जनसंख्या वितरण :-
जनसंख्या के वितरण का अर्थ है कि किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या कैसे वितरित की जाती है । भारत में , जनसंख्या वितरण का स्थानिक पैटर्न बहुत आसमान है । चूंकि कुछ क्षेत्र बहुत कम आबादी वाले हैं , जबकि कुछ अन्य हैं ।
इन राज्यों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है :-
उच्च जनसंख्या वाले :- राज्य उत्तर प्रदेश ( उच्चतम जनसंख्या ) , महाराष्ट्र , बिहार , पश्चिम बंगाल , मध्य प्रदेश , तमिलनाडु , राजस्थान , कर्नाटक , गुजरात और आंध्र प्रदेश । इन राज्यों में एक साथ 76 % जनसंख्या रहती है ।
मध्यम जनसंख्या वाले :- राज्य असम , हरियाणा , झारखंड , छत्तीसगढ़ , केरल , पंजाब , गोवा ।
कम जनसंख्या वाले राज्य और जनजातीय क्षेत्र :- जैसे जम्मू और कश्मीर , उत्तराखंड , हिमाचल प्रदेश , सभी पूर्वोत्तर राज्य ( असम को छोड़कर ) और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली को छोड़कर ।
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारक :-
भौगोलिक कारक :-
- जल की उपलब्धता
- भू आकृति
- जलवायु
- मृदा
आर्थिक कारक :-
- खनिज
- नगरीकरण
- औद्योगिकरण
सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक :-
- धार्मिक महत्व
- अशांति
- खराब सामाजिक वातावरण
राजनीतिक कारण :-
- अस्थिर राजनीतिक स्थिति
- खराब कानूनी व्यवस्था
भारत में जनसंख्या वितरण घनत्व को प्रभावित करने वाले भौतिक कारक :-
उच्चावच :- जनसंख्या के बसाव के लिए मैदान अधिक उपयुक्त होते हैं । पर्वतीय व पठारी या घने वर्षा भागों में जनसंख्या कम केंद्रित होती है । उदाहरण के लिए भारत में उत्तरी मैदान घना बसा है जबकि उत्तर – पर्वतीय भाग तथा उत्तर – पूर्वी वर्षा वाले भागों में जनसंख्या घनत्व कम है ।
जलवायु :- जलवायु जनसंख्या वितरण को प्रभावित करती है । थार मरूस्थल में गर्म जलवायु और पठारी भाग व हिमालय के ठंडे क्षेत्र सम – जलवायु वाले क्षेत्रों की अपेक्षा कम घने बसे है ।
मृदा :- मृदा कृषि को प्रभावित करती है । उपजाऊ मृदा वाले क्षेत्रों में कृषि अच्छी होने के कारण इसलिए ये भाग अधिक घने बसे है । उदाहरण – उत्तर प्रदेश , हरियाणा , पंजाब आदि ।
जल की उपलब्धता :- जल की उपलब्धता बसावट को आकर्षित करती है । वे अधिक घने बसे होते हैं जैसे : – सतलुज – गंगा का मैदान , तटीय मैदान आदि ।
जनसंख्या घनत्व :- प्रति इकाई क्षेत्रफल पर निवास करने वाले लोगों की संख्या को जनसंख्या घनत्व कहते हैं ।
भारत में जनसंख्या घनत्व :-
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में जनसंख्या की घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है ।
राज्य स्तर पर जनसंख्या के घनत्व में बहुत विषमताएं पाई जाती है । अरूणाचल प्रदेश में 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है । जबकि बिहार में यह घनत्व 1106 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है ।
केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली का घनत्व सबसे अधिक 11320 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हैं जबकि अंडमान निकोबार द्वीप समूह में केवल 46 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है ।
प्रायद्वीपीय भारत में केवल केरल राज्य का घनत्व सबसे अधिक 860 है इसके बाद तमिलनाडु 555 का दूसरा स्थान है ।
पर्यावरण की विपरीत दशाओं के कारण उत्तरी तथा उत्तरी – पूर्वी भारतीय राज्यों की जनसंख्या घनत्व बहुत कम है । जबकि मध्य प्रदेश भारत तथा प्रायद्वीपीय भारत में मध्य दर्जे का जनसंख्या घनत्व पाया जाता है ।
जनसंख्या वृद्धि :- दो विभिन्न समय बिन्दुओं के मध्य जनसंख्या के होने वाले शुद्ध परिवर्तन को जनसंख्या वृद्धि कहते हैं ।
जनसंख्या की वास्तविक वृद्धि की गणना :-
जनसंख्या की वास्तविक वृद्धि = ( जन्म – मृत्यु ) + ( अप्रवास – उत्प्रवास )
जनसंख्या वृद्धिदर :-
किसी विशेष क्षेत्र में विशेष समयावधि में होने वाले जनसंख्या परिवर्तन को जब प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है उसे जनसंख्या वृद्धिदर कहते हैं ।
भारतीय जनसंख्या वृद्धि की चार प्रवृत्तियाँ :-
प्रावस्था – 1 (1901- 1021)
स्थिर वृद्धि की अवधि ( 1921 से पहले ) :- 1901 से 1921 की अवधि को भारत की जनसंख्या की वृद्धि की स्थिर अवस्था कहा जाता है , क्योंकि इस अवधि में वृद्धि दर अत्यंत निम्न थी यहां तक कि 1911 – 1921 के दौरान ऋणात्मक वृद्धि दर रही है । जन्म दर मृत्यु दर दोनों ऊँचे थे जिससे वृद्धि दर निम्न रही ।
प्रावस्था – 2 (1921-51)
निरंतर वृद्धि की अवधि ( 1921 – 1951 ) :- इस अवधि में जनसंख्या वृद्धि निरंतर बढ़ती गई क्योंकि स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि के कारण मृत्यु दर में कमी आई इसीलिए इस अवधि को मृत्यु प्रेरितवृद्धि कहा जाता है ।
प्रावस्था – 3 ( 1951-81 )
तीव्र वृद्धि की अवधि ( 1951 – 1981 ) :- इस अवधि को भारत में जनसंख्या विस्फोट की अवधि के नाम से भी जाना जाता है । विकास कार्यों में तेजी , बेहतर चिकित्सा सुविधाएँ , बेहतर जीवन स्तर के कारण मृत्यु दर में तीव्र हास और जन्म दर में उच्च वृद्धि देखी गई ।
प्रावस्था 4 ( 1981 से आज तक )
घटती वृद्धि की अवधि ( 1981 से आज तक ) :- 1981 से वर्तमान तक वैसे तो देश की जनसंख्या की वृद्धि दर ऊँची बनी रही है परन्तु इसमें धीरे – धीरे मंद गति से घटने की प्रवृत्ति पाई जाती है । विवाह की औसत आयु में वृद्धि , स्त्रियों की शिक्षा में सुधार व जनसंख्या नियन्त्रण के कारगर उपायों ने इस वृद्धि को घटाने में मदद की है ।
जनसंख्या संघटन :-
जनसंख्या संघटन जनसंख्या संगठन का अभिप्राय एक देश की जनसंख्या का उसकी विशेषताओं जैसे कि आयु लिंग व्यवसाय आदि के आधार पर वर्णन करना जनसंख्या संघटन कहलाता है ।
भाषाई वर्गीकरण :-
भारत में बोली जाने वाली भाषाओं को मुख्य रूप से 4 परिवारों में बांटा जाता है :-
- 1 ) भारतीय – यूरोपीय ( आय )
- 2 ) द्रविड़
- 3 ) आस्ट्रिक
- 4 ) चीनी – तिब्बत
भाषा परिवारों की विशेषताएं :-
भारतीय यूरोपीय ( आर्य ) :-
- 1 . कुल जनसंख्या का लगभग तीन चौथाई भाग आर्य भाषाएं बोलता है ।
- 2 . इस परिवार की भाषाओं का संकेद्रण पूरे उत्तरी भारत में हैं । इसमें हिन्दी मुख्य है ।
द्रविड़ भाषा परिवार :-
- 1 . कुल जनसंख्या का लगभग पांचवा भाग द्रविड़ भाषाएं बोलता है ।
- 2 . इस परिवार की भाषाएं मुख्यतः प्रायद्वीपीय पठार तथा छोटा पठार के क्षेत्रों में बोली जाती है । इस परिवार में तेलुगु , तमिल , कन्नड़ तथा मलयालम मुख्य भाषाएं हैं ।
आर्थिक स्तर की दृष्टि से भारत की जनसंख्या को तीन वर्गों में बांट सकते है :-
मुख्य श्रमिक :- वह व्यक्ति जो एक वर्ष में कम से कम 183 दिन कामा करता है , मुख्य श्रमिक कहलाता है ।
सीमांत श्रमिक :- वह व्यक्ति जो एक वर्ष में 183 दिनों से कम दिन काम करता है , सीमांत श्रमिक कहलाता है ।
अश्रमिक :- जो व्यक्ति बेरोजगार होता है उसे अश्रमिक कहते हैं ।
देश की जनसंख्या में किशोरों का क्या योगदान :-
1 ) 10 – 19 वर्ष की आयु के लोगों को किशोर कहते है ।
2 ) किशोर जनसंख्या का मूल्य अत्यधिक है , भविष्य में उनसे आशाएँ होती है । इन पर देश का विकास व उन्नति निर्भर होती है । किशोर वर्ग जल्दी सुभेद्य हो जाता है , उनका मार्गदर्शन करना आवश्यक होता है ।
किशोरों के मार्गदर्शन के लिए सरकार के द्वारा उठाए गए कदम :-
- राष्ट्रीय युवा नीति 2003 के अंतर्गत युवाओं के चौमुखी विकास पर बल दिया ।
- देशभक्ति व उत्तरदायी नागरिकों के गुणों का विकास करना ।
- युवाओं की प्रभावी सहभागिता और सुयोग्य नेतृत्व के संदर्भ में उनको सशक्त करना ।
- महिलाओं और लड़कियों के सशक्तिकरण पर बल दिया है ।
राष्ट्रीय युवा नीति :-
भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय युवा नीति 2003 में अपनाई गई ।
राष्ट्रीय युवा नीति मुख्य उद्देश्य :-
- युवाओं व किशोरों के चहुमुखी विकास पर बल देना ।
- उनके गुणों का बेहतर मार्गदर्शन देना , ताकि देश के रचनात्मक विकास में वे अपना योगदान दे सकें ।
- उनमें देशभक्ति व उत्तरदायी नागरिकता के गुणों को बढ़ाना ।
आर्थिक गतिविधियों में स्त्रियों की कम प्रतिभागिता के कारण :-
- संयुक्त परिवार
- निम्न सामाजिक व शैक्षिक स्तर ।
- बारंबार शिशु जन्म
- रोजगार के सीमित अवसर
समाज के समक्ष किशोरों की प्रमुख चुनौतियाँ :-
निरक्षरता :- अधिकतर किशोर वर्ग , विशेषतम स्त्रियां निरक्षर हैं । जिसके कारण वह अपने व परिवार के विकास में योगदान नहीं दे पाती ।
औषध दुरूपयोग :- अधिकतर किशोर शिक्षा पूरी किए बिना ही विद्यालय छोड़े देते हैं और औषध या मदिरापान के कारण रास्ता भटक जाते है । ऐसे लोग समाज के लिए अभिशाप बन जाते हैं और सामाजिक परिवेश को बिगाड़ते हैं ।
विवाह की निम्न आयु :- विवाह की निम्न आयु उच्च मातृ मृत्यु दर का कारण बनती है । जो आगे जाकर लिंगानुपात को प्रभावित करती है।
समुचित मार्गदर्शन का अभाव :- किशारों को समुचित मार्गदर्शन देने के लिए किसी ठोस कदम का अभाव है । जिस कारण वे मार्ग से भटक जाते हैं ।
अन्य चुनौतियां :- HIV , AIDS किशोरी माताओं से उच्च मातृ मृत्यु दर आदि ।
भारत के आयु पिरामिड की विशेषताएँ :-
- उच्च आयु – वर्ग में पिरामिड संकरा है ।
- 22 % जनसंख्या , 50 वर्ष की आयु तक पहुँच पाती है ।
- 60 वर्ष की आयु के लोगों की जनसंख्या 12 % है ।
- 40 – 49 वर्ष आयु वर्ग में 10 % जनसंख्या पाई जाती है ।
भारत में लिंग अनुपात घटने के चार कारण :-
- लड़कियों की अपेक्षा लड़कों के जन्म को प्राथमिकता
- कन्या भ्रूण हत्या
- कुपोषण के कारण बाल्यावस्था में ही कन्या शिशुओं की मृत्यु हो जाती है ।
- समाज में स्त्रियों को कम सम्मान प्राप्त होना । उनके स्वास्थ्य व पोषण पर ध्यान न दिया जाना ।