अध्याय 5 : प्राथमिक क्रियाएँ

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आर्थिक क्रिया : मानव के वो कार्यकलाप जिनसे आय प्राप्त होती है, आर्थिक क्रिया कहा जाता है।

आर्थिक क्रियाओं को मुख्यतः चार वर्गों में विभाजित किया जाता है प्राथमिक, द्वितीयक तृतीयक एवं – चतुर्थ क्रियाएँ

 

 

प्राथमिक क्रिया :

प्राथमिक क्रियाएँ प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर है, क्योंकि ये पृथ्वी के संसाधनों जैसे भूमि, जल, वनस्पति, भवन निर्माण सामग्री एवं खनिजों के उपयोग के विषय में बतलाती हैं। इस प्रकार इसके अंतर्गत आखेट, भोजन संग्रह, पशुचारण, मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी काटना, कृषि एवं खनन कार्य  प्राथमिक कार्यकलाप करने वाले लोग उनका कार्य क्षेत्र घर से बाहर होने के कारण लाल कॉलर श्रमिक कहलाते हैं।

 

 

 

आखेट एवं भोजन संग्रह

आदिमानव का जीवन निर्वाह दो कार्यों द्वारा होता था

(क) पशुओं का आखेट कर और

(ख) अपने समीप के जंगलों से खाने योग्य जंगली पौधे एवं कंद-मूल आदि को एकत्रित कर

 

आदिमकालीन समाज जंगली पशुओं पर निर्भर था। अतिशीत एवं अत्यधिक गर्म प्रदेशों के रहने वाले लोग आखेट द्वारा जीवन यापन करते थे। भोजन संग्रह एवं आखेट प्राचीनतम ज्ञात अर्थिक क्रियाएँ हैं।

 

भोजन संग्रह विश्व के दो भागों में किया जाता है

(1)उच्च अक्षांश के क्षेत्र जिसमें उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली

(2) निम्न अक्षांश के क्षेत्र जिसमें अमेजन बेसिन, उष्णकटिबंधीय अफ्रीका, आस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया का आंतरिक प्रदेश

 

 

आधुनिक समय में भोजन संग्रह के कार्य का कुछ भागों में व्यापारीकरण भी हो गया है। ये लोग कीमती धा की पत्तियाँ, छाल एवं औषधीय पौधों को सामान्य रूप से संशोधित कर बाजार में बेचने का कार्य भी करते हैं।

 

 

पशुचारण

 

आखेट पर निर्भर रहने वाले समूह ने जब से महसूस किया कि केवल आखेट से जीवन का भरण-पोषण नहीं किया जा सकता है, तब मानव ने पशुपालन व्यवसाय के विषय में सोचा। विभिन्न जलवायुविक दशाओं में रहने वाले लोगों ने उन क्षेत्रों में पाए जाने वाले पशुओं का चयन करके पालतू बनाया

 

 

चलवासी पशुचारण

1 चलवासी पशुचारण एक प्राचीन जीवन निर्वाह व्यवसाय रहा है जिसमें पशुचारक अपने भोजन, वस्त्र, शरण, औजार एवं यातायात के लिए पशुओं पर ही निर्भर रहता था।

2 पशुओं के जल और चारागाह के लिए यह एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होते रहते थे।

3 उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में गाय-बैल प्रमुख पशु हैं, जबकि सहाय एवं एशिया के महस्थलों में भेड़, बकरी एवं तिब्बत एवं केतीय भागों में यकि व लामा एवं आर्कटिक और उप उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्रों में रेडियर पाला जाता है

4 नए चरागाहों को खोज में ये पशुचारक समतल भागों एवं पवर्तीय क्षेत्रों में लंबी दूरियाँ तय करते है। गर्मियों में मैदानी भाग से पर्वतीय चरागाह की ओर एवं शीत में पर्वतीय भाग से मैदानी चरागाहों की ओर प्रवास करते हैं।

 

5 चलवासी पशुचारण के तीन प्रमुख क्षेत्र है।

A, उत्तरी अफ्रीका के एटलांटिक वट से अरब प्रायद्वीप होता हुआ मंगोलिया एवं मध्य चीन तक

