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❍ पोषण :- सजीवों द्वारा भोजन ग्रहण करने एवं इसके उपयोग की विधि को पोषण कहते हैं।
❍ पोषण :- भोजन कई रासायनिक पदार्थों के सम्मिश्रण से बना होता है।
1.वसा
2.प्रोटीन
3.विटामिन
4.कार्बोहाइड्रेट
5.खनिज लवण
❍ प्राणियों के पोषण में पोषक तत्त्वो की आवश्यकता आहार ग्रहण करने की विधि और शरीर में इसके उप्योगबकी विधि सम्मिलित हैं।
❍ कार्बोहाइड्रेट संघटक जटिल पदार्थ हैं।
❍ पाचन :- जटिल खाद्य पदार्थों का सरल को सरल में रूप में बदल देते है, इस प्रक्रम को पाचन कहते हैं।
❍ प्राणियों में पोषण की आवश्यकताओं के लिए भोजन अंतर्ग्रहण की विधियाँ एवं शरीर मे इनका उपयोग सम्मिलित है।
आहार नाल तथा स्त्रावी ग्रन्थियाँ संयुक्त रूप से मानव के पाचन तंत्र का निर्माण करती हैं।
1. मुख-गुहिका
2. ग्रसिका
3. आमाशय
4. क्षुद्रांत्र (छोटी आँत )
5. बृहदांत्र (बड़ी आँत )
6. गुदा
○ ये सभी भाग मिलकर आहार नाल ( पाचन नली ) का निर्माण करते हैं।
❍ पाचक रस स्त्रावित करने वाली मुख्य ग्रन्थियाँ है :
1. लाला-ग्रन्थि
2. यकृत
3. अग्न्याशय
❍ पाचन तंत्र :- पाचक रस जटिल पदार्थों को सरल रूप में बदल देते हैं।
❍ अंतर्ग्रहण :- भोजन के अंतर्ग्रहण मुख द्वारा होता है। आहार को शरीर के अंदर लेने की क्रिया अंतर्ग्रहण कहलाती हैं।
❍ वयस्कों के पास आमतौर पर 32 दांत होते हैं
दांतो के प्रकार कुछ इस तरह के हैं।
(1) कृंतक या छेदक दांत :- दांत के प्रकार में कृतंक दांत तेज धार वाले छैनी जैसे चौड़े होते हैं और भोजन के पकड़ने, काटने या कुतरने का कार्य करती है। हर जबड़े (Jaw) में इनकी संख्या चार होती है।
(2)भेदक या रदनक दांत :- दांत के प्रकार (Types of teeth) में रदनक दांत नुकीले दांत होते हैं और भोजन को चीरने या फाड़ने का कार्य करती है। प्रत्येक जबड़े में दो की संख्या में होते हैं।
(3) अग्रचवर्णक दांत :- दांत के प्रकार में अग्रचवर्णक दांत किनारे पर चपटे, चौकोर व रेखादार होते हैं। इनका कार्य भोजन को चबाना है और ये हमारे प्रत्येक जबड़े में 4 की संख्या में होते हैं।
(4) चर्वणक दांत :- दांत के प्रकार (Types of teeth) में चर्वणक दांत के सिर चौरस व तेज धार के होते हैं। इसका मुख्य कार्य भोजन को चबाना है और प्रत्येक जबड़े में छह की संख्या में होते
❍ मुख एवं मुख-गुहिका :- भोजन का अंतर्ग्रहण मुख द्वारा होता है। आहार को शरीर के अंदर लेने की क्रिया अंतर्ग्रहण कहलाती हैं।
○ लाला रस चावल के मंड को शर्करा में बदल देता है।
○ जीभ एक माँसल पेशीय अंग है , जो पीछे की ओर मुख-गुहिका के अधर तल से जुड़ीं होती हैं।
○ हम बोलने के लिए जीभ का उपयोग करते हैं।
○ जीभ पर स्वाद-कलिकाएँ होती हैं, जिनकी सहायता से हमें विभिन्न प्रकार के स्वाद का पता चलता है।
