अध्याय 4 : भारत के विदेशी सम्बन्ध / India’s external relations

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भारत की विदेश नीति उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका भारत और गुटनिरपेक्ष शक्तिशाली देशो के साथ शक्ति संतुलन भारत की परमाणु नीति भारत का पड़ोसी देशों के साथ संबंध विदेश नीति नेहरू से मोदी तक 

 

 

Bhart ke videshi smbndh

 

 

★ भारत की विदेश नीति :-

● एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र के साथ संबंध स्थापित करने, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सर्वश्रेष्ठ स्थान पाने एवं युद्ध तथा शान्ति के प्रश्नों में अपनी भूमिका के लिए जो कार्यक्रम एवं नीतियाँ अपनाई जाती हैं, उसे ही उस राष्ट्र की विदेश नीति कहते हैं।

● भारतीय विदेश नीति :- भारतीय विदेश नीति के मूल तत्वों का समावेश हमारे संविधान के अनुच्छेद 51 में किया गया है |

◆ विदेश नीति के उद्देश्य :-

● संप्रभुता की रक्षा करना ।
● क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करना।
● तेजी से आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।

 

◆ नेहरू की भूमिका :-

● जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री दोनों थे जिन्होंने 1946 से 1964 के दौरान भारत की विदेश नीति के निर्माण और कार्यान्वयन को प्रभावित किया।

● श्री जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय विदेश नीति के 3 प्रमुख आधार स्तम्भ बताए :- शान्ति, मित्रता एवं समानता।

● नेहरू गुटनिरपेक्ष रणनीति के माध्यम से इसे हासिल करना चाहते थे।

● भारतीय विदेश नीति के आधार स्तम्भ के रूप में श्री नेहरू का कथन आज भी दृष्टिगोचर है – ‘ भारत वैदेशिक संबंधों के क्षेत्र में एक स्वतंत्र नीति का अनुसरण करेगा और गुटों की खींचतान से दूर रहते हुए विश्व के समस्त पराधीन देशों को आत्मनिर्णय का अधिकार प्रदान कराने तथा जातीय भेदभाव की नीति का दृढ़तापूर्वक उन्मूलन कराने का प्रयत्न करेगा। साथ ही यह विश्व के अन्य स्वतंत्रता प्रेमी और शान्तिप्रिय राष्ट्रों के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सद्भावना के प्रसार के लिए भी निरंतर प्रयत्नशील रहेगा।

 

● लेकिन डॉक्टर अम्बेडकर जैसे नेता और कुछ राजनीतिक दल उस अमेरिकी गुट का अनुसरण करना चाहते थे जो लोकतंत्र समर्थक होने का दावा करता था।

 

 

 

★ भारत की विदेश नीति के उद्देश्य :-

(1) गुट निरपेक्षता को प्रोत्साहन।

(2) उपनिवेशवाद का विरोध।

(3) विश्व शान्ति को बनाए रखना।

(4) राष्ट्रीय हितों की रक्षा प्राथमिक उद्देश्य।

(5) जातिभेद, रंगभेद, साम्राज्यवाद का विरोध।

(6) विवादों की मध्यस्थता या पंच द्वारा निपटारा।

(7) दक्षिण एशिया में पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने पर जोर।

 

 

 

 

 ★ भारतीय विदेश नीति के उद्देश्य :-

1. राष्ट्रीय हित:- भारत की विदेश नीति का प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा है। राष्ट्रीय हितों में उसका विदेशी व्यापार, आर्थिक स्थिति, पड़ोसी देशों के साथ संबंध, स्थलीय सीमा, समुद्री तट, गुट निरपेक्षता, अफ्रेशियाई राष्ट्रों की एकता आदि मुख्य हैं। यह मुख्यतः निम्न राष्ट्रीय हितों एवं व्यावहारिकता से प्रभावित रही है-

● राष्ट्रीय हितों के लिए पश्चिमी के संकट में इजरायल के बजाए प्रायः अरब राष्ट्रों का समर्थन करना।

● 1991 में बांग्लादेश संकट उत्पन्न होने पर रूस के साथ एक 20 वर्षीय संधि करना ।

● आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के विरुद्ध होते हुए भी मानवीय आधार पर 1987 में जाफना की जनता के लिए राहत सामग्री पहुँचाना।

● राष्ट्रीय हित के लिए ही अणु अप्रसार संधि तथा व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर देना ।

 

