गौतम बुद्ध – बचपन का नाम – सिद्धार्थ -जन्म स्थान -563 ई.पू लुम्बिनी ( -कुल – शाक्य, प्रथम उपदेश – कुशीनगर, ज्ञान प्रप्ति – बोधगया (35 वर्ष )-जीवन क अंत – 483 ई.पू कुशीनगर,
ज्ञान प्राप्ति :- बुजुर्ग , बीमार , मृत , साधु जिसके कारण 29 वर्ष की आयु में ज्ञान की खोज में उन्होंने घर के सुखों को छोड़ दिया। अनेक वर्षो तक भ्रमण करते रहे। 35 वर्ष की आयु बोधगया में निरजंना नदी के तट पर पीपल के वृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद वे बुद्ध के रूप में जाने गए। पहली बार सारनाथ में अपना उपदेश कौडिन्य व उनके सथियो को दिया।
गौतम बुद्ध के शिष्य – आनन्द और उपालि थे बुद्ध ने अपनी शिक्षा सामान्य लोगों को प्राकृत भाषा में दी बुद्ध ने अंतिम लक्ष्य ” निर्वाण ” की प्रप्ति बताते है। सारनाथ में स्तूप का निर्माण किया गया।
प्रमुख शिक्षा –
1. जीवन कष्टों व दुखो से भरा है और यह इच्छा व लालसाओं के कारण होता है।
2. इस लालसा को उन्होंने तृष्णा कहा है
3. इसका समाधान आत्मसयम है , हमारे कर्म के परिणाम चाहे अच्छे हो या बुरे हमारे वर्तमान जीवन के साथ साथ बाद के जीवन को भी प्रभावित करते है।
बौद्ध ग्रन्थ
विनयपिटक – जीवन की घटनाएँ। सुतपिटक– संघ के नियम। अभिहम्मपिटक – आध्यातिमक विचार
उपनिषद – यह उत्तर वैदिक ग्रन्थ था तथा उपनिषद का अर्थ होता है “गुरु के समीप बैठना “ यह बातचीत का संकलन है। इसके अंतर्गत विभिन्न विचारको चिंतको के द्वारा मृत्यु के बाद के खोज में ढूंढे गए उत्तर है।
जैन धर्म
जैन शब्द संस्कृत के जिन शब्दों से बना है जिसका अर्थ ” विजेता ” होता है। महावीर जैन का जन्म – 540 ई.पू कुण्डग्राम वैशाली (बिहार) में हुआ था उन्होंने जम्भिक ग्राम में प्रथम उपदेश – राजगृह में दिया था जीवन क अंत – 468 ई.पू
पावापुरी राजगृह बचपन का नाम था – वर्द्धमान महावीर जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव थे और 24 वें महावीर जैन यह वज्जि संघ के लिच्छवि कुल के क्षत्रिय राजकुमार थे। 30 वर्ष की आयु में उन्होंने घर छोड़ दिया। बारह वर्ष तक उन्होंने कठिन व एकाकी जीवन व्यतीत किया। इसके बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। महावीर ने अपनी शिक्षा प्राकृत में दी। त्रिरत्त्न :- सम्यक घ्यान , सम्यक दर्शन , सम्यक आचारण जैन दिगम्बर और स्वेताम्बर
जैन धर्म की शिक्षाएँ
1. अहिंसा के नियम का कड़ाई से पालन किसी भी जीव की हत्या नहीं करनी चाहिए
2. भोजन के लिए भिक्षा मांग कर सादा जीवन बिताना चोरी नहीं करना ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है
3. मुख्यता व्यापारियों ने जैन धर्म का समर्थन किया
4. कई शताब्दियों तक इनकी शिक्षाएं मौखिक रही परंतु पंद्रह सौ वर्ष पूर्व गुजरात में वल्लभी नामक स्थान पर लिखी गई थी।
संघ :- महावीर तथा बुद्ध दोनों का ही मानना था की घर का त्याग करने पर ही सच्चे ज्ञान की प्रप्ति हो सकती है। विनयपिटक में संघ में रहने वाले भिक्षुओ के लिए नियम बनाए गए थे। संघ में ब्राह्मण , क्षत्रिय , व्यापारी , मजदूर , प्रवेश ले सकते थे।
विहार :– जैन तथा बौद्ध भिक्खु पुरे साल एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते हुए उपदेश दिया करते थे।परंतु वर्षा ऋतु में यह संभव नहीं था इसलिए इन्हें निवास स्थान की आवश्यकता पड़ी तो उनके अनुयायियों ने कुछ उद्यान बनाएं विहार दान द्वारा प्राप्त भूमि पर बनाए गए थे इनमें लोग भोजन दबा वस्त्र लेकर आते थे और उसके बदले में उन्हें उपदेश दिया जाता था
आश्रम व्यवस्था –
जैन बौद्ध धर्म जब इतने फैल रहे थे तब ब्राह्मण ने आश्रम व्यवस्था का विकास किया
आश्रम अर्थात जीवन के चरण
ब्रह्मचार्य – ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य से यह आशा की जाती थी वह सादा जीवन बिताएं तथा वेदों का अध्ययन करें
गृहस्थ – विवाह करने के पश्चात इस आश्रम में प्रवेश हो जाता था
वानप्रस्थ – जंगल में रहकर साधना करना
सन्यास – सब त्याग कर सन्यासी बन जाए