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जल हमारे सौर मंडल का दुर्लभ पदार्थ है। सूर्य अथवा सौरमंडल में अन्यत्र कहीं भी जल नहीं है। सौभाग्य से पृथ्वी के धरातल पर जल की प्रचुर आपूर्ति है। हमारे ग्रह को ‘नीला ग्रह’ (Blue planet) भी कहा जाता है।
जलीय चक्र
जल एक चक्रीय संसाधन है जिसका पुनः प्रयोग किया जा सकता है। जल एक चक्र के रूप में महासागर से धरातल पर और धरातल से महासागर तक पहुँचता है। जलीय चक्र, पृथ्वी पर इसके नीचे व पृथ्वी के ऊपर वायुमंडल में जल के संचलन की व्याख्या करता है।
जलीय चक्र का अर्थ
जलीय चक्र पृथ्वी के जलमंडल में विभिन्न रूपों अर्थात् गैस, तरल व ठोस में जल का परिसंचरण है। इसका संबंध महासागरों, वायुमंडल, भूपृष्ठ, अधः स्तल और जीवों के बीच जल के सतत् आदान-प्रदान से भी है।
पृथ्वी पर पाए जाने वाले जल का लगभग 71 प्रतिशत भाग महासागरों में पाया जाता है। शेष जल ताज़े जल के रूप में हिमानियों, हिमटोपी, भूमिगत जल झीलों, मृदा में आर्द्रता वायुमंडल, सरिताओं और जीवों में संग्रहीत है। धरातल पर गिरने वाले जल का लगभग 59 प्रतिशत भाग महासागरों एवं अन्य स्थानों से वाष्पीकरण के द्वारा वायुमंडल में चला जाता है। शेष भाग धरातल पर बहता है; कुछ भूमि में रिस जाता है और कुछ भाग हिमनदी का रूप ले लेता है।
महासागरीय अधस्तल का उच्चावच
महाद्वीपों के विपरीत महासागर एक दूसरे में इतने स्वाभाविक ढंग से विलय हो जाते हैं कि उनका सीमांकन करना कठिन हो जाता है।
महासागरों को पांच भागो में बाँटा गया है।
प्रशांत महासागर
अटलांटिक महासागर
हिंद महासागर
दक्षिणी महासागर
आर्कटिक महासागर
अनेक समुद्र, खाड़ियाँ, गल्फ़ तथा अन्य निवेशिकाएँ इन पांच बड़े महासागरों के भाग हैं।
महासागरीय अधस्तल का प्रमुख भाग समुद्र तल के नीचे 3 से 6 कि०मी० के बीच पाया जाता है। महासागरों की तली में, विश्व की सबसे बड़ी पर्वत श्रृंखलाएँ, सबसे गहरे गर्त एवं सबसे बड़े मैदान होने के कारण ये ऊबड़-खाबड़ होते हैं। महाद्वीपों पर पाए जाने वाले लक्षणों की तरह ये लक्षण भी विर्वर्तनिक ज्वालामुखीय एवं निक्षेपण की क्रियाओं से बनते हैं।
महासागरीय अधस्तल का विभाजन
महासागरीय अधस्तल को चार प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है
(i) महाद्वीपीय शेल्फ़
(ii) महाद्वीपीय ढाल
(iii) गहरे समुद्री मैदान
(iv) महासागरीय गभीर।
इस के अतिरिक्त अन्य आकृति भी पाई जाती है। जैसे : कटकें, पहाड़ियाँ, समुद्री टीला, निमग्न द्वीप, खाइयाँ व खड्ड आदि ।
1) महाद्वीपीय शेल्फ़
महाद्वीपीय शेल्फ़ प्रत्येक महाद्वीप का विस्तृत सीमांत होता है, जो अपेक्षाकृत उथले समुद्रों तथा खाड़ियों से घिरा होता है महासागर का सबसे उथल भाग होता है इसकी औसत प्रवणता 1 डिग्री या उससे भी कम होती है। यह शेल्फ़ अत्यंत तीव्र ढाल पर समाप्त होता है जिसे शेल्फ़ अवकाश कहा जाता है। महाद्वीपीय शेल्फों की औसत चौड़ाई 80 किलोमीटर होती है।
कुछ सीमांतों के साथ शेल्फ़ नहीं होते अथवा अत्यंत संकीर्ण होते हैं जैसे : चिली के तट तथा सुमात्रा के पश्चिमी तट आकर्टिक महासागर में साइबेरियन शेल्फ़ विश्व में सबसे बड़ा है जिसकी चौड़ाई 500 किलोमीटर है। इस कि गहराई भी भिन्न भिन्न होती है कुछ जगह यह 30m से 600m तक है ।
महाद्वीपीय शेल्फ़ों पर अवसादों की मोटाई भी अलग-अलग होती है। यह नदी , हिमनदी , पवन द्वारा लाए जाते है यह अवसाद जीवाश्म ईंधन के स्रोत होते है।
2) महाद्वीपीय ढाल
महाद्वीपीय ढाल महासागरीय बेसिनों और महाद्वीपीय शेल्फ़ को जोड़ती है। इसकी शुरुआत वहाँ होती है, जहाँ महाद्वीपीय शेल्फ़ की तली तीव्र ढाल में परिवर्तित हो जाती है। ढाल वाले प्रदेश की प्रवणता 2 से 5 डिग्री के बीच होती है। ढाल वाले प्रदेश की गहराई 200 मीटर एवं 3,000 मीटर के बीच होती है। इसी प्रदेश में कैनियन (गंभीर खड्ड ) एवं खाइयाँ दिखाई देते हैं।
3) गंभीर सागरीय मैदान
गंभीर सागरीय मैदान महासागरीय बेसिनों के मंद ढाल वाले क्षेत्र होते हैं। ये विश्व के सबसे चिकने तथा सबसे सपाट भाग हैं। इनकी गहराई 3,000 से 6,000 मीटर के बीच होती हैं। ये मैदान महीन कणों वाले अवसादों जैसे मृत्तिका एवं गाद से ढके होते हैं।
4) महासागरीय गर्त
ये महासागरों के सबसे गहरे भाग होते हैं। ये गर्त अपेक्षाकृत खड़े किनारों वाले संकीर्ण बेसिन होते हैं। महासागरीय तली की अपेक्षा ये 3 से 5 किमी तक गहरे होते हैं। यह सक्रिय ज्वालामुखी तथा प्रबल भूकंप वाले क्षेत्रों से संबंधित होते हैं। अभी तक लगभग 57 गर्तों को खोजा गया है, जिनमें से 32 प्रशांत महासागर में 19 अटलांटिक महासागर में एवं 6 हिंद महासागर में हैं।
कुछ लघु आकृतियाँ
मध्य- महासागरीय कटक
एक मध्य- महासागरीय कटक पर्वतों की दो श्रृंखलाओं से बना होता है, जो एक विशाल अवनमन द्वारा अलग किए गए होते हैं। इन पर्वत श्रृंखलाओं के शिखर की ऊँचाई 2,500 मीटर तक हो सकती है। उदाहरण आईसलैंड है जो मध्य अटलांटिक कटक का एक भाग है।
समुद्री टीला
यह नुकीले शिखरों वाला एक पर्वत है, जो समुद्री तली से ऊपर की ओर उठता है, किंतु महासागरों के सतह तक नहीं पहुँच पाता। समुद्री टीले ज्वालामुखी के द्वारा उत्पन्न होते हैं। ये 3,000 से 4500 मीटर ऊँचे हो सकते हैं। एम्पेरर समुद्री टीला, जो प्रशांत महासागर में हवाई द्वीपसमूहों का विस्तार है
जलमग्न कैनियन
ये गहरी घाटियाँ होती हैं। कई बार ये बड़ी नदियों के मुहाने से आगे की ओर विस्तृत होकर महाद्वीपीय शेल्फ़ व ढालों को आर-पार काटती नज़र आती है। हडसन कैनियन विश्व का सबसे अधिक जाना माना कैनियन है।
निमग्न द्वीप