2. भौगोलिक तत्त्वं :- भारत विश्व के ऐसे भाग में स्थित है जिसका भौगोलिक और सामरिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। उत्तर में साम्यवादी राष्ट्र चीन, दक्षिण में हिन्द महासागर, दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा दक्षिण-पश्चिम में अरब सागर भारत के लिए सामरिक महत्व रखते हैं। हिन्द महासागर के तटवर्ती देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से मार्च, 1997 में भारत तथा अन्य 13 देशों मिलकर ‘ हिमतक्षेप ‘ के गठन की घोषणा की।

 

3. गुटनिरपेक्षता :- भारत द्वारा हमेशा असंलग्नता या गुटनिरपेक्षता की नीति पर जोर दिया जाता रहा है। स्वाधीनता के उपरान्त विश्व की दो महाशक्तियों के विभाजित होने पर भी उसने दोनों से समान संबंध रखते हुए असंलग्नता की नीति अपनाई ।

4. विचारधारा :- भारतीय विदेश नीति सदैव शान्ति एवं अहिंसा की गांधीवादी विचारधारा तथा अरविन्द, टैगोर एवं एम.एन. रॉय के मानवतावादी विचारों से प्रभावित रही है।

5. आर्थिक, तकनीकी और सैनिक तत्त्व :- आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्राप्त करने के उद्देश्य से ही भारत ने दोनों महाशक्तियों के साथ गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई। 1974 एवं 1998 के अणु परीक्षणों तथा पृथ्वी, नाग, सूर्य, आकाश जैसे विकसित किए गए प्रक्षेपास्त्रों ने भारत की तकनीकी सामर्थ्य को मजबूत किया है।

6. व्यक्तिगत प्रभाव :- भारत की विदेश नीति पर पं. नेहरू, – इन्दिरा गांधी, नरेन्द्र मोदी का अत्यधिक प्रभाव रहा है। पं. नेहरू की शान्तिवादी एवं गुटनिरपेक्ष नीति भारतीय विदेश नीति में प्रतिबिम्बित होती है।

7. ऐतिहासिक परम्पराओं का प्रभाव :- धारतीय विदेश नीति भारतीय दर्शन की सहिष्णुता, उदारता एवं मानवतावादी दृष्टि पर आधारित है। पंचशील के सिद्धान्तों पर गांधी की अहिंसा तथा जाति रंगभेद की नीति के विरोध पर मानवतावादी विचारों का प्रभाव पड़ा है।

8. आंतरिक शक्तियाँ एवं दबाव का प्रभाव :- आंतरिक दृष्टि से सुदृढ़ होने पर राष्ट्र की विदेश नीति स्पष्ट एवं प्रभावशाली होती है। नेहरू एवं इन्दिरा गांधी का व्यक्तित्व, 1974 एवं 1998 के अणु बम विस्फोट तथा अन्तरिक्ष में भेजे जाने वाले भास्कर, आर्यभट्ट, ऐपल आदि से भारत की प्रतिष्ठा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वृद्धि हुई है।

 

 

 

★भारत की विदेश नीति के चरण :-

1. नेहरू युग (1947-1964) :-

● अंतर्राष्ट्रीय और अखिल एशियावाद के समर्थक तथा साम्राज्यवाद, उपनिवेशवादी और फासीवाद के विरोधी पं. नेहरू भारतीय विदेश नीति के सूत्रधार कहे जा सकते हैं।

● प्रधानमंत्री होने के साथ-साथ विदेश मंत्री होने के नाते भी नेहरू का भारतीय विदेश नीति पर अधिक प्रभाव पड़ा। उनके समय की विदेश नीति के कुछ महत्त्वपूर्ण पहलू निम्न प्रकार हैं।

◆ पंचशील :- पंचशील के सिद्धान्तों को भारत की विदेश-नीति ने एक नई दिशा प्रदान की।

◆ ये सिद्धान्त निम्न हैं :-

(1) एक-दूसरे देश पर आक्रमण न करना।

(2) परस्पर सहयोग एवं लाभ को बढ़ावा देना।

(3) शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की नीति का पालन करना।

(4) दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।

(5) सभी देशों द्वारा अन्य देशों की क्षेत्रीय अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना।

 

 

अफ्रेशियाई एकता :- एशिया एवं अफ्रीका के नव स्वतंत्र राष्ट्रों की एकता के लिए मार्च, 1947 में नई दिल्ली में तथा इण्डोनेशिया के प्रश्न पर जनवरी, 1949 में दिल्ली में सम्मेलन आयोजित किया, साथ ही 1955 के बाण्डुंग सम्मेलन में भी भाग लिया।

