अध्याय 11 : विद्रोही और राज / Rebels and the Raj

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विद्रोही और राज 1757 प्लासी युद्ध से 1857 विद्रोह राजनीतिक कारण सामाजिक और धार्मिक कारण आर्थिक कारण सैन्य कारण तत्कालीन कारण नवाबों की छिनती सत्ता ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष सहायक संधि भू राजस्व नीतियाँ ईसाई मिशनरी भारतीय सैनिक भारतीय सैनिक बहादुरशाह जफर बाबू कुँवर सिंह नाना साहब तात्या टोपे महारानी लक्ष्मीबाई बेगम हजरत महल 1857 के विद्रोह के केंद्र और प्रमुख विद्रोही नेता विद्रोह के असफलता के कारण

 

 

 

★ ब्रिटिश प्रभुसत्ता :- 1848 से 1856 ई. में भारत में अंग्रेजों की प्रभुसत्ता स्थापित हो गई।

● 1757 में प्लासी का युद्ध हुआ।

● 1857 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह।

 

 

★ 1857 का विद्रोह :-

● इस विद्रोह का आरम्भ 10 मई, 1857 को मेरठ के 34वीं रेजीमेंट सिपाहियों के द्वारा हुआ। दूसरे दिन ये सिपाही दिल्ली पहुँचे। जहाँ दिल्ली के सिपाही भी इनसे मिल गए।

● दिल्ली पर उनका अधिपत्य हो गया। अस्सी साल के बूढ़े मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को भारत का बादशाह घोषित किया गया व विद्रोह का नेतृत्वकर्ता बनया गया।

● सन् 1857 ई. का विद्रोह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सबसे बड़ा विद्रोह था। अनेक दृष्टियों से भारतीय इतिहास में यह एक अभूतपूर्व विद्रोह था।

● ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से देश के विभिन्न प्रदेशों के सैनिक और विभिन्न राज्यों के शासक व सरदार लड़ाई के लिए एकजुट हुए। समाज के कई अन्य समुदाय – जमींदार, किसान, दस्तकार, विद्वान भी इस विद्रोह में शामिल हुए।

 

 

★ 1757 प्लासी युद्ध से 1857 विद्रोह :-

● 1757 के बाद से अंग्रेजों ने भारत के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक इत्यादि सभी क्षेत्रों में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करने की नीति अपनाई और इसके परिणाम स्वरूप भारतीयों में धीरे-धीरे असंतोष पनपता रहा। इसकी परिणति लगभग 100 वर्षों के बाद 1857 के विद्रोह के रूप में हुई।

 

 

★ ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष :-

1. सहायक संधि :- भारतीय राज्यों पर नियंत्रण, ‘व्यपगत की नीति’ द्वारा भारतीय राज्यों को हड़पना प्रमुख राजनीतिक कारण रहे। व्यपगत नीति के तहत डलहौजी ने सातारा, जैतपुर, संभलपुर, बाघाट, उदयपुर, झांसी और नागपुर का अधिग्रहण किया था। इसी व्यवस्था के तहत लॉर्ड डलहौजी ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का राज्य भी हड़प लिया था।

2. भू राजस्व नीतियाँ :- स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी बंदोबस्त और महालवाड़ी बंदोबस्त, निर्यात कर में वृद्धि, आयात कर में कमी, हस्तशिल्प उद्योगों का पतन, धन की निकासी आदि आर्थिक कारकों ने 1857 के विद्रोह की उत्पत्ति में भूमिका निभाई।

3. ईसाई मिशनरी :- इसाई मिशनरियों का भारत में प्रवेश, सती प्रथा का अंत, विधवा पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता, भारतीय सैनिकों को समुद्री यात्रा के लिए विवश करना 1857 के विद्रोह के प्रमुख सामाजिक-धार्मिक कारण थे।

4. भारतीय सैनिक :- भारतीय सैनिकों के साथ असमान व्यवहार, उच्च पदों पर नियुक्त करने से वंचित, यूरोपीय सैनिकों की तुलना में कम वेतन, डाकघर अधिनियम पारित नि:शुल्क डाक सेवा की समाप्ति आदि 1857 के विद्रोह के प्रमुख सैन्य कारण थे।

5. भारतीयों को प्रशासन में :- उच्च पदों से वंचित रखा जाना, भारतीयों के साथ निरंतर असमान बर्ताव करना आदि 1857 के विद्रोह के प्रमुख प्रशासनिक कारण थे।

 

 

 

★ 1857 विद्रोह के कारण :-

1. राजनीतिक कारण :-

● अंग्रेज़ों की विस्तारवादी नीति: 1857 के विद्रोह का प्रमुख राजनैतिक कारण अंग्रेज़ों की विस्तारवादी नीति और व्यपगत का सिद्धांत था।

● व्यपगत का सिद्धांत :- इसमें अंग्रेज़ों द्वारा किसी भी शासक के नि:संतान होने पर उसे अपने उत्तराधिकारी को गोद लेने का अधिकार नहीं था, अतः शासक की मृत्यु होने के बाद या सत्ता का त्याग करने पर उसके शासन पर कब्ज़ा कर लिया जाता था।

 

 2. सामाजिक और धार्मिक कारण :-

● अंग्रेजों की नीति और आचरण ने जनता में यह भय पैदा कर दिया था कि ब्रिटिश शासन उनके धर्म और रीति-रिवाजों को नष्ट कर देने पर अड़ा हुआ है।

● शिक्षा ग्रहण करने के पश्चिमी तरीके हिंदुओं के साथ-साथ मुसलमानों की रूढ़िवादिता को सीधे चुनौती दे रहे थे।

● भारत में तेज़ी से फैल रही पश्चिमी सभ्यता के कारण आबादी का एक बड़ा वर्ग चिंतित था

 

 3. आर्थिक कारण :-

● ग्रामीण क्षेत्रों में किसान और ज़मींदार भूमि पर भारी-भरकम लगान और कर वसूली के सख्त तौर-तरीकों से परेशान थे।

● इंग्लैंड में तैयार हुआ माल भारत में पहुँचने लगा , तो यहाँ के पुराने हस्तशिल्प बर्बाद हो गए।

 

 4. सैन्य कारण :-

● वर्ष 1856 में लॉर्ड कैनिंग ने एक नया कानून जारी किया जिसमें कहा गया कि कोई भी व्यक्ति जो कंपनी की सेना में नौकरी करेगा तो ज़रूरत पड़ने पर उसे समुद्र पार भी जाना पड़ सकता है।

● उनसे अपने घरों से दूर क्षेत्रों में काम करने की अपेक्षा की जाती थी।

● एक भारतीय सिपाही को उसी रैंक के एक यूरोपीय सिपाही से कम वेतन का भुगतान किया जाता था।

 

5. तत्कालीन कारण :-

● एक अफवाह यह फैल गई कि नई ‘एनफिल्ड’ राइफलों के कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है।

● सिपाहियों को इन राइफलों को लोड करने से पहले कारतूस को मुँह से खोलना पड़ता था।

● हिंदू और मुस्लिम दोनों सिपाहियों ने उनका इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया।

 ● मार्च 1857 को नए राइफल के प्रयोग के विरुद्ध मंगल पांडे ने आवाज़ उठाई और अपने वरिष्ठ अधिकारियों पर हमला कर दिया था।

● 8 अप्रैल, 1857 ई. को मंगल पांडे को फाँसी की सज़ा दे दी गई।

● 9 मई, 1857 को मेरठ में 85 भारतीय सैनिकों ने नए राइफल का प्रयोग करने से इनकार कर दिया तथा विरोध करने वाले सैनिकों को दस-दस वर्ष की सज़ा दी गई।

 

 

★ नवाबों की छिनती सत्ता :-

● अठारहवीं सदी के मध्य से ही राजाओं और नवाबों की ताकत छिनने लगी थी। उनकी सत्ता और सम्मान दोनों छिनने लगे थे। बहुत सारे राजदरबारों मेंरेजिडेंट तैनात कर दिए गए थे। स्थानीय शासकों की स्वतंत्रता घटती जा रही थी। उनकी सेनाओं को भंग कर दिया गया था।

● उनके राजस्व वसूली के अधिकार व इलाके एक-एक छीने जा रहे थे।

● झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई चाहती थीं कि उनके पति की मृत्यु के बाद उनके गोद लिए हुए बेटे को राजा मान ले।

● पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहेब ने कंपनी से आग्रह किया कि उसके पिता को जो पेंशन मिलती थी वह उनकी मृत्यु के बाद उन्हें मिलने लगे

● अवध की रियासत अंग्रेजों के कब्ज़े में जाने वाली आखिरी रियासत में से थी। 1801 में अवध पर एक सहायक संधि थोपी गयी और 1856 में अंग्रेजों ने उसे अपने कब्ज़े में ले लिया।

 

 

 ★ ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियाँ :-

● इन नीतियों से राजाओं, रानियों, किसानों, जमीदारों, आदिवासीयों, सिपाहियों, सब पर तरह-तरह से असर पड़ा। जो नीतियाँ और कार्रवाई जनता के हित में नही होती या जो उनकों भावनाओं को ठेस पहुँचाती हैं उनका लोग किस तरह विरोध करते हैं।

 

 

 ★ विलय निति :-

● लॉर्ड डलहौजी ने एक नई नीति अपनाई जिसे विलय की नीति का नाम दिया गया। यह सिद्धांत इस तर्क पर आधारित था की अगर किसी शासक की मृत्यु हो जाती है और उसका कोई पुरुष वारिस नहीं हैं तो उनकी रियासत हड़प कर ली जाएगी यानी कंपनी के भूभाग का हिस्सा बन जाएगी।

● इस सिद्धात के आधार पे एक के बाद एक की रियासतें – सतारा (1848), संबलपुर (1850), उदयपुर (1852), नागपुर ( 1853), और झाँसी (1854

 

 

 ★ नए शासन की स्थापना :-

● ब्रिटिश इलाके मोटे तौर प्रशासकीय इकाइयों में बँटे हुए थे जिन्हें प्रेजीडेंसी कहा जाता था। उस समय तीन प्रेजीडेंसी थीं – बंगाल, मद्रास, और बम्बई |

 

★ क्षेत्रीय विस्तार की आक्रामक नीति :-

● लॉर्ड हेस्टिंग्स ( 1813-1823 तक गवर्नर जनरल) के नेतृत्व में ” सर्वोच्च ” की एक नई नीति शुरू की गयी।

● कंपनी का दावा था की उसकी सत्ता सर्वोच्च है इसलिए वह भारतीय राज्यों से ऊपर है। 1838-42 के बीच अफगानिस्तान के साथ लंबी लड़ाई लड़ी और अप्रत्यक्ष कंपनी शासन स्थापित कर लिया।

● 1843 में सिंध भी कब्जे में आ गया। इसके बाद पंजाब की बारी थी। यहाँ महराजा रणजीत सिंह ने कंपनी की दाल नहीं गलने दी। 1839 में उनकी मृत्यु के बाद इस रियासत के साथ दो लंबी लड़ाइयाँ हुई और आखिरकार 1849 में अंग्रेजो ने पंजाब का भी अधिग्रहण कर लिया।

 

 

 ★ सहायक संधि :-

● जो रियासत इस बंदोबस्त को मन ती थी उसे अपनी स्वतंत्र सेनाएँ रखने का अधिकार नहीं रहता था। उसे कंपनी की तरफ से सुरक्षा मिलती थी और ” सहायक सेना ” के रखरखाव के लिए वः कंपनी को पैसा देती थी।

 

★ विद्रोह के मुख्य केंद्र :-

● विद्रोही सेना ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया। उसने बहादुरशाह जफर को भारत का बादशाह घोषित कर दिया।

● दिल्ली में विद्रोही सेना का मुख्य सेनापति जफर बख्त खाँ था। 

1. बहादुरशाह जफर :-

● ये भारत के अंतिम मुगल सम्राट थे। 1857 ई. में इनका दरबार क्रांति का प्रमुख केन्द्र था। 11 मई, 1857 ई. को मेरठ के क्रांतिकारियों ने बहादुरशाह को क्रांति का नेतृत्व सौंपा तथा दिल्ली को अंग्रेजों के प्रभाव से मुक्त करा लिया।

● 20 सितम्बर 1857 ई. को बहादुरशाह ने हुमायूँ के मकबरे में अंग्रेज लेफ्टिनेंट डब्ल्यू. एस, आर हडसन के समक्ष समर्पण कार दिया तथा उन्हें रंगून (बर्मा) भेज दिया गया। वहीं पर 1862 ई. में बहादुरशाह जफर की मृत्यु हो गई।

● जिन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर विद्रोह नहीं हुए, वहाँ भी अशांति फैलने के कारण अंग्रेज घबरा गए। असम, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हैदराबाद, पंजाब और बंगाल में विद्रोह हुए।

● दिल्ली, अवध, रूहेलखंड, बुंदेलखंड, इलाहाबाद के आस-पास के इलाकों, आगरा, मेरठ, और पश्चिमी बिहार में विद्रोह काफी व्यापक और भयंकर था ।

 

 

 2. बाबू कुँवर सिंह :-

● बिहार में विद्रोही सेना का नेतृत्व जगदीशपुर के जमींदार कुँवर सिंह ने किया। कुँवर सिंह बिहार प्रांत में आंदोलन की शुरुआत करने वाले प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे।

● बिहार में सर्वप्रथम दानापुर में विद्रोह हुआ था।

● कुँवर सिंह अपने युद्ध-कौशल और छापामार युद्ध-नीति के द्वारा अंग्रेजों का सामना किया था। 26 अप्रैल 1858 ई. को इनकी मृत्यु हो गयी।

 

 

3. नाना साहब :-

● कानपुर में 5 जून, 1857 को विद्रोह आरम्भ हुआ। जहाँ विद्रोहियों ने नाना साहब को पेशवा घोषित कर दिया और नवाब अजीमुल्ला उसका मुख्य सलाहकार बना। नाना साहब पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे। उनका वास्तविक नाम धोंधूपंत था।

● अंग्रेजों ने उन्हें पेशवा का उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया तथा उनकी आठ लाख रुपये की वार्षिक पेंशन बंद कर दी थी। फलतः नाना साहब ने अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया।

● नाना साहब के सैनिकों का नेतृत्व तात्या टोपे कर रहा था। वह एक बहादुर और योग्य नेता थे।

 

 

 4. तात्या टोपे :-

● तात्या टोपे स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी थे। इनका वास्तविक नाम रामचन्द्र पाण्डुरंग था। इन्हें भारत का गैरीबाल्डी भी कहा जाता है। इन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 ई. के स्वतंत्रता आंदोलन को दीर्घकाल तक जारी रखा।

● अपनी सेना को लेकर इन्हें संकटकाल में जंगलों में छिपे रहना पड़ता था । ये अंतिम समय तक अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते अप्रैल, 1859 को शहीद हो गए।

 

 

 5. महारानी लक्ष्मीबाई :-

● इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था।

● झांसी के राजा गंगाधर राब के साथ इनकी शादी होने के बाद इनका नाम महारानी लक्ष्मीबाई हुआ।

● अपने पति की मृत्यु के पश्चात् इन्होंने दामोदर राव नामक एक अल्पवयस्क बालक को गोद ले लिया तथा पुत्र की संरक्षिका के
रूप शासन कार्य प्रारंभ कर दिया।

● लॉर्ड डलहौजी ने गोद-निषेध नियम का लाभ उठाकर झाँसी के राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।

● इस नीति से असंतुष्ट होकर रानी ने बड़ी वीरता के साथ अंग्रेजों से युद्ध किया तथा 17 जून 1858 ई. में ग्वालियर के किले में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई।

 

 

6. बेगम जीनत महल :-

● 1857 ई. की क्रांति राष्ट्रीयता की लड़ाई थी, इस तथ्य को बेगम जीनत महल जैसी साहसी महिला ने आंदोलन में सक्रिय भागीदारी से सिद्ध कर दिया।

● बेगम जीनत महल प्रतिभाशाली और आकर्षक व्यक्तित्व वाली महिला थी। इन्होंने भी नवाब के साथ आंदोलन की लड़ाई को बड़े धैर्य और साहस के साथ लड़ी थी।

● राष्ट्र की स्वतंत्रता से बेगम जीनत को विशेष स्नेह था, उन्होंने अपनी सुख-सुविधा को छोड़कर इन्होंने स्वयं को राष्ट्र सेवा में समर्पित कर दिया।

 

 

7. बेगम हजरत महल :-

● वाजिद अली शाह के अल्पवयस्क बेटे विरजिस कादिर को अवध की गद्दी पर बिठाया गया। उसकी माँ हजरत महल उसकी ओर से शासन करने लगी।

● बेगम हजरत महल साहसी, धैर्यवान और प्रबुद्ध महिला थीं। इन्होंने अपने राज्य के सम्मान को बचाने के लिए अंग्रेजों से संघर्ष किया।

 

 

★ विद्रोह में भाग नहीं लेने वाले व्यक्ति :-

● कश्मीर के गुलाब सिंह, हैदराबाद के सालार जंग, नेपाल के जंग बहादुर, भोपाल की बेगम, सिक्ख, दिपांकर राव ( सिंधिया के मंत्री), भारतीय बुद्धिजीवी वर्ग शिक्षित वर्ग

 

 

★ 1857 के विद्रोह के केंद्र और प्रमुख विद्रोही नेता :- 

1. दिल्ली :- बहादुर शाह जफर

2. लखनऊ :- बेगम हजरत महल

3. झाँसी :- रानी लक्ष्मीबाई

4. कानपुर :- नाना साहब

5. ग्वालियर :- तात्या टोपे

6. बैरकपुर :- मंगल पांडे

 

 

 

★ विद्रोही क्या चाहते थे?

● 1857 के विद्रोह के बारे में ज्यादातर जानकारी हमें अंग्रेजी दस्तावेजों से पता चलती है

● इन दस्तावेजों को अंग्रेज अफसरों द्वारा बनाया गया था इसी वजह से इन दस्तावेजों के द्वारा अंग्रेजी लोगों की सोच के बारे में पता चलता है विद्रोहियों की मांग के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती

● 1857 के विद्रोह में शामिल ज्यादातर विद्रोही आम लोग थे और पढ़े-लिखे नहीं थे जिस वजह से उनकी मांगों के बारे में जानकारी का अभाव है

● उनसे जुड़े कुछ इश्तेहार एवं कुछ घोषणाएं ही उपलब्ध हैं जो लोगों को विद्रोह में शामिल करने के लिए जारी की गई थी इन्हीं इश्तेहार और घोषणाओं के आधार पर विद्रोह में शामिल लोगों की सोच और मांगो के बारे में पता चलता है

 

 

★ लोग विद्रोह में शामिल किए हुए?

● सभी विद्रोहियों ने अंग्रेजों द्वारा जबरदस्ती देसी रियासतों पर कब्जा करने की आलोचना की लोग नाराज थे क्योंकि अंग्रेजों द्वारा विदेशी व्यापार को बढ़ावा दिए जाने के कारण देश में व्यापारियों की स्थिति खराब हो रही थी

● लोगों का मानना था कि अंग्रेज भारतीय रीति-रिवाजों को खत्म करके ईसाई धर्म को भारत का मुख्य धर्म बनाना चाहते हैं

● लोग इसीलिए भी अंग्रेजों से नाराज थे क्योंकि अंग्रेजों ने भू स्वामियों से उनकी जमीन छीनकर भू राजस्व व्यवस्था को लागू किया था

● इन्हीं सब की वजह से लोग अफवाहों पर भी विश्वास करने लगे थे

 

 

★ नए शासन की स्थापना :-

● दिल्ली कानपुर और लखनऊ जैसे क्षेत्रों में ब्रिटिश शासन के बिखर जाने के बाद विद्रोहियों ने एक नए शासन की स्थापना की।

● यहां के नेताओं ने पुटानी दरबारी संस्कृति के अनुसार विभिन्न पदों पर लोगों की नियुक्ति की।

● भू राजस्व की व्यवस्था बनाई ताकि सैनिकों का वेतन दिया जा सके

● सभी प्रकार की लूटपाट और लड़ाई दंगों को रोकने के आदेश दिए।

● परंतु यह व्यवस्था ज्यादा दिनों तक नहीं चली

 

 

 

★ विद्रोह का दमन :-

● सम्पूर्ण विद्रोह के दौरान हिंदू और मुसलमान कंधे से कंधा मिलाकर लड़े। बरेली में अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह का नेतृत्व खान बहादुर खाँ ने किया।

● फैजाबाद में मौलवी अहमदुल्ला ने जून 1857 में विद्रोह की आगवानी की। अहमदुल्ला की कार्यवाहियों से त्रस्त होकर अंग्रेजों ने इन पर 50000 रुपये का नकद इनाम घोषित कर रखा था।

● सितंबर, 1857 ई. में अंग्रेजों ने दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया। बहादुरशाह को बंदी बनाया गया। रंगून में अभियोग चलाकर रंगून (बर्मा) में निर्वासित कर दिया। रंगून में 1862 ई. में उनकी मृत्यु हो गई।

● बहादुरशाह के पुत्र मिर्जा मुगल और मिर्जा ख्वाजा सुल्तान तथा पोते मिर्जा अबू वक्र को हडसन ने दिल्ली के खूनी दरवाजे के पास गोली मारकर हत्या कर दी।

● सितंबर, 1858 ई. में लखनऊ पर ब्रिटिश सैनिकों का अधिकार हो गया। परन्तु बेगम हजरत महल ने समर्पण करने से इन्कार कर दिया और वह नेपाल चली गई।

● रानी लक्ष्मीबाई, जो झांसी की रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई, झांसी से भाग निकली। तात्या टोपे की मदद से उसने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। अंत में जून, 1858 ई. में लड़ते हुए उनकी मृत्यु हो गई।

● नाना साहब नेपाल चले गए। तात्या टोपे मध्य प्रदेश और राजस्थान में अंग्रेजों से दो साल तक लड़ते रहे। एक मित्र के विश्वासघात के कारण वे गिरफ्तार हुए और उन्हें फाँसी दे दी गई।

● 1858 ई. के अंत तक विद्रोह को कुचल दिया गया था। विद्रोह के दमन के दौरान और उसके पश्चात् ब्रिटिश सैनिकों ने विद्रोही नेताओं, सैनिकों और आम जनता के साथ अमानवीय व्यवहार किया।

● विद्रोह के दौरान भारतीय सैनिकों ने निहत्थे अंग्रेजों और युद्ध बंदियों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया। विजयी ब्रिटिश सैनिकों ने बड़े पैमाने पर अत्याचार किए और अधिकाधिक संख्या में लोगों की मौत के घाट उतार दिया।

● शहरों को विद्रोहियों के अधिकार से मुक्त कराने के पश्चात् ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें खूब लूटा। अनुमान लगाया गया है कि केवल अवध में ही लगभग 150,000 लोगों की हत्याएँ हुईं। बहुत बड़ी संख्या में विद्रोहियों को फाँसी पर चढ़ाया गया तथा अमानवीय यातनाएँ दी गई।

 

 

★ विद्रोह के असफलता के कारण :-

● सीमित प्रभाव :- हालाँकि विद्रोह काफी व्यापक था, लेकिन देश का एक बड़ा हिस्सा इससे अप्रभावित रहा।

● मध्य वर्ग की भागीदारी नहीं :- अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त मध्यम वर्ग, बंगाल के अमीर व्यापारियों और ज़मींदारों ने विद्रोह को दबाने में अंग्रेज़ों की मदद की।

● सीमित संसाधन :- सत्ताधारी होने के कारण रेल, डाक, तार एवं परिवहन तथा संचार के अन्य सभी साधन अंग्रेज़ों के अधीन थे। इसलिये विद्रोहियों के पास हथियारों और धन की कमी थी।

● प्रभावी नेतृत्व नही :- विद्रोहियों में एक प्रभावी नेता का अभाव था। हालाँकि नाना साहेब, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई आदि बहादुर नेता थे, लेकिन वे समग्र रूप से आंदोलन को प्रभावी नेतृत्व प्रदान नहीं कर सके।

 

 

 

★ 1857 के विद्रोह के परिणाम :-

● भारत में से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया था और ब्रिटिश ताज ने भारत का शासन सीधे अपने हाथ में ले लिया था।

● भारत के गवर्नर जनरल’ को ‘भारत का वायसराय’ बना दिया गया था। चूँकि इस अधिनियम के पारित किए जाने के समय लॉर्ड कैनिंग भारत का गवर्नर जनरल था, इसलिए लॉर्ड कैनिंग भारत का अंतिम गवर्नर जनरल तथा भारत का पहला वायसराय बना था।

● सेना में भारतीय सिपाहियों का अनुपात कम करने और यूरोपीय सिपाहियों की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया गया लेकिन शस्त्रागार ब्रिटिश शासन के हाथों में रहा। बंगाल की सेना के प्रभुत्व को समाप्त करने के लिये यह योजना बनाई गई थी

● अंग्रेज़ों ने यह वादा किया कि वे भारत के लोगों के धर्म एवं सामाजिक रीति-रिवाज़ों और परंपराओं का सम्मान करेंगे।

 

 

 

 

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