अध्याय 7 : खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

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भारत, अपनी विविधतापूर्ण भूगर्भिक संरचना के कारण विविध प्रकार के खनिज संसाधनों से संपन्न है।

 

प्रायद्वीपीय भारत की आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों से संबद्ध हैं। उत्तर भारत के विशाल जलोढ़ मैदानी भूभाग आर्थिक उपयोग के खनिजों से विहीन हैं। किसी भी देश के खनिज संसाधन औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक आधार प्रदान करते हैं।

 

 

 खनिज : एक खनिज निश्चित रासायनिक एवं भौतिक गुणधर्मा (विशिष्टताओं) के साथ कार्बनिक या अकार्बनिक उत्पत्ति का एक प्राकृतिक पदार्थ है।

 

 

खनिज संसाधनों के प्रकार

 

रासायनिक एवं भौतिक गुणधर्मों के आधार पर खनिजों को दो प्रमुख श्रेणियों

धात्विक (धातु). : धातु के स्रोत धात्विक खनिज हैं। लौह अयस्क, ताँबा एवं सोना (स्वर्ण) आदि से धातु उपलब्ध होते है और इन्हें धात्विक खनिज श्रेणी में रखा गया है। वे सभी प्रकार के खनिज, जिनमें लौह अंश समाहित होता है जैसे कि लौह अयस्क वे लौह धात्विक होते हैं और जिन्हें लौह अंश नहीं होता है, वे अलौह धात्विक खनिज में आते हैं जैसे कि ताँबा, बॉक्साइट आदि ।

 

अधात्विक (अधातु ) : अधात्विक खनिज या तो कार्बनिक उत्पत्ति के होते हैं जैसे कि जीवाश्म ईंधन, जिन्हें खनिज ईंधन के नाम से जानते हैं या वे पृथ्वी में दबे प्राणी एवं पादप जीवों से प्राप्त होते हैं। जैसे कि कोयला और पेट्रोलियम आदि। अन्य प्रकार के अधात्विक खनिज अकार्बनिक उत्पत्ति के होते हैं जैसे अभ्रक, चूना पत्थर तथा ग्रेफाइट आदि

 

 

 

भारत में खनिजों का वितरण :

 

● भारत में अधिकांश धात्विक खनिज प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र की प्राचीन क्रिस्टलीय शैलों में पाए जाते हैं। कोयले का लगभग 97 प्रतिशत भाग दामोदर, सोन, महानदी और गोदावरी नदियों की घाटियों में पाया जाता है।

● पेट्रोलियम के आरक्षित भंडार असम, गुजरात तथा मुंबई हाई अर्थात् अरब सागर के अपतटीय क्षेत्र में पाए जाते हैं।

● अधिकांश प्रमुख खनिज मंगलोर से कानपुर को जोड़ने वाली (कल्पित) रेखा के पूर्व में पाए जाते हैं।

 

 

 

भारत में खनिज मुख्यतः तीन विस्तृत पट्टियों में सांद्रित हैं

 

1) उत्तर-पूर्वी पठारी प्रदेश

इस पट्टी के अंतर्गत छोटानागपुर (झारखंड), ओडिशा के पठार, पं. बंगाल तथा छत्तीसगढ़ के कुछ भाग आते हैं। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के खनिज उपलब्ध हैं जैसे कि लौह अयस्क, कोयला, मँगनीज, बॉक्साइट व अभ्रक आदि

 

 

2) दक्षिण-पश्चिमी पठार प्रदेश

यह पट्टी कर्नाटक, गोआ तथा संस्पर्शी तमिलनाडु उच्च भूमि और केरल पर विस्तृत है।

यह पट्टी लौह धातुओं तथा बॉक्साइट में समृद्ध है। इसमें उच्च कोटि का लौह अयस्क, मैंगनीज तथा चूना पत्थर भी पाया जाता है

केरल में मोनाजाइट तथा थोरियम, और बॉक्साइट क्ले के निक्षेप हैं। गोआ में लौह अयस्क निक्षेप पाए जाते है।

 

 

3) उत्तर-पश्चिमी प्रदेश

यह पट्टी राजस्थान में अरावली और गुजरात के कुछ भाग पर विस्तृत है और यहाँ के खनिज धारवाड़ क्रम की शैलों से संबद्ध हैं। ताँबा, जिंक आदि प्रमुख खनिज है। राजस्थान बलुआ पत्थर, ग्रेनाइट, संगमरमर, जिप्सम जैसे भवन निर्माण के पत्थरों में समृद्ध हैं

डोलोमाइट तथा चूना पत्थर सीमेंट उद्योग के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं। गुजरात अपने पेट्रोलियम निक्षेपों के लिए जाना जाता है। और नमक के समृद्ध स्रोत है।

 

 

लौह खनिज

लौह अयस्क, मैंगनीज तथा क्रोमाइट आदि जैसे लौह खनिज धातु आधारित उद्योगों के विकास के लिए एक सुदृढ़ आधार प्रदान करते हैं। लौह खनिजों के संचय एवं उत्पादन दोनों में ही हमारे देश की स्थिति अच्छी है।

 

 

लौह अयस्क

भारत में लौह अयस्क के प्रचुर संसाधन हैं। यहाँ एशिया के विशालतम लौह अयस्क आरक्षित हैं। हमारे देश में इस अयस्क के दो प्रमुख प्रकार हेमेटाइट तथा मैग्नेटाइट पाए जाते हैं। इसकी सर्वोत्तम गुणवत्ता के कारण इसकी विश्व भर में भारी माँग है। लौह अयस्क की खदानें देश के उत्तर-पूर्वी पठार प्रदेश में कोयला क्षेत्रों के निकट स्थित हैं

लौह अयस्क के कुल आरक्षित भंडारों का लगभग 95 प्रतिशत भाग ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गोआ, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु राज्यों में स्थित हैं। झारखंड की ऐसी ही पहाड़ी श्रृंखलाओं में कुछ सबसे पुरानी लौह अयस्क की खदानें हैं तथा अधिकतर लौह एवं इस्पात संयंत्र इनके आसपास ही स्थित हैं।

 

कर्नाटक में, लौह अयस्क के निक्षेप बल्लारि जिले के संदूर- होसपेटे क्षेत्र में तथा चिकमगलूरू जिले की बाबा बूदन पहाड़ियों महाराष्ट्र के चंद्रपुर भंडारा और रत्नागिरि जिले, तेलंगाना के करीम नगर, वारंगल जिले, आंध्र प्रदेश के कुरूनूल, कडया तथा अनंतपुर जिले और तमिलनाडु राज्य के सेलम तथा नीलगिरी जिले लौह अयस्क खनन के अन्य प्रदेश हैं।

 

 

 

मैगनीज

 

लौह अयस्क के प्रगलन के लिए मैंगनीज एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है और इसका उपयोग लौह-मिश्रातु, विनिर्माण में भी किया जाता है। मँगनीज निक्षेप लगभग सभी भूगर्भिक संरचनाओं में पाया जाता है हालाँकि मुख्य रूप से यह धारवाड़ क्रम से संबद्ध है।

 

ओडिशा मँगनीज़ का अग्रणी उत्पादक है। ओडिशा की मुख्य खदानें भारत की लौह अयस्क पट्टी के मध्य भाग में विशेष रूप से बोनाई, केन्दुझर, सुंदरगढ़, गंगपुर, कोरापुट कालाहांडी तथा बोलनगीर स्थित हैं।

 

मध्य प्रदेश में मैंगनीज की पट्टी बालाघाट, छिंदवाड़ा, निमाड़, मांडला और झाबुआ जिलों तक विस्तृत है। तेलंगाना, गोआ तथा झारखंड मैंगनीज़ के अन्य गौण उत्पादक हैं।

 

 

अलौह खनिज

बॉक्साइट को छोड़कर अन्य सभी अलौह खनिजों के संबंध में भारत की स्थिति निम्न है।

 

 

बॉक्साइट

बॉक्साइट एक अयस्क है जिसका प्रयोग एल्यूमिनियम के विनिर्माण में किया जाता है। बॉक्साइट मुख्यतः टरश्यरी निक्षेपों में पाया जाता है और लैटराइट चट्टानों से संबद्ध है।

 

