अध्याय 6 : द्वितीयक क्रियाएँ

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द्वितीयक गतिविधियों :

द्वितीयक गतिविधियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का मूल्य बढ़ जाता है। प्रकृति में पाए जाने वाले कच्चे माल का रूप बदलकर यह उसे मूल्यवान बना देती है। द्वितीयक क्रियाएँ विनिर्माण, प्रसंस्करण और निर्माण (अवसंरचना) उद्योग से संबंधित हैं।

 

 

विनिर्माण

विनिर्माण से आशय किसी भी वस्तु का उत्पादन है। हस्तशिल्प कार्य से लेकर लोहे व इस्पात को गढ़ना, प्लास्टिक के खिलौने बनाना, कंप्यूटर के अति सूक्ष्म घटकों को जोड़ना एवं अंतरिक्ष यान निर्माण इत्यादि सभी प्रकार के उत्पादन को निर्माण के अंतर्गत ही माना जाता है।

 

विनिर्माण की विशेषताएँ :

1 शक्ति का उपयोग

2 एक ही प्रकार की वस्तुओं का विशाल उत्पादन

3 कारखानों में विशिष्ट श्रमिक

4 वस्तुओं का उत्पादन

 

 

आधुनिक बड़े पैमाने पर होने वाले विनिर्माण की विशेषताएँ

 

1 कौशल का विशिष्टीकरण/उत्पादन की विधियाँ :

अधिक उत्पादन का संबंध बड़े पैमाने पर बनाए जाने वाले सामान से है जिसमें प्रत्येक कारीगर निरंतर एक ही प्रकार का कार्य करता है।

 

2 यंत्रीकरण :

किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए मशीनों का प्रयोग करना स्वचालित (निर्माण प्रक्रिया के दौरान मानव की सोच को सम्मिलित किए बिना कार्य) यंत्रीकरण को विकसित अवस्था है।

 

3 प्रौद्योगिकीय नवाचार

प्रौद्योगिक नवाचार, शोध एवं विकासमान युक्तियों के द्वारा विनिर्माण की गुणवत्ता को नियंत्रित करने, अपशिष्टों के निस्तारण एवं अदक्षता को समाप्त करने तथा प्रदूषण के विरुद्ध संघर्ष करने का महत्वपूर्ण पहलू है

 

4 संगठनात्मक ढाँचा एवं स्तरीकरण

A) एक जटिल प्रोद्योगिकी तंत्र

B) अत्यधिक विशिष्टीकरण एवं श्रम विभाजन के द्वारा कम प्रयास एवं अल्प लागत से अधिक माल का उत्पादन करना

C) अधिक पूँजी

D) बड़े संगठन एवं

E) प्रशासकीय अधिकारी वर्ग

 

5) अनियमित भौगोलिक वितरण

आधुनिक निर्माण के मुख्य संकेंद्रण कुछ ही स्थानों में सीमित है। विश्व के कुल स्थलीय भाग के 10 प्रतिशत से कम भू-भाग पर इनका विस्तार है। यह देश आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति के केंद्र बन गए हैं। उद्योग अपनी लागत घटाकर लाभ को बढ़ाते हैं इसलिए उद्योगों को स्थापना उस स्थान पर की जानी चाहिए जहाँ पर उत्पादन लागत कम आए ।

 

 

 

उद्योगों की स्थिति को प्रभावित करने वाले कुछ कारक निम्न हैं।

 

1) बाजार तक अभिगम्यता

उद्योगों की स्थापना में सबसे प्रमुख कारक उसके द्वारा उत्पादित माल के लिए उपलब्ध बाजार का होता है। बाजार से तात्पर्य उस क्षेत्र में तैयार वस्तुओं की माँग एवं वहाँ के निवासियों में खरीदने की क्षमता (क्रय शक्ति) है।

 

2) कच्चे माल की प्राप्ति तक अभिगम्यता

उद्योग के लिए कच्चा माल अपेक्षाकृत सस्ता एवं सरलता से जाती है। परिवहन योग्य होना चाहिए। भारी वजन, सस्ते मूल्य एवं वजन घटने वाले पदार्थों (अवस्क) पर आधारित उद्योग कच्चे माल के स्त्रोत स्थल के समीप ही स्थित है

 

 

3) श्रम आपूर्ति तक अभिगम्यता

उद्योगों की अवस्थिति में अम एक प्रमुख कारक है। बढ़ते हुए यंत्रीकरण, स्वचलन एवं औद्योगिक प्रक्रिया के लचीलेपन ने उद्योगों में श्रमिकों पर निर्भरता को कम किया है,

 

