अध्याय 3 : संविधान निर्माण | Constitution Making

Spread the love

संविधान किसे कहते है। संविधान सभा।भारतीय संविधान का निर्माण। संविधान का आवश्यकता। भारतीय संविधान का संशोधन।

 

❍ संविधान किसे कहते है :- संविधान एक लिखित पुस्तक जिसमें किसी देश के शासन या प्रशासन को चलाने के नियम-कानून लिखे होते है।

• संविधान ‘राष्ट्र’ व ‘शासन प्रणाली’ का आईना है, जैसे प्रस्तावना’ संविधान का दर्पण है।

• संविधान, सरकार, समूह, न्यायालय व अन्य संगठनों के बीच सामंजस्य, विश्वास व तालमेल बिठता है।

• सैद्धांतिक रूप से निर्णय का माध्यम, शक्तियों पर प्रतिबंधव आकांक्षाओं तथा लक्ष्यों को पूरा करना इसका उद्देश्य है।

 

☆ भारत का संविधान :-

•भारत में सर्वप्रथम संविधान का विचार ’मानवेन्द्र नाथ राॅय’ ने दिया था।

•भारत में सर्वप्रथम संविधान की माँग करने वाला दल स्वराज दल था।

•भारत में सर्वप्रथम संविधान की माँग करने वाले व्यक्ति मोती लाल नेहरू थे।

•भारतीय संविधान पर सर्वप्रथम भाषण महात्मा गाँधी ने दिया था।
भारतीय संविधान को जनता तक लाने का श्रेय पं. जवाहर लाल नेहरू को जाता है।

• भारतीय संविधान का मूल स्रोत भारत की जनता है तो डाॅ. भीमराव अम्बेडकर को ’भारतीय संविधान का जनक’ माना जाता है।

•विश्व का सबसे बङा लिखित संविधान (395 अनुच्छेद व 22 भाग) भारत का संविधान है। भारत का संविधान कठोर व लचीला दोनों प्रकार का है।

भारत के संविधान को बनने में 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन लगे थे।

 

○ विश्व का सबसे बङा लिखित संविधान भारत का संविधान है।

• नियमों और कानूनों का ऐसा संग्रह जो लिखित अवस्था में होता है उसे लिखित संविधान कहते है।

 

☆ भारतीय संविधान का निर्माण

○ संविधान के निर्माता :- भारत से चुने गए जनप्रतिनिधियों ने संविधान लिखने का काम किया।

○ संविधान सभा :- भारतीय संविधान लिखने वाली सभा में 299 सदस्य थे।

• भारतीय संविधान की प्रथम बैठक 1946 हुई।

• 1947 में संविधान लिखना का काम शुरू हुआ।

• 26 नवम्बर 1949 में संविधान बनकर तैयार हुआ।

• 26 जनवरी 1950 संविधान लागू हुआ

 

☆ उद्देश्य :-

• भारतीय संविधान की निर्माण प्रक्रिया को समझाना।

• भारतीय संविधान के विभिन्न स्रोतों को जानना।

• भारतीय संविधान सभा के गठन प्रक्रिया को जानना।

• भारतीय संविधान निर्माण में वाद-विवाद को समझना।

• संविधान की प्रकृति को जानना।

 

☆ भारतीय संविधान की विशेषताएँ :-

○ सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न :- सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न का अर्थ है कि आन्तरिक या बाह्य दृष्टि से भारत पर किसी विरोधी सत्ता का अधिकार नहीं है। प्रभुत्वसम्पन्न राज्य उसे कहते है जो बाह्य नियंत्रण से सर्वथा मुक्त हो और अपनी आंतरिक एवं विदेशी नीतियों को स्वयं निर्धारित करता है।

 

○ लोकतंत्रात्मक गणराज्य – लोकतंत्रात्मक राज्य का अर्थ है कि भारत में राजसत्ता जनता में निहित है और जनता को अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने का स्वतन्त्र अधिकार है। भारत गणराज्य है क्योंकि भारत राज्य का सर्वोच्च अधिकारी वंशानुगत न होकर भारतीय जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति है।

