तत्वों का आवर्त वर्गीकरण
तत्व :- ऐसे पदार्थ जो एक ही प्रकार के अणुओं से मिलकर बने हैं , तत्व कहलाते हैं । उदाहरण :- सोडियम , सोना , मैग्नीशियम । आज तक हम 118 तत्वों की जानकारी प्राप्त कर चुके है । इन सभी तत्वों के गुण भिन्न – भिन्न है । इनमें से 94 तत्व प्राकृतिक रूप में पाये जाते है ।
तत्वों के वर्गीकरण के प्रारम्भिक प्रयास :- सबसे पहले , ज्ञात तत्वों को धातु एवं अधातु में वर्गीकृत किया गया । जैसे – जैसे तत्वों एवं उनके गुणधर्मों के बारे में हमारा ज्ञान बढ़ता गया , वैसे – वैसे उन्हें वर्गीकृत करने के प्रयास किए गए ।
वर्गीकरण की आवश्यकता क्यों ? तत्व को सुव्यवस्थित ढंग से पढ़ने के लिए तथा उनके अध्ययन को आसान बनाने हेतु उनको वर्गीकृत किया गया ।
तत्त्वों का आवर्ती वर्गीकरण :- तत्त्वों की ऐसी व्यवस्था , जिसमें निश्चित अंतराल के बाद समान गुण वाले पदार्थ ( तत्त्व ) उपस्थित हों , तत्त्वों का आवर्ती वर्गीकरण कहलाता है ।
तत्त्वों के आवर्ती वर्गीकरण हेतु ‘ डॉबेरिनियर का त्रिक् सिद्धांत न्यूलैंड का अष्टक सिद्धांत , लोथर मेयर का परमाणु भार , परमाणु आयतन वक्र आदि नियम दिये गए , परंतु वृहद् अध्ययन करने पर उपरोक्त सभी नियम त्रुटिपूर्ण सिद्ध हुए ।
डॉबेराइनर के त्रिक :-
सन् 1817 में जर्मन रसायनज्ञ , वुल्फगांग डॉबेराइनर ने समान गुणधर्मों वाले तत्वों को समूहों में व्यवस्थित करने का प्रयास किया ।
उन्होंने जब तत्वों को उनके बढ़ते हुए परमाणु भार के अनुसार क्रमवार लगाया तो तीन तत्वों के समूह प्राप्त हुए जिन्हें त्रिक कहा गया । डॉबेराइनर ने बताया की त्रिक के मध्य तत्व का परमाणु भार अन्य दो तत्वों के परमाणु भार का औसत होता है ।
तत्व परमाणु भार
कैल्शियम Ca 40.1
स्ट्रांशियम Sr 87.6
बेरियम Ba 137.3
डॉबेराइनर के त्रिक की सीमाएँ :– उस समय तक ज्ञात तत्वों में केवल तीन त्रिक ही ज्ञात कर सके थे ।
डॉबेराइनर त्रिक :-
Li | Ca | CI |
Na | Sr | Br |
K | Ba | I |
न्यूलैंड्स का अष्टक सिद्धांत :-
सन् 1866 में अंग्रेज़ वैज्ञानिक जॉन न्यूलैंड्स ने ज्ञात तत्वों को परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में व्यवस्थित किया । उन्होंने सबसे कम परमाणु द्रव्यमान वाले तत्व हाइड्रोजन से आरंभ किया तथा 56 वें तत्व थोरियम पर इसे समाप्त किया ।
न्यूलैंड्स ने तत्वों को बढ़ते परमाणु भार के क्रम में व्यवस्थित किया तो पाया कि प्रत्येक आठवें तत्व के गुण पहले तत्व के समान थे । इसकी तुलना संगीत के अष्टक से की गई तथा इसीलिए इसे अष्टक का सिद्धान्त कहा गया । उदाहरण :- लिथियम एवं सोडियम धातु के गुण समान हैं ।
न्यूलैंड्स के अष्टक सिद्धांत सीमायें :-
यह नियम केवल कैल्शियम धातु ( हल्के तत्वों तक ) लागू होता है । नए तत्वों के गुण इस सारणी से मेल नहीं खाते थे । सारणी में तत्वों को समंजित करने के लिए न केवल दो तत्वों को एक साथ रख दिया बल्कि असमान तत्वों जिनके गुणों में कोई समानता नहीं थी , एक स्थान में रख दिया ।
