स्थानीय शासन भारत में स्थानीय का विकास पंचायती राज्य व्यवस्था नगरपालिका बलवंत राय मेहता समिति 1957 अशोक मेहता समिति 1977 पी के थुंगन समिति 1989 संविधान संशोधन 1992 73वाँ गाँव ग्यारहवीं अनुसूची में दर्ज 29 विषय74वाँ शहर बाहरवीं अनुसूची में दर्ज 18 विषय
★ स्थानीय शासन :-
● केंद्रीय और प्रादेशिक स्तर पर निर्वाचित सरकार की मौजूदगी ही किसी लोकतंत्र के लिए काफी नहीं।
● लोकतंत्र के लिए यह भी ज़रूरी है कि स्थानीय स्तर पर स्थानीय मामलों की देखभाल करने वाली एक निश्चित सरकार हो।
● इस अध्याय में हम अपने देश में मौजूद स्थानीय सरकार की बनावट का अध्ययन करेंगे। हम यह भी पढ़ेंगे कि स्थानीय सरकार का क्या महत्त्व है।
★ संघवाद :- 1950 में संघीय शासन-पद्धति को अपनाया गया। भारत राज्यों का एक संघ हैं।
● संघीय शासन व्यवस्था :- शासन की समस्त शक्तियां संविधान द्वारा केन्द्र व राज्य सरकार के बीच विभाजित होती हैं।
● विकेंद्रीकरण :- जब केंद्र सरकार और राज्य सरकार से शक्ति लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती है तो इसे सत्ता का विकेंद्रीकरण कहते हैं।
● स्थानीय शासन :-1992 संविधान संशोधन द्वारा 73वाँ संशोधन गाँव ( पंचायती राज्य व्यवस्था ) और 74वाँ शहर ( नगरपालिका ) से जुड़ा है।
★ स्थानीय शासन :- गाँव और जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते हैं।
● स्थानीय शासन के स्तर पर आम नागरिक को उसके जीवन से जुड़े मसलों , जरूरतों और उसके विकास के बारे में फैसला लेने की प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है।
★ भारत में स्थानीय शासन का विकास :-
● आधुनिक भारत में स्थानीय शासन की शुरूआत ब्रिटिश काल में हुई।
● 1882 में ब्रिटिश भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड रिपन ( Lord Rippon) ने भारत में स्थानीय स्वशासन की शुरुआत की ।
● लॉर्ड रिपन को भारत में स्थनीय स्वशासन का जनक माना जाता है।
● स्थानीय शासन राज्य विषय सूची का विषय है। स्थानीय शासन के अन्तर्गत पंचायती राज ( ग्रामीण ) व शहरी स्थानीय शासन ( नगरीय ) क्षेत्र दोनों आते हैं।
★पंचायती राज से संबंधित विभिन्न समितियाँ :-
1. बलवंत राय मेहता समिति (1957) :-
● त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली की स्थापना: ग्राम-स्तरीय ग्राम पंचायतें, ब्लॉक-स्तरीय पंचायत समितियाँ और जिला-स्तरीय जिला परिषदें। अप्रत्यक्ष चुनाव की एक प्रणाली के माध्यम से, इन स्तरों को व्यवस्थित रूप से जोड़ा जाना चाहिए।
● ग्राम पंचायत प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों से बनी होनी चाहिए, जबकि पंचायत समिति और जिला परिषद अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों से बनी होनी चाहिए।
● ये निकाय सभी योजना और विकास प्रयासों के प्रभारी होंगे। कार्यकारी निकाय पंचायत समिति होना चाहिए, जबकि सलाहकार, समन्वय और पर्यवेक्षण निकाय जिला परिषद होना चाहिए।
● जिला परिषद का अध्यक्ष जिला कलक्टर होगा। इन लोकतांत्रिक संस्थाओं को सत्ता और कर्तव्य का सार्थक हस्तांतरण प्राप्त होना चाहिए।
● राष्ट्रीय विकास परिषद ने जनवरी 1958 में समिति की सिफारिशों को अपनाया।
● यह पंचायती राज के विकास और भारत में 73वें संविधान संशोधन के लिए मील का पत्थर बन गया।
● 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान पंचायती राज लागू करने वाला पहला राज्य बना। आंध्र प्रदेश ने 1959 में इस योजना को अपनाने में राजस्थान का अनुसरण किया। उसके बाद, अधिकांश सरकारों ने इस प्रणाली को अपनाया।