● असंलग्नता :- नेहरू ने विश्व की असंलग्नता की नीति का संदेश देते हुए सभी राज्यों के साथ शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व एवं सक्रिय अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर बल दिया।

● राष्ट्रमण्डल :- नेहरू यह जानते थे कि आर्थिक दृष्टि से भारत अधिकांश रूप से ब्रिटेन पर निर्भर है, अतः उन्होंने दूरदर्शिता अपनाते हुए राष्ट्रमण्डल के सदस्य बने रहने की इच्छा प्रकट की।

● गोआ पर अधिकार

◆ आलोचना :-

(1) नेहरू की नीति अत्यन्त आदर्शवादी एवं भावना प्रधान थी, उदहारण-तिब्बत संबंधी नीति ।

(2) असंलग्नता की नीति को संदेह से देखा गया।

(3) भारत की राष्ट्रमण्डल की सदस्यता को दास मनोवृत्ति का परिचायक माना जाता था।

 

★ नरेन्द्र मोदी युग ( मई 2014 से ) :-

● 26 मई, 2014 को नरेन्द्र मोदी के द्वारा प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की गई। नरेन्द्र मोदी की

● विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं :-

(1) पहले पड़ोस की नीति :- 1996 में गुजरात सिद्धांत द्वारा निर्मित पड़ोस की नीति को प्रभावी रूप से लागू करने का प्रयास नरेन्द्र मोदी के द्वारा किया गया। इन्होंने अपने शपथग्रहण समारोह में सभी सार्क देशों के सदस्यों को आमंत्रित किया। सबसे छोटे पड़ोसी देश भूटान के लिए पहली विदेश यात्रा की गई। नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि की भी यात्राएँ की गईं तथा महत्वपूर्ण समझौते सम्पन्न किए गए।

( 2 ) एक्ट ईस्ट पॉलिसी :- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा आधारभूत संरचना के बेहतर विकास के लिए आसियान देशों के साथ . सम्बन्धों को सुदृढ़ करने के लिए ‘पूर्व की ओर देखो की नीति’ के स्थान पर ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ का निर्माण किया गया। जिसमें द. कोरिया, जापान जैसे पूर्व में स्थित देशों के साथ सम्बन्धों को बेहतर करने की रणनीति अपनाई जा रही है।

(3) फास्ट ट्रेक डिप्लोमेसी :- पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्ध सुधार एवं भारत के तीन आर्थिक विकास के लिए नरेन्द्र मोदी के द्वारा ‘फास्ट ट्रेक डिप्लोमेसी’ का अनुकरण किया गया है। इसके अंतर्गत खाड़ी देशों व इजरायल से भी सहयोग स्थापित किया गया है। इसमें अतिसक्रिय, संवेदनशील तथा मजबूत सम्बन्धों पर बल दिया गया है।

(4) पैरा डिप्लोमेसी :- इसके अंतर्गत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा भारत के शहरों का दूसरे देशों के शहरों से विशेष सम्बन्ध बनाने पर बल दिया गया। इसमें जुड़वाँ शहर समझौता अस्तित्व में लिया गया। इसमें मुंबई-शंघाई, अहमदाबाद-गुआंगह्याऊ, वाराणसी तथा क्योटो के बीच ऐसी सहमति बनी है।
(5) प्रवासी (डायस्पोरा ) को जोड़ने पर बल :- इसके अंतर्गत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा प्रवासी भारतीयों से भावनात्मक जुड़ाव स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान भारतीय मूल के लोगों को संबोधित किया गया।

(6) आर्थिक विकास पर बल :- भारत को निवेश का केन्द्र बनाने के लिए नरेन्द्र मोदी के द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को आरम्भ किया गया। भारत को व्यापार के लिए सरल तथा सुविधाजनक देश के रूप में निर्मित किया जा रहा है। अमेरिका • तथा जापान से भारत में निवेश आकर्षित किया जा रहा है।

(7) सांस्कृतिक कूटनीति पर बल :- इसके अंतर्गत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा लोगों के बीच सम्बन्धों को बढ़ाया जा रहा है। जापान तथा म्यांमार से सांस्कृतिक सम्बन्धों को सुदृढ़ बनाया जा रहा है। भारत में पहली बार योग दिवस का सार्वजनिक आयोजन किया गया।

 

 

 