4) शक्ति के साधनों तक अभिगम्यता

वे उद्योग जिनमें अधिक शक्ति को आवश्कता होती है वे कर्जा के स्रोतों के समीप लगाए जाते हैं, जैसे एल्यूमिनियम उद्योग प्राचीन समय में कोयला प्रमुख शक्ति का साधन था पर आजकल जलविद्युत एवं खनिज तेल भी कई उद्योगों के लिए शक्ति का महत्त्वपूर्ण साधन है।

 

 

5) परिवहन एवं संचार की सुविधाओं तक अभिगम्यता

कच्चे माल को कारखाने तक लाने के लिए और परिष्कृत सामग्री को बाजार तक पहुँचने के लिए तीव्र और सक्षम परिवहन सुविधाएँ औद्योगिक विकास के लिए अत्यावश्यक है।

 

6) सरकारी नीति

संतुलित आर्थिक विकास हेतु सरकार प्रादेशिक नीति अपनाती है जिसके अंतर्गत विशिष्ट क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना की जाती है।

 

 

 स्वच्छंद उद्योग

स्वच्छंद उद्योग व्यापक विविधता वाले स्थानों में स्थित होते हैं। यह किसी विशिष्ट काल जिनके भार में कमी हो रही है अथवा नहीं, पर निर्भर नहीं रहते हैं। यह उद्योग संघटक पुरतों पर निर्भर रहते हैं जो कहीं से भी प्राप्त किए जा सकते हैं। इसमें उत्पादन कम मात्रा में होता है. एवं श्रमिकों को भी कम आवश्यकता होती है। सामान्यतः मे उद्योग प्रदूषण नहीं फैलाते

 

 

 

विनिर्माण उद्योगों का वर्गीकरण

 

1) आकार पर आधारित उद्योग

किसी उद्योग का आकार उसमें निवेशित पूँजी कार्यरत श्रमिकों विकसित होने के कारण सदैव इन क्षेत्रों में उद्योगों का केंद्र की एवं उत्पादन की मात्रा पर निर्भर करता है। इसके अनुसार उद्योगों को घरेलू अथवा कुटीर, छोटे व बड़े पैमाने के उद्योगों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

 

A) कुटीर उद्योग

● कुटीर उद्योग दक्षता के आधार पर परिवार के सदस्यों द्वारा चलाए जाते हैं।

● अधिशेष उत्पादों को स्थानीय बाजारों में बेचा जाता है

● इनमें उत्पादन साधारण औजार एवं उपकरणों की सहायता से किया जाता है परंतु अब कुछ सुधरे एवं सक्षम उपकरणों का प्रयोग होने लगा है।

● इन उद्योगों का स्थापन घर में ही होता है जो ऊर्जा साधन एवं परिवहन साधन से प्रभावित नहीं होता

● इन उद्योग में मुख्त रूप से रस्सी बनाना, टोकरी बनाना, ऊन कातना, चटाई बनाना आदि कुटीर उद्योगों के उदाहरण हैं

 

 

 B) छोटे पैमाने के उद्योग

● यह कुटीर उद्योग से भिन्न है।

● इसके उत्पादन की तकनीक एवं निर्माण स्थल घर से बाहर कारखाना में होता है।

● इसमें स्थानीय कच्चे माल का उपयोग होता है एवं अर्द्धकुशल श्रमिक शक्ति के साधनों से चलने वाले पत्रों का प्रयोग किया जाता है

● रोजगार के अवसर इस उद्योग में अधिक होते हैं जिससे स्थानीय निवासियों की क्रय शक्ति बढ़ती है।

● भारत, चीन, इंडोनेशिया एवं ब्राजील जैसे देशों ने अपनी जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए इस प्रकार के श्रम-सपन छोटे पैमाने के उद्योग प्रारंभ किए हैं।

 

 

C) बड़े पैमाने के उद्योग

● इस प्रकार के उद्योग बहुत बड़े आकार में अधिक पूँजी लगाकर स्थापित किए जाते हैं।

● इन उद्योगों में भारी मशीनों का प्रयोग किया जाता है तथा श्रमिक भी अधिक होते हैं।

● इन उद्योगों में बहुत बड़े संसाधन आधार की आवश्यकता होती है इनमें वस्तुओं का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर किया जाता है।

● इन उद्योगों में विकास के लिए अनेक ढाँचागत सुविधायें जैसे : रेल परिवहन की सुविधा, बैंकिंग सुविधा आदि का होना आवश्यक है।

● लोहा तथा इस्पात उद्योग, मोटरकार उद्योग आदि इसके उदाहरण हैं।

 

 

2) कच्चे माल पर आधारित उद्योग

 

(क) कृषि आधारित
(ख) खनिज आधारित
(ग) रसायन आधारित
(प) वन आधारित
(क) पशु आधारित

 