B, यूरोप तथा एशिया के टुंड्रा प्रदेश

C, दक्षिणी गोलाई में दक्षिणी पश्चिमी अफ्रीका एवं मेडागास्कर द्वीप

 

चलवासी पशुचारकों की संख्या अब घट रही है एवं इनके द्वारा उपयोग में लाए गए क्षेत्र में भी कमी हो रही है। इसके दो कारण है (क) राजनीतिक सीमाओं का अधिरोपण (ख) कई देशों द्वारा नई बस्तियों की योजना बनाना।

 

 

 

 वाणिज्य पशुधन पालन

 

1 वाणिज्य पशुधन पालन अधिक व्यवस्थित एवं पूँजी प्रधान है। वाणिज्य पशुधन पालन पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है एवं फार्म भी स्थायी होते है।

2 चराई को नियंत्रित करने के लिए इन्हें बाड़ लगाकर एक दूसरे से अलग कर दिया जाता है।

3 वाणिज्य पशुधन पालन में पशुओं की संख्या भी चरागाह की वहन क्षमता के अनुसार रखी जाती है

4 यह एक विशिष्ट गतिविधि है, जिसमें केवल एक ही प्रकार के पशु पाले जाते हैं। प्रमुख पशुओं में भेड़, बकरी गाय-बैल एवं पीड़े हैं। इनसे प्राप्त मांस खाते एवं ऊन को प्राप्त किया जाता है ।

5 पशुफार्म में पशुधन पालन वैज्ञानिक आधार पर व्यवस्थित किया जाता है। इसमें मुख्य ध्यान पशुओं के प्रजनन, जननिक सुधार बीमारियों पर नियंत्रण एवं उनके स्वास्थ्य पर दिया जाता है।

6 प्रमुख प्रदेश न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटाइन रूग्वे एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में वाणिज्य पशुधन पालन किया जाता है

 

 

 

कृषि

विश्व में पाई जाने वाली विभिन्न भौतिक सामाजिक एवं आर्थिक दशाएँ कृषि कार्य का प्रभावित करती है एवं इसी प्रभाव के कारण विभिन्न कृषि प्रणालियाँ देखी जाती हैं

 

 

1. निर्वाह कृषि

इस प्रकार को कृषि में कृषि क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय उत्पादों का संपूर्ण अथवा लगभग का उपयोग करते हैं। इसको दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

 

आदिकालीन निर्वाह कृषि

 

1 आदिकालीन निर्वाह कृषि अथवा स्थानांतरणशील कृषि कार्य उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में किया जाता है जहाँ आदिम जाति के लोग यह कृषि करते है ।

2 यह कृषि अफ्रीका, दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका का उष्णकटिबंधीय भाग एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया है ।

3 क्षेत्रों की वनस्पति को जला दिया जाता है एवं जली हुई राख को परत उर्वरक का कार्य करती है। इस प्रकार स्थानांतरणशील कृषिकर्तन एवं दहन कृषि भी कहलाती है।

4 इसमें बोए गए खेत बहुत छोटे-छोटे होते हैं एवं खेती भी पुराने औजार जैसे लकड़ी, कुदाली एवं फावड़े द्वारा की जाती है।

5 कुछ समय पश्चात् (3 से 5 वर्ष) जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है, तब कृषक नए क्षेत्र में वन जलाकर कृषि के लिए भूमि तैयार करता है। कुछ समय पश्चात् कृषक वापस पहले वाले कृषि क्षेत्र पर कृषि कार्य करने आ जाता है।

6 कृषि कार्य में सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस क्षेत्र में भूमि की उर्वरता कम होती जाती है

7 इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है भारत के उत्तरी पूर्वी राज्यों में इसे भूमिंग, मध्य अमेरिका एवं मैक्सिको में मिल्या एवं मलेशिया व इंडोनेशिया में लादांग कहा जाता है।

 

 

 

गहन निर्वाह कृषि

इस प्रकार की कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों में की जाती है।

 

