अध्याय 3 : समानता / Equality

Spread the love

 समानता के आयाम अवसरों की समानता सकारात्मक कार्यवाही उदारवाद समाजवाद मार्क्सवाद समानता के प्रकार सामाजिक  राजनीतिक आर्थिक  प्राकृतिक  नागरिक समानता कानूनी हम समानता को बढ़ावा कैसे दे सकते हैं लोहिया के अनुसार समाजवाद का आदर्श समानता संविधान में समानता अनुच्छेद 14-18

 

★समानता ( Equality ):-

● सामान्य शब्दों में समानता (Equality ) का अर्थ समान होने से है। सामान्य शब्दों समानता का यही अर्थ लिया जाता है कि राज्य में रहने वाले सभी लोगों को समान समझा जाए।

● समानता न तो संभव है और ना ही स्वीकार्य क्योंकि यह संभव नहीं है कि सभी लोगों को समान समझा जाए क्योंकि शारीरिक बनावट के आधार पर, अपनी योग्यताओं-क्षमताओं के आधार पर सभी व्यक्ति समान नहीं हो सकते

● अपनी योग्यता, क्षमता और परिश्रम के आधार पर कुछ व्यक्ति विशेष उपलब्धि हासिल करते हैं। परिणामस्वरूप उन्हें विशेष मानदेय तथा विशेष सम्मान मिलना स्वाभाविक है।

●इसी प्रकार से कुछ व्यक्ति जन्म से विकलांग होते हैं । कुछ ऐसे वर्ग से संबंधित व्यक्ति होते हैं जो पीढ़ियों से दासता का शिकार रहे हैं। ऐसे लोगों को विशेष सुविधाएं दिए जाने की आवश्यकता है ताकि वह समाज की मुख्यधारा में आ सकें

 

◆ प्रो० लॉस्की के अनुसार – “समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्ति समान हैं। सभी के साथ समान व्यवहार किया जाए ।”

 

◆बार्कर के अनुसार – “समानता के सिद्धांत का अर्थ यह है कि अधिकारों के रूप में जो सुविधाएं मुझे प्राप्त हैं वही सुविधाएं उसी रूप में दूसरों को भी प्राप्त होंगी तथा जो अधिकार दूसरों को प्रदान किए गए हैं वह मुझे भी प्राप्त होंगे ।”

 

★समानता :-

● समानता मौलिक अधिकारों में अत्यंत महत्वपूर्ण अधिकार है। समानता का दावा है कि समान मानवता के कारण सभी मनुष्य समान महत्व और सम्मान के अधिकारी है। यही धारणा सार्वभौमिक मानवाधिकार की जनक है।

● अनेक देशों के कानूनों में समानता को शामिल किए जाने के बावजूद भी समाज में धन, सम्पदा, अवसर, कार्य, स्थिति व शक्ति की भारी असमानता नजर आती हैं

● समानता के अनुसार, व्यक्ति को प्राप्त अवसर या व्यवहार, जन्म या सामाजिक परिस्थितियों से निर्धारित नहीं होने चाहिए।

● प्राकृतिक असमानताएं लोगों में उनकी विभिन्न क्षमताओं और प्रतिभाओं के कारण तथा समाज जनित असमानताएं अवसरों की असमानता व शोषण से पैदा होती है।

 

 

 ★ समानता के दो रूप :- 

◆ नकारात्मक स्वतंत्रता :-

● नकारात्मक समानता से तात्पर्य है कि किसी वर्ग विशेष को विशेष सुविधाएं न प्राप्त हो तथा विकास की सुविधाएं उपलब्ध कराने में किसी प्रकार का विभेद न किया जाए।

● लास्की के अनुसार, ” जो अधिकार किसी अन्य व्यक्ति को नागरिक होने के नाते प्राप्त हैं वही अधिकार समान मात्रा में मुझे भी प्राप्त होना चाहिए । “

◆ सकारात्मक समानता :-

● सकारात्मक समानता से तात्पर्य यह है कि राज्य के सभी व्यक्तियों के अपने विकास के समान अवसर प्राप्त हो।

● प्राकृतिक असमानताओं को स्वीकार करते हुए सामाजिक विषमताओं को दूर करने का प्रयत्न किया जाए। समानता का वास्तविक रूप सकारात्मक है।