भारतीय विदेश नीति के समक्ष चुनौती :-

(1) संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रभावशाली बनाना।

(2) पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्धों में सुधार करना। 

(3) महाशक्तियों के साथ सम्बन्धों में सुधार करना।

(4) बहुपक्षीय वैश्विक मंचो जैसे W.T.O , I.M.F. , World Bank सुरक्षा परिषद आदि का लोकतंत्रीकरण।

(5) आंतरिक चुनौतियाँ जैसे आतंकवाद , भ्र्ष्टाचार , नक्सलवाद , अशिक्षा , गरीबी , बेरोजगारी आदि का समाधान।

(6) वैश्विक समस्याओं जैसे पर्यावरण संकट, ओजान संकट, बाघ सुरक्षा , परमाणु संकट , शरणार्थियों की समस्या , जनसंख्या विस्फोटक आदि का समाधान।

 

 

★ दो खेमों से दूरी :-

● भारत, अमरीका और सोवियत संघ की अगुवाई वाले सैन्य गठबंधनों से अपने को दूर रखना चाहता था।

● आज़ाद भारत की विदेश नीति में शांतिपूर्ण विश्व का सपना था और इसके लिए भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति का पालन किया।

● भारत ने इसके लिए शीतयुद्ध से उपजे तनाव को कम करने की कोशिश की और संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति अभियानों में अपनी सेना भेजी।

● शीतयुद्ध के समय अमरीका ने उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) और सोवियत संघ ने इसके जवाब में ‘वारसा पैक्ट’ नामक संधि संगठन बनाया था।

● भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को आदर्श माना। संतुलन साधने की यह कठिन कोशिश थी और कभी-कभी संतुलन बहुत कुछ नहीं भी सध पाता था।

● 1956 में जब ब्रिटेन ने स्वेज नहर के मामले को लेकर मिस्र पर आक्रमण किया तो भारत ने इस नवऔपनिवेशिक हमले के विरुद्ध विश्वव्यापी विरोध की अगुवाई की।

● इसी साल सोवियत संघ ने हंगरी पर आक्रमण किया था लेकिन भारत ने सोवियत संघ के इस कदम की सार्वजनिक निंदा नहीं की।

● ऐसी स्थिति के बावजूद, कमोबेश भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर स्वतंत्र रवैया अपनाया। उसे दोनों खेमों के देशों ने सहायता और अनुदान दिए ।

● भारत अभी बाकी विकासशील देशों को गुटनिरपेक्षता की नीति के बारे में आश्वस्त करने में लगा था कि पाकिस्तान अमरीकी नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन में शामिल हो गया।

● इस वजह से 1950 के दशक में भारत-अमरीकी संबंधों में खटास पैदा हो गई। अमरीका, सोवियत संघ से भारत की बढ़ती हुई दोस्ती को लेकर भी नाराज था।

 

 

◆ एफ्रो-एशियाई एकता :-

● नेहरू ने एशियाई एकता की वकालत की तथा भारत, एशिया और अफ्रीका में स्वतंत्र राज्यों के बीच संपर्क स्थापित करने का नेतृत्व किया।

● भारत ने मार्च 1947 में एशियाई संबंध सम्मेलन आयोजित किया।

● 1949 में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान, भारत ने डच औपनिवेशिक व्यवस्था से इंडोनेशिया की स्वतंत्रता के लिए प्रयास किए।

● इसने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का भी विरोध किया।

● 1955 में बांडुंग इंडोनेशिया में एशियाई सम्मेलन आयोजित किया गया था और इसे बांडुंग सम्मेलन कहा गया था।

● बाद में नैम की स्थापना बांडुंग सम्मेलन के परिणामस्वरूप हुई, जिसने सितंबर 1961 में बेलग्रेड में अपना पहला शिखर सम्मेलन आयोजित किया।

 

 

★ भारत और चीन :-

● पंचशील समझौता :- 29 अप्रैल ,1954 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तथा चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई के बीच पंचशील समझौता हुआ।

1.एक दूसरे की अखंडता और संप्रुभता का सम्मान।

2.एक दूसरे पर आक्रमण न करना।

3.एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना।

4. सामान और परस्पर लाभकारी सम्बन्ध।

5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।

● दोनों देशों के मध्य हिन्दी चीनी भाई-भाई का नारा दिया।

 

 