गहन निर्वाह कृषि के दो प्रकार हैं

1 चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि: इसमें चावल प्रमुख फसल होती है। अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है एवं कृषि कार्य में कृषक का संपूर्ण परिवार लगा रहता है। भूमि का गहन उपयोग होता है एवं यंत्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्त्व है। उर्वरता बनाए रखने के लिए पशुओं के गोबर की खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है।

 

2 चावल रहित गहन निर्वाह कृषि: मानसून एशिया के अनेक भागों में उच्चावच जलवायु मृदा तथा अन्य भौगोलिक कारकों को मिलता के कारण धान की फसल उगाना प्रायः संभव नहीं है। उत्तरी चीन, मंचुरिया, उत्तरी कोरिया एवं उत्तरी जापान में गेहूं, सोयाबीन, जी एवं सोरम बोचा जाता है। भारत में सिंध गंगा के मैदान के पश्चिमी भाग में गेहूँ एवं दक्षिणी व पश्चिमी शुष्क प्रदेश में ज्वार बाजरा प्रमुख है।

 

 

 

2. रोपण कृषि

 

1 यह कृषि मुख्य रूप से औपनिवेशिक देशो द्वारा लाभ अर्जन के लिए शुरू की गई थी।

2 रोपण कृषि जो वृहद् स्तरीय लाभोन्मुख उत्पादन प्रणाली है

3 यूरोपीय उपनिवेशों ने अपने अधीन उष्ण कटिबंध क्षेत्रों में चाय, कॉफी, कोको, रबड़, कपास, गन्ना, केले एवं अनन्नास की पौध लगाई।

4 इसमें कृषि क्षेत्र का आकार बहुत विस्तृत होता है। इसमें अधिक पूँजी निवेश, उच्च प्रबंध एवं तकनीको आधार एवं वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है।

5 श्रमिक सस्ते मिल जाते हैं एवं यातायात विकसित होता है जिसके द्वारा बागान एवं बाजार सुचारु रूप से जुड़े रहते हैं

6 फ्रांसवासियों ने पश्चिमी अफ्रीका में कॉफी एवं कोकोआ की पौध लगाई थी। ब्रिटेनवासियों ने भारत एवं लका में चाय के बाग मलयेशिया में रबड़ के बाग एवं पश्चिमी द्वीप समूह में गन्ना एवं केले के बाग विकसित किए।

7 ब्राजील में अभी भी कुछ कॉफी के बागान जिन्हें फेजेंडा कहा जाता है यूरोपवासियों के नियंत्रण में है।

 

 

 

 3. विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि

 

1 मध्य अशों के आंतरिक अर्ध शुष्क प्रदेशों में इस प्रकार की कृषि की जाती है। इसकी मुख्य फसल गेहूँ है। अन्य फसले जैसे काजी राई एवं जई भी बोई जाती है।

2 इस कृषि में खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है एवं खेत जोतने से फसल काटने तक सभी कार्य यंत्रो द्वारा संपन्न किए जाते हैं।

3 इसमें प्रति एकड़ उत्पादन कम होता है परंतु प्रतिव्यक्ति उत्पादन अधिक होती है।

4 कृषि का क्षेत्र यूरेशिया के स्टेपीज उत्तरी विकसित कृषि यंत्र इमारतों रासायनिक एवं वनस्पति खाद अमेरिका के प्रेयरी अर्जेंटीना के पंपान, दक्षिणी अफ्रीका के वेल्डस, आस्ट्रेलिया के डाउस एवं न्यूजीलैंड के केंटरबरी मैदान है।

 

 

 

4.  मिश्रित कृषि

 

1 इस प्रकार को कृषि विश्व के अत्यधिक विकसित भागों में की जाती है जैसे, उत्तरी पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका का पूर्वी भाग, यूरेशिया के कुछ भाग एवं दक्षिणी महाद्वीपों के समशीतोष्ण वाले भागों में

2 इस कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है। इसमें बोई जाने वाली फसलें गेहूँ जी राई, जई, मक्का, चारे की -फसल एवं कंद-मूल प्रमुख हैं।