न्यूलैंड्स का अष्टक :-
सा (डो) रे (रे) गा (मि) मा (फा) पा (सो) धा (ल) नि(टि)
H Li Be B C N O
F Na Mg Al Si P S
C1 K Ca Cr Ti Mn Fe
Co तथा Ni Cu Zn Y In As Se
Br Rb Sr Ce तथा La Zn – –
तत्त्वों के प्रमुख आवर्त नियम :- तत्त्वों के आवर्ती वर्गीकरण हेतु सर्वप्रथम मेंडलीफ ने एक आवर्त सारणी दी जो उनके आवर्त नियम पर आधारित थी ।
मेंडलीफ का आवर्त नियम :-
मेंडलीफ के आवर्त नियम के अनुसार , तत्त्वों के गुण उनके परमाणु भारों के आवर्ती फलन होते हैं अर्थात् तत्त्वों को उनके बढ़ते परमाणु भार के क्रम में व्यवस्थित करने पर समान भौतिक व रासायनिक गुण वाले तत्त्व एक निश्चित अंतराल के बाद आते हैं , जिसे आवर्ती गुण कहा जाता है ।
मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी :- रूसी रसायनज्ञ इमिर्त्री इवानोविच मेन्डेलीफ को तत्वों के वर्गीकरण का मुख्य श्रेय जाता है । मेन्डेलीफ के समय मे 63 तत्व ज्ञात थे । ये तत्वों के परमाणु द्रव्यमान एवं उनके भौतिक एव रासायनिक गुणों के बीच सम्बन्धो का अध्ययन किया । रासायनिक गुणों में तत्वों के ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन के साथ बनने वाले यौगिकों पर अपना ध्यान केंद्रीत किया । उन्होंने 63 कार्डो पर अलग – अलग तत्वों के गुणधर्मो को लिखा । इसके बाद समान गुणो वाले तत्वों को अलग करने के बाद कार्डो को पिन की सहायता से दीवार पर लटका दिया । उन्होंने देखा कि अधिकांश तत्व को आवर्त सारणी में स्थान मिल गया । तथा परमाणु द्रव्यमान के आरोहीक्रम में ये तत्व व्यवस्थित हो गए ।
इसमें आठ ऊर्ध्वाधर स्तम्भ हैं जिन्हें समूह कहते हैं तथा 6 क्षैतिज पक्तियाँ हैं जिन्हें आवर्त कहते हैं ।
मेंडलीफ की आवर्त सारणी के गुण :-
मेंडलीफ ने अपनी आवर्त सारणी में तत्त्वों को परमाणु भारों के बढ़ते हुए क्रम में क्षैतिज पंक्तियों में व्यवस्थित किया , जिन्हें श्रेणियाँ कहा गया । श्रेणियों को सात क्षैतिज कॉलमों में बाँटा गया , जिन्हें आवर्त कहा गया । श्रेणियों को आठ खड़े कॉलमों में बाँटा गया , जिन्हें वर्ग कहा गया । मेंडलीफ की आवर्त सारणी से तत्त्वों व उनके यौगिकों का अध्ययन सुविधाजनक व क्रमबद्ध हो गया । किसी वर्ग के लक्षणों का सामान्य अध्ययन कर लेने से उस वर्ग के सभी तत्त्वों के गुणों का अनुमान हो जाता है । विभिन्न तत्त्वों , जैसे- प्लेटिनम , यूरेनियम आदि के परमाणु भार उनकी आवर्त सारणी में स्थिति देखते हुए संशोधित किये गए हैं । मेंडलीफ ने आवर्त सारणी में कुछ स्थान नए खोजे जाने वाले तत्त्वों के लिये छोड़ दिये थे , जिनके स्थान पर नए खोजे गए तत्त्वों ( जैसे Sc , Ga , Ge ) आदि को रखा गया । अतः आवर्त सारणी ने नए तत्त्वों की खोज को प्रेरित किया । पिछली व्यवस्था को छेड़े बिना ही , अक्रिय गैसों का पता लगने पर इन्हें अलग समूह में रखा जा सकता था ।
मेंडलीफ की आवर्त सारणी के दोष :-
