संघवाद क्या है संघवाद किसे कहते है संघवाद की विशेषताएं केंद्र-राज्य सम्बन्ध भारत में संघवाद भारतीय संविधान में संघात्मक लक्षण भारतीय संविधान में एकात्मकत लक्षण संघवाद और भारत
★ भारत में संघवाद ( Federalism in India ) :-
● भारतीय संविधान के भाग में अनुच्छेद 1 से 4 तक में भारतीय संघ एवं उसके राज्य क्षेत्र के बारे में उपबंध हैं।
● अनुच्छेद 1 (1) के अनुसार – ‘ भारत अर्थात इंडिया , राज्यों का संघ होगा ‘
● भारत का नाम ( भारत अर्थात इंडिया ) भारत राज्य का स्वरूप ( राज्यों का यूनियन ) ।
★ भारतीय संघवाद ( Indian Federalism ) :-
◆ संघात्मक ( Federal ):- संघीय शासन व्यवस्था में शासन की समस्त शक्तियां संविधान द्वारा केन्द्र व राज्य सरकार के बीच विभाजित होती हैं।
● वर्तमान में अमेरिका , आस्ट्रेलिया , कनाडा , ब्राजील में संघात्मक शासन है।
◆ एकात्मक (Unitary ) :- एकात्मक शासन प्रणाली में शासन की समस्त शक्तियां संविधान के द्वारा एक केन्द्रीय सरकार में निहित होती हैं।
● वर्तमान में ब्रिटेन , फ़्रांस , जापान , इटली में एकात्मक शासन है।
★ संघात्मक एव एकात्मक सरकार का तुलनात्मक विश्लेषण
◆ संघात्मक सरकार
1. दोहरी सरकार (अर्थात् राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सरकार) ।
2. लिखित संविधान
3. राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सरकारों के मध्य शक्तियों का विभाजन
4. संविधान की सर्वोच्चता
5. कठोर संविधान
6. स्वतंत्र न्यायपालिका
7. द्विसदनीय विधायिका
◆ एकात्मक सरकार
1. एकल सरकार राष्ट्रीय सरकार होती है, जो क्षेत्रीय सरकार बना सकती है।
2.संविधान लिखित भी हो सकता है (फ्रांस) या अलिखित (ब्रिटेन) भी।
3. शक्तियों का कोई विभाजन नहीं होता तथा समस्त शक्तियाँ राष्ट्रीय सरकार में निहित होती हैं।
4.संविधान सर्वोच्च भी हो सकता है (जापान) और नहीं भी (ब्रिटेन) ।
5. संविधान कठोर भी हो सकता है। (फ्रांस) या लचीला (ब्रिटेन) भी।
6.न्यायपालिका स्वतंत्र भी हो सकती है। नहीं भी ।
7. विधायिका द्विसदनीय भी हो सकती है। (ब्रिटेन) और एक सदनीय (चीन) भी।
★ भारतीय संविधान में संघात्मक लक्षण ( Federal Features in Indian Constitution ) :-
● संविधान की सर्वोच्चता :- कोई भी शक्ति संविधान से ऊपर नहीं है सभी संविधान के दायरे में रहकर काम करेंगे ।
● शक्तियों का विभाजन :- देश में केन्द्र तथा राज्य सरकारों के मध्य शक्तियों को तीन सूचियों ( संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची ) के अन्तर्गत बांटा गया है ।
● स्वतंत्र न्यायपालिका :- भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका है जो सरकार को तानाशाह होने से रोकता है, तथा सभी नागरिकों को निष्पक्ष न्याय दिलाती है।
● संशोधन प्रणाली :- यह संघीय प्रक्रिया के अनुरूप है ।
● तीन स्तर की सरकारें :- केन्द्र, राज्य एवं स्थानीय
★ भारतीय संविधान में एकात्मकत लक्षण ( Unitary Features in Indian Constitution ) :-
◆ भारतीय संविधान में संघात्मक लक्षणों के साथ ही एकात्मक लक्षण भी है जो निम्न :-
● इकहरी नागरिकता ।
● एकीकृत न्याय-व्यवस्था
● शक्तियों का बंटवारा केंद्र के पक्ष में
● संघ और राज्यों के लिए एक ही संविधान ।
● आपातकाल में एकात्मक शासन
● राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति
● इकहरी प्रशासकीय व्यवस्था ( अखिल भारतीय सेवाएं – IAS )
● संविधान संशोधन में संघीय सरकार का महत्त्व |
★ संघवाद क्या है ( What is Federal ) :-
● निश्चित रूप से संघवाद एक संस्थागत प्रणाली है जो दो प्रकार की राजनीतिक व्यवस्थाओं को समाहित करती है।
● इसमें एक प्रांतीय स्तर की होती है और दूसरी केंद्रीय स्तर की । प्रत्येक सरकार अपने क्षेत्र में स्वायत्त होती है।
● कुछ संघीय देशों में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था होती है पर भारत में इकहरी नागरिकता है। इस प्रकार लोगों की दोहरी पहचान और निष्ठाएँ होती हैं।
● वे अपने क्षेत्र के भी होते हैं और राष्ट्र के भी। जैसे हममें से कोई गुजराती या झारखंडी होने के साथ-साथ भारतीय भी होता है।
● प्रत्येक स्तर की राजनीतिक व्यवस्था की कुछ विशिष्ट शक्तियाँ और उत्तरदायित्व होते हैं तथा वहाँ एक अलग सरकार भी होती है।
● दोहरे शासन की विस्तृत रूपरेखा अमूमन एक लिखित संविधान में मौजूद होती है।
● यह संविधान सर्वोच्च होता है और दोनों सरकारों की शक्तियों का स्रोत भी। राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों जैसे प्रतिरक्षा और मुद्रा – का उत्तरदायित्व संघीय या केंद्रीय सरकार का होता है।
● क्षेत्रीय या स्थानीय महत्त्व के विषयों पर प्रांतीय राज्य सरकारेंजवाबदेह होती हैं।
● केंद्र और राज्यों के मध्य किसी टकराव को रोकने के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था होती है जो संघर्षों का समाधान करती है।
● न्यायपालिका को केंद्रीय सरकार और राज्यों के बीच शक्ति के बँटवारे के संबंध में उठने वाले कानूनी विवादों को हल करने का अधिकार होता है।
★ भारतीय संविधान में संघवाद :-
● भारत जैसे विशाल देश पर शासन करने के लिए शक्तियों को प्रांतीय और केंद्रीय सरकारों के बीच बाँटना जरूरी होगा।
● भारतीय समाज में क्षेत्रीय और भाषाई विविधताएँ हैं। इन विविधताओं को मान्यता देने की आवश्यकता थी।
● विभिन्न क्षेत्रों और भाषा-भाषी लोगों को सत्ता में सहभागिता करनी थी तथा इन क्षेत्रों के लोगों को स्वशासन का अवसर मिलना चाहिए था।
● अगर हमारी मंशा लोकतांत्रिक शासन स्थापित करने की थी, तो इन बातों को लागू करना अपरिहार्य था ।
★ केन्द्र-राज्य सम्बन्ध :-
1. विधायी सम्बन्ध ( अनुच्छेद 245-255)
● संघ सूची (Union List ) :-
संघ सूची में प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग, संचार और मुद्रा जैसे राष्ट्रीय महत्व के विषय हैं। पूरे देश के लिए इन मामलों
में एक तरह की नीतियों की ज़रूरत है। इसी कारण इन विषयों को संघ सूची में डाला गया है। संघ सूची में वर्णित 97 विषयों के बारे में कानून बनाने का अधिकार सिर्फ़ केंद्र सरकार को है।
● राज्य सूची ( State List ) :-
राज्य सूची में पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि और सिंचाई जैसे प्रांतीय और स्थानीय महत्व के विषय हैं। राज्य सूची में 66 वर्णित विषयों के बारे में सिर्फ़ राज्य सरकार ही कानून बना सकती है।
● समवर्ती सूची ( Concurrent List ) :-
समवर्ती सूची में शिक्षा, वन, मजदूर- (संपादक और उत्तराधिकार जैसे वे विषय है जो केंद्र के साथ राज्य सरकारों को साझी दिलचस्पी में आते है।
इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों और केंद्र सरकार दोनों को ही है। लेकिन जब दोनों के कानूनों में टकराव हो तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया कानून हो मान्य होता है। वर्णित विषय 47 हैं।
2. प्रशासनिक संबंध ( अनुच्छेद 256-263) :-
● प्रशासनिक संबंधों से तात्पर्य केंद्र व राज्यों की सरकारों के कार्यपालिका संबंधी तालमेल से होता है।
● प्रशासनिक शक्तियों के विभाजन में संघीय सरकार अधिक शक्तिशाली है और राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार के प्रशासन पर संघ को पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया गया है।
● भारतीय संविधान ने प्रशासनिक व्यवस्था में एकरूपता सुनिश्चित करने का भी प्रावधान किया है। इसमें IAS और IPS जैसी अनिल भारतीय सेवाओं का निर्माण और उन्हें राज्य के प्रमुख पद आवंटित करने संबंधी प्रावधान शामिल हैं।
3. वित्तीय संबंध (अनुच्छेद 264-291) :-
● संविधान के अनुसार, संसद के पास संघ सूची में शामिल विषयों पर कर लगाने की शक्ति है।
● राज्य विधायिकाओं के पास राज्य सूची में शामिल विषयों पर कर लगाने की शक्ति है।
● संसद और राज्य विधायिकाओं दोनों के पास ही समवर्ती सूची में वर्णित विषयों पर कर लगाने का अधिकार है।
★ संघीय व्यवस्था विशेषताएं :-
1. यहाँ सरकार दो या अधिक स्तरों वाली होती है।
2. अलग-अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं पर कानून बनाने, कर वसूलने और प्रशासन का उनका
अपना-अपना अधिकार क्षेत्र होता है।
3. विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकार-क्षेत्र संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित होते हैं इसलिए संविधान सरकार के हर स्तर के
अस्तित्व और प्राधिकार की गारंटी और सुरक्षा देता है।
4. संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती। ऐसे बदलाव दोनों स्तर की सरकारों
की सहमति से ही हो सकते हैं।
5. अदालतों को संविधान और विभिन्न स्तर की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार है। विभिन्न स्तर की
सरकारों के बीच अधिकारों के विवाद की स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय निर्णायक की भूमिका निभाता है।
6. वित्तीय स्वायत्तता निश्चित करने के लिए विभिन्न स्तर की सरकारों के लिए राजस्व के अलग-अलग स्रोत निर्धारित हैं।
7. इस प्रकार संघीय शासन व्यवस्था के दोहरे उद्देश्य हैं : देश की एकता की सुरक्षा करना और उसे बढ़ावा देना तथा इसके साथ ही क्षेत्रीय विविधताओं का पूरा सम्मान करना।
★ केन्द्र और राज्य के बीच सम्बन्ध :-
● स्वायत्तता की मांग :- समय समय पर अनेक राज्यों और राजनीतिक दलों में राज्यों को केन्द्र के मुकाबले ज्यादा स्वायतता देने की मांग उठाई हे जो निम्न रूपों में है।
● वित्तीय स्वायत्तता :- राज्यों के आय के अधिक साधन होने चाहिए तथा संसाधनों पर राज्य का नियंत्रण
● प्रशासनिक स्वायत्तता :- शक्ति विभाजन को राज्यों के पक्ष में बदला जाएं। राज्यों को अधिक महत्व के अधिकार । शक्तियां दी जाए
● सांस्कृतिक और भाषाई मुद्दे :- तमिलनाडु में हिन्दी विरोध मे पंजाब में पंजाबी व संस्कृत के प्रोत्साहन की मांग |