 

 

★ अवसरों की समानता :-

● समानता की अवधारणा इस बात पर बल देती है कि सभी मनुष्य अपनी कुशलता और प्रतिभा को विकसित करने के लिए समान अधिकारों और अवसरों के हकदार हैं।

● राजनीतिक सिद्धान्त में प्रकृति द्वारा प्रदान की गई असमानताओं और समाज द्वारा उत्पन्न असमानताओं में अन्तर किया जाता है।

 

★ प्राकृतिक और सामाजिक असमानताएँ :-

● प्राकृतिक असमानताएँ लोगों की जन्मजात विशिष्टताओं और योग्यताओं का परिणाम मानी जाती हैं।

● सामाजिक असमानताएँ वे होती हैं, जो समाज में अवसरों की असमानता होने या किसी समूह का दूसरे समूह द्वारा शोषण किये जाने से पैदा होती हैं।

 

 

★ समानता के तीन आयाम:-

1. राजनीतिक समानता :- सभी नागरिकों को समान नागरिकता प्रदान करना राजनीतिक समानता में शामिल है। समान नागरिकता अपने साथ मतदान का अधिकार संगठन बनाने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदि का अधिकार भी लाती है।

2.आर्थिक समानता :- आर्थिक समानता का लक्ष्य धनी व निर्धन समूहों के बीच की खाई को कम करना है यह सही है कि किसी भी समाज में धन या आमदनी की पूरी समानता शायद कभी विद्यमान नहीं रही किंतु लोकतांत्रिक राज्य समान अवसर की उपलब्धि कराकर व्यक्ति को अपनी हालत सुधारने की मौका देती हैं।

3. समाजिक समानता :- राजनीतिक समानता व समान अधिकार देना इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम था साथ ही समाज में सभी लोगों के जीवनयापन के लिये अनिवार्य चीजों के साथ पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा, पोषक आहार व न्यूनतम वेतन की गारण्टी को भी जरूरी माना गया है। समाज के वंचित वर्गों और महिलाओं को समान अधिकार दिलाना भी राज्य की जिम्मेदारी होगी।

 

 

★ समानता के प्रकार :-

1.प्राकृतिक समानता :- प्राकृतिक समानता के प्रतिपादक इस बात पर बल देते हैं कि प्रकृति ने मनुष्यों को समान बनाया है और सभी मनुष्य आधारभूत रूप से बराबर हैं। जो प्रत्येक मनुष्य को प्राकृतिक रूप से प्राप्त है |

 

2. सामाजिक समानता :- सामाजिक समानता का अर्थ है समाज में बिना किसी जाति, धर्म, वरंश, लिंग और रंग के समाज में किसी व्यक्ति से समान व्यवहार एवं समाजिक अवसरों से है | समाज में विशेषाधिकारों का अन्त हो जाना चाहिए और समाज में यदि सभी के साथ सामान व्यवहार , समान महत्व , सामाजिक अवसर दिया जाना चाहिए।

 

3. नागरिक समानता :- सभी व्यक्ति को क़ानूनी रूप से सामान अधिकार प्राप्त हो अर्थात कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हो इस समानता के अंतर्गत कानून किसी भी व्यक्ति से जाति, धर्म, नस्ल, वंश और लिंग के आधार पर कोई भी भेदभाव नहीं करता है ऐसी समानता को नागरिक वैधानिक समानता कहते हैं ।

 

 4. राजनितिक समानता :- जब सभी नागरिकों को राज्य द्वारा समान राजनितिक अधिकार प्राप्त हो तो इसे राजनितिक समानता कहते हैं। राजनितिक अधिकार से तात्पर्य है सभी को वोट देने का अधिकार, अपनी पसंद की सरकार चुनने का अधिकार, राजनितिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, चुनने या चुनाव लड़ने का अधिकार इत्यादि से है

 

5. आर्थिक समानता :- आर्थिक समानता का अर्थ है कि किसी व्यक्ति को अपने मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सभी को समान रोजगार, समान वेतन, व्यवसाय और समान रूप से आर्थिक कार्य करने का अधिकार हो तो ऐसी समानता को आर्थिक समानता कहते हैं

 

 