यह विस्तृत रूप से प्रायद्वीपीय भारत के पठारी क्षेत्रों अथवा पर्वत श्रेणियों के साथ-साथ देश के तटीय भागों में भी पाया जाता है ओडिशा बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक है। कालाहांडी तथा संभलपुर अग्रणी उत्पादक हैं। दो अन्य क्षेत्र जो अपने उत्पादन को बढ़ा रहे हैं वे बोलनगीर तथा कोरापुट हैं।

झारखंड में लोहारडागा जिले की पैटलैंडस में इसके समृद्ध निक्षेप हैं। गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।गुजरात के भावनगर और जामनगर में इसके प्रमुख निक्षेप हैं। छत्तीसगढ़ में बॉक्साइट निक्षेप अमरकंटक के पठार में पाए जाते हैं

 

 

 

ताँबा

बिजली की मोटरें, ट्रांसफार्मर तथा जेनेरेटर्स आदि बनाने तथा विद्युत उद्योग के लिए ताँबा एक अपरिहार्य धातु है। यह एक मिश्रातु योग्य, आघातवयं तथा तन्य धातु हैं। ताँबा निक्षेप मुख्यत: झारखंड के सिंहभूमि जिले में, मध्य प्रदेश के बालाघाट तथा राजस्थान के झुंझुनु एवम अलवर में पाया जाता है

 

 

 

अधात्विक खनिज

भारत में उत्पादित अधात्विक खनिजों में अभ्रक महत्वपूर्ण है। स्थानीय खपत के लिए उत्पन्न किए जा रहे अन्य खनिज चूनापत्थर, डोलोमाइट तथा फोस्फेट हैं।

 

 

अभ्रक

अभ्रक का उपयोग मुख्यतः विद्युत एवं इलेक्ट्रोनिक्स उद्योगों में किया जाता है।

भारत में अभ्रक मुख्यतः झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना व राजस्थान में पाया जाता है। इसके पश्चात् तमिलनाडु, पं. बंगाल और मध्य प्रदेश आते हैं। झारखंड में उच्च गुणवत्ता वाला अभ्रक निचले हजारीबाग पठार की 150 कि.मी. लंबी व 22 कि.मी. चौड़ी पट्टी में पाया जाता है।

 

आंध्र प्रदेश में, नेल्लोर जिले में सर्वोत्तम प्रकार के अभ्रक का उत्पादन किया जाता है। राजस्थान में अभ्रक की पट्टी लगभग 320 कि.मी. लंबाई में जयपुर से भीलवाड़ा और उदयपुर के आसपास विस्तृत है। कर्नाटक के मैसूर व हासन जिले, तमिलनाडु के कोयम्बटूर, तिरुचिरापल्ली, मदुरई तथा कन्याकुमारी जिले

 

 

ऊर्जा संसाधन

ऊर्जा उत्पादन के लिए खनिज ईंधन अनिवार्य हैं। कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जैसे खनिज इंधन परमाणु ऊर्जा, ऊर्जा के परंपरागत स्रोत हैं। ये परंपरागत स्रोत समाप्य संसाधन हैं।

 

 

 

कोयला

कोयला महत्वपूर्ण खनिजों में से एक है जिसका मुख्य प्रयोग ताप विद्युत उत्पादन तथा लौह अयस्क के प्रगलन के लिए किया जाता है।

कोयला मुख्य रूप से दो भूगर्भिक कालों की शैल क्रमों में पाया जाता है जिनके नाम हैं गोंडवाना और टर्शियरी निक्षेप

 

भारत में कोयला निक्षेपों का लगभग 80 प्रतिशत भाग बिटुमिनियस प्रकार का तथा गैर कोककारी श्रेणी का है।

 

 

गोंडवाना कोयला :

गोंडवाना कोयले के प्रमुख संसाधन पं. बंगाल, झारखंड उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में अवस्थित कोयला क्षेत्रों में है।

भारत में सर्वाधिक महत्वपूर्ण गोंडवाना कोयला क्षेत्र दामोदर घाटी में स्थित है। ये झारखंड बंगाल कोयला पट्टी में स्थित हैं सर्वाधिक महत्वपूर्ण कोयला खनन केंद्र मध्य प्रदेश में सिंगरौली (सिंगरौली) है।

 

 

 

टर्शियरी कोयला :