मेंडलीफ की आवर्त सारणी में हाइड्रोजन का सही स्थान नहीं दे पाए । समस्थानिकों व समभारिकों को आवर्त सारणी में स्थान देना कठिन था । कुछ भिन्न गुणों वाले तत्त्वों को एक साथ रखा गया था । जैसे क्षार धातुएँ ( Li , Na , K आदि ) अत्यधिक क्रियाशील हैं , जिन्हें अल्प क्रियाशील मुद्रा धातुओं ( Cu , Ag , Au ) के साथ प्रथम वर्ग में रख दिया गया है ।
आधुनिक आवर्त सारणी :-
सन् 1913 में हेनरी मोज्ले ने बताया कि तत्व के परमाणु द्रव्यमान की तुलना में उसका परमाणु – संख्या ( Z ) अधिक आधारभूत गुणधर्म है । तदनुसार , मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में परिवर्तन किया गया तथा परमाणु संख्या को आधुनिक आवर्त सारणी के आधार के रूप में स्वीकार किया गया
इस आधुनिक आवर्त नियम को इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है :- तत्व के परमाणु द्रव्यमान की तुलना में उसका परमाणु संख्या अधिक आधारभूत गुणधर्म है ।
आधुनिक आवर्त नियम के अनुसार :- “ तत्वों के गुणधर्म उसकी परमाणु संख्या का आवर्त फलन होते हैं । “
मेन्डेलीफ की आर्वत सारणी के वह दोष आधुनिक आर्वत सारणी द्वारा दूर हो गए :-
समस्थानिकों की स्थिति स्पष्ट की गई । ( समान परमाणु संख्या वाले तत्व एक स्थान पर समान समूह में रखा गया । ) कोबाल्ट जिसकी परमाणु संख्या 27 है वह निकल ( परमाणु संख्या 28 ) से पहले आएगा । परमाणु संख्या सदैव पूर्ण संख्या होती है , अतः हाइड्रोजन व हीलियम के बीच में कोई तत्व नहीं आएगा ।
परमाणु संख्या :- परमाणु संख्या को ‘ Z ‘ से निरूपित किया जाता है । परमाणु संख्या अणु के केन्द्र में पाए जाने वाले प्रोटॉन की संख्या के बराबर होते हैं ।
आधुनिक आवर्त सारणी में तत्वों की स्थिति :- आधुनिक आर्वत सारणी में 18 ऊर्ध्व स्तंभ हैं जिन्हें ‘ समूह ‘ कहा जाता है तथा 7 क्षैतिज पंक्तियाँ है जिन्हें आवर्त कहा जाता है ।
किसी भी आवर्त में पाए जाने सभी तत्वों में कोशों की संख्या समान होती है । उदाहरण :- Li ( 2 , 1, ) , Be ( 2 , 2 ); B- ( 2 , 3 ); C ( 2 , 4 ), N ( 2 , 5 ) इन सभी तत्वों में कोशों की संख्या समान है ।
एक समूह के सभी तत्वों में संयोजी इलेक्ट्रानों की संख्या समान होती है । उदाहरण :- समूह 1 → H – 1 , Li – 2, 1 , N – 2, 8, 1 , K – 2,8,8,1
सभी तत्वों में संयोजी इलेक्ट्रानों की संख्या ( 1 ) समान है । समूह में नीचे जाने पर कोशों की संख्या बढ़ती जाती है ।
आवर्त :- किसी विशेष आवर्त में पाए जाने वाले तत्वों की संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि किस प्रकार इलेक्ट्रान विभिन्न कोशों में भरे जाते हैं । विभिन्न कोशों में भरे जाने वाले इलेक्ट्रानों की संख्या के आधार पर आवर्त में तत्वों की संख्या बता सकते हैं । किसी कोश में इलैक्ट्रानों की अधिकतम संख्या सूत्र 2n² द्वारा निरूपित की जाती है जहाँ n दिए गए कोश की संख्या को दर्शाता है । उदाहरण :- K कोश ( n = 1 ) → 2 × (1)² = 2 तत्व प्रथम आवर्त में दो तत्व हैं । L कोश ( n = 2 ) → 2 × (2)² = 8 तत्व प्रथम आवर्त में दो तत्व हैं ।