 

○ धर्म निरपेक्ष राज्य :- 42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा प्रस्तावना में भारत को एक धर्म निरपेक्ष राज्य घोषित किया है। ’धर्म निरेपेक्ष’ का तात्पर्य ऐसे राष्ट्र से है जो किसी विशेष धर्म को राजधर्म के रूप में मान्यता प्रदान नहीं करता वरन् सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करता है। राज्य की दृष्टि से सभी धर्म समान है और राज्य के द्वारा विभिन्न धर्मावलम्बियों में कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा।’ मौलिक अधिकारों में अनुच्छेद 25 से 28 में इसका प्रावधान है।

 

○ समाजवादी राज्य – 42 वें संविधान संशोधन, 1976 द्वारा प्रस्तावना में भारत को ’समाजवादी राज्य’ घोषित किया गया है। सम्पूर्ण सार्वजनिक सम्पत्ति सरकार के हाथों में होगी और सरकार इसका प्रयोग सभी में समानता के साथ करेगी। ’समाजवाद’ शब्द से तात्पर्य ऐसी व्यवस्था से है जिसमें उत्पादन के मुख्य साधन या तो राज्य के हाथ में होते है या उसके नियंत्रण में होते हैं। किन्तु भारतीय समाजवाद एक अनोखा समाजवाद है जो मिश्रित अर्थव्यवस्था पर बल देता है।

 

○ संविधान की प्रस्तावना :- भारतीय संविधान की एक प्रस्तावना है जिसमें संविधान के मौलिक उद्देश्यों व लक्ष्यों को दर्शाया गया है। इसे संविधान की आत्मा या संविधान की राजनैतिक कुण्डली भी कहा जाता है। इसके प्रारंभ के ’हम भारत के लोग’ से अभिप्राय है कि अन्तिम प्रभुसत्ता जनता में निहित है। जहाँ संविधान की भाषा संदिग्ध या अस्पष्ट है, वहाँ प्रस्तावना संविधान निर्माताओं के आशय को समझने में सहायक है। अतः यह संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है।

ऑस्ट्रेलिया के संविधान से प्रस्तावना की भाषा को तथा प्रस्तावना को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से ग्रहण किया गया है। प्रस्तावना का प्रस्ताव सर्वप्रथम भारत शासन अधिनियम-1919 में लाया गया और इसको स्वीकृत भारत शासन अधिनियम, 1935 में किया गया था। मूल संविधान की प्रस्तावना 85 शब्दों से निर्मित थी।

 

 ○ 42 वें संविधान संशोधन, 1976 द्वारा प्रस्तावना में संशोधन कर समाजवादी, पंथनिरपेक्ष एवं अखण्डता शब्द जोङे गये है। प्रस्तावना को न्यायपालिका ने ’संविधान की कुंजी’ कहा है। प्रस्तावना का पहला वाक्यांश ’हम भारत के लोग’ संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रस्तावना पर आधारित है

 

○ विश्व का सबसे बङा संविधान
भारत का संविधान विश्व का सबसे बङा लिखित संविधान है। यह बहुत समग्र और विस्तृत दस्तावेज है। मूल रूप से संविधान में एक प्रस्तावना, 22 भागों में बंटे 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थी। भारतीय संविधान में वर्तमान समय में 470 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ और 25 भाग है। विश्व के किसी संविधान में इतने अनुच्छेद और अनुसूचियाँ नहीं हैं। 9 वीं अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन (1951), 10 वीं अनुसूची 52 वें संविधान (1985), 11 वीं अनुसूची 73 वें संशोधन (1992) तथा 12 वीं अनुसूची 74 वें संशोधन (1993) द्वारा संविधान में जोङी गयी हैं। इसकी विशालता का सबसे प्रमुख कारण केन्द्रीय तथा प्रान्तीय दोनों सरकारों के गठन तथा उनकी शक्तियों का विस्तृत वर्णन है।

 

 

○ कठोर एवं लचीलापन का संविधान में समन्वय –भारत का संविधान न तो लचीला है और न ही कठोर बल्कि यह दोनों का मिला-जुला रूप है। संविधान के भाग-20 के अनुच्छेद 368 में संविधान संशोधन प्रक्रिया का प्रावधान है। भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया दक्षिण अफ्रीका से ली गयी है।

○ संसदीय शासन प्रणाली –
संघात्मक संविधान के अन्तर्गत दो प्रकार की शासन प्रणाली स्थापित की जा सकती है –

(1) अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली

(2) संसदीय शासन प्रणाली।

भारतीय संविधान में संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना की गयी है।

 

○ मौलिक अधिकार 
भारतीय संविधान का भाग तीन(3) अपने नागरिकों के लिए कुछ 6 मूल अधिकारों की घोषणा करता है। यह अमेरिकी संविधान से लिया

1.समानता का अधिकार

2.स्वतंत्रता का अधिकार

3.शोषण के विरुद्ध अधिकार

4.धर्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

5.संस्कृति एवं शैक्षणिक अधिकार

6.संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

 

○ मौलिक कर्त्तव्य :- उल्लेख संविधान के भाग-4क और अनुच्छेद 51(क) में किया गया है। 42 वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा नागरिकों के 10 मूल कर्त्तव्य जोङे गए थे। इसे रूस के संविधान से लिया गया था।

○ राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व –
संविधान का भाग-4, अनु. 36 से 51 राज्यों के नीति निर्धारण में मार्गदर्शक कुछ पवित्र कर्त्तव्यों का उल्लेख करता है। इसे आयरलैण्ड के संविधान से लिया गया है। इन कर्त्तव्यों का पालन कर राज्य एक ’कल्याणकारी राज्य’ की अवधारणा को साकार रूप प्रदान कर सकते हैं।

○ एकीकृत व स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना भारतीय संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। भारतीय संविधान संघात्मक होते हुए भी सारे देश के लिए न्याय प्रशासन की एक ही व्यवस्था करता है जिसके शिखर पर सर्वोच्च न्यायालय है। इसके नीचे राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय है। राज्यों में उच्च न्यायालय के नीचे क्रमवार अधीनस्थ न्यायालय है जैसे जिला अदालतें व अन्य निचली अदालतें। संघात्मक संविधान में संघ और राज्यों के मध्य विवाद के समाधान और संविधान के निर्वचन का दायित्व न्यायपालिका पर होता है। इसलिए न्यायालय को ’संविधान का संरक्षक’ कहा गया है।

एकल नागरिकता –
भारत में प्रतिनिधियों के निर्वाचन हेतु ’वयस्क मताधिकार प्रणाली’ को अपनाया गया है।

 

त्रिस्तरीय सरकार –
मूल रूप से अन्य संघीय प्रावधानों की तरह भारतीय संविधान में ’दो स्तरीय राजव्यवस्था’ (केन्द्र व राज्य) का प्रावधान था। बाद में वर्ष 1992 में 73 वें व 74 वें संविधान संशोधन में तीन स्तरीय (स्थानीय) सरकार का प्रावधान किया गया जो विश्व के किसी और संविधान में नहीं है।

इसके विपरीत संघात्मक संविधान वह संविधान होता है जिसमें शक्तियों का केन्द्र व राज्यों में विभाजन रहता है और दोनों सरकारें अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं।

1.संयुक्त राज्य अमेरिका 
2.ब्रिटेन 
3.जर्मनी 
4.दक्षिण अफ्रीका 
5.आयरलैंड 
6.ऑस्ट्रेलिया 
7.कनाडा 
8.सोवियत संघ

संविधान में अनुच्छेद 448 तथा 105 संशोधन एवं 12 अनुसूचियां जिसे 25 भागों में बांटा गया है किया है।

निर्माण के समय 395 अनुच्छेद 8 अनुसूचियां थी और 22 भागों में विभाजित था।

 

 

 

अध्याय 4 : चुनावी राजनीति

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *