अध्याय 3 : धातु एवं अधातु

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धातु एवं अधातु :

 

में 118 तत्व ज्ञात हैं । इनमें 90 से अधिक धातुऐं , 22 अधातुऐं और कुछ उपधातु हैं ।

 

धातु :- पदार्थ जो कठोर , चमकीले , आघातवर्ध्य , तन्य , ध्वानिक और ऊष्मा तथा विद्युत के सुचालक होते हैं , धातु कहलाते हैं ।

जैसे :- सोडियम ( Na ) , पोटाशियम ( K ) , मैग्नीशियम ( Mg ) , लोहा ( Fc ) , एलूमिनियम ( AI ) , कैल्शियम ( Ca ) , बेरियम ( Ba ) धातुऐं हैं ।

 

धातुओं के उपयोग :- धातुओं का उपयोग इमारत , पुल , रेल पटरी को बनाने में , हवाईजहाज , समुद्री जहाज , गाड़ियों के निर्माण में , घर में उपयोग होने वाले बर्तन , आभूषण , मशीन के पुर्जे आदि के निर्माण में किया जाता है ।

 

अधातु :- जो पदार्थ नरम , मलिन , भंगुर , ऊष्मा तथा विद्युत के कुचालक होते हैं , एवं जो ध्वानिक नहीं होते हैं अधातु कहलाते हैं ।

जैसे :- ऑक्सजीन ( O ) , हाइड्रोजन ( H ) , नाइट्रोजन ( N ) , सल्फर ( S ) , फास्फोरस ( P ) , फ्लूओरीन ( F ) , क्लोरीन ( CI ) , ब्रोमीन ( Br ) , आयोडिन ( I ) , अधातुऐं हैं ।

 

अधातुओं के उपयोग :- ऑक्सीजन हमारे जीवन के लिए आवश्यक है , जिसे सजीव श्वसन के समय अन्दर लेते हैं । नाइट्रोजन का उपयोग उर्वरकों में पौधों की वृद्धि हेतु किया जाता है ।  क्लोरीन का उपयोग जल शुद्धिकरण प्रक्रम में किया जाता है ।  आयोडीन का विलयन एंटीबायोटिक के रूप में घावों पर लगाया जाता है ।

 

 

धातुओं और अधातुओं में अंतर :-

धातुएँ अधातुऐं

मर्करी के अतिरिक्त , सभी कक्ष ताप पर ठोस रूप में होते हैं । तीनों अवस्थाओं में व्यापक , ब्रोमीन तरल अधातु है ।

तन्य और आघातवर्ध्य होते हैं ।  अधातुऐं तन्य और आघातवर्ध्य नहीं होती ।

ध्वानिक और चमक दर्शाने वाले गुण होते है । अधातुऐं ध्वानिक नहीं होती और चमकहीन होती हैं ।

सामान्यत : उच्च घनत्व , लेकिन सोडियम और पोटाशियम का धनत्व कम होता है । अधातुओं का घनत्व अपेक्षाकृत कम होता है ।

धातु ऑक्साइड क्षारीय या उमयधर्मी होते है ।  अधातु ऑक्साइड की प्रकृति अम्लीय होती है ।

धातुऐं तनु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित कर हाइड्रोजन गैस निर्मित करती है । अधातु ऑक्साइड तनु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित नहीं करती ।

धातु ऑक्साइड आयनिक होते है । अधातु ऑक्साइड सहसंयोजी होते है ।

 

धातु के भौतिक गुण :-

 

भौतिक स्थिति :- धातुएँ सामान्यतः ठोस तथा कठोर होती हैं । प्रत्येक धातु की कठोरता अलग – अलग होती है । धातुओं का गलनांक अधिक होता है ।

नोट : अपवाद :- मर्करी को छोड़कर सारी धातुएँ कमरे के ताप पर ठोस अवस्था में पाई जाती हैं ।  गैलियम और सीज़ियम का गलनांक बहुत कम है , हथेली पर रखने पर ये धातुऐं पिघलने लगती हैं ।  क्षारीय धातु ( लीथियम , सोडियम , पोटैशियम ) इतनी मुलायम होती हैं कि उनको चाकू से भी काटा जा सकता है । इनके घनत्व तथा गलनांक भी कम होते हैं ।

चमक :- अपने शुद्ध रूप में धातु की सतह चमकदार होती है । धातु के इस गुणधर्म को धात्विक चमक कहते हैं ।

आघातवर्ध्यता :- धातुओं को पीटकर पतली चादर बनाया जा सकता है । इस गुणधर्म को आघातवर्ध्यता कहते हैं । सोना तथा चाँदी सबसे अधिक आघातवर्ध्य धातुएँ हैं ।

 तन्यता :- धातु के पतले तार के रूप में खिंचने की क्षमता को तन्यता कहा जाता है । सोना सबसे अधिक तन्य धातु है , एक ग्राम सोने से 2 km लंबा तार बनाया जा सकता है ।

 चालकता :- धातुएँ ऊष्मा तथा विद्युत की सुचालक होती हैं । सिल्वर तथा कॉपर अच्छे चालक हैं ।

नोट : अपवाद :- लेड तथा मर्करी ऊष्मा के कुचालक हैं ।

 ध्वानिक :- सामान्यत : धातुएँ कठोर सतह से टकराने पर एक विशेष आवाज़ उत्पन्न करती हैं , अत : उन्हें ध्वानिक कहते हैं ।

 

 

अधातुओ के भौतिक गुण :-

 भौतिक स्थिति :- अधातुएँ सामान्यतः या तो ठोस या फिर गैसें होती हैं ।

नोट : अपवाद :- ब्रोमीन ऐसी अधातु है जो द्रव्य होती है ।

  चमक :- अधातुओं में चमक नहीं होती हैं ।

नोट : अपवाद :- आयोडीन अधातु होते हुए भी चमकीला होता है ।

  आघातवर्ध्यता :- अधातुएँ आघातवर्धनीय नहीं होती हैं । अधातुऐं भंगुर होती हैं अतः इन्हें पीटने पर ये टूट जाती हैं ।

  तन्यता :- अधातुएँ तन्य नहीं होती है ।

 चालकता :- अधातुएँ विद्यतु तथा ऊष्मा की कुचालक होती है ।

नोट : अपवाद :- कार्बन का अपरूप हीरा ऊष्मा का सुचालक होता है । कार्बन का अपररूप ग्रेफाइट विद्युत का सुचालक होता है ।

 

 धातुओं के रासायनिक गुणधर्म :-

 1. धातुओं का वायु में दहन :-

 वह रासायनिक प्रक्रम जिसमें पदार्थ ऑक्सीजन से अभिक्रिया करके ऊष्मा देता है , दहन कहलाता है ।

 सामान्यतः धातुओं का वायु में दहन चमकदार ज्वाला के साथ होता है तथा लगभग सभी धातुएँ ऑक्सीजन के साथ मिलकर संगत धातु के ऑक्साइड बनाती हैं ।

धातु + ऑक्सीजन → धातु ऑक्साइड

उदाहरण के लिए , जब कॉपर को वायु की उपस्थिति में गर्म किया जाता है तो यह ऑक्सीजन के साथ मिलकर काले रंग का कॉपर ( II ) ऑक्साइड बनाता है ।

( कॉपर ) 2Cu + 0₂ → 2Cuo [ कॉपर ( II ) ऑक्साइड ]

 इसी प्रकार ऐलुमिनियम ऐलुमिनियम ऑक्साइड प्रदान करता है ।

( ऐलुमिनियम ) 4Al + 3O₂ → 2Al₂O₃ [ ऐलुमिनियम ऑक्साइड ]

 

 धातु ऑक्साइडों के गुणधर्म :-

 सामान्यत : धातु ऑक्साइडों की प्रकृति क्षारकीय होती है । ऑक्साइडों की प्रकृति क्षारकीय होने का तात्पर्य इनके अम्लों से क्रिया करके लवण तथा जल प्रदान करने से है ।

 लेकिन ऐलुमिनियम ऑक्साइड , जिंक ऑक्साइड जैसे कुछ धातु ऑक्साइड अम्लीय तथा क्षारकीय दोनों प्रकार के व्यवहार प्रदर्शित करते हैं ।

 अम्ल तथा क्षारक के साथ ऐलुमिनियम ऑक्साइड निम्न प्रकार से अभिक्रिया करता है

Al₂O₃ + 6HCl → 2AlCl₃ , + 3H₂O Al₂O₃ + 2NaOH → 2NaAlO₂ + H₂O  सोडियम ऐलुमिनेट

 अधिकांश धातु ऑक्साइड जल में अघुलनशील होते हैं लेकिन इनमें से कुछ जल में घुलकर क्षार प्रदान करते हैं ।

 सोडियम ऑक्साइड एवं पोटैशियम ऑक्साइड निम्न प्रकार से जल में घुलकर क्षार प्रदान करते हैं ।

Na₂O(s) + H₂O(I) → 2NaOH (aq)

K₂O(s) + H₂O(l) → 2KOH (aq)

 

 उभयधर्मी ऑक्साइड :-

 ऐसे धातु ऑक्साइड जो अम्ल तथा क्षारक दोनों से अभिक्रिया करके लवण तथा जल प्रदान करते हैं , उभयधर्मी ऑक्साइड कहलाते हैं ।

 धातुओं की ऑक्सीजन के साथ अभिक्रियाशीलता :-

 धातुएँ ऑक्सीजन के साथ विभिन्न प्रकार से अभिक्रियाशीलता प्रदर्शित करती हैं :-

पोटैशियम तथा सोडियम जैसी कुछ धातुएँ इतनी तेज़ी से अभिक्रिया करती हैं कि खुले में रखने पर आग पकड़ लेती हैं ।  सिल्वर एवं गोल्ड अत्यंत अधिक ताप पर भी ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया नहीं करते हैं ।  सामान्य ताप पर मैग्नीशियम , ऐलुमिनियम , जिंक , लेड आदि जैसी धातुओं की सतह पर ऑक्साइड की पतली परत चढ़ जाती हैं । ऑक्साइड की ये परत धातुओं को पुन : ऑक्सीकरण ( ऑक्सीजन से क्रिया ) से सुरक्षित रखती है ।  गर्म करने पर आयरन का दहन नहीं होता है , लेकिन जब बर्नर की ज्वाला में लौह चूर्ण डालते हैं तब वह तेजी से जलने लगता है ।

 2. धातुओं की जल के साथ अभिक्रिया :-

 जल के साथ अभिक्रिया करके धातुएँ हाइड्रोजन गैस तथा धातु ऑक्साइड उत्पन्न करती हैं । कुछ धातु ऑक्साइड जल में घुलनशील होते हैं , जो जल में घुलकर धातु हाइड्रॉक्साइड प्रदान करते हैं । लेकिन सभी धातुएँ जल के साथ अभिक्रिया नहीं करती हैं ।

धातु + जल → धातु ऑक्साइड + हाइड्रोजन

धातु ऑक्साइड + जल → धातु हाइड्रॉक्साइड

 उदहारण :-

 a. पोटैशियम एवं सोडियम जैसी धातुएँ ठंडे जल के साथ तेजी से अभिक्रिया करती हैं । सोडियम तथा पोटैशियम की अभिक्रिया तेज़ तथा ऊष्माक्षेपी होती है अतः इससे उत्सर्जित हाइड्रोजन तत्काल प्रज्ज्वलित हो जाती है ।

2K(s) + 2H₂O(l) → 2KOH(aq) + H₂(g) + ऊष्मीय ऊर्जा

2Na(s) + 2H₂O(l) → 2NaOH(aq) + H₂(g) + ऊष्मीय ऊर्जा

 

 B. जल के साथ कैल्सियम की अभिक्रिया थोड़ी धीमी होती है । यहाँ उत्सर्जित ऊष्मा हाइड्रोजन के प्रज्ज्वलित होने के लिए पर्याप्त नहीं होती है ।

Ca(s) + 2H₂0(l) → Ca(OH)₂(aq) + H₂(g)

 उपरोक्त अभिक्रिया में उत्पन्न हाइड्रोजन गैस के बुलबुले कैल्सियम धातु की सतह पर चिपक जाते हैं । अतः कैल्सियम तैरना प्रारंभ कर देता है ।

 

 C. मैग्नीशियम शीतल जल के साथ अभिक्रिया नहीं करता है , परंतु गर्म जल के साथ अभिक्रिया करके वह मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड एवं हाइड्रोजन गैस उत्पन्न करता है । हाइड्रोजन गैस के बुलबुले मैग्नीशियम धातु की सतह से चिपक जाते हैं । अतः यह भी तैरना प्रारंभ कर देती है ।

