अध्याय : 2 भारतीय अर्थव्यवस्था 1950-1990 / Indian Economy 1950-1990

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पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य कृषि सेवा औद्योगिक क्षेत्र आधुनिकीकरण आत्मनिर्भर समानता कृषि भू-सुधार हरित क्रांति उधोग और व्यापार सार्वजनिक और निजी क्षेत्र

 

भारतीय अर्थव्यवस्था 1950-1990

 

परिचय :- इस अध्याय में हम यह जानेंगे कि भारतीय अर्थव्यवस्था 1950 से लेकर 1990 तक अलग – अलग क्षेत्रको , कृषि और उद्योग में अपनाई गई नीति से कैसे विकास हुआ उस नीति को जानेंगे|

● 1950 से लेकर 1990 तक इसकी गति क्या रहीं हैं,कौन कौन से सुधार किये गए हैं |

● भारत के पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य को जानेंगे|

● औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1948 तथा भारतीय संविधान के नीति निदेशक सिद्धांतों का भी यह दृष्टीकोण रहा है कि सरकार अर्थव्यवस्था के लिए योजना बनायेगी |

● जिसमें निजी क्षेत्रक को भी योजना प्रयास का एक अंग बनने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा |

● वर्ष 1950 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में योजना आयोग की स्थापना की गई|

 

 

पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य :-

पंचवर्षीय योजना के कुछ लक्ष्य थे,जो निम्न है:-

◆ संवृद्धि :- संवृद्धि से कहने का तात्पर्य यह कि देश में वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करना |

● इसका अभिप्राय उत्पादक पूँजी के अधिक भंडार या बैंकिंग ,परिवहन आदि सहायक सेवाओं का विस्तार की दक्षता में वृद्धि से है |

● अर्थशास्त्र की भाषा में बोला जाये तो अर्थिक संवृद्धि का प्रमाणिक सूचक सकल घरेलू उत्पाद में निरंतर वृद्धि है |

● यदि भारत के लोगों को आराम और विविधतापूर्ण जीवन यापन करना है (प्रथम पंचवर्षीय योजना के अनुसार ) तो वस्तुओं और सेवाओं का अधिक उत्पादन करना आवश्यक है |

 

★ जी. डी. पी :- जी. डी. पी का मतलब यह है की एक वर्ष की अवधि में देश में उत्पादित हुए सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य को जी. डी. पी कहते हैं |

 

 

★ देश का सकल घरेलू उत्पाद देश की अर्थव्यवस्था के अलग – अलग क्षेत्रको से प्राप्त होता है :-
● कृषि क्षेत्रक
●औद्योगिक क्षेत्रक
● सेवा क्षेत्रक

●इन क्षेत्रको का योगदान अर्थव्यवस्था को बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है |

● इनकी योगदान से ही अर्थव्यवस्था का ढाँचा तैयार होता है |

● कुछ देशों में जी. डी. पी की संवृद्धि में कृषि का योगदान अधिक होता है |

● कुछ देशों में सेवा क्षेत्रक की वृद्धि इसमें अधिक योगदान देती है |

 

★ आधुनिकीकरण :- आधुनिकीकरण से यह अभिप्राय है कि वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन बढ़ाने के लिए उत्पादकों को नई प्रौद्योगिकी अपनानी पडती है | नई प्रौद्योगिकी को अपनाना ही आधुनिकीकरण कहते हैं |

 

● उदाहरण से समझिए

1. किसान पुराने बीजों के स्थान पर नई किस्म के बीजों का प्रयोग कर खेतों की पैदावार बढ़ा सकता है |

2. एक फैक्ट्री नई मशीनों का प्रयोग कर उत्पादन बढ़ा सकती है |

 

★ आधुनिकीकरण :-

● आधुनिकीकरण केवल नवीन प्रौद्योगिकी के प्रयोग तक सीमित नहीं है |

● आधुनिकीकरण का मुख्य उद्देश्य सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना है |

● जिस तरह से यह मान लेना कि महिलाओं का अधिकार भी पुरूषों के समान होना चाहिए |

● प्राचीन काल में और अभी भी कई देशों में महिलाओं की कार्यक्षेत्र घर के कामों तक ही सीमित मान लिया गया है|

● आधुनिक समाज में नारी की प्रतिभाओं को घर से बाहर – बैंकों, विद्यालय, कारखानों आदि स्थानों पर प्रयोग किया जाता है और यैसा करने वाला समाज ही ज्यादा विकास कर पाता है|

 

 

★ आत्मनिर्भरता :- आत्मनिर्भरता से कहने का तात्पर्य यह है कि कोई देश,राज्य और समाज की वह आर्थिक नीति है जो वस्तु और सेवाओं के लिये दूसरे देशों पर निर्भर ना हो |

● आत्मनिर्भरता का मतलब ही है अपने आप में पूर्ण होना |

 

● आत्मनिर्भरता निम्न प्रकार से महत्वपूर्ण है :-

●आत्मनिर्भरता हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है |

● आत्मनिर्भर व्यक्ति अपने समय का सदुपयोग अच्छे से कर पाने में सक्षम होता है |

● आत्मनिर्भरता आत्मविश्वास को बढ़ाता है जिसके कारण सफलता का रास्ता आसान हो जाता है |

● हमारी प्रथम सात पंचवर्षीय योजनाओं में आत्मनिर्भरता को महत्व दिया गया है |

 

 

★ समानता:- संवृद्धि , आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता से ही जनसामान्य के जीवन में सुधार नहीं आ सकता |

● संवृद्धि ,आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता के साथ -साथ समानता का होना भी बहुत जरूरी है ताकि सभी लोगों को समान्य लाभ प्राप्त हो |

● किसी देश में उच्च संवृद्धि दर और विकसित अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग होने के बाद भी बहुत लोग गरीब हो सकते हैं|
● हमें यह ध्यान रखना आवश्यक है कि आर्थिक समृद्धि के लाभ देश के निर्धन लोगों को भी प्राप्त हो ,केवल धनी लोगों तक ही सीमित न रहे |

 

 

★ कृषि :- पहले अध्याय में हमलोग पढ़ चुके हैं कि औपनिवेशिक शासन काल में कृषि क्षेत्रक में न तो कोई संवृद्धि हुई और न ही समता रह पाई |

● स्वतंत्र भारत के नीति निर्माताओं को इन मुद्दों पर बात करना पड़ा |

● उन्होंने भू – सुधारों तथा अच्छी पैदावार वाली किस्म के बीजों के प्रयोग द्वारा भारतीय कृषि में एक क्रांति का संचार किया |

 

 

★ भू – सुधार :- भू – सुधार का मतलब है कि मानव और भूमि के बीच के संबंध का रूप रेखा और संस्थागत फिर से है , जिसका अर्थ भूमि के पुनर्वितरण से है |

■ भूमि सुधार के प्रकार निम्न है :-
● ज़मींदारी उन्मूलन
● काश्तकारी कानूनों का सुधार
● भूमि सीमा

● भूमि सुधार का उद्देश्य यह है कि प्राकृतिक संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण हो |

●भू – व्यवस्था में होने वाली सभी प्रकार के शोषण व सामाजिक अन्याय को समाप्त करना |

● स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में भूमि पे ज़मींदार – जागीरदार आदि का वर्चस्व था |

● ये खेतों में कोई सुधार किये बिना ही मात्र लगान का वसूली करते थे |

● भारतीय कृषि क्षेत्रक की निम्न उत्पादकता के कारण भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका ( यू.एस.ए.) से अनाज का आयात करना पड़ा |

● कृषि में समानता लाने के लिए भू सुधारों की आवश्यकता पड़ी |

● जिसका मुख्य ध्येय जोतो के स्वामित्व में परिवर्तन करना था |

 

 

★ सीमा निर्धारण :- सीमा निर्धारण का अर्थ है किसी व्यक्ति की कृषि भूमि के स्वामित्व की अधिकतम सीमा का निर्धारण करना |

● सीमा निर्धारण का उद्देश्य कुछ लोगों में भू – स्वामित्व के संकेंद्रण को कम करना था |

● बिचौलियों के उन्मूलन के वज़ह से लोग ज़मींदारों के शोषण से मुक्त हो गये |

● केरल और पश्चिम बंगाल की सरकारे वास्तविक किसान की भूमि देने की नीति के प्रति प्रतिबद्ध था |

● इसी कारण इन प्रांतों में भू – सुधार कार्यक्रम को विशेष सफलता मिली |

● आज तक जोतो में भारी असमानता बनी हुई है |

 

 

★हरित क्रांति :- हरित क्रांति से कहने का तात्पर्य है कि यह भारत की नई कृषि नीति थी ,जो सन् 1967- 68 में लागू हुआ ,जिसमें अच्छे बीजों को बोया गया और कृषि करने के लिए नई तकनीक का प्रयोग किया गया |

● जिससे फसल उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई |

● इसे तीसरी कृषि क्रांति के रूप मे भी जाना जाता है|

● स्वतंत्रता के समय देश की 75 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आश्रित थी |

● इस क्षेत्रक में उत्पादकता बहुत ही कम थी |

 

 

★ उत्पादकता कम होने का कारण :-

● पुरानी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल

● आधारिक संरचना का आभाव

● भारत की कृषि मानसून पर निर्भर है |

● औपनिवेशिक काल का कृषि गतिरोध हरित क्रांति से स्थायी रूप से समाप्त हो गया |

● हरित क्रांति के पहले चरण में ( लगभग 1960 के दशक के मध्य से 1970 के दशक के मध्य तक ) HYV बीजों का प्रयोग पंजाब, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु जैसे अधिक समृद्ध राज्यों तक ही सीमित रहा |

● इसके अतिरिक्त ,HYV बीजों का लाभ केवल गेहूं पैदा करने वाले क्षेत्रों को ही मिल पाया |

● हरित क्रांति के दूसरा चरण (1970 के दशक के मध्य से 1980 के दशक के मध्य तक ) में HYV बीजों की प्रौद्योगिकी का विस्तार कई राज्यों तक पहुँचा और कई फसलों को लाभ हुआ |

● हरित क्रांति प्रौद्योगिकी के प्रसार से भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई |

● भारत अब खाद्य के लिए अमेरिका या किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं था |

 

 

★ विपणित अधिशेष :- विपणित अधिशेष से अभिप्राय यह है कि किसानो द्वारा उत्पादन का बाजार में बेचा गया अंश विपणित अधिशेष कहलाता है |

● हरित क्रांति के कारण सरकार पर्याप्त खाद्यान्न प्राप्त कर सुरक्षित स्टॉक बना सकीं जिसे खाद्यान्न की कमी के समय प्रयोग किया जा सकता है |

● हरित क्रांति से देश को बहुत लाभ हुआ लेकिन जोखिम वाली बात यह थी कि इससे छोटे और बड़े किसानों के बीच असमानता बढ़ने की संभवना थी |

● सरकार द्वारा स्थापित अनुसंधान संस्थानों की सेवाओं के कारण छोटे किसानो के जोखिम कम हो गए |

● जो कीटनाशकों के आक्रमण से उनकी फसले की बर्बादी का कारण थे |

 

 

★ सहायिकी पर बहस :-

● कृषि क्षेत्रक को दिया जा रहा है आर्थिक सहायिकी का अर्थिक औचित्य एक बहस का मुद्दा बन गया है |

● इस बात से सभी सहमत हैं कि किसानो द्वारा और सामान्यत: छोटे किसानो द्वारा विशेष रूप से नई HYV प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु सहायिकी दी जानी आवश्यक थी |

● कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि एक बार प्रौद्योगिकी का लाभ मिल जाने तथा उसके व्यापक प्रचलन के बाद सहायिकी धीरे-धीरे समाप्त कर देनी चाहिए |

● क्योंकि उनका उद्देश्य पूरा हो गया है |

 

★ लोगों द्वारा दो तर्क दिए गए है :-

● उर्वरकों पर सहायिकी जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है | इनसे लक्षित समूह को लाभ नहीं होता और सरकारी कोष पर अनावश्यक भारी बोझ पड़ता है |

●. दूसरा तर्क यह है कि कुछ विशेषज्ञों का मत है कि सरकार को कृषि – सहायिकी जारी रखनी चाहिए , क्योंकि भारत में कृषि एक बहुत ही जोखिम भरा व्यवसाय है |

● 1960 के दशक के अंत तक देश में कृषि उत्पादकता की वृद्धि से भारत खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर हो गया |

● इसके बावजूद ,नकारात्मक पहलू यह रहा है कि 1990 तक भी देश की 65 प्रतिशत जनसंख्या कृषि में लगी थी |

● भारत में 1950-90 की अवधि में यद्यपि जी. डी. पी. में कृषि के अंशदान में तो भारी कमी आई है , पर कृषि पर निर्भर जनसंख्या के अनुपात में नहीं |

● जो 1950 में 67.50 प्रतिशत थी और 1990 तक घटकर 64.90 प्रतिशत ही हो पाई |

 

 

★ उद्योग और व्यापार :-

★ उद्योग:- उद्योग से यह अभिप्राय है कि किसी क्षेत्र में भारी मात्रा में सामान का उत्पादन और सेवा प्रदान करने के मानवीय कर्म को उद्योग कहते हैं |

●उद्योग के कारण अच्छे किस्म वाले उत्पाद सस्ते दामों में मिलते हैं |

● उद्योगों के कारण लोगों के रहन – सहन के स्तर में सुधार होता है और जीवन आराम और सुविधाजनक हो जाता है |

 

 

★ उद्योग के तीन प्रकार है :-

● प्राथमिक
● द्वितीयक
● तृतीयक

 

★ व्यापार :- व्यपार का अर्थ है एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सामानों का स्वामित्व देना ही व्यापार कहलाता है | मतलब मुद्रा के बदले सामान देना |

● व्यापार दो प्रकार के होते हैं:-
● अंतरराष्ट्रीय व्यापार
● विदेशी व्यापार

 

 

उद्योग और व्यापार :-

● अर्थशास्त्रियों का कहना है कि निर्धन राष्ट्र तभी प्रगति कर पाते हैं जब उनमे अच्छे औद्योगिक क्षेत्रक होते हैं |

● उद्योग रोजगार उपलब्ध कराते हैं |

● यह कृषि में रोजगार की अपेक्षा अधिक स्थायी होते हैं |

● इनसे आधुनिकीकरण और समग्र समृद्धि को बढावा मिलता है |

● इन्हीं कारणों से हमारी पंचवर्षीय योजनाओं में औद्योगिक विकास पर अत्यधिक बल दिया गया था |

● जमशेदपुर और कोलकाता में लोहा व इस्पात की सुप्रबंधित फर्मे थी |

 

 

★ भारतीय औद्योगिक विकास में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक :-

● स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के उद्योगपतियों के पास भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास हेतु उद्योगों में निवेश करने के लिए अपेक्षित पूँजी नहीं थी |

● यह कारण से सरकार को औद्योगिक क्षेत्र को प्रोत्साहन देने में व्यापक भूमिका निभानी पडी |

भारतीय अर्थव्यवस्था को समाजवाद के पथ पर अग्रसर करने के लिए द्वितीय पंचवर्षीय योजना में यह निर्णय लिया गया कि सरकार अर्थव्यवस्था में बड़े तथा भारी उद्योगों का नियंत्रण करेगी |

 

 

औद्योगिक नीति प्रस्ताव , 1956 :

● भारी उद्योगों पर नियंत्रण रखने के सरकार के लक्ष्य के अनुसार औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1956 को अंगीकार किया गया |

● इस प्रस्ताव को द्वितीय पंचवर्षीय योजना का आधार बनाया गया |

 

 

★ उद्योगों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया :-

● प्रथम वर्ग में वे उद्योग शामिल थे, जिन पर सरकार का अनन्य स्वामित्व था |

● दूसरे वर्ग में वे उद्योग शामिल थे, जिनके लिए निजी क्षेत्रक , सार्वजनिक क्षेत्रक के साथ मिलकर प्रयास कर सकते थे , परंतु जिनमे नई इकाइयों को शुरू करने की एकमात्र जिम्मेदारी राज्य की होती|

● तीसरे वर्ग में वे उद्योग शामिल थे, जो निजी क्षेत्रक के अंतर्गत आते थे|

● निजी क्षेत्रक में आने वाले उद्योगों का भी एक वर्ग था इस क्षेत्रक को लाइसेंस पध्दति के माध्यम से राज्य के नियंत्रण में रखा गया |

● वर्तमान उद्योग को भी उत्पादन बढ़ाने या विविध प्रकार के उत्पादन करने के लिए लाइसेंस प्राप्त करना होता था |

 

 

★ लघु उद्योग:-

● 1955 में ग्राम तथा लघु उद्योग समिति ने विचार किया कि ग्राम विकास को प्रोत्साहित करने के लिए लघु उद्योगों का प्रयोग किया जाए |

● जिसे कर्वे समिति भी कहा जाता है |

● लघु उद्योग की परिभाषा हम इस प्रकार देते हैं कि किसी इकाई की परिसंपत्तियों के लिए दिये जाने वाले अधिकतम निवेश के संदर्भ में दी जाती है |

● इसकी सीमा समय के साथ – साथ बदलती रहती है |

● 1950 में लघु औद्योगिक इकाई उसे कहा जाता था , जो पांच लाख रु. का अधिकतम निवेश करती थी |

● आज के समय एक करोड़ रु. का अधिकतम निवेश किया जा सकता है |

● लघु उद्योग को अन्य रियायतें भी दी गई थी जैसे, कम उत्पाद शुल्क तथा कम ब्याज दरों पर बैंक – उधार |

 

 

★ व्यापार नीति ; आयात प्रतिस्थापन:-

★ व्यापार नीति:- व्यापार नीति से अभिप्राय है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार से संबंधित निर्यात एवं आयात दोनों को सम्मिलित करने वाले नीति व्यापार नीति कहलाती है |