● राज्यपाल की भूमिका तथा राष्ट्रपति शासन :- केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों की सरकारों की सहमति के बिना, राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा करा दी जाती है ।
● राष्ट्रपति शासन :- केन्द्र सरकार द्वारा राज्यपाल के माध्यम से अनुच्छेद 356 का अनुचित प्रयोग कर राज्यों – में राष्ट्रपति शासन लगवा देना ।
● नए राज्यों की मांग :- भारतीय संघीय व्यवस्था में नवीन राज्यों के गठन की मांग को लेकर भी तनाव रहा है
● अंतर्राज्यीय विवाद :- संघीय व्यवस्था में दो या दो से अधिक राज्यों में आपसी विवादों के अनेकों उदाहरण है ।
● विशिष्ट प्रावधान :- (पूर्वोतर के राज्य तथा जम्मू कश्मीर )
★ भारत के लिये संघवाद का महत्त्व :-
● भारतीय प्रशासन में शक्ति केंद्र से स्थानीय निकायों यानी पंचायत तक प्रवाहित होती है, इसी कारण देश में विकेंद्रीकरण आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके ताकि केंद्र सभी शक्तियों का अधिग्रहण न करे।
● यही संघवाद की आवश्यकता को जन्म देता है। यह प्रणाली कार्य के बोझ तले दबे प्रशासन की काफी मदद करती है। गौरतलब है कि केंद्र पर बैठे अधिकारी गाँवों तक नहीं पहुँच पाते जिसके कारण गाँव विकास से अछूते रह जाते हैं।
● इसलिये स्थानीय सरकार कार्यपालिका को निचले स्तर तक पहुँचने में मदद करती है और देश के सभी नागरिकों की लोकतंत्र में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करती है।
● भारत में विभिन्न नस्लों और धर्मों के लोग मौजूद हैं। सरकार ने एक धर्मनिरपेक्ष विचार को अपनाया जो 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में जोड़ा गया।
● संघवाद की अवधारणा देश के अंतर्गत विविधता को कायम रखने में मदद करती है।
★ विकेंद्रीकरण :- जब केन्द्र सरकार और राज्य सरकार से शक्ति है। लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती है तो इसे सत्ता का विकेन्द्रीकरण कहते हैं।
● 1992 में संविधान में संशोधन करके लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के इस तीसरे स्तर को ज़्यादा शक्तिशाली और प्रभावी बनाया गया।
● निर्वाचित स्वशासी निकायों के सदस्य तथा पदाधिकारियों के पदों में अनूसचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ी जातियों के लिए सीटें आरक्षित हैं।
● राज्य सरकारों को अपने राजस्व और अधिकारों का कुछ हिस्सा इन स्थानीय स्वशासी निकायों को देना पड़ता है। सत्ता में भागीदारी की प्रकृति हर राज्य मेंअलग-अलग है।
● हर राज्य में पंचायत और नगरपालिका चुनाव कराने के लिए राज्य चुनाव आयोग नामक स्वतंत्र संस्था का गठन किया गया है।
● अब स्थानीय स्वशासी निकायों के चुनाव नियमित रूप से कराना संवैधानिक बाध्यता है।
● गाँवों के स्तर पर मौजूद स्थानीय शासन व्यवस्था को पंचायती राज के नाम से जाना
● कम से कम एक तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।
◆ भारत में संघीय व्यवस्था तीन स्तरीय शासन व्यवस्था हैं।
1.संघ सरकार या केंद्र सरकार
2.राज्य सरकार
2.पंचायत और नगरपालिका
◆ भारतीय संघवाद की उत्पत्ति :– भारत में भारत सरकार अधिनियम के 1935 के माध्यम से सबसे पहले संघवाद शब्द का प्रयोग किया गया