टर्शियरी कोयला असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय तथा नागालैंड में पाया जाता है। यह दरानगिरी, चेरापूँजी, मेवलांग तथा लैंग्रिन (मेघालय); माकुम, जयपुर तथा ऊपरी असम में नज़ीरा नामचिक-नाम्फुक (अरुणाचल प्रदेश) तथा कालाकोट (जम्मू-कश्मीर) में निष्कर्षित किया जाता है।

 

 

पेट्रोलियम

कच्चा पेट्रोलियम द्रव और गैसीय अवस्था के हाइड्रोकार्बन से युक्त होता है तथा इसकी रासायनिक संरचना, रंगों और विशिष्ट घनत्व में भिन्नता पाई जाती है, इसके अनेक सह उत्पाद पेट्रो रसायन उद्योगों, जैसे – कि उर्वरक, कृत्रिम रबर, कृत्रिम रेशे, दवाइयाँ, वैसलीन, स्नेहकों, मोम, साबुन तथा अन्य सौंदर्य सामग्री।

 

 

अपरिष्कृत पेट्रोलियम टरश्यरी युग की अवसादी शैलों में पाया जाता है। व्यवस्थित ढंग से तेल अन्वेषण और उत्पादन 1956 में तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग की स्थापना के बाद प्रारंभ हुआ

 

असम में डिगबोई, नहारकटिया तथा मोरान महत्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र हैं। गुजरात में प्रमुख तेल क्षेत्र अंकलेश्वर, कालोल, मेहसाणा, नवागाम, कोसांबा तथा लुनेज हैं। मुंबई हाई, जो मुंबई नगर से 160 कि.मी. दूर अपतटीय क्षेत्र में पड़ता है

 

तेल एवं प्राकृतिक गैस को पूर्वी तट पर कृष्णा-गोदावरी तथा कावेरी के बेसिनों में अन्वेषणात्मक कूपों में पाया गया है।

 

भारत में दो प्रकार के तेल शोधन कारखाने हैं

(क) क्षेत्र आधारित
(ख) बाजार आधारित

 

डिगबोई तेल शोधन कारखाना क्षेत्र आधारित तथा बरौनी बाजार आधारित तेल शोधन कारखाने के उदाहरण हैं।

 

 

 

 प्राकृतिक गैस

 

प्राकृतिक गैस पेट्रोलियम के भंडार के साथ पाई जाती है और जब कच्चे तेल को सतह पर लाया जाता है तो यह मुक्त हो जाती है।

इसका उपयोग औद्योगिक ईंधन के रूप में किया जा सकता है। इसका उपयोग बिजली क्षेत्र में ईंधन के रूप में बिजली पैदा करने के लिए उद्योगों में हीटिंग के उद्देश्य के लिए, रासायनिक, पेट्रोकैमिकल और उर्वरक उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है

 

भारत के प्रमुख गैस भंडार मुम्बई हाई और अन्य संबद्ध क्षेत्र पश्चिमी तट पर पाए जाते हैं जिनको खंभात बेसिन में पाए जाने वाले क्षेत्र संपूरित करते हैं। पूर्वी तट पर कृष्णा-गोदावरी बेसिन में प्राकृतिक गैस के नए भंडार की खोज की गई है।

 

 

 

अपरंपरागत ऊर्जा स्रोत :

 

 

नाभिकीय ऊर्जा

नाभिकीय ऊर्जा के उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले महत्वपूर्ण खनिज यूरेनियम और थोरियम हैं। यूरेनियम निक्षेप धारवाड़ शैलों में पाए जाते हैं।

यूरेनियम अयस्क राजस्थान के उदयपुर, अलवर, झुंझुनू ज़िलों, मध्य प्रदेश के दुर्ग जिले, महाराष्ट्र के भंडारा जिले तथा हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में भी पाया जाता है।

थोरियम मुख्यतः केरल के तटीय क्षेत्र की पुलिन बीच (beach) की बालू में मोनाजाइट एवं इल्मेनाइट से प्राप्त किया जाता है।

 

परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना 1948 में की गई थी और इस दिशा में प्रगति 1954 में ट्रांबे परमाणु ऊर्जा संस्थान की स्थापना के बाद हुई जिसे बाद में, 1967 में, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के रूप में पुनः नामित किया गया।

 

नाभिकीय ऊर्जा परियोजनाएँ- तारापुर (महाराष्ट्र), कोटा के पास रावतभाटा (राजस्थान), कलपक्कम (तमिलनाडु), नरोरा (उत्तर प्रदेश), कैगा (कर्नाटक) तथा काकरापाड़ा (गुजरात) हैं।

 

 

 

सौर ऊर्जा

फोटोवोल्टाइक सेलों में विपाशित सूर्य की किरणों को ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है जिसे सौर ऊर्जा के नाम से जाना जाता है।

 

सौर ऊर्जा को काम में लाने के लिए जिन दो प्रक्रमों को बहुत ही प्रभावी माना जाता है वे हैं

1) फोटोवोल्टाइक

2) सौर तापीय प्रौद्योगिकी।

 

सौर ऊर्जा कोयला अथवा तेल आधारित संयंत्रों की अपेक्षा 7 प्रतिशत अधिक और नाभिकीय ऊर्जा से 10 प्रतिशत अधिक प्रभावी है। यह सामान्यत: हीटरों, फ़सल शुष्ककों (Crop dryer) कुकर्स (Cookers) आदि

 

 

 

पवन ऊर्जा

प्रवाहित पवन से ऊर्जा को परिवर्तित करने की अभियांत्रिकी बिल्कुल सरल है। पवन की गतिज ऊर्जा को टरबाइन के माध्यम से विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है।

मानसून पवनों को ऊर्जा के स्रोत के रूप में प्रयोग किया गया है। इनके अलावा स्थानीय हवाओं, स्थलीय और जलीय पवनों को भी विद्युत पैदा करने के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। पवन ऊर्जा के लिए राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र तथा कर्नाटक में अनुकूल परिस्थितियाँ विद्यमान हैं।

 

 

 

 ज्वारीय तथा तरंग ऊर्जा

महासागरीय धाराएँ ऊर्जा का अपरिमित भंडार गृह है भारत के पश्चिमी तट पर वृहत ज्वारीय तरंगें उत्पन्न होती हैं। यद्यपि भारत के पास तटों के साथ ज्वारीय ऊर्जा विकसित करने की व्यापक संभावनाएँ हैं, परंतु अभी तक इनका उपयोग नहीं किया गया है।

 

 

 

भूतापीय ऊर्जा

जब पृथ्वी के गर्भ से मैग्मा निकलता है तो अत्यधिक ऊष्मा निर्मुक्त होती है। इस ताप ऊर्जा को सफलतापूर्वक काम में लाया जा सकता है और इसे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है

इस ऊर्जा को अब एक प्रमुख ऊर्जा स्रोत के रूप में माना जा रहा है जिसे एक वैकल्पिक स्रोत के रूप में विकसित किया जा सकता है। भारत में, भूतापीय ऊर्जा संयंत्र हिमाचल प्रदेश के मनीकरण में अधिकृत किया जा चुका है।

भूमिगत ताप के उपयोग का पहला सफल प्रयास (1890 में) बोयजे शहर इडाहो (यू.एस.ए.) में हुआ था जहाँ आसपास के भवनों को ताप देने के लिए गरम जल के पाइपों का जाल तंत्र (नेटवर्क) बनाया गया था। यह संयंत्र अभी भी काम कर रहा है।

 

 

 

 जैव ऊर्जा

जैव ऊर्जा उस ऊर्जा को कहा जाता है जिसे जैविक उत्पादों से प्राप्त किया जाता है जिसमें कृषि अवशेष, नगरपालिका औद्योगिक तथा अन्य अपशिष्ट शामिल होते हैं। जैव ऊर्जा, ऊर्जा परिवर्तन का एक संभावित स्रोत है।

 

इसे विद्युत ऊर्जा, ताप ऊर्जा अथवा खाना पकाने के लिए गैस में परिवर्तित किया जा सकता है। यह विकासशील देशों के ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक जीवन को भी बेहतर बनाएगा तथा पर्यावरण प्रदूषण घटाएगा, उनकी आत्मनिर्भरता बढ़ाएगा तथा जलाऊ लकड़ी पर दबाव कम करेगा।

 

 

 

 

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