आवर्त सारणी में तत्वों की स्थिति :- आवर्त सारणी में तत्वों की स्थिति उनकी रासायनिक क्रियाशीलता को बताती है । संयोजकता इलेक्ट्रानों द्वारा , तत्व द्वारा निर्मित आबंध का प्रारूप तथा संख्या निर्धारित होती है ।
आधुनिक आवर्त सारणी की प्रवृति :-
संयोजकता :- जब तत्व रासायनिक यौगिक बनाता है तो दूसरे परमाणु के साथ तत्व की संयोजक क्षमता को संयोजकता कहते हैं अथवा बाहयतम कोश को पूरा करने के लिए तत्व को जितनी इलेक्ट्रॉन लेने , देने या सांझा करने की जरूरत होती है , वह तत्व की संयोजकता कहलाती है ।
तीसरा आवर्त Na Mg Al Si P S Cl Ar
संयोजकता 1 2 3 4 3 2 1 0
परमाणु साइज :- परमाणु साइज से परमाणु की त्रिज्या का पता चलता है । एक परमाणु के केन्द्र से बाह्यत्तम कोश की दूरी ही परमाणु साइज है ।
आवर्त में बाएँ से दाएँ जाने पर परमाणु साइज या त्रिज्या घटती है क्योंकि नाभिकीय आवेश में क्रमिक वृद्धि होती है ।
तीसरा आवर्त Na Mg Al Si P S Cl
त्रिज्या ( pm ) 186 160 143 118 110 104 99
समूह में ऊपर से नीचे आने पर परमाणु त्रिज्या बढ़ती है क्योंकि नए कोशों की संख्या बढ़ती है जिससे कि नाभिक और बातम कोश की दूरी बढ़ती जाती है ।
धात्विक गुण :- धात्विक गुण का अर्थ है किसी तत्व के परमाणु द्वारा इलेक्ट्रान त्यागने की क्षमता ।
धात्विक गुणधर्म :- धातुएँ आवर्त सारणी में बाएँ तरफ हैं । आवर्त में बाएँ से दाएँ जाने पर धात्विक गुण कम हो जाता है क्योंकि इलेक्ट्रॉनों पर नाभिकीय आवेश बढ़ता है , इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति घट जाती है । धातु इलेक्ट्रॉन खोते हैं और धनात्मक आयन बनाते हैं । अतः धातु वैद्युत धनात्मक तत्व कहलाते हैं । समूह में ऊपर से नीचे आने पर धात्विक गुण बढ़ता है । क्योंकि संयोजकता इलेक्ट्रॉनों पर नाभिकीय आवेश घटता है तथा बाहरी इलेक्ट्रॉन सुगमतापूर्वक निकल जाते हैं ।
अधात्विक गुणधर्म :- अधातुएँ वैद्युत ऋणात्मक होती हैं । वे इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करती हैं । अधातुएँ , आवर्त सारणी में दाएँ ओर पाई जाती हैं । आवर्त में बाएँ से दाएँ जाने पर अधात्विक गुण बढ़ता है क्योंकि प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ने के कारण इलेक्ट्रान ग्रहण करने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है । समूह में ऊपर से नीचे आने पर अधात्विक गुण कम होता जाता है क्योंकि प्रभावी नाभिकीय आवेश कम हो जाता है जिससे इलेक्ट्रॉन अपनाने की क्षमता कम हो जाती है । आवर्त सारणी के मध्य में उपधातु या अर्द्धधातुएँ पाई जाती हैं । ये कुछ गुण धातुओं के तथा कुछ गुण अधातुओं के दर्शाते हैं । धातु आक्साइड क्षारीय प्रकृति के होते हैं जबकि अधातु आक्साइड अम्लीय प्रकृति के होते है ।