●अधिकांश राज्यों ने 1960 के दशक के मध्य तक पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना की थी, स्तरों की संख्या, समिति और परिषद की सापेक्ष स्थिति, उनके कार्यकाल, संरचना, कार्य, वित्त, आदि के संदर्भ में राज्यों में भिन्नताएं थीं।
2. अशोक मेहता समिति (1977 ):-
● त्रि-स्तरीय पंचायती राज प्रणाली को दो-स्तरीय संरचना के साथ बदल दिया जाना चाहिए, एक जिला-स्तरीय जिला परिषद और एक मंडल पंचायत जिसमें 15,000 से 20,000 लोगों की संयुक्त आबादी वाले गाँवों का संग्रह हो।
● राज्य स्तर से नीचे, एक जिला लोकप्रिय पर्यवेक्षण के तहत विकेंद्रीकरण का पहला बिंदु होना चाहिए।
● जिला परिषद कार्यकारी निकाय होगा और जिला योजना का प्रभारी होगा।
● राजनीतिक दलों को सभी स्तरों पर पंचायत चुनावों में भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिए।
● अपने स्वयं के वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए, पंचायती राज संगठनों के पास अनिवार्य कर लगाने की शक्तियां होनी चाहिए।
● यदि पंचायती संस्थाओं का अधिक्रमण किया जाता है तो 6 माह के भीतर चुनाव कराने होंगे।
● पंचायती राज मंत्री को राज्य स्तर पर नियुक्त किया जाना चाहिए।
● अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए सीटें आरक्षित होनी चाहिए।
● पंचायती संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाए।
3. जी.वी.के. राव समिति (1985) :-
● ग्रामीण विकास एवं गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम की प्रशासनिक व्यवस्था के लिए योजना आयोग द्वारा 1985 में जी.वी.के. राव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया।
● जी.वी.के. राव समिति ने पंचायती राज प्रणाली को सुदृढ़ करने सम्बन्धी निम्न सिफारिशें कीं जो इस प्रकार हैं :-
● समिति ने जिला परिषद् को लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के विकास में महत्त्वपूर्ण निकाय माना तथा सिफारिश की कि नियोजन व विकास कार्यक्रमों के प्रबन्धन के लिए जिला परिषद् को मुख्य निकाय बनाया जाना चाहिए।
● ग्रामीण क्षेत्रों की विकास प्रक्रिया में ब्लॉक विकास कार्यक्रम (B.D.O.) आधार स्तम्भ होना चाहिए।
● इस समिति ने राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद्, जिला स्तर पर जिला परिषद्, मण्डल स्तर पर मण्डल पंचायत तथा गाँव स्तर पर गाँव सभा के गठन की सिफारिश की।
● जिला परिषद् के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में ‘जिला विकास आयुक्त’ के पद का सृजन किया जाना चाहिए।
4. एल. एम. सिंघवी समिति (1986) :-
● 1986 में राजीव गांधी सरकार ने ‘लोकतंत्र व विकास के लिए पंचायती राज संस्थाओं का पुनरुद्धार पर एक समिति का गठन एल.एम. सिंघवी की अध्यक्षता में किया। इसमें निम्न सिफारिशें दीं :-
● पंचायती राज संस्थाओं को सांविधानिक तौर पर मान्यता, सुरक्षा व संरक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
● गाँवों के समूह के लिए न्याय पंचायतों की स्थापना की जाये।
● ग्राम पंचायतों को ज्यादा व्यावहारिक बनाने के लिए गाँवों का पुनर्गठन किया जाना चाहिए।
● इसने ग्राम सभा की महत्ता पर भी जोर दिया तथा इसे प्रत्यक्ष लोकतंत्र की मूर्ति बताया।
● ग्राम पंचायतों को आर्थिक संसाधन अधिक उपलब्ध कराये जाने चाहिए।
● ग्राम पंचायतों के पास अधिक वित्तीय स्रोत होने चाहिए।
● पंचायतों में नियमित रूप से निर्वाचन होना चाहिए।
● पंचायतों को शासन का तीसरा स्तर घोषित करना चाहिए।
5. पी.के. थुंगन समिति (1989) :- पंचायती राज को संवैधानिक मान्यता दी जानी चाहिए।
● ग्राम, ब्लॉक और जिला स्तरों के साथ एक त्रिस्तरीय प्रणाली का सुझाव दिया।
● जिला परिषद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और जिले में एक योजना और विकास एजेंसी के रूप में कार्य करती है।
● पंचायती राज की निश्चित अवधि 5 वर्ष होनी चाहिए। किसी निकाय के अधिक्रमण के लिए अधिकतम समय 6 महीने से अधिक नहीं होना चाहिए।
● राज्य स्तर पर एक योजना एवं समन्वय समिति का गठन किया जाना चाहिए जिसमें जिला पंचायत के अध्यक्ष सदस्य तथा योजना मंत्री अध्यक्ष हों।
● पंचायतों के प्रशासन के विषयों को अनुसूची 7 की तर्ज पर संविधान में शामिल किया जाना चाहिए।
● महिलाओं, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण।
● वित्तीय हस्तांतरण के लिए मानदंड और दिशानिर्देश निर्धारित करने के लिए प्रत्येक राज्य में एक वित्त आयोग।
● जिला कलेक्टर को जिला परिषद का सीईओ होना चाहिए।
★ स्थानीय शासन :-
● सन् 1992 में संविधान के 73वें और 74वें संशोधन को संसद ने पारित किया।
● संविधान का 73वाँ संशोधन गाँव के स्थानीय शासन से जुड़ा है। इसका संबंध पंचायती राजव्यवस्था की संस्थाओं से है।
●संविधान का 74वाँ संशोधन शहरी स्थानीय शासन (नगरपालिका) से जुड़ा है।
सन् 1992 में 73वाँ और 74वाँ संशोधन लागू हुए।
★ 73 वाँ संशोधन :- गाँव के स्थानीय शासन पंचायती राजव्यवस्था
● त्रि-स्तरीय बनावट :-
अब सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का ढाँचा त्रि-स्तरीय है।
1. ग्राम पंचायत :- सबसे नीचे यानी पहली पायदान पर ग्राम पंचायत आती है। ग्राम पंचायत के दायरे में एक अथवा एक से ज़्यादा गाँव होते हैं।
2. खंड (Block) या तालुका:- मध्यवर्ती स्तर यानी बीच का पायदान मंडल का है जिसे खंड (Block) या तालुका भी कहा जाता है । इस पायदान पर कायम स्थानीय शासन के निकाय को मंडल या तालुका पंचायत कहा जाता है।
3. जिला पंचायत :- सबसे ऊपर वाले पायदान पर जिला पंचायत का स्थान है। इसके दायरे में जिले का पूरा ग्रामीण इलाका आता है।
● चुनाव :- पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तर के चुनाव सीधे जनता करती है । हर पंचायती निकाय की अवधि पाँच साल की होती है। यदि प्रदेश
की सरकार पाँच साल पूरे होने से पहले पंचायत को भंग करती है,तो इसके छ: माह के अंदर नये चुनाव हो जाने चाहिए।
● आरक्षण :- सभी पंचायती संस्थाओं में एक तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित है। तीनों स्तर पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीट में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। इस तरह, सरपंच का पद कोई दलित अथवा आदिवासी महिला धारण कर सकती है।
● राज्य चुनाव आयुक्त :- प्रदेशों के लिए ज़रूरी है कि वे एक राज्य चुनाव आयुक्त नियुक्त करें। इस आयुक्त की ज़िम्मेदारी पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने की होगी।
● राज्य वित्त आयोग :- प्रदेशों की सरकार के लिए हर पाँच वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनाना ज़रूरी है। यह आयोग प्रदेश में मौजूद स्थानीय शासन की संस्थाओं की आर्थिक स्थिति का जायजा लेगा।
● विषयों का स्थानांतरण :- ऐसे 29 विषय जो पहले राज्य सूची में थे, अब पहचान कर संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिए गए हैं।
★ 74 वाँ संशोधन :- शहरी स्थानीय शासन (नगरपालिका)
● त्रि-स्तरीय बनावट :-
1. नगर पंचायत :- तेज़ी से विकसित हो रहे क़स्बों और बुनियादी सुविधाओं से वंचित क़स्बों के लिये।
2. नगर निगम :- नगर निगम आमतौर पर बंगलुरु, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे बड़े नगरों में कार्यरत हैं।
3. नगरपालिका :- छोटे शहरों में नगरपालिका(Municipalities) का प्रावधान है।
● चुनाव :- शहरी स्थानीय शासन के संस्थाओं के चुनाव सीधे जनता करती हैं।
● आरक्षण :- एक तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के लिए भी सीटों में आरक्षण की व्यवस्था की गई हैं।
● राज्य चुनाव आयुक्त :- प्रदेशों के लिए ज़रूरी है कि वे एक राज्य चुनाव आयुक्त नियुक्त करें। इस आयुक्त की ज़िम्मेदारी स्थानीय शासन के संस्थाओं के चुनाव कराने की होगी।
● राज्य वित्त आयोग :- प्रदेशों की सरकार के लिए हर पाँच वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनाना ज़रूरी है। यह आयोग प्रदेश में मौजूद स्थानीय शासन की संस्थाओं की आर्थिक स्थिति का जायजा लेगा।
● विषयों का स्थानांतरण :- ऐसे 18 विषय जो पहले राज्य सूची में थे, अब पहचान कर संविधान
की 12वीं अनुसूची में दर्ज कर लिए गए हैं।
★ ग्यारहवीं अनुसूची में दर्ज 29 विषय
1. कृषि
3. लघु सिंचाई, जल प्रबंधन, जल संचय का विकास
4. पशुपालन , दुग्ध उधोग और कुक्कुट पालन।
5. मत्स्य पालन।
6. सामूहिक वनोद्योग और फार्म वनोद्योग।
7. लघु वन उत्पाद।
8. लघु उद्योग, इसमें खाद्य प्रसंस्करण के उद्योग शामिल हैं।
10. ग्रामीण आवास
11. पेयजल
13. सड़क, पुलिया
14. ग्रामीण विद्युतीकरण
16. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
17. शिक्षा, इसमें प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की
18. तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा
19. वयस्क और अनौपचारिक शिक्षा
20. पुस्तकालय
21. सांस्कृतिक गतिविधि
22. बाज़ार और मेला
23. स्वास्थ्य और साफ-सफाई, इसमें अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा डिस्पेंसरी शामिल हैं
24. परिवार नियोजन
25. महिला और बाल विकास
26. सामाजिक कल्याण
27. कमजोर तबके का कल्याण, खासकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित
जनजाति का ।
28. सार्वजनिक वितरण प्रणाली ।
29..सामुदायिक आस्तियों का अनुरक्षण।
★ बाहरवीं अनुसूची में दर्ज 18 विषय :-
1. नगरीय योजना (इसमें शहरी योजना भी सम्मिलित है)
2. भूमि उपयोग का विनियम और भवनों का निर्माण
3.आर्थिक और सामाजिक विकास की योजना
4. सड़कें और पुल
5. घरेलू, औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रयोजनों के निमित्त जलकी आपूर्ति ।
6.लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, सफाई तथा कूड़ा-करकट का प्रबन्ध ।
7. अग्निशमन सेवाएँ।
8. नगरीय वानिकी, पर्यावरण का संरक्षण और पारिस्थितिक पहलुओं की अभिवृद्धि ।
9. समाज के कमजोर वर्गों (जिसके अन्तर्गत विकलांग और
मानसिक रूप से मंद व्यक्ति सम्मिलित हैं) के हितों का
संरक्षण |
10. गन्दी बस्तियों में
सुधार ।
11. नगरीय निर्धनता में कमी।
12. नगरीय सुख-सुविधाओं, जैसे—पार्क, उद्यान, खेल का मैदान
इत्यादि की व्यवस्था ।
13. सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सौन्दर्यपरक पहलुओं की अभिवृद्धि।
14. कब्रिस्तान, शव गाड़ना, श्मशान और शवदाह तथा विद्युत शवदाह ।
15. कांजी हाउस तथा जानवरों के प्रति क्रूरता को रोकना ।
16. जन्म-मरण सांख्यिकी (जन्म-मरण पंजीकरण सहित )
17. लोक सुख-सुविधाएँ।
18. वेधशालाओं और धर्म शोधनशालाओं का विनियमन ।
अध्याय 9 : संविधान: एक जीवंत दस्तावेज / Constitution as a living