 क) कृषि आधारित

खेतों से प्राप्त कच्चे माल को विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा तैयार माल में बदलकर विक्रय हेतु ग्रामीण एवं नगरीय बाजारों में भेजा जाता है। प्रमुख कृषि आधारित उद्योग में भोजन तैयार करने वाले उद्योग, शक्कर, अचार फलों के रस, पेय पदार्थ (चाय कॉफी, कोकोआ), मसाले, तेल एवं वस्त्र (सूती, रेशमी जुट) तथा रबड़ उद्योग

 

 

 ख) खनिज आधारित उद्योग

खनिजों को कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है। कुछ उद्योग लौह अंश वाले धात्विक खनिजों का उपयोग करते हैं जैसे कि लौह इस्पात उद्योग कुछ उद्योग अलौह धात्विक खनिजों का उपयोग करते हैं जैसे एल्युमिनियम, ताँबा एवं जवाहरात उद्योगः सीमेंट, मिट्टी के वर्तन आदि उद्योगों में अधात्विक खनिजों

 

 

 ग) रसायन आधारित उद्योग

इस प्रकार के उद्योगों में प्राकृतिक रूप में पाए जाने वाले रासायनिक खतों का उपयोग होता है जैसे पेट्रो रसायन उद्योग में खनिज तेल (पैट्रोलियम) का उपयोग होता है
कुछ रसायनिक उद्योग लकड़ी एवं कोयले से प्राप्त कच्चे माल पर भी निर्भर हैं। रसायन उद्योग के अन्य उदाहरण कृत्रिम रेशे बनाना, प्लास्टिक निर्माण इत्यादि है

 

 

घ) वनों पर आधारित उद्योग

चनों से प्राप्त कई मुख्य एवं गौण उपज कच्चे माल के रूप में उद्योगों में प्रयुक्त होती है। फर्नीचर उद्योग के लिए इमारती लकड़ी, कागज उद्योग के लिए लकड़ी, बाँस एवं घास तथा लाखा उद्योग के लिए लाख वनों से ही प्राप्त होती है

 

 

ङ) पशु आधारित उद्योग

चमड़ा एवं ऊन पशुओं से प्राप्त प्रमुख कच्चा माल है। चमड़ा उद्योग के लिए चमड़ा एवं ऊनी वस्त्र उद्योग के लिए कन पशुओं से ही प्राप्त की जाती है।

 

 

 3) उत्पादन / उत्पाद आधारित उद्योग

कुछ उद्योग निर्माण में लौह इस्पात का प्रयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है। ये उद्योग जिनके उत्पाद को अन्य वस्तुएँ बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में प्रयोग में लाया जाता है उन्हें आधारभूत उद्योग कहते हैं।

लौह-इस्पात → वस्त्र उद्योग के लिए मशीन → उपभोक्ता के उपयोग हेतु कपड़ा

 

उपभोक्ता वस्तु उद्योग के ऐसे सामान का उत्पादन करते है जो प्रत्यक्ष रूप में उपभोक्ता द्वारा उपभोग कर लिया जाता है। उदाहरण : रोटी (ब्रेड) एवं बिस्कुट, चाय, साबुन, लिखने के लिए कागज, टेलीविजन एवं शृंगार इन वस्तु का उत्पादन करने वाले उद्योगों को उपभोक्ता माल बनाने वाले अथवा गैर आधारभूत उद्योग कहा जाता है

 

 

4) स्वामित्व के आधार पर उद्योग

 

सार्वजनिक क्षेत्र : के उद्योग सरकार के अधीन होते हैं। भारत में बहुत से उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र के अधीन है। समाजवादी देशों में भी अनेक उद्योग सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं। मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक दोनों प्रकार के उद्यम पाए जाते हैं।

 

निजी क्षेत्र : उद्योगों का स्वामित्व व्यक्तिगत निवेशकों के पास होता है। ये निजी संगठनों द्वारा संचालित हो पूँजीवादी देशों में अधिकतर उद्योग निजी क्षेत्र में है।

 

संयुक्त क्षेत्र : उद्योग का संचालन संयुक्त कंपनी के द्वारा या किसी निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी के संयुक्त प्रयासों द्वारा किया जाता है।

 

 कृषि व्यापार एक प्रकार को व्यापारिक कृषि है जो औद्योगिक पैमाने पर की जाती है इसका वित्तपोषण प्राय: यह व्यापार करता है जिसकी कृषि के बाहर हो। कृषि व्यापार फार्म से आकार में बड़े मंत्र रामानों पर निर्भर एवं अच्छी संरचना वाले होते हैं। इनको कृषि कारखाने‘ भी कहा जाता है।

 

 

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