● भारत सरकार का व्यापार नीति यह है कि वर्ष 2030 तक भारत के समग्र निर्यात 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाना है |

● जिसमें वस्तु और सेवा क्षेत्रों का बराबर योगदान होगा |

 

 

 

★ आयात प्रतिस्थापन :- आयात प्रतिस्थापन का मतलब है कि आयात प्रतिस्थापन औद्योगिकीकरण एक अर्थिक नीति और व्यापार है जो घरेलू उत्पादन के साथ विदेशी आयात को बदलने की वकालत करती हैं |

● भारत द्वारा अपनाई गई औद्योगिक नीति व्यापार नीति से घनिष्ठ रूप से संबद्ध थी |

प्रथम सात पंचवर्षीय योजनाओं में व्यापार की विशेषता अंतर्मुखी व्यापार नीति थी |

● तकनीक रूप से इस नीति को आयात प्रतिस्थापन कहा जाता है|

● इस नीति का उद्देश्य आयात के बदले घरेलू उत्पादन द्वारा पूर्ति करना है |

 

 

उदाहरण:-

● विदेश मे निर्मित वाहनों का आयात करने के स्थान पर उन्हें भारत में ही निर्मित करने के लिए उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाय |

● इस नीति के अनुसार सरकार ने विदेशी प्रतिस्पर्धा से घरेलू उद्योगों की रक्षा की |

 

 

★ आयात संरक्षण के दो प्रकार थे :-

1. प्रशुल्क
2. कोटा

● प्रशुल्क:- प्रशुल्क आयातित वस्तुओं पर लगाया गया कर है, यह लगने पर आयातित वस्तुएँ बहुत महँगी हो जाती है |

● कोटा:- कोटे में वस्तुओं की मात्रा निर्दिष्ट की होती हैं ; जिन्हें आयात किया जा सकता है |

● 1980 के दशक के मध्य तक निर्यात संवर्धन पर कोई विचार नहीं किया गया था |

 

 

★ औद्योगिक विकास पर नीतियों का प्रभाव :-

● औद्योगिक क्षेत्रक द्वारा प्रदत्त जी. डी. पी. का अनुपात 1950 – 51 में 13 प्रतिशत से बढ़कर 1990 – 91 में 24.6 प्रतिशत हो गया |

● जी. डी. पी. से उद्योगों में हिस्सेदारी में बढ़ोतरी विकास का एक महत्वपूर्ण सूचक है |

● विदेशी प्रतिस्पर्धा के प्रति संरक्षण से उन इलेक्ट्रॉनिकी व ऑटोमोबाइल क्षेत्रको में देशी उद्योगों का विकास हुआ ,जिनका विकास अन्यथा संभव नहीं था |

●1990 के दशक के अंत तक भी प्रतिस्पर्धा न होने के कारण व्यक्ति को टेलीफोन कनेक्शन लेने में लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी|

● 2001 में ब्रेड विनिर्माण करने वाली फर्म को निजी क्षेत्रक को बेच दी गई|

● किसी उद्योग को शुरू करने के लिए लाइसेंस की जरूरत होती है|

● बड़े उद्योगपति नई फर्म शुरू करने के लिए नहीं ,बल्कि नए प्रतिस्पर्धियों को रोकने के लिए लाइसेंस प्राप्त कर लेते थे|

● परमिट लाइसेंस राज के अत्यधिक नियमन के कारण कुछ फर्म कार्यकुशल नहीं बन पाई|

● आयातों पर प्रतिबंधों के कारण भारतीय उपभोक्ताओं को उन वस्तुओं को खरीदना पड़ता था, जिनका उत्पादन भारतीय उत्पादक करते थे|

● कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्रक का प्रयोजन लाभ कमाना नहीं है, बल्कि राष्ट्र के कल्याण को बढ़ावा देना है |

● ये सभी समस्या के कारण सरकार ने 1991 में नई आर्थिक नीति लागू की |

 

 

★ निष्कर्ष :-

● हमारे उद्योग स्वतंत्रता प्राप्ति के समय की स्थिति की तुलना में विविधतापूर्ण हो गये |

● हरित क्रांति के परिणामस्वरुप भारत खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बन गया |

● आत्मनिर्भरता के नाम पर भारतीय उत्पादकों का संरक्षण विदेशी प्रतिस्पर्धा से किया गया और इससे उन्हें , उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता में सुधार करने की प्रेरणा नहीं मिली |

 

 

 

 

 

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