 

 D. ऐलुमिनियम , आयरन तथा जिंक जैसी धातुएँ न शीतल जल के साथ और न ही गर्म जल के साथ अभिक्रिया करती हैं । लेकिन भाप के साथ अभिक्रिया करके यह धातु ऑक्साइड तथा हाइड्रोजन प्रदान करती हैं ।

2Al(s) + 3H₂0(g) → Al₂0₃(s) + 3H₂(g)

3Fe(s) + 4H₂O(g) → Fe₃O₄(s) + 4H₂(g)

 

 E. लेड , कॉपर , सिल्वर तथा गोल्ड जैसी धातुएँ जल के साथ बिलकुल अभिक्रिया नहीं करती हैं ।

 

 3. धातुओं की अम्लों से अभिक्रिया :-

 धातुएँ अम्लों के साथ अभिक्रिया करके संगत लवण तथा हाइड्रोजन गैस प्रदान करती हैं ।

धातु + तनु अम्ल → लवण + हाइड्रोजन

 सोडियम तथा पोटैशियम धातुऐं अम्लों के साथ अत्यधिक तीव्रता से क्रिया करती हैं ।

Note :- धातुएँ नाइट्रिक अम्ल के साथ अभिक्रिया करके हाइड्रोजन गैस उत्सर्जित नहीं करती है , क्योंकि HNO₃ एक प्रबल ऑक्सीकारक है जो उत्पन्न H₂ को ऑक्सीकृत करके जल में परिवर्तित कर देता है एवं स्वयं नाइट्रोजन के किसी ऑक्साइड ( N₂O , NO , NO₂ ) में अपचयित हो जाता है । लेकिन मैग्नीशियम ( Mg ) एवं मैंगनीज ( Mn ) , अति तनु HNO₃ के साथ अभिक्रिया कर H2 गैस उत्सर्जित करते हैं ।

 विभिन्न धातुओं की तनु अम्लों के साथ जैसे ( aq.HCl ) क्रिया करने की दर निम्नलिखित है । Mg > Al > Zn > Fe । कॉपर तनु HCL साथ अभिक्रिया नहीं करता है ।

 

4. धातु लवणों के विलयन के साथ धातुओं की अभिक्रियाएँ :-

 अधिक अभिक्रियाशील धातु अपने से कम अभिक्रियाशील धातु को उसके यौगिक के विलयन या गलित अवस्था से विस्थापित कर देती है । इसे विस्थापन अभिक्रिया कहते है ।

 अगर धातु ( A ) , धातु ( B ) को उसके विलयन से विस्थापित कर देती है तो यह धातु ( B ) की अपेक्षा अधिक अभिक्रियाशील है ।

धातु ( A ) + ( B ) का लवण विलयन → ( A ) का लवण विलयन + धातु ( B )

 

 सक्रियता श्रेणी :-

 सक्रियता श्रेणी वह सूची है जिसमें धातुओं की क्रियाशीलता को अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया जाता है ।

K पोटैशियम सबसे अधिक अभिक्रियाशील

Na सोडियम  ⬇

Ca कैल्सियम  ⬇

Mg मैग्नीशियम  ⬇

AL ऐलुमिनियम  ⬇

Zn जिंक घटती अभिक्रियाशीलता

Fe आयरन ⬇

Pb लेड ⬇

[ H ] [ हाइड्रोजन ] ⬇

Cu कॉपर ( ताँबा ) ⬇

Hg मर्करी ( पारद ) ⬇

Ag सिल्वर ⬇

Au गोल्ड सबसे कम अभिक्रियाशील

 

 धातुओं की अधातुओं के साथ अभिक्रिया :-

 तत्वों की अभिक्रियाशीलता , संयोजकता कोश को पूर्ण करने की प्रवृति के रूप में समझी जा सकती है । ।

धातु के परमाणु , अपने संयोजकता कोश से इलेक्ट्रान त्याग करते हैं तथा धनायन बनाते हैं ।  अधातु के परमाणु , संयोजकता कोश में इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ॠणायन बनाते है ।  विपरीत आवेशित आयन एक – दूसरे को आकर्षित करते हैं तथा मजबूत स्थिर वैद्युत बल में बँधकर आयनिक यौगिक बनाते हैं ।

 

आयनिक यौगिकों के गुणधर्म :-

 भौतिक प्रकृति :- धन एवं ऋण आयनों के बीच मजबूत आकर्षण बल के कारण आयनिक यौगिक ठोस एवं कठोर होते हैं । ये यौगिक सामान्यतः भंगुर होते हैं तथा दाब डालने पर टुकड़ों में टूट जाते हैं ।

 गलनांक एवं क्वथनांक :- आयनिक यौगिकों का गलनांक एवं क्वथनांक बहुत अधिक होता है क्योंकि मजबूत अंतर – आयनिक आकर्षण को तोड़ने के लिए ऊर्जा की पर्याप्त मात्रा की आवश्यकता होती है ।

 घुलनशीलता :- वैद्युत संयोजक यौगिक सामान्यतः जल में घुलनशील तथा किरोसिन , पेट्रोल आदि जैसे विलायकों में अविलेय होते हैं ।

 विद्युत चालकता :- ठोस अवस्था में आयनिक यौगिक विद्युत का चालन नहीं करते हैं , क्योंकि ठोस अवस्था में दृढ़ संरचना के कारण आयनों गति संभव नहीं होती है । लेकिन गलित या जलीय अवस्था में आयन स्वतंत्र रूप से गमन करते हैं एवं विद्युत का चालन करते हैं ।

 

 धातुओं की प्राप्ति :-

 पृथ्वी की भूपर्पटी धातुओं का मुख्य स्रोत है ।

 खनिज :- पृथ्वी की भूपर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले तत्वों या यौगिकों को खनिज कहते हैं ।

 अयस्क :- कुछ स्थानों पर खनिजों में कोई विशेष धातु काफ़ी मात्रा में होती है जिसे निकालना लाभकारी होता है । इन खनिजों को अयस्क कहते हैं ।

 

धातुओं का निष्कर्षण :-

 अभिक्रियाशीलता के आधार पर हम धातुओं को निम्न तीन वर्गों में विभाजित कर सकते हैं :-

निम्न अभिक्रियाशील धातुएँ  मध्यम अभिक्रियाशील धातुएँ  उच्च अभिक्रियाशील धातुएँ ।

 प्रत्येक वर्ग में आने वाली धातुओं को प्राप्त करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है ।

 सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुएँ सबसे कम अभिक्रियाशील होती हैं । ये स्वतंत्र अवस्था में पाई जाती हैं । उदाहरण के लिए , गोल्ड ( सोना ) , सिल्वर ( चाँदी ) , प्लैटिनम एवं कॉपर ( ताँबा ) स्वतंत्र अवस्था में पाए जाते हैं । कॉपर एवं सिल्वर , अपने सल्फाइड या ऑक्साइड के अयस्क के रूप में संयुक्त अवस्था में भी पाए जाते हैं ।

  सक्रियता श्रेणी में सबसे ऊपर की धातुएँ ( K , Na , Ca , Mg एवं Al ) इतनी अधिक अभिक्रियाशील होती हैं कि ये कभी भी स्वतंत्र तत्व के रूप में नहीं पाई जातीं । अयस्क से शुद्ध धातु का निष्कर्षण निम्न चरणों में होता है ।

 

 1. अयस्कों का समृद्धीकरण :-

 पृथ्वी से खनिज अयस्कों में मिट्टी , रेत आदि जैसी कई अशुद्धियाँ होती हैं , जिन्हें गैंग कहते हैं । अयस्कों से गैंग को हटाने के लिए जिन प्रक्रियाओं का उपयोग होता है वे अयस्क एवं गैंग के भौतिक या रासायनिक गुणधर्मों पर आधारित होती हैं । इस पृथक्करण के लिए विभिन्न तकनीक अपनायी जाती है ।

 

 2. सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुओं का निष्कर्षण :-  इन धातुओं के ऑक्साइडों को केवल गर्म करने से ही धातु प्राप्त की जा सकती है ।