◆ विवाद के कारण :-

1. तिब्बत की समस्या :- 1956 में तिब्बत के खम्फा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर चीनी शासन के विरुद्ध विद्रोह प्रारम्भ हो गया। चीनी सरकार ने इस विद्रोह का कठोरता से दमन किया। 31 मार्च, 1959 को धर्म गुरु दलाई लामा ने भारत की शरण प्राप्त की। चीन की सरकार ने इसे शत्रुतापूर्ण कार्य बताया।

 2. सीमा विवाद :- दोनों देशों के मध्य सबसे प्रमुख विवाद विवाद है। दोनों के मध्य लगभग 4000 किमी. लम्बी सीमा है जो कि स्पष्ट रूप से विभाजित नहीं है।

● मैकमोहन रेखा :- उत्तर-पूर्व में भारत-चीन सीमा का विभाजन करती है परन्तु चीन सरकार इसको स्वीकार नहीं करती।

● अक्साई चीन :- जो कि कश्मीर के उत्तरार्द्ध प्रांत का भाग है इस पर चीन का आधिपत्य बना हुआ है, जिसे भारत अपना हिस्सा मानता है। इसी प्रकार अरुणाचल प्रदेश के नेफा क्षेत्र पर चीन अपना दावा प्रस्तुत करता है।

3. भारत-चीन युद्ध :- 1962-कोलम्बो प्रस्ताव 10-12 दिसम्बर, 1962 के माध्यम से भारत-चीन सम्बन्धों को सामान्य बनाने का प्रयास किया गया, किन्तु यह प्रयास सफल नहीं हुआ तथा वर्तमान में भी सीमा विवाद दोनों देशों के सम्बन्धों के सामान्य होने में बाधक है।

4. डोकलाम विवाद :- डोकलाम भूटान तथा चीन के बीच विवादित पठार क्षेत्र है। जुलाई 2017 में चीन ने डोकलाम में सड़क निर्माण का कार्य किया, जिस पर भूटान के अनुरोध पर भारतीय सेना ने चीनी सेना के सड़क निर्माण के कार्य का विरोध किया।

● परिणामस्वरूप भारत तथा चीन की सेनाओं के मध्य विरोध उत्पन्न हो गया। अगस्त 2017 में चीन ने डोकलाम क्षेत्र से अपनी सेना हटाने की घोषणा की व सड़क निर्माण का कार्य रोक दिया । यह अंतरष्ट्रीय कूटनीति में भारत की महत्वपूर्ण विजय रही हैं।

5. चीन द्वारा पाकिस्तान की मदद देना। चीन भारत के परमाणु परीक्षणों का विरोध करता है।

6. संयुक्त राष्ट्र संघ ने आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद पर प्रतिबंध लगाने वाले प्रस्ताव की पेश किया। चीन द्वारा वीटो प्रयोग करने से यह प्रस्ताव निरस्त हो गया।

7. भारत ने अजहर मसूद के आतंवादी घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव पेश किया, जिस पर चीन ने वीटो पावर का प्रयोग किया

8. चीन की महत्वाकाक्षी योजना Ones Belt One Road, जो कि POK से होती हुई गुजरेगी उसे भारत को पैरने की रणनीति के तौर पर लिया जा रहा है।

 

 

◆ सम्बन्ध सुधार के प्रयास :-

1. सम्बन्ध सुधार के प्रयास- 1962 के युद्ध के पश्चात जनता सरकार के विदेश मंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने 1979 में चीन की यात्रा की तथा सम्बन्धों को सामान्य करने की शुरुआत की।

2. 1988 में भारतीय पीएम राजीव गांधी ने चीन की यात्रा सम्पन्न की तथा दोनों देशों के मध्य सीमा विवाद को हल करने के लिए संयुक्त कार्यकाल के गठन पर सहमति बनी। इसी निमित्त वार्ता अभी भी हो रही है।

3. 2003 में पीएम अटलबिहारी वाजपेयी ने चीन की यात्रा सम्पन्न की तथा चीनी प्रधानमंत्री जू रोगंजी के साथ विज्ञान, तकनीक जू तथा अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग पर सहमति बनी। इसी यात्रा में चीन ने सिक्किम को भारत का अंग स्वीकार किया तथा भारत ने तिब्बत पर चीनी प्रभुसत्ता स्वीकार की।

4.2006 में दोनों के मध्य नाथुला दर्रे को व्यापार के लिए खोल दिया दोनों देशों ने 2008 को भारत-चीन मैत्री वर्ष के रूप में मनाया।

