद भी इसमें जंग नहीं लगा है।

 

 

ईटों और पत्थरों की इमारतें :-हमारे शिल्पकरों की कुशलता के नमूने स्तूपों जैसी कुछ इमारतों में देखने को मिलते है।

स्तूप का शब्दिक अर्थ ‘ टीला ‘ होता है हालांकि स्तूप विभिन्न आकार के थे – कभी गोल या लंबे तो कभी बड़े या छोटे। उन सब में एक समानता है। प्राय: सभी स्तूपों के भीतर एक छोटा-सा डिब्बा रखा है। डिब्बों में बुद्ध या उनके अनुयायियों के शरीर के अवशेष ( जैसे दाँत ,हड्डी या राख ) या उनके द्वारा प्रयुक्त कोई चीज या कोई कीमती पत्थर अथवा सिक्के रखे रहते है।

इसी धातु-मंजूषा कहते है। प्रारंभिक स्तूप , धातु-मंजूषा के ऊपर रखा मिट्टी का टीला होता था। बाद के कल में उस गुम्बदनुमा ढाँचे को तराशे हुए पत्थरों से ढक दिया गया। प्राय: स्तूपों के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए एक वृताकार पथ बना होता था , जिसे प्रदक्षिण पथ कहते है। इस रास्ते को रेलिंग से घेर दिया जाता था , जिसे वेदिका कहते है।

 

साँची का स्तूप – मध्य प्रदेश इस काल में कुछ आरंभिक हिन्दू मंदिरों का भी निर्माण किया गया। मंदिरों में विष्णु , शिव तथा दुर्गा जैसी देवी-देवताओं की पूजा होती थी। मंदिरों का सबसे महत्वपूर्ण भाग गर्भगृह होता था , जहाँ मुख्य देवी या देवता की मूर्ति को रखा जाता था। पुरोहित , भक्त पूजा करते थे। भीतरगाँव जैसे मंदिरों में उसके ऊपर काफी ऊँचाई तक निर्माण किया जाता था, जिसे शिखर कहते थे। अधिकतर मंदिरों में मंडपनाम की एक जगह होती थी। यह एक सभागार होता था , जहाँ लोग इकट्ठा होते थे। महाबलीपुरम और ऐहोल मंदिर।

 

 

स्तूप तथा मंदिर किस तरह बनाए जाते थे :- पहला अच्छे किस्म के पत्थर ढूँढ़कर शिलाखंडों को खोदकर निकालना होता था। यहाँ पत्थरों को काट-छाँटकर तराशने के बाद खंभो , दीवारों की चौखटों , फ़र्शों तथा छतों का आकार दिया जाता था। मुश्किल सबके तैयार हो जाने पर सही जगहों पर उन्हें लगाना काफी मुश्किल का काम था।

 

 

पुस्तकों की दुनिया :- 1800 साल पहले एक प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य ‘ सिलप्पदिकारम ‘ की रचना इलांगो नामक कवि ने की। पुरानी कहानियाँ :- पुराण का शब्दिक अर्थ है प्राचीन। इनमे विष्णु , शिव , दुर्गा या पार्वती जैसे देवी-देवताओं से जुड़ी कहानियाँ हैं। दो संस्कृत महाकाव्य महाभारत और रामायण लंबे अर्से से लोकप्रय रहे हैं। पुराणों और महाभारत दोनों को ही व्यास नाम के ऋषि ने संकलित किया था। संस्कृत रामायण के लेखक वाल्मीकि मैने जाते है।

 

 

विज्ञान की पुस्तकें :- इसी समय गणितज्ञ तथा खगोलशस्त्री आर्यभट्ट ने संस्कृत में आर्यभट्टीयम नामक पुस्तक लिखी। इसमें उन्होंने लिखा की दिन और रात पृथ्वी के अपनी धुरी पर चक्कर काटने की वजह से होते हैं , जबकि लगता है की रोज सूर्य निकलता है और डूबता है। उन्होंने ग्रहण के बारे में भी एक वैज्ञानिक तर्क दिया।

 

 

शून्य :- भारत के गतितज्ञों ने शून्य के लिए  चिन्ह का अविष्कार किया आयुर्वेद :- प्राचीन भारत मेंआयुर्वेद के दो प्रसिद्ध चिकित्स्क थे – चरक ” चरकसंहिता औषधिशास्त्र ( प्रथम – द्वितीय शताब्दी ईस्वी ) और सुश्रुत- ” सुश्रुतसंहिता में शल्य चिकत्सा (चौथी शताब्दी ईस्वी )

 

 

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