 उदहारण के लिए :- सिनाबार ( HgS ) , मर्करी ( पारद ) का एक अयस्क है । वायु में गर्म करने पर यह सबसे पहले मर्क्यूरिक ऑक्साइड ( Hg0 ) में परिवर्तित होता है और अधिक गर्म करने पर मर्क्यूरिक ऑक्साइड , मर्करी ( पारद ) में अपचयित हो जाता है ।

2HgS(s) + 3O₂(g) [ तापन →] 2HgO(s) + 2SO₂(g)

2HgO(s) [ तापन → ] 2Hg(l) + O₂(g)

 

 3. सक्रियता श्रेणी में मध्य में स्थित धातुओं का निष्कर्षण :-

 प्रकृति में यह प्रायः सल्फाइड या कार्बोनेट के रूप में पाई जाती हैं । सल्फाइड या कार्बोनेट की तुलना में धातु को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करना अधिक आसान है अतः कार्बोनेट व सल्फाइड को पहले ऑक्साइड में बदला जाता है ।

 a . भर्जन :- सल्फाइड अयस्क को वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गर्म करने पर यह ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है । इस प्रक्रिया को भर्जन कहते हैं ।

तापन जिंक सल्फाइड अयस्क का भर्जन :- 2ZnS(s) + 3O₂(g) [ तापन → ] 2ZnO(s) + 2SO₂(g)

 b . निस्तापन :- कार्बोनेट अयस्क को सीमित वायु में अधिक ताप पर गर्म करने से यह ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है । इस प्रक्रिया को निस्तापन कहा जाता है ।

तापन जिंक के कार्बोनेट अयस्क का निस्तापन :- ZnCO₃(s) [ तापन → ] ZnO(s) + CO₂(g)

 c . अपचयन :- कार्बन जैसे उपयुक्त अपचायक का उपयोग कर भर्जन या निस्तापन से प्राप्त धातु ऑक्साइडों से धातु प्राप्त की जाती है । उदाहरण के लिए जब जिंक ऑक्साइड को कार्बन के साथ गर्म किया जाता है , तो यह जिंक धातु में अपचयित हो ता है ।

ZnO(s) + C(s) [ तापन → ] Zn(s) + CO(g)

Note :- धातु निष्कर्षण में विस्थापन अभिक्रियाएँ अत्यधिक ऊष्माक्षेपी होती हैं । इसमें उत्सर्जित ऊष्मा की मात्रा इतनी अधिक होती है कि धातुएँ गलित अवस्था में प्राप्त होती हैं । आयरन ( III ) ऑक्साइड ( Fe₂O₃ ) के साथ ऐलुमिनियम की अभिक्रिया का उपयोग रेल की पटरी एवं मशीनी पुर्जों की दरारों को जोड़ने के लिए किया जाता है । इस अभिक्रिया को थर्मिट अभिक्रिया कहते हैं ।

Fe₂O₃(s) + 2Al(s) → 2Fe(l) + Al₂O₃(s) + ऊष्मा

 

 4. सक्रियता श्रेणी में सबसे ऊपर स्थित धातुओं का निष्कर्षण :-

 इन धातुओं को विद्युत अपघटनी अपचयन द्वारा प्राप्त किया जाता है ।

 उदाहरण के लिए :- सोडियम , मैग्नीशियम एवं कैल्सियम को उनके गलित क्लोराइडों के विद्युत अपघटन से प्राप्त किया जाता है । कैथोड ( ऋण आवेशित इलैक्ट्रोड ) पर धातुएँ निक्षेपित हो जाती हैं तथा ऐनोड ( धन आवेशित इलैक्ट्रोड ) पर क्लोरीन मुक्त होती है ।

 अभिक्रियाएँ इस प्रकार हैं :-

कैथोड पर Na⁺ + e⁻ → Na

ऐनोड पर 2Cl⁻ → Cl₂ + 2e⁻

 इसी प्रकार , ऐलुमिनियम ऑक्साइड के विद्युत अपघटनी अपचयन से ऐलुमिनियम प्राप्त किया जाता है ।

 

 5. धातुओं का परिष्करण :-

 विभिन्न अपचयन प्रक्रमों से प्राप्त धातुएँ पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होती हैं । इनमें अपद्रव्य होते हैं जिन्हें हटाकर ही शुद्ध धातु प्राप्त की जा सकती है । धातुओं से अपद्रव्य को हटाने के लिए सबसे अधिक प्रचलित विधि विद्युत अपघटनी परिष्करण है ।