★ समानता का महत्त्व :-

(i) स्वतंत्रता के लिए समानता का होना आवश्यक है ।

(ii) मौलिक अधिकारों कि सार्थकता भी समानता से ही है ।

(iii) सभी के विकास के लिए समानता होना अति आवश्यक है ।

(iv) सामाजिक न्याय और सामाजिक स्वतंत्रता पाने के लिए समानता होना बहुत ही जरुरी है ।

(v) लोकतंत्र में अच्छी कानून के शासन के लिए समानता आवश्यक है अन्यथा लोकतंत्र का कोई मूल्यनहीं है

 (vi) समानता होने से कोई नागरिकों के बीच जाति, धर्म, भाषा, वंश, रंग और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता है |

 

 

★ हम समानता को बढ़ावा कैसे दे सकते हैं?

अवसरों की समानता :- समानता की अवधारणा इस बात पर बल देती है कि सभी मनुष्य अपनी कुशलता और प्रतिभा को विकसित करने के लिए समान अधिकारों और अवसरों के हकदार हैं।

● औपचारिक समानता की स्थापना :- समानता लाने की दिशा में पहला कदम असमानता और विशेषाधिकार की औपचारिक व्यवस्था को समाप्त करना होगा।

● विभेदक समानता की स्थापना :- वंचित वर्गों को यथार्थ में समानता प्रदान करने के लिए कुछ विशेष सुविधाएँ देने की आवश्यकता होती है। इसे विभेदक बरताव द्वारा समानता की स्थापना कहा जाता है। भारत में इस हेतु आरक्षण की नीति अपनायी गई है।

● सकारात्मक कार्यवाही :-सकारात्मक कार्यवाही इस विचार पर आधारित है कि कानून द्वारा औपचारिक समानता स्थापित कर देना पर्याप्त नहीं है। इस हेतु कुछ सकारात्मक कदम उठाए जाने आवश्यक हैं। आरक्षण का प्रावधान एक ऐसी ही सकारात्मक कार्यवाही का उदाहरण है।

● आरक्षण :- आरक्षण एक ऐसी व्यवस्था है जो समानता के सिद्धांत को खंडित नहीं करती बल्कि समानता के सिद्धांत को पुष्ट करने का प्रयास करती है।

 

 

★ समानता का मार्क्सवादी स्वरूप :-

◆  मार्क्सवाद (Marxism) :-

● मार्क्सवादी और समाजवादी महसूस करते हैं कि आर्थिक असमानताएँ सामाजिक रुतबे या विशेषाधिकार जैर्सी अन्य तरह की सामाजिक असमानताओं को बढ़ावा देती हैं।

● पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की असंगतियों एवं बुराइयों के कारण समाजवादी समानता का विचार विकसित हुआ।

● मार्क्सवादी असमानता का जन्म निजी सम्पत्ति की उत्पत्ति तथा इसके साथ ही समाज में वर्ग विभाजन हो जाने के साथ मानता है।

● समाजवाद व मार्क्सवाद के अनुसार आर्थिक असमानताएं सामाजिक सत्ये या विशेषाधिकार जैसअसमानाताओं को बढ़ावा देती है इसीलिए समान अवसर से आगे जाकर आर्थिक संसाधनों पर निजी स्वामित्व न होकर जनता का नियंत्रण सुनिश्चित करने की जरूरत है।

● मार्क्स ने तर्क दिया कि समानता भी उतनी ही निर्णायक होती है जितनी की स्वतन्त्रता । मार्क्सवादी हिंसात्मक क्रांति के बाद सभी वर्ग-भेद तथा असमानताएँ समाप्त हो जाने के प्रति आशावादी है।

 

 

 ★ समानता समाजवादी स्वरूप :-

समाजवाद (Socialism):- 

● समाजवाद का मुख्य सरोकार वर्तमान असमानताओं को न्यूनतम करना और संसाधनों का न्याय पूर्ण बंटवारा है।

● यह बुनियादी क्षेत्रों में सरकारी नियमन, नियोजन और नियंत्रण का समर्थन करते हैं।

● समाजवाद का जन्म औद्योगिक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के विरोध में हुआ।

● भारत के प्रमुख समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया ने 7 तरह की असमानताओं की पहचान कि जिनके खिलाफ एक साथ लड़ना होगा।