5. 28 से 30 जून, 2014 पंचशील सन्धि की 60वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में भारतीय उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने चीन की यात्रा सम्पन्न की। 2014 को सौहार्द्रपूर्ण आदान-प्रदान का वर्ष मनाया गया।

6. 17 से 19 सितम्बर, 2014 को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत की यात्रा की तथा आधुनिक पंचशील के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। मुम्बई तथा शंघाई के मध्य एवं अहमदाबाद व गुआंगझू के मध्य ‘सिस्टर सिटी’ की स्थापना पर सहमति बनी।

7. 14 से 16 मई, 2015 में चीन की यात्रा के दौरान भारतीय पीएम नरेन्द्र मोदी तथा राष्ट्रपति शी जिनपिंग के मध्य निम्न मुद्दों पर सहमति बनी-

(i) सीमा सम्बन्धी वार्ता

(ii) सांस्कृतिक, आर्थिक, वाणिज्यिक, पर्यावरण सम्बन्धों को बढ़ावा देने के लिए चीन द्वारा चेन्नई में तथा भारत द्वाराचेगंडू में महावाणिज्यिक दूतावास खोलने पर सहमति ।

(iii) ऑपरेशन हैन्ड इन हैन्ड का सैन्याभ्यास 2015 चीन में

(iv) भारतीय व चीनी शहरों के मध्य ‘सिस्टर सिटी रिलेशन’ स्थापित करने हेतु समझौता।

(v) सुरक्षा परिषद व शंघाई सहयोग संगठन में भारत को पूर्ण सदस्य पर सहमति ।

 

 

 

★ भारत और पाकिस्तान :-

1. कश्मीर विवाद :- कश्मीर हमेशा से भारत और पाकिस्तान के बीच में विवादित मुद्दा रहा है।

2. नदी जल विवाद :- दोनों देशों में सिंधु नदी का जल विवाद प्रमुख है।

3. आतंकवाद :- आतंकवाद भारत और पाकिस्तान के बीच एक विवाद का मुख्य कारण है

4. सियाचिन ग्लेशियर विवाद :- भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण तथा हथियारों की होड़ को लेकर भी तनातनी रहती है।

5.भारत विरोधी गतिविधि :- पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI बांग्लादेश और नेपाल के गुप्त ठिकानों से पूर्वोत्तर भारत में, भारत विरोधी अभियानों में संलग्न होने पर विवाद

 

 

◆ भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता :-

● सिंधु नदी जल समझौता 1960 :- विश्व बैंक द्वारा सिंधु नदी जल समझौता भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने दस्तखत किए

● ताशकंद समझौता 1966 :- भारत के प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुआ।

● शिमला समझौता 1972 :- भारत के प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार भुट्टो के बीच हुआ।

● लाहौर बस यात्रा 1999 :- भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बस-यात्रा पर लाहौर गए और शांति के लिए घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए।

● 26 मई, 2014 :- नरेन्द्र मोदी नेतृत्व में एनडीए सरकार का गठन। शपथग्रहण समारोह में नवाज शरीफ का आगमन ।

● 9 दिसम्बर, 2015 को इस्लामाबाद में हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें भारतीय विदेश मंत्री • सुषमा स्वराज व पाक विदेश मंत्री सरताज अजीज के मध्य वार्ता हुई।

● 25 दिसम्बर, 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नवाज शरीफ के जन्मदिन पर लाहौर की यात्रा की तथा भारत-पाक रिश्तों को नया आयाम दिया।

● उरी में आतंकवादी कार्यवाही के पश्चात 29 सितम्बर 2016 को भारत ने पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक की ।

● 1 जनवरी 2017 को दोनों देशों ने परमाणु प्रतिष्ठानों व जेल में बंद कैदियों का आदान-प्रदान किया।

● 18 अगस्त, 2018 को इमरान खान पाकिस्तान के नये प्रधानमंत्री बने हैं।

 

★ भारत तथा पड़ोसी देश :-

● भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ मधुर सम्बन्ध स्थापित करने हेतु निम्न सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है-

1. Look East Policy (पूरब की ओर देखो की नीति ) :- 1991-92 में तत्कालीन पीएम नरसिम्हाराव द्वारा इस नीति का प्रतिपादन 1992 में किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य भारत के पड़ोसी दक्षिणी-पूर्वी तथा पूर्वी एशिया के कई देशों द. कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, जापान के साथ सहयोग बढ़ाना है। इसके कारण भारत के दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्रों के साथ राजनीतिक, सैन्य, राजनीतिक-आर्थिक तथा सांस्कृतिक स्तर पर परम्परागत सम्बन्ध पुनर्जीवित हुए हैं।