 विद्युत अपघटनी परिष्करण :-

 कॉपर , जिंक , टिन निकेल , सिल्वर , गोल्ड आदि अनेक धातुओं का परिष्करण विद्युत अपघटन द्वारा किया जाता है ।

 इस प्रकम में अशुद्ध धातु को ऐनोड तथा शुद्ध धातु की पतली परत को कैथोड बनाया जाता है ।

 धातु के लवण विलयन का उपयोग विद्युत अपघट्य के रूप में होता है ।

 विद्युत प्रवाह करने के पश्चात् ऐनोड में अशुद्ध धातु विद्युत अपघट्य में घुल जाती है । तथा उतनी ही मात्रा में शुद्ध कॉपर विद्युत अपघट्य से कैथोड पर निक्षेपित होती है ।

 अविलेय अशुद्धियां ऐनोड तली पर निक्षेपित होती है , जिसे ऐनोड पंक कहते हैं ।

 

 संक्षारण :-

 जब कोई धातु वातावरण में उपस्थित पदार्थों ( मुख्यत : ऑक्सीजन , अम्ल , आद्रता इत्यादि ) के संपर्क में आकर क्षय होना प्रारम्भ हो जाती है , तो इसे संक्षारण कहते हैं ।

 सिल्वर का संक्षारण :- खुली वायु में कुछ दिन छोड़ देने पर सिल्वर की वस्तुएँ काली हो जाती हैं । ऐसा सिल्वर का वायु में उपस्थित सल्फर के साथ अभिक्रिया करके सिल्वर सल्फाइड ( Ag₂S ) की परत बनने के कारण होता है ।

 कॉपर का संक्षारण :- कॉपर वायु में उपस्थित आर्द्र CO₂ से अभिक्रिया के कारण अपनी भूरे रंग की चमक धीरे – धीरे खो देता है तथा इस पर क्षारीय कॉपर कार्बोनेट की हरे रंग की परत चढ़ जाती है ।

 लौह का संक्षारण :- लंबे समय तक आर्द्र वायु में रहने पर लोहे पर भूरे रंग के पदार्थ की परत चढ़ जाती है जिसे जंग ( Fe₂O₃. nH₂O ) कहते हैं ।

 

 संक्षारण से सुरक्षा :- धातुओं पर पेंट करके , तेल लगाकर , ग्रीज़ लगाकर , यशदलेपन , क्रोमियम लेपन , ऐनोडीकरण या मिश्रधातु बनाकर संक्षारण को रोका या धीमा किया जा सकता है ।

 

 यशदलेपन :-  लोहे एवं इस्पात को जंग से सुरक्षित रखने के लिए उन पर जस्ते ( जिंक ) की पतली परत चढ़ाना यशदलेपन कहलाता है ।

 

 मिश्रधातु :-  दो या दो से अधिक धातुओं ( कभी – कभी अधातु भी उपस्थित होता है ) के समांगी मिश्रण को मिश्रातु / मिश्रधातु कहते हैं ।

 इसे तैयार करने के लिए पहले मूल धातु को गलित अवस्था में लाया जाता है एवं तत्पश्चात दूसरे तत्वों को एक निश्चित अनुपात में इसमें विलीन किया जाता है । फिर इसे कमरे के ताप पर शीतलतकृत किया जाता है ।

 यदि कोई एक धातु पारद है तो इसके मिश्रातु को अमलगम कहते हैं । शुद्ध धातु की अपेक्षा उसके मिश्रातु की विद्युत चालकता तथा गलनांक कम होता है ।

 उदहारण के लिए :-

ताँबा एवं जस्ते ( Cu एवं Zn ) की मिश्रातु पीतल तथा ताम्र एवं टिन ( Cu एवं Sn ) की मिश्रातु काँसा विद्युत के कुचालक हैं , लेकिन ताम्र का उपयोग विद्युतीय परिपथ बनाने में किया जाता है ।

सोल्डर , यह सीसा और टिन ( Pb एवं Sn ) का मिश्रधातु है जिसका गलनांक बहुत कम होता है और इसका उपयोग विद्युत तारों को परस्पर वेल्डिंग के लिये करते हैं ।

 

 

 

 

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