अध्याय 10 : उपनिवेशवाद और देहात / Colonialism and the countryside

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उपनिवेशवाद और देहात उपनिवेशवाद क्या है ईस्ट इंडिया कम्पनी 1757 प्लासी का युद्ध कम्पनी दिवान बन गई कम्पनी की आमदनी खेती में सुधार की जरूरत ब्रिटिश प्रभुसत्ता की स्थापना ब्रिटिश कालीन भू-राजस्व व्यवस्था स्थायी बंदोबस्त रैयतवाड़ी व्यवस्था महालवाड़ी व्यवस्था बर्दवान की नीलामी की घटना जोतदार बुकानन और राजमहल की पहाड़ियां संथाल

 

 

 ★ उपनिवेशवाद और देहात :-

● इस अध्याय में आप यह देखेंगे कि औपनिवेशिक शासन का अर्थ उन लोगों के लिए क्या था जो देहात में रहते थे।

● इस अध्याय के माध्यम से आप बंगाल के ज़मींदारों से मिलेंगे, उन राजमहल की पहाड़ियों की यात्रा करेंगे जहाँ पहाड़िया और संथाल लोग रहते थे और फिर वहाँ से दक्कन की ओर आगे बढ़ेंगे।

● आप यह देखेंगे कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने देहात में अपना राज कैसे स्थापित किया था, अपनी राजस्व नीतियों को कैसे कार्यान्वित किया था, भिन्न-भिन्न वर्गों के लोगों के लिए इन नीतियों का क्या मतलब था और उन्होंने रोजमर्रा की ज़िदंगी को कैसे बदल दिया था।

 

 

★ औपनिवेशिक क्या होता है :-  अंग्रेजो ने हमारे देश को जीता और स्थानीय नवाबों और राजाओं को दबाकर अपना शासन स्थापित किया। उन्होंने अर्थव्यवस्था व समाज पर नियंत्रण स्थापित किया अपने सारे खर्चों को निपटने के लिए राजस्व वसूल किया। ब्रिटिश शासन के कारण यहाँ की मूल्य-मान्यताओं और पसंद-नापसंद रीती-रिवाज व तौर-तरीकों में बदलाव आए। जब एक देश पर दूसरे देश पर दूसरे देश के दबदबे से इस तरह के राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव आते हैं तो इस प्रक्रिया को औपनिवेशीकरण कहा जाता है

 

 

 ★ उपनिवेशवाद क्या है :- उपनिवेशवाद विशेष रूप से मातृ राष्ट्र के लिए औपनिवेशिक भूमि में संसाधनों के दोहन के लिए उपनिवेशों को प्राप्त करने और बनाए रखने की नीति को संदर्भित करता है। इसका अर्थ यह भी है कि यह स्वदेशी बहुमत और अल्पसंख्यक विदेशी आक्रमणकारियों के बीच का संबंध है।

 

 

 ★ ईस्ट इंडिया कम्पनी :- पूर्व में ईस्ट इंडिया कंपनी 

● सन् 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम से चार्टर अर्थात इजाजतनामा हासिल कर लिया जिससे कंपनी को पूरब से व्यापार करने का एकाधिकार मिल गया।

● इस इजाजतनामे का मतलब यह था कि इंग्लैंड की कोई और व्यापारिक कंपनी इस इलाके में ईस्ट इंडिया कंपनी से होड़ नहीं कर सकती थी।

● पुर्तगाल के खोजी यात्री वास्को द गामा ने ही 1498 में पहली बार भारत तक पहुँचने के इस समुद्री मार्ग का पता लगाया था।

● सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत तक डच भी हिंद महासागर में व्यापार की संभावनाएं तलाशने लगे थे। कुछ ही समय बाद फ्रांसीसी व्यापारी भी सामने आ गए।

 

◆ ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल में व्यापार शुरुआत :-

● पहली इंग्लिश फैक्टरी 1651 में हुगली नदी के किनारे शुरू हुई। कंपनी के व्यापारी यहीं से अपना काम चलाते थे।

● इन व्यापारियों को उस जमाने में “फैक्टर” कहा जाता था।

● 1696 तक कंपनी ने इस आबादी के चारों तरफ़ एक किला बनाना शुरू कर दिया था।

● दो साल बाद उसने मुग़ल अफसरों को रिश्वत देकर तीन गाँवों की जमींदारी भी खरीद ली। इनमें से एक गाँव कालीकाता था जो बाद में कलकत्ता बना। अब इसे कोलकाता कहा जाता है।

● कंपनी ने मुगल सम्राट औरंगजेब को इस बात के लिए भी तैयार कर लिया कि वह कंपनी को बिना शुल्क चुकाए व्यापार करने का फरमान जारी कर दे।

 

 

◆ 1757 प्लासी का युद्ध :-

● 1757 में रॉबर्ट क्लाइव ने प्लासी के मैदान में सिराजुद्दौला के खिलाफ़ कंपनी की सेना का नेतृत्व किया।

 

 ★ कम्पनी दिवान बन गई :-

● 12 अगस्त 1765 को मुग़ल बादशाह ने ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल का दिवान तैनात किया। बंगाल की दीवानी हाथ आ जाना अंग्रेजों के लिए एक निश्चय ही एक बड़ी घटना थी। दिवान के तौर पर कंपनी अपने नियंत्रण वाले भूभाग के आर्थिक मामलों की मुख्य शासक बन गई थी।

 

 ★ कम्पनी की आमदनी :- कंपनी दिवान तो बन गई थी लेकिन अभी भी खुद को एक व्यापारी ही मानती थी। कंपनी भारी-भरकम लगान तो चाहती थी लेकिन उसके आकलन और वसूली की कोई नियमित व्यवस्था करने में हिचकिचा रही थी। उसकी कोशिश यही थी कि वह ज्यादा से ज्यादा राजस्व हासिल करे और कम से कम कीमत पर बढिया सूती और रेशमी कपड़ा खरीदे।

● पाँच साल के भीतर बंगाल में कंपनी द्वारा खरीदी जाने वाली चीजों का कुल मूल्य दोगुना हो चुका था।

● 1865 से पहले कंपनी ब्रिटेन से सोने चाँदी का आयात करती थी और इन चीजों के बदले सामान खरीदती थी।

●अब बंगाल में इकट्ठा होने वाले पैसे से ही निर्यात के लिए चीजों खरीदी जा सकती थीं।

 

 

◆ खेती में सुधार की जरूरत :-

● कंपनी ने 1793 में स्थायी बंदोबस्त लागू किया। इस बंदोबस्त की शर्तों के हिसाब से राजाओं और तालुकदारो को जमींदारों के रूप में मान्यता दी गई। उन्हें किसानों से लगान वसूलने और कंपनी को राजस्व चुकाने का जिम्मा सौंपा गया

 

 

★ ब्रिटिश प्रभुसत्ता की स्थापना :-

● 1848 से 1856 ई. में भारत में अंग्रेजों की प्रभुसत्ता स्थापित हो गई।

● 1757 में प्लासी का युद्ध हुआ।

● 1857 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह।

 ● भारत में औपनिवेशिक शासन सर्वप्रथम बंगाल में स्थापित किया गया था। यही वह प्रांत था जहाँ पर सबसे पहले ग्रामीण समाज को पुनर्व्यस्थित करने और भूमि संबंधी अधिकारों की नई व्यवस्था तथा नई राजस्व प्रणाली स्थापित करने के प्रयास किए गए थे।

● 1793 में इस्तमरारी बंदोबस्त बंगाल के राजाओं और ताल्लुकदारों के साथ लागू किया गया। उस समय कार्नवालिस गवर्नर जनरल था। इन्हें जमींदार कहा गया और उनका कार्य सदा के लिए एक निर्धारित कर का संग्रह किसानों से करना था। इसे सूर्यास्त विधि भी कहा जाता था।

 

 

 ● कम्पनी जमींदारों को पूरा महत्व देती थी, किन्तु उनकी शक्तियों को सीमित करना चाहती थी। इसलिए

1) जमींदारों की सैन्य टुकड़ियाँ समाप्त कर दी गई।

2) सीमा शुल्क समाप्त कर दिया गया।

3) जमींदारों से स्थानीय न्याय और पुलिस की शक्ति छीन ली गई

4) कचहरी को कलेक्टर के अधीन कर दिया गया।

 

● जमींदारों द्वारा समय पर राजस्व राशि जमा न करने के कई कारण थे-
1) प्रारम्भिक मांगे बहुत ऊँची थी 2) यह मांग 1790 के दशक में लागू की गई थी जब कृषि की उपज की कीमतें नीची थी।
3) इनकी शक्ति राजस्व इकट्ठा करने व उसके प्रबंध तक सीमित थी।

● जमींदार अपनी जमीन को नीलामी से बचाने के लिए –
1) जमींदारी को घर की महिलाओं के नाम करवा देते थे।

2) अपने एजेंट के माध्यम से नीलामी में जोड़-तोड़ करते थे।

3) अपने लठैतो के माध्यम से दूसरे व्यक्ति को बोली लगाने से रोकते थे।

4) जान बूझकर ऊँची बोली लगाते तथा बाद में खरीदने से इनकार कर देते ।

 

 

★ ब्रिटिश कालीन भू-राजस्व व्यवस्था :-

1. स्थायी बंदोबस्त 1793 :- ब्रिटिश सरकार को राजस्व की जिम्मेदारी जमीदारों की दी गई।
बंगाल बिहार उड़ीसा उत्तर प्रदेश बनारस उत्तर कर्नाटक के लगभग भूभाग में के लगभग 19% भूभाग में स्थाई बंदोबस्त को लागू किया गया था।

2 रैयतवाड़ी व्यवस्था 1792 :- ब्रिटिश सरकार को राजस्व की जिम्मेदारी किसानों की दी गयी। यह व्यवस्था असम मद्रास मुंबई के प्रांतों में लागू किया गया था। जो औपनिवेशिक भारत के भूमि का 51% भाग था।

3. महालवाड़ी व्यवस्था 1822 :- ब्रिटिश सरकार को राजस्व देने की जिम्मेदारी गाँव के मुखिया को दी गयी। यह व्यवस्था उत्तर प्रदेश के मध्य प्रांत तथा पंजाब में लागू किया गया था। जो अपने औपनिवेशिक भारत की भूमि का 30% भाग था।

 

 

 

★ बर्दवान की नीलामी की घटना :-

● 1797 में बर्दवान में एक नीलामी की गई।

● इस नीलामी में बर्दवान के राजा की संपत्ति बेची जा रही थी क्योंकि राजा ने राजस्व राशि नहीं चुकाई थी।

● बोली लगाने के लिए नीलामी में अनेकों लोग शामिल हुए और अंत में सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले को संपत्तिया बेच दी गई।

● परंतु बाद में पता चला कि नीलामी में शामिल ज्यादातर खरीददार राजा के नौकर या उसके जान पहचान वाले थे।

● इस नीलामी में हुई 95% से ज्यादा खरीदारी फ़र्ज़ी थी।

● इस नीलामी से पहले राजा द्वारा अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा पहले ही अपनी माता के नाम कर दिया गया था।

 

 

★ जोतदार :-

● 18 वीं शताब्दी की शुरुआत में कुछ धनी किसानों का उदय हुआ

● यह वें किसान थे, जिनके पास बड़ी मात्रा में भू संपत्ति थी।

● इनकी जमीन पर बटाईदार किसानों द्वारा खेती की जाती थी

● यह बटाईदार किसान अपने हल और औजार लाकर खुद खेती किया करते थे और अंत में फसल का आधा भाग भूमि के मालिकों यानी इन धनी किसानों को दे दिया करते थे

● इन बड़े किसानों को ही जोतदार कहा गया, कुछ जगहों पर इन्हें हवलदार, गान्टीदार या मंडल भी कहा जाता था।

● इन जोतदारों का गांव और उस गांव के किसानों पर अत्याधिक प्रभाव होता था।

● जमींदार ज्यादातर शहरों में रहा करते थे जबकि जोतदार गांव में ही रहते थे इस वजह से यह किसानों के ज्यादा निकट हुआ करते थे

● मुश्किल परिस्थितियों में जोतदार किसानों की मदद भी किया करते थे जिस वजह से किसान जोतदारों का समर्थन किया करते थे।

● जमीदारों द्वारा गांव में कर को बढ़ाने के अनेकों प्रयास किए गए परंतु जोतदारों ने इसका खुलकर विरोध

● कई परिस्थितियों में जोतदार, किसानों को कर देने से मना करते थे

● इस वजह से जमींदारों को कर नहीं मिल पाता था और उनकी संपत्तियों को नीलाम किया जाता था।

● इस स्थिति में यह जोतदार जाकर उन जमींदारों की संपत्तियों को खरीद लिया करते थे और लाभ कमाते थे

● उस समय उत्तर बंगाल में जोतदार सबसे ज्यादा शक्तिशाली थे

 

 

★ बुकानन और राजमहल की पहाड़ियां :-

● 19वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में बुकानन ने राजमहल की पहाड़ियों का दौरा किया

● बुकानन एक अंग्रेजी अधिकारी था। वह जहां भी गया उसने हर बात का वर्णन अपनी डायरी में लिखा

● उसने लिखा कि यह क्षेत्र एक खतरनाक क्षेत्र था यहां बहुत ही कम यात्री आने की हिम्मत कर सकते थे

● उसके अनुसार पहाड़ियों के निवासियों का व्यवहार शत्रुतापूर्ण था और यह बाहरी अधिकारियों से बात करने को तैयार नहीं थे

● वे अंग्रेजों को एक ऐसी शक्ति के रूप में देखते थे जो जंगलों को नष्ट करके पहाड़ी लोगों के जीने के तरीके को बदलना चाहते थे

 

 

 

★ संथाल :-

● पहाड़ी समुदायों को सभ्य बनाने और कृषि के लिए प्रेरित करने के लिए अंग्रेज़ो द्वाटरा किये गए किस भी प्रयास का कोई लाभ नहीं हुआ।

● अब अंग्रेज़ो को ऐसे लोगो की ज़रूरत थी जो जंगल को साफ़ करके बनाये गए क्षेत्रों में रह सके और खेती कर सके इस दौर में अंग्रेजों का ध्यान संथाल समुदाय की ओर गया।

●1780 के दशक के आसपास संथाल बंगाल में आने लगे

● उस दौर में जमींदारों द्वारा इन्हें खेती करने के लिए भाड़े पर रखा जाता था।

● अंग्रेजों द्वारा इन्हें पहाड़ी इलाकों में बसाया गया ताकि यह कृषि करके अंग्रेजी राजस्व में वृद्धि कर सकें

● अंग्रेजी सरकार ने संथालो को जमीन देकर राजमहल पहाड़ियों की तलहटी में बसने के लिए तैयार कर लिया

● यहां पर जमीन के एक बहुत बड़े हिस्से को संथालो की भूमि घोषित कर दिया गया और इस इलाके को दामिन-ई- कोह का नाम दिया गया।

● इस क्षेत्र के चारों ओर सीमाएं बनाई गई और नक्शा तैयार किया गया।

● इस क्षेत्र में आने के बाद संथालो की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ने लगी

● संथालो के गांव की संख्या 1830 में लगभग 40 के आसपास थी जो 1851 में बढ़कर 1473 तक पहुंच गई और इसी दौर में जनसंख्या 3000 से बढ़कर 82000 से भी अधिक हो गई।

● संथालो के आने की वजह से पहाड़ी लोगों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ा

● इनकी वजह से उन्हें जंगलों में और अंदर जाना पड़ा जहां पर उपजाऊ जमीन का अभाव था।

● शिकारियों को भी समस्याओं का सामना करना पड़ा

● दूसरी तरफ संथालो का जीवन पहले से बेहतर हो गया।

● अब वह खानाबदोश की जगह एक स्थाई खेती करने वाले किसान के रूप में रहने लगे

● धीरे-धीरे बाजार के लिए वाणिज्यिक फसलों की खेती करने लगे और व्यापारियों और साहूकारों के साथ लेन- देन भी करने लगे

● इसी दौर में अंग्रेजी शासन द्वारा कर में वृद्धि की गई और साहूकार भी ब्याज की ऊंची दरे वसूलने लगे

● ऐसी स्थिति को देखते हुए संथालो ने 1850 के दशक में जमीदारों साहूकारों और अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया

● इस विद्रोह के परिणाम स्वरूप संथाल परगना नामक क्षेत्र का निर्माण किया गया।

◆ Note: – कुदाल को पहाड़ी लोगो और हल को संथाल का प्रतीक मन जाता है क्योकि पहाड़ी लोग कुदाल से ज़मीन खोद कर खेती करते थे जबकि संथालो द्वारा खेती के लिए हल का प्रयोग किया जाता था।

 

 

 

★ रैयतवाड़ी व्यवस्था :-

● अंग्रेजी प्रशासन द्वारा 1820 में दक्षिणी भारत के दक्कन वाले क्षेत्र में रैयतवाड़ी कर व्यवस्था को लागू किया गया

● इस कर व्यवस्था में किसानों पर बहुत अधिक मात्रा में कर लगाए गए जिनको चुका पाना किसानों के लिए बहुत मुश्किल था

● कई बार कर चुकाने के लिए किसानों द्वारा साहूकारों से ब्याज पर उधार लिया जाता था जिस वजह से वह कर्ज़ और कर तले दबे जा रहे थे

● इसी दौर में आगे जाकर क्षेत्र में बहुत बड़ा अकाल पड़ा जिस वजह से कृषि उत्पादन में कमी आई पर अंग्रेजी शासन द्वारा कर में कोई कमी नहीं की गई

● इस वजह से किसानों की समस्या और ज्यादा बढ़ गई

 

 

★ कपास की खेती :-

● 1861 में अमेरिका में गृह युद्ध की शुरुआत हुई जिस वजह से इंग्लैंड और अमेरिका के बीच होने वाला कपास का व्यापार लगभग बंद हो गया

● इस दौर में भारत के दक्कन क्षेत्र में कपास के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया गया

● किसानों ने साहूकारों से कर्ज लिया और मन लगाकर कपास की खेती की

● इस दौर में किसानों की स्थिति में कुछ सुधार आया परंतु अमेरिका में गृह युद्ध की समाप्ति के साथ ही किसानों की किसानो की स्थिति पहले से भी बुरी हो गई

● अब उनके सर पर वह कर्ज था जो उन्होंने कपास की खेती के लिया था परंतु कपास की मांग लगभग ना के बराबर हो चुकी थी

● इन्हीं सब समस्याओं के कारण दक्कन दंगे की शुरुआत हुई

 

 

★ दक्कन दंगा :-

● 12 मई 1875 को किसानों ने विद्रोह की शुरुआत की यह विद्रोह साहूकारों और अंग्रेजी शासन के विरुद्ध

● इसकी शुरुआत पुणे में स्थित एक जगह सुपा से हुई

● इस विद्रोह में बहुत सारे साहूकारों को मारा गया उनके खेतों को जला दिया गया और माल गोदामों को लूट लिया गया

● यह उस दौर के के सबसे बड़े दंगों में से एक रहा

● कई साहूकारों की जान इस दंगे के दौरान चली गई और बड़ी मात्रा में संपत्ति का नुकसान हुआ

 

 

 

 

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