1.स्त्री पुरुष असमानता
2.जातिगत असमानता
3.औपनिवेशिक शासन
4.आर्थिक असमानता
5.चमड़ी के रंग पर आधारित असमानता
6.व्यक्तिगत जीवन पर अन्यायपूर्ण अतिक्रमण के खिलाफ नागरिक स्वतंत्रता के लिए क्रांति                                                                                    7. 7.अहिंसा के लिए सत्याग्रह के पक्ष में शस्त्र त्याग के लिए क्रांति

● यही सप्तक्रांति (Seven Revolutions ) थी , जो लोहिया के अनुसार समाजवाद का आदर्श है।

 

 

 ★ समानता का उदरवादी स्वरूप :-

◆ उदारवाद (Liberalism):-

● यह नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए चयन के उपाय के रूप में प्रतिस्पर्धा का सिद्धांत (Theory of Compitition ) सर्वाधिक न्यायोचित और कारगर मानते हैं।

● यह राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक असमानता को आपस में जुड़ी हुई नहीं मानते। ये उन्ही असमानता को मानते हैं जो लोगों को उनकी वैयक्तिक क्षमताएं विकसित करने से रोकती है।

● समानता ( equality) के उदारवादी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व लास्की ने किया।

● लास्की (Laski) के अनुसार “ जब तक मनुष्य अपनी अपेक्षा योग्यता तथा आवश्यकताओं में असमान है व्यवहार की असमानता असंभव है। “

 

 

★ समानता का नारीवादी स्वरूप

◆ नारीवाद ( feminism ) :-

● नारीवाद स्त्री-पुरुष के समान अधिकारों का पक्ष लेने वाला राजनीतिक सिद्धांत है। वे स्त्री या पुरुष नारीवादी कहलाते हैं।

● नारीवाद के अनुसार, स्त्री-पुरुष असमानता ‘पितृसत्ता’ का परिणाम है। ‘पितृसत्ता’ से आशय एक ऐसी समाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था से है, जिसमें पुरुष को स्त्री से अधिक महत्त्व और शक्ति दी जाती है।

● नारीवादी इस नज़रियवे स्त्री-पुरुष के जैविक विभेद और स्त्री-पुरुष के बीच सामाजिक भूमिकाओं के विभेद के बीच अंतर करने का आग्रह करते हैं। जैविक या लिंग भेद (Sex) प्राकृतिक और जन्मजात होता है. जबकि लैंगिकता (Gender) समाजजनित है।

● नारीवादी इस विभेद पर भी सवाल खड़े करते हैं। उनका कहना है कि अधिकतर स्त्रियाँ ‘ सार्वजनिक’ और ‘बाहरी’ क्षेत्र में भी सक्रिय होती हैं।

● नारीवाद का मानना है निजी/सार्वजनिक के बीच यह विभेद और समाज या व्यक्ति द्वारा गढ़ी हुई लैंगिकअसमानता के सभी रूपों को मिटाया जा सकता है और मिटाया जाना चाहिए।

 

 

 ★ भारतीय संविधान में अधिकार :- समानता का अधिकार

● सभी व्यक्तियों के साथ अवसर, रोजगार, पदोन्नति आदि के मामलों में समान व्यवहार को संदर्भित करता है, चाहे उनकी जाति, जाति, धर्म, लिंग या जन्म स्थान कुछ भी हो। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14 से 18 का संबंध समानता का अधिकार से है।

● अनुच्छेद 14 : राज्य को किसी भी व्यक्ति (भारतीयों के साथ-साथ विदेशियों) को कानून के समक्ष समानता और भारत के क्षेत्र में कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करना चाहिए।

● अनुच्छेद 15 : राज्य किसी नागरिक के साथ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता।

● अनुच्छेद 16 : राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित मामलों में अवसर की समानता।

● अनुच्छेद 17 : अस्पृश्यता का उन्मूलन और किसी भी रूप में इसके अभ्यास का निषेध। इस अनुच्छेद के अनुसार अस्पृश्यता दंडनीय अपराध है।

● अनुच्छेद 18 : राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला व्यक्ति राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के बिना किसी भी राज्य से उपाधि, उपहार, परिलब्धियां या किसी भी प्रकार का पद स्वीकार नहीं कर सकता।

 

 

 

 

2 thoughts on “अध्याय 3 : समानता / Equality”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *