परिचय : — उपभोक्त किसी उपभोक्ता के लिए उपभोग का बंडल दोनों वस्तुओं कि कीमत और उनके आय पर प्रभाव पड़ता है । उपभोक्ता को यह तय करना पड़ता हैं की अपनी आय को किस वस्तु पर खर्च करना हैं ।
★ . उपभोक्ता का संतुलन : – ( samulson ) के अनुसार :— एक उपभोक्ता उस समय संतुलन में होता हैं जब वे अपने दी हुई आय तथा बाजार कीमतों से प्राप्त संतुष्टि को अधिकतम कर लेता हैं ।
★. उपयोगिता का किया अर्थ हैं :— वस्तुओं वा सेवाओं में मानवीय आश्यकताओं को संतुष्ट करने की जो क्षमता होती हैं उसे उपयोगिता कहते हैं ।
★. सीमांत उपयोगिता : – किसी वस्तु की एकीकृत इकाई के उपभोग से जो अतिरिक्त उपयोगिता मिलता हैं उसे सीमांत उपयोगिता कहते हैं ।
दूसरे शब्दों में एकीकृत इकाई के उपयोग से कुल उपयोगिता में जो वृद्धि होती हैं उसे सीमांत उपयोगिता कहते हैं ।
★. कुल उपयोगिता :– उपयोग की सभी इकाई के उपभोग से उपभोक्ता प्राप्त होती हैं उसे कुल उपयोगिता कहते हैं । कुल उपयोगिता उपभोग की विभिन्न इकाईयों से प्राप्त सीमांत उपयोगिताओं का योग होता हैं ।
★. सीमांत उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता में अंतर स्पष्ट करे ।
1. प्रारंभ में कुल Tu उपयोगिता तथा सीमांत Mu उपयोगिता दोनों धनात्मक होती हैं ।
2. वस्तु उतरोतर इकाईयों का उपभोग करने पर कुल उपयोगिता में घटती हुई दर से वृद्धि होती हैं ।
3. कुल उपयोगिता तब तक बढ़ती हैं , जब तक सीमांत उपयोगिता धनात्मक होती हैं ।
4. सीमांत उपयोगिता क्रमश: घटती जाती हैं । एक सीमा पर पहुंचकर शून्य हो जाती हैं और फिर ऋणात्मक होने लगती हैं ।
5. जब सीमांत उपयोगिता शून्य हो जाती हैं तब कुल उपयोगिता अधिकतम होती हैं ।
6. जब सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक होती हैं तब कुल उपयोगिता घटने लगता हैं ।
★. औसत उपयोगिता :— उपभोग की जाने वाली वस्तु की कुल इकाइयों की संख्या से भाग देने से जो भागफल प्राप्त होता हैं उसे औसत उपयोगिता कहते हैं ।
★. घटती हुई सीमांत उपयोगिता का नियम समझाए । अथवा सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम का वर्णन ।
सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम एक सार्वभौमिक नियम हैं । यह नियम उपभोक्ता के उस व्यवहार पर आधारित हैं । जिसमे उपभोक्ता द्वारा किसी वस्तु की ज्यादा से ज्यादा इकाई उपभोग करने पर अतिरिक्त उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की इकाइयों की सीमांत उपयोगिता घटती जाती हैं ।
उपभोक्ता किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाई का उपभोग अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए करता हैं , तो अतिरिक्त इकाइयां उसके लिए कम उपयोगी होने लगती हैं । अगर यह क्रिया कुछ समय तक चलती रहती हैं , तो एक स्थिति ऐसी आती है कि वस्तु से प्राप्त सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती हैं । अर्थशास्त्री इस प्रवृत्ति को ह्रास सीमांत उपयोगिता कहते हैं ।
★. उपभोक्ता संतुलन की शर्ते क्या– क्या हैं ।
यदि उपभोक्ता की आय निश्चित रहती हैं और बाजार में कोई स्थानापन वस्तु आ जाती है एवं दोनों के मूल्य में नाम मात्रा का अंतर रहता हैं , तो उपभोक्ता चाहेगा कि दोनों वस्तुओं की कुल इकाइयां खरीद की जाए । उपभोक्ता अपनी आय और आवश्यकता में संतुलन बनाए रखना चाहता हैं यही उपभोक्ता की शर्ते हैं ।
★. मांग : – किसी निश्चित समय में दिए गए मूल्य पर उपभोक्ताओं के द्वारा वस्तु की मांगी गई मात्रा को मांग कहते हैं ।
मांग के प्रकार :–
1. व्यक्तिगत मांग
2. बाजार मांग
★. मांग का नियम :— मांग के नियम के अनुसार जब बाजार में किसी वस्तु के मूल्य में वृद्धि होती है , तो उस वस्तु की मांग घट जाती हैं । ठीक इसी के विपरीत जब वस्तु के मूल्य में कमी होती है तो उस वस्तु की मांग बढ़ जाती हैं ।
अन्य बातें समान रहने पर मूल्य में वृद्धि या कमी होती है , तो मांगी गई मात्रा में वृद्धि या कमी होती हैं । प्रो० अलफ्रेड मार्शल के अनुसार मांगी गई वस्तु की मात्रा कीमत में कमी के साथ बढ़ती हैं । तथा कीमत में वृद्धि के साथ घटती हैं ।
★ वस्तु की मांग को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं । या तत्व कौन कौन से हैं ।
मांग को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं :–
1. वस्तु के मूल्य :– अभी बाजार में किसी वस्तु के मूल्य में कमी होती है , तो उस वस्तु की मांग बढ़ जाती हैं ।ठीक इसी के विपरीत जब वस्तु की मूल्य में वृद्धि होती है तो वस्तु की मांग घट जाती हैं ।
2. जनसंख्या में परिवर्तन :— जनसंख्या में वृद्धि होने पर वस्तु की मांग बढ़ जाती है । तथा जनसंख्या में कमी होने पर वस्तु की मांगी गई मात्रा घटने लगती हैं ।
3. मौसम और जलवायु :– मौसम और जलवायु में अनुकूल परिवर्तन होने पर वस्तु की मांग में वृद्धि होती है तथा प्रतिकूल परिवर्तन होने पर वस्तु की मांग घट जाती हैं । जैसे – ठंडे के मौसम में गर्म कपड़े की मांग बढ़ जाती हैं ।
4.उपभोक्ता की आय :– उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर वस्तु की मांग बढ़ जाती हैं । इसके अतिरिक्त मांग को प्रभावित करने वाले अन्य कारक – उपभोक्ता की आदत रुचि फैशन आदि हैं ।
1. व्यक्तिगत मांग :– किसी निश्चित समय में दिए गए मूल्य पर किसी एक व्यक्ति के द्वारा वस्तुओं की मांगी गई मात्रा में व्यक्तिगत मांग कहते हैं ।
2. बाजार मांग :– किसी निश्चित समय में दिए गए मूल्य पर विभिन्न व्यक्तियों द्वारा मांगी गई मात्रा को बाजार मांग करते हैं ।
★. मांग की तालिका से आप क्या समझते हैं । इसके कौन-कौन से प्रकार हैं ।
किसी निश्चित समय में दिए गए मूल्य पर उपभोक्ताओं के द्वारा वस्तु की मांगी गई मात्रा को सूची या तालिका बनाकर दिखाया जाता है , उसे मांग की तालिका कहते हैं । मांग की तालिका के दो प्रकार हैं ।
1. व्यक्तिगत मांग तालिका :– किसी निश्चित समय में दिए गए मूल्य पर किसी एक व्यक्ति के द्वारा वस्तु की मांग की गई मात्रा को सूची या तालिका में बना कर दिखाते हैं तो उसे व्यक्तिगत मांग की तालिका कहते हैं ।
2 . बाजार मांग की तालिका :– किसी निश्चित समय में दिए गए मूल्य पर विभिन्न व्यक्तियों द्वारा वस्तु की मांगी गई मात्रा को सूची या तालिका में बनाकर दिखाते हैं , तो उसे बाजार मांग की तालिका कहते हैं ।
★. प्रतिस्थापक वस्तु और पूरक वस्तु में क्या अंतर हैं ।
प्रतिस्थापक वस्तु :–
1. प्रतिस्थापक वस्तु में एक वस्तु की कीमत बढ़ने पर उससे संबंधित वस्तु की मांग बढ़ जाती हैं ।
2. प्रतिस्थापक वस्तु का उदाहरण :– कोका-कोला , चाय – कॉफी , गुड़ – चीनी इत्यादि ।
पूरक वस्तु :–
1. पूरक वस्तु में एक वस्तु की कीमत बढ़ने पर दूसरे वस्तु की मांग घट जाती हैं ।
2. पूरक वस्तु का उदाहरण :– पेट्रोल– कार , चाय – चीनी
★. सामान्य वस्तु और घटिया वस्तु में अंतर स्पष्ट करें ।
•• सामान्य वस्तु :–
1. सामान्य वस्तु से तात्पर्य ऐसे वस्तु से है , जो उच्च कोटि के वस्तु होते हैं।
2. इन वस्तुओं की मांग उपभोक्ता की आय बढ़ाने पर बढ़ती है तथा
आय घटने पर मांग भी घटती हैं ।
3. उदाहरण :– बासमती चावल , फल , दूध उच्च कोटि के वस्त्र इत्यादि।
•• घटिया वस्तु :–
1. घटिया वस्तु से तात्पर्य ऐसे वस्तु से है , जो निम्न कोटि के हैं ।
2. इन वस्तुओं की मांग उपभोक्ता की आय बढ़ने पर वस्तु की मांग घटती है तथा आए घटने पर मांग बढ़ती हैं।
3. उदाहरण :– मोटा अनाज , मोटा कपड़ा इत्यादि ।
★. मांग की लोच की विभिन्न श्रेणियों का वर्णन करें ।
मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरुप मांगी गई मात्रा में जो परिवर्तन होता है , उसकी गणना करना मांग की लोच कहलाती हैं ।
दूसरे शब्दों में मूल्य में इकाई परिवर्तन के फलस्वरुप मांग की गई मात्रा में कितना प्रतिशत परिवर्तन हुआ है , उसकी गणना करना मांग की लोच कहलाती हैं ।
प्रोफेसर बिल्डिंग के अनुसार “किसी वस्तु के मूल्य में एक प्रतिशत परिवर्तन के फलस्वरूप उसकी मांगी गई मात्रा में जो परिवर्तन होता है उसे मांग की लोच कहते हैं ।
1. पूर्णतया बेलोचदार मांग :– मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरुप यदि मांगी गई मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता है , तो उसे पूर्णतया बेलोचदार मांग कहते हैं । जैसे :– नमक और दवाई यादी ।
2. पूर्णतया लोचदार मांग :– जब मूल्य स्थिर हो और मांगी गई मात्रा में अनन्त परिवर्तन हो , तो उसे पूर्णतया लोचदार मांग कहते हैं । जैसे :– काल्पनिक वास्तु ।
3. इकाई लोचदार मांग :– जिस अनुपात में मूल्य में परिवर्तन होता है उसी अनुपात में मांगी गई मात्रा में परिवर्तन हो तो उसे इकाई लोचदार मांग कहते हैं ।
4. इकाई में कम लोचदार मांग :– मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरुप मांगी गई मात्रा में इकाई से कम परिवर्तन होता है उसे इकाई से कम लोचदार मांग करते हैं । जैसे :– दूध
5. इकाई से अधिक लोचदार मांग :– मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरुप मांगी गई मात्रा में इकाई से अधिक परिवर्तन होता है उसे इकाई से अधिक लोचदार मांग कहते हैं । जैसे :– सब्जियां
★. सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम की व्याख्या करें ।
:-) प्रमुख अर्थशास्त्री अलफ्रेड मार्शल और H . H गोसेन ने सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम की व्याख्या किया । सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम को गोसेन का पहला नियम भी कहते हैं ।
किसी निश्चित समय में यदि कोई भी उपभोक्ता लगातार वस्तु की अगली इकाई का प्रयोग करता है , तो उससे प्राप्त होने वाली संतुष्टि क्रमशः घटती जाती है , इसे ही अर्थशास्त्र में सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम के नाम से जाना जाता हैं ।
गोसेन के शब्दों में जैसे-जैसे हम एक ही और सामान संतोष की अधिक मात्रा प्राप्त करते जाते हैं । वैसे वैसे उसमें तब तक कमी आती हैं। जब तक पूर्ण संतुष्टि ना पहुंच जाए ।
★. मांग में विस्तार एवम् मांग में वृद्धि में क्या अंतर हैं ।
••• मांग में विस्तार :–
1. मांग को प्रभावित करने वाले अन्य कारक स्थिर हो और मूल्य में कमी के साथ मांगी गई मात्रा में जो वृद्धि होती है , उसे मांग में विस्तार कहते हैं ।
2. इसके अंतर्गत केवल एक ही मद में परिवर्तन होता हैं ।
3. मांग में विस्तार अल्पकाल के लिए होता हैं ।
••• मांग में वृद्धि :–
1. जब मूल्य स्थिर हो और मांग को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों में अनुकूल परिवर्तन हो , तो मांगी गई मात्रा में जो वृद्धि होती है मांग में वृद्धि कहलाती हैं ।
2. इसके अंतर्गत अनेक मदो में परिवर्तन होता हैं ।
3. मांग में वृद्धि दीर्घकाल के लिए होता हैं ।
★. मांग में संकुचन और मांग में कमी के बीच अंतर क्या हैं ।
••• मांग में संकुचन :–
1. मांग को प्रभावित करने वाले अन्य कारक स्थिर हो तथा मूल्य में वृद्धि के साथ मांगी गई मात्रा में जो कमी होता है मांग में संकुचन कहलता हैं ।
2. इसके अंतर्गत केवल एक ही मद में परिवर्तन होता हैं ।
3. मांग में संकुचन अल्पकाल के लिए होता हैं ।
••• मांग में कमी :–
1. जब मूल्य स्थिर हो मांग को प्रभावित करने वाले कारकों में प्रतिकूल परिवर्तन हो तो मांगी गई मात्रा में जो कमी आती है मांग में कमी कहलाती हैं ।
2. इसके अंतर्गत अनेक मदो में परिवर्तन होता हैं ।
3. मांग में कमी दीर्घकाल के लिए होता हैं ।
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thank you