3 चारे की फसले मिश्रित कृषि के मुख्य घटक है। फसल उत्पादन एवं पशुपालन दोनों को इसमें समान महत्त्व दिया जाता है।

4 फसलों के साथ पशुओं जैसे मवेशी, भेड़, सुअर एवं कुक्कुर आय के मुख्य स्रोत – हैं।

5 इस में विकसित कृषि यंत्र इमारतों, रासायनिक एवं वनस्पति खाद के गहन उपयोग आदि पर अधिक पूंजी व्यय के साथ ही कृषकों की कुशलता और योग्यता मिश्रित कृषि की विशेषता है।

 

 

 

5.  डेरी कृषि

 

1 डेरी व्यवसाय दुधारू पशुओं के पालन-पोषण का सर्वाधिक उन्नत एवं दक्ष प्रकार है। इसमें पूँजी की भी अधिक आवश्यकता होती है।

2 पशुओं के लिए उप्पर घास संचित करने के भंडार एवं दुग्ध उत्पादन में अधिक यंत्रों के प्रयोग के लिए पूँजी भी अधिक चाहिए।

3 पशुओं के स्वास्थ्य, प्रजनन एवं पशु चिकित्सा पर भी अधिक ध्यान दिया जाता है। इसमें गहन अम की आवश्यकता होती है।

4 पशुओं को चराने दूध निकालने आदि कार्यों के लिए वर्ष भर श्रम की आवश्यकता रहती है।

5 डेरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक कहाँ के समीप किया जाता है. क्योंकि ये क्षेत्र ताजा दूध एवं अन्य डेरी उत्पाद के अच्छे बाजार होते हैं

6 वाणिज्य डेरा कृषि तीन प्रमुख क्षेत्र है, सबसे बड़ा प्रदेश उत्तरी पश्चिमी यूरोप का क्षेत्र है। दूसरा कनाडा एवं तीसरा क्षेत्र न्यूजीलैंड दक्षिणी पूर्वी आस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया है

 

 

 

6. भूमध्यसागरीय कृषि

 

1 भूमध्यसागरीय कृषि अति विशिष्ट प्रकार की कृषि है। इसका विस्तार भूमध्यसागर के समीपवर्ती क्षेत्र जो दक्षिणी यूरोप से उत्तरी अफ्रीका में ट्यूनीशिया में एटलांटिक तट तक फैला है दक्षिणी कैलीफोर्निया मध्यवर्ती मिली, दक्षिणी अफ्रीका का दक्षिणी पश्चिमी भाग एवं आस्ट्रेलिया के दक्षिण व दक्षिण पश्चिम भाग

2 खट्टे फलों की आपूर्ति करने में यह क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है। अंगूर की कृषि भूमध्यसागरीय क्षेत्र की विशेषता है।

3 क्षेत्र के कई देशों में अच्छे किस्म के अंगूरों से उच्च गुणवत वाली मदिरा का उत्पादन किया जाता है। निम्न श्रेणी के अंगूरों को सुखाकर मुनक्का एवं किशमिश बनाई जाती है।

4 अंजीर एवं मैतून भी यहाँ उत्पन्न होता है। शीत ऋतु में जब यूरोप एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में फलों एवं सब्जियों की माँग होती है तब इसी क्षेत्र से पूर्ति की जाती है।

 

 

 

7. बाज़ार के लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि

 

1 इस प्रकार की कृषि में अधिक मुद्रा मिलने वाली फसलें जैसे सब्जियाँ फल एवं पुष्प लगाए जाते हैं जिनकी माँग नगरीय क्षेत्रों में होती है।

2 इस कृषि में खेतों का आकार छोटा होता है एवं खेत अच्छे यातायात साधनों के द्वारा नगरीय केंद्रो से जुड़े होते है।

3 इसमें गहन श्रम एवं अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है।

4 इस प्रकार की कृषि उत्तरी पश्चिमी यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी पूर्वी भाग एवं भूमध्यसागरीय प्रदेश में अधिक विकसित है,