 

2. गुजराल सिद्धान्त :- इसका प्रतिपादन 1996 में देवगौड़ा सरकार के विदेश मंत्री आई. के. गुजराल ने किया था। इस सिद्धांत के अनुसार द. एशिया में भरत सबसे बड़ा देश होने के कारण उसे अपने पड़ोसी देशों को एकतरफा रियायत प्रदान करनी चाहिए। भारत को अपने पड़ोसियों के साथ सम्बन्ध सुधारने हेतु पहल करनी चाहिए न कि इस इंतजार में बैठना चाहिए कि वे पहल करेंगे।

3. इंदिरा सिद्धांत :- 1980 के दशक में द. एशियाई देशों के प्रति भारत ने अपना दृष्टिकोण प्रतिपादित किया जिसके अंतर्गत किसी भी द. एशियाई देश में भारत विरोधी विदेशी दखल को स्वीकार नहीं किया जाएगा।

4. कृष्णा सिद्धांत (2006) :- प्रवासी भारतीयों को भारत का अभिन्न अंग माना तथा अप्रवासी भारतीयों के हितों की रक्षा करना तथा उनकी समस्याओं व कूटनीतिक तरीके से समाधान

5. Look West Policy (पश्चिम की ओर देखो की नीति) 2005 :- औपचारिक शुरुआत 2005 से की गई, जिसके अंतर्गत खाड़ी देशों व पश्चिमी एशिया के देशों के साथ कूटनीतिक सम्बन्धों का विस्तार, आंतरिक सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, भारतीय श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।

 

 

 

★ पड़ोसियों के साथ संबंध :-

● श्रीलंका :- भारत ने अपनी विदेश नीति के तहत श्रीलंका के पतन के दौरान उसे आर्थिक सहायता प्रदान की।

● मध्य एशियाई देश :- कनेक्टिविटी को लेकर भारत ने मध्य एशियाई देशों के साथ भी संबंध मज़बूत किये हैं।

● बांग्लादेश, भूटान और नेपाल :- भारत की विदेश नीति को बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ क्षेत्रीय व्यापार एवं ऊर्जा समझौतों द्वारा चिह्नित किया गया है, जिससे दक्षिण एशियाई ऊर्जा ग्रिड का विकास संभव हो सकेगा।

● अफगानिस्तान और म्याँमार :- सरकार ने अफगानिस्तान के तालिबान और म्याँमार में जुंटा जैसे दमनकारी शासनों के लिये बातचीत के रास्ते खुले रखे, काबुल में “तकनीकी मिशन” शुरू किया एवं सीमा सहयोग पर चर्चा करने के लिये विदेश सचिव को म्याँमार भेजा गया। इससे पहले दिसंबर 2022 में म्याँमार में हिंसा को समाप्त करने और राजनीतिक कैदियों को रिहा करने के लिये की गई UNSC वोटिंग में भारत ने भाग नहीं लिया था।

 

 

◆ शक्तिशाली देशो के साथ शक्ति संतुलन :-

● परंपरागत रूप से पश्चिम ने भारत को सोवियत संघ/रूस के करीब माना है। इस धारणा को भारत द्वारा SCO, BRICS और रूस-भारत-चीन (RIC) फोरम में सक्रिय रूप से भाग लेने से बल मिला है।

●अमेरिका, जापान, फ्राँस, ब्रिटेन और इंडोनेशिया के साथ मूलभूत समझौतों पर हस्ताक्षर करने वाले QUAD में भारत की भागीदारी को भी इस नज़रिये से देखा जाना चाहिये।

 ● शीत-युद्ध के उस दौर में सोवियत रूस के समाजवाद से प्रभावित होने के बावजूद पंडित नेहरु ने ‘गुट निरपेक्ष’ रहना पसंद किया। तब से लेकर आज तक भारत की विदेश नीति में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं।

● नरेंद्र मोदी सरकार के पिछले तीन वर्षों में, पड़ोसी देशों से मज़बूत संबंध भारत की विदेश नीति की प्राथमिकता रही है। यदि शिक्षा की बात करें तो पड़ोसी देशों से बड़ी संख्या में लोग पढ़ने के लिये भारत आ रहे हैं।

● इंजीनियरिंग और मेडिकल के अलावा सांस्कृतिक विषयों जैसे: नृत्य, संगीत और साहित्य में विदेशी छात्रों की रुचि देखने लायक है। शिक्षा ही नहीं, बल्कि चिकित्सा के क्षेत्र में भी भारत के पड़ोसी उससे लाभान्वित हो रहे हैं।

 ● आज दुनिया में उन्नत हथियारों के निर्माण की होड़ सी मची हुई है। प्रत्येक देश अपने आप को सुरक्षित रखना चाहता है और हमें भी इस मोर्चे पर खुद को पिछड़ने से रोकना होगा। सवाल यह भी है कि पिछले 70 वर्षों में शांति के पथ पर चलते हुए हमने क्या पाया है?