❍ भोजन नली :-ग्रासनली (ईसॉफगस) लगभग 25 सेंटीमीटर लंबी एक संकरी पेशीय नली होती है जो मुख के पीछे गलकोष से आरंभ होती है, सीने से थोरेसिक डायफ़्राम से गुज़रती है और उदर स्थित हृदय द्वार पर जाकर समाप्त होती है। ग्रासनली, ग्रसनी से जुड़ी तथा नीचे आमाशय में खुलने वाली नली होती है।
❍ आमाशय :- आमाशय, ग्रास नली और छोटी आंत के बीच में स्थित होता है। यह छोटी आंतों में आं…
❍ अग्न्याशय :- हल्के पीले रंग की बड़ी ग्रन्थि है , जो आमाशय के ठीक नीचे स्थित होती हैं।
○ ‘ अग्न्याशयिक रस ‘ , कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन पर क्रिया करके सरल रूप में परिवर्तित कर देता है।
○ आंशिक रूप से पचा भोजन क्षुद्रांत्र में पहुँचा देता है।
○ कार्बोहाइड्रेट सरल शर्करा को ग्लूकोस में परिवर्तित कर देता है।
○ ‘ वसा ‘ , वसा अम्ल एवं गिलसरॉल में परिवर्तित कर देता है।
○ ‘ प्रोटीन ‘ , ऐमिनो अम्ल में परिवर्तित कर देता है।
❍ क्षुद्रांत्र में अवशोषण :- भोजन के सभी घटकों का पाचन क्षुद्रांत्र में पूरा हो जाता है।
○ अवशोषण :- पचा हुआ भोजन अवशोषित होकर क्षुद्रांत्र की भीति से रुधिर वाहिकाओं में जाने की प्रक्रिया अवशोषण कहलाता है।
○ दीर्घरोम :- पचे हुए भोजन के अवशोषण की तल क्षेत्र को बढ़ा देते है।
○ स्वांगीकरण :- अवशोषित पदार्थों का स्थानांतरण रुधिर वाहिकाओं द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में जटिल पदार्थों को बनाने में किया जाता है।
❍ बृहदांत्र (बड़ी आँत ) :- यह लगभग 1.5 मीटर लंबी होती हैं।
इसका कार्य एवं कुछ लवणों का अवशोषण करना है।
❍ घास खाने वाले जंतुओं में पाचन :- गाय , भैंस तथा घास खाने वाले जन्तु
○ रूमेन :- ये जन्तु पहले घास को जल्दी-जल्दी निगलकर आमाशय के एक भाग में भंडारित कर लेते है। यह भाग रूमेन ( प्रथम आमाशय ) कहलाता है।
○ रुमिनैन्ट में आमाशय चार वर्गों ने बँटा होता है।
1.रूमेन में आंशिक पाचन होता है , जिसे जुगाल (कड) कहते है।
2. बाद में जन्तु इसको छोटे पिंडको के रूप में पुनः मुख में लाता है तथा जिसे वह चबाता रहता है जिसे रोमन्थन (जुगाली करना ) कहते है।
○ ऐसे जन्तु रुमिनैन्ट अथवा रोमन्थी कहलाते हैं।
○ घास में सेलुलोस की प्रचुरता होती है , जो एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट है।
○ रुमिनैन्ट जन्तु ही सेलुलोस का पाचन कर सकते है बहुत से जन्तु एवं मानव सेलुलोस का पाचन नही कर पाते।
○ घोड़ा , खरगोश आदि में क्षुद्रांत्र एवं बृहदांत्र के बीच एक थैलीनुमा बड़ी संरचना होती हैं।
❍ अमीबा में संभरण एवं पाचन
○ अमीबा जलाशयों में पाया जाने वाला एककोशिक जीव है।अमीबा के कोशिका में एक कोशिका झिल्ली होती है ।
○ अमीबा निरंतर अपनी आकृति एवं स्थिति बदलता रहता है।
○ पादाभ ( कृत्रिम पाँव ) जिससे ये गति करते है एवं भोजन पकड़ते हैं।
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○ खाद्य पदार्थ उसकी खाद्य धानी में फँस जाते है।
○ खाद्य धानी में ही पाचक रस स्रावित होते है जिससे खाद्य पदार्थ को सरल रूप में बदल देते है।