यह चपटे शिखर वाले समुद्री टीले है। इन चपटे शिखर वाले जलमग्न पर्वतों के बनने की अवस्थाएँ क्रमिक अवतलन के साक्ष्यों द्वारा प्रदर्शित होती हैं। अकेले प्रशांत महासागर में अनुमानतः 10,000 से अधिक समुद्री टीले एवं निमग्न द्वीप उपस्थित हैं।
प्रवाल द्वीप
ये उष्ण कटिबंधीय महासागरों में पाए जाने वाले प्रवाल भित्तियों से युक्त निम्न आकार के द्वीप हैं जो कि गहरे अवनमन को चारों ओर से घेरे हुए होते हैं।कभी-कभी ये साफ, खारे या बहुत अधिक जल को चारों तरफ़ से घिरे रहते हैं।
महासागरीय जल का तापमान
महासागरीय जल भूमि की तरह सौर ऊर्जा के द्वारा गर्म होते हैं। स्थल की तुलना में जल के तापन व शीतलन की प्रक्रिया धीमी होती है।
तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारक
(1) अक्षांश : ध्रुवों की ओर प्रवेशी सौर्य विकिरण की मात्रा घटने के कारण महासागरों के सतही जल का तापमान विषुवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर घटता चला जाता है।
(ii) स्थल एवं जल का असमान वितरण : उत्तरी गोलार्ध के महासागर दक्षिणी गोलार्ध के महासागरों की अपेक्षा स्थल के बहुत बड़े भाग से जुड़े होने के कारण अधिक मात्रा में ऊष्मा प्राप्त करते हैं।
iii) सनातन पवनें : स्थल से महासागरों की तरफ बहने वाली पवनें महासागरों के सतही गर्म जल को तट से दूर धकेल देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप नीचे का ठंडा जल ऊपर की ओर आ जाता है। परिणामस्वरूप, तापमान में देशांतरीय अंतर आता है।
iv) महासागरीय धाराएँ : गर्म महासागरीय धाराएँ ठंडे क्षेत्रों में तापमान को बढ़ा देती हैं, जबकि ठंडी धाराएँ गर्म महासागरीय क्षेत्रों में तापमान को घटा देती हैं। जैसे : गल्फ स्ट्रीम (गर्म धारा) उत्तर अमरीका के पूर्वी तट तथा यूरोप के पश्चिमी तट के तापमान को बढ़ा देती है,
लेब्रेडोर धारा (ठंडी धारा) उत्तर अमरीका के उत्तर-पूर्वी तट के नजदीक के तापमान को कम कर देती हैं।
तापमान का ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज वितरण
थर्मोक्लाईन
वह सीमा क्षेत्र जहाँ तापमान में तीव्र गिरावट आती है, ताप प्रवणता (थर्मोक्लाईन) कहा जाता है। जल के कुल आयतन का लगभग 90 प्रतिशत गहरे महासागर में ताप प्रवणता (थर्मोक्लाईन) के नीचे पाया जाता है। इस क्षेत्र में तापमान 0 डिग्री सेल्सियस पहुँच जाता है।
महासागरीय तापमान को 3 परतो में समझ जा सकता है।
पहली परत गर्म महासागरीय जल की सबसे ऊपरी परत होती है जो लगभग 500 मीटर मोटी होती है और इसका तापमान 20 डिग्री से० से 25 डिग्री से. के बीच रहता है ।
दूसरी परत जिसे ताप प्रवणता (थर्मोक्लाईन) परत कहा जाता है, पहली परत के नीचे स्थित होती है। इसमें गहराई के बढ़ने के साथ तापमान में तीव्र गिरावट आती है। यहाँ थर्मोक्लाईन की मोटाई 500 से 1,000 मीटर तक होती है।
तीसरी परत बहुत अधिक ठंडी होती है तथा गंभीर महासागरीय तली तक विस्तृत होती है। आर्कटिक एवं अंटार्कटिक वृत्तों में सतही जल का तापमान 0 डिग्री से के निकट होता है, और इसलिए गहराई के साथ तापमान में बहुत कम परिवर्तन होता है।
महासागरों की सतह के जल का औसत तापमान लगभग 27 डिग्री से होता है, और यह विषवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर क्रमिक ढंग से कम होता जाता है। बढ़ते हुए अक्षांशों के साथ तापमान के घटने की दर सामान्यतः प्रति अक्षांश 0.5 डिग्री से होती है
महासागरीय जल की लवणता
लवणता वह शब्द है जिसका उपयोग समुद्री जल में घुले हुए नमक की मात्रा को निर्धारित करने में किया जाता है। इसका परिकलन 1,000 ग्राम (एक किलोग्राम) समुद्री जल में घुले हुए नमक (ग्राम में) की मात्रा के द्वारा किया जाता है।
इसे प्रायः प्रति 1000 भाग (%) या PPT के रूप में व्यक्त किया जाता है। 24.7% से अधिक लवण पानी को खारा पानी मन जाता है ।
महासागरीय लवणता को प्रभावित करने वाले कारक
(i) महासागरों की सतह के जल की लवणता मुख्यतः वाष्पीकरण एवं वर्षण पर निर्भर करती है।
(ii) तटीय क्षेत्रों में सतह के जल की लवणता नदियों के द्वारा लाए गए ताज़े जल के द्वारा तथा ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ के जमने एवं पिघलने की क्रिया से सबसे अधिक प्रभावित होती है।
(iii) पवन भी जल को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरित करके लवणता को प्रभावित करती है।
(iv) महासागरीय धाराएँ भी लवणता में भिन्नता उत्पन्न करने में सहयोग करती हैं।
उच्चतम लवणता वाले क्षेत्र
(i) मृत सागर में (238% )
(ii) टर्की की वॉन झील (330%)(iii) ग्रेट साल्ट झील (220%)
लवणता का क्षैतिज वितरण
कर्क तथा मकर रेखा पर लवणता की मात्रा सबसे अधिक है। (वाष्पीकरण की अधिकता के कारण ) वर्षा अधिक होने के कारण भूमध्य रेखा के निकट लवणता की मात्रा कम होती है । ध्रुवों के समीप लवणता की मात्रा कम पाई जाती है, (बर्फ के समुद्र में मिलने के कारण )
खुले महासागर की लवणता 33% से 37% के बीच होती है। लाल सागर में यह 41% तक होती हैं, आर्कटिक एवं ज्वार नद मुख में मौसम के अनुसार लवणता 0 से 35% के बीच पाई जाती है। अटलांटिक महासागर की औसत लवणता 36% के लगभग है। हिंद महासागर की औसत लवणता 35% है।
लवणता का ऊर्ध्वाधर वितरण
गहराई के साथ लवणता में परिवर्तन आता है, लेकिन इसमें परिवर्तन समुद्र की स्थिति पर निर्भर करता है। सतह की लवणता जल के बर्फ या वाष्प के रूप में परिवर्तित हो जाने के कारण बढ़ जाती है या ताजे जल के मिल जाने से घटती है,
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महासागरों के सतही क्षेत्रों एवं गहरे क्षेत्रों के बीच लवणता में अंतर होता है। कम लवणता वाला जल उच्च लवणता व घनत्व वाले जल के ऊपर स्थित होता है।
हैलोक्लाईन : महासागर में वह सिमा क्षेत्र जहाँ लवणता तेजी से बढ़ती है।