● यदि पड़ोस में सुख-शांति बनी रहेगी, तभी हम स्वयं का भी विकास कर सकते हैं। अतः भारत को भी पहले अपने आस-पास के माहौल को बेहतर बनाने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिये। यही कारण है कि भारत नेबर फर्स्ट की नीति पर आगे बढ़ रहा है।

 

 

 

★ भारत और परमाणु हथियार :-

● भारत में परमाणु हथियार निर्माण की प्रक्रिया होमी भाभा जहांगीर के नेतृत्व में शुरू हुई।

● इसी बीच 1968 में UNO की सुरक्षा परिषद् के स्थाई सदस्यों ने दुनिया के परमाणु अप्रसार संधि यानि NPT (नॉन प्रॉलिफरेशन ट्रीटी / Non-Proliferation Treaty) को थोपने का प्रयास किया

● इस संधि के अनुसार सिर्फ वही देश परमाणु हथियार रख सकते है जिन्होंने इनका परिक्षण 1968 से पहले कर लिया है उसके आलावा किसी भी देश को परमाणु संपन्न देश का दर्जा नहीं दिया जा सकता। भारत ने इस संधि को भेदभावपूर्ण बता कर इस संधि का विरोध किया और इस पर हस्ताक्षर नहीं किये।

● भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण मई 1974 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के शासनकाल में किया था.इस परमाणु परीक्षण का नाम “स्माइलिंग बुद्धा” था.

● भारत 1998 में अपना दूसरा परमाणु परिक्षण उसी जगह पर किया। यह परिक्षण सफल रहा और भारत परमाणु संपन्न देश बन गया ।

● इसके बाद पोखरण-2 परीक्षण मई 1998 में पोखरण परीक्षण रेंज पर किये गए पांच परमाणु बम परीक्षणों की श्रृंखला का एक हिस्सा था. भारत ने 11 और 13 मई, 1998 को राजस्थान के पोरखरण परमाणु स्थल पर 5 परमाणु परीक्षण किये थे.

● 1998 में आयोजित पोखरण- II परमाणु परीक्षण के दौरान भारत के प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। भारत ने कोड नाम ऑपरेशन शक्ति के तहत पोखरण-द्वितीय परमाणु परीक्षण किया था।

 

 

भारत की परमाणु नीति :-

1. भारत पहला ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश बना जिसने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं.

2. “पहले इस्तेमाल” नही करेगा; जो कि भारत की परमाणु नीति का हिस्सा है. भारत ने 2003 में अपनी परमाणु नीति बनायीं थी.

3.भारत अपनी परमाणु नीति को इतना सशक्त रखेगा कि दुश्मन के मन में भय बना रहे.

4. जिन देशों के पास परमाणु हथियार नही हैं उनके खिलाफ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नही किया जायेगा.

 5. दुश्मन के खिलाफ परमाणु हमले की कार्यवाही करने के अधिकार सिर्फ जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों अर्थात देश के राजनीतिक नेतृत्व को ही होगा हालाँकि परमाणु कमांड अथॉरिटी का सहयोग जरूरी होगा

6. यदि भारत के खिलाफ या भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ किसी कोई रासायनिक या जैविक हमला होता है तो भारत इसके जबाब में परमाणु हमले का विकल्प खुला रखेगा.

7. परमाणु एवं प्रक्षेपात्र सम्बन्धी सामग्री तथा प्रौद्योगिकी के निर्यात पर कड़ा नियंत्रण जारी रहेगा तथा परमाणु परीक्षणों पर रोक जारी रहेगी.

8. भारत परमाणु मुक्त विश्व बनाने की वैश्विक पहल का समर्थन करता रहेगा तथा भेदभाव मुक्त परमाणु निःशस्त्रीकरण के विचार को आगे बढ़ाएगा.

 

 

 

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