5 नीदरलैंड पुष्प उत्पादन में विशिष्टीकरण रखता है। यहाँ से बागवानी फसल विशेषत: ट्यूलिप (एक प्रकार का फूल) पूरे यूरोप के प्रमुख शहरों में भेजा जाता है।

6 जिन प्रदेशों में कृषक केवल सब्जियाँ पैदा करता है वहाँ इसको ‘ट्रक कृषि’ का नाम दिया जाता है।

7 पश्चिमी यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्रों में उद्यान कृषि के अलावा कारखाना कृषि भी की जाती है। इसमें पशुधन पाला जाता है जिनमें विशेषतः गाय-बैल एवं कुक्कुर होते हैं। इन्हें बाहे पर कारखानों में तैयार बने बनाए भोजन पर रखा जाता है

 

 

 

8. सहकारी कृषि

 

जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य संपन्न करे उसे सहकारी कृषि कहते हैं।

1 सहकारी संस्था कृषकों को सभी रूप में सहायता करती है। यह सहायता कृषि कार्य में आने वाली सभी चीजों को खरीद करने, कृषि उत्पाद को उचित मूल्य पर बेचने एवं सस्ती दरों पर प्रसंस्कृत साधनों को जुटाने के लिए होती है।

2 सहकारी आंदोलन एक शताब्दी पूर्व प्रारंभ हुआ था एवं पश्चिमी यूरोप के डेनमार्क, नीदरलैंड, बेल्जियम, स्वीडन एवं इटली में यह सफलतापूर्वक चला।

3 सबसे अधिक सफलता इसे डेनमार्क में मिली जहाँ प्रत्येक कृषक इसका सदस्य है। डेनमार्क में यह आंदोलन सर्वाधिक सफल रहा, जहाँ व्यावहारिक रूप से प्रत्येक कृषक इस आंदोलन का सदस्य है।

 

 

 

 

9. सामूहिक कृषि

इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व संपूर्ण समाज एवं सामूहिक श्रम पर आधारित होता है। कृषि का यह प्रकार पूर्व सोवियत संघ में प्रारंभ हुआ था जहाँ कृषि की दशा सुधारने एवं उत्पादन में वृद्धि व आत्मनिर्भरता प्राप्ति के लिए सामूहिक कृषि प्रारंभ की गई इस प्रकार की सामूहिक कृषि को सोवियत संघ में कोलखहोज़ का नाम दिया गया।

 

सभी कृषक अपने संसाधन जैसे भूमि, पशुधन एवं अम को मिलाकर कृषि कार्य करते थे। ये अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूमि का छोटा-सा भाग अपने अधिकार में भी रखते थे।

 

 

 

खनन

प्राचीन काल में खनिजों का उपयोग औजार बनाने, बर्तन बनाने एवं हथियार बनाने तक ही सीमित था। इसका वास्तविक विकास औद्योगिक क्रांति के पश्चात् ही संभव हुआ एवं निरंतर इसका महत्त्व बढ़ता रहा है।

 

 

खनन कार्य को प्रभावित करने वाले कारक

 

1) भौतिक कारक जिनमें खनिज निक्षेपों के आकार श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था को सम्मिलित करते हैं।

2 आर्थिक कारक जिनमें खनिज को माँग विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध पूँजी एवं यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय आता है।

 

 

 खनन की विधियों

 

उपस्थिति की अवस्था एवं अयस्क की प्रकृति के आधार पर खनन के दो प्रकार है:

1 धरातलीय खनन : यह खनिजों के खनन का सबसे सस्ता तरीका है, क्योंकि इस विधि में सुरक्षात्मक पूर्वीपायों एवं उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च अपेक्षाकृत कम होता है एवं उत्पादन शीघ्र व अधिक होता है।

 

2 भूमिगत खनन

 

जब अयस्क धरातल के नीचे गहराई में होता है तब महत्त्व दे रहे हैं। अफ्रीका के कई देश दक्षिण अमेरिका के भूमिगत अथवा कृपकी खनन विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में संवत् कृपक गहराई । तक स्थित है,

 

 

 

 

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