अध्याय 9 : संविधान: एक जीवंत दस्तावेज / Constitution as a living Document

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संविधान: एक जीवंत दस्तावेज संविधान का विकास संशोधन होने के कारण संशोधन की विधियाँ संविधान के आधार भूत
सिद्धांत भारतीय संविधान संशोधन की विशेषताएँ भारतीय संविधान को जीवंत बनाने वाले कारक 

 

संविधान: एक जीवंत दस्तावेज :- 

● हमारा संविधान इतना अच्छा है कि उसमें किसी बदलाव की जरूरत  ही नहीं है? क्या हमारे धन-निर्माता इतने दूरदर्शी थे कि उन्होंने समय के बदलावों और घटनाओं का अंदाजा पहले ही लिया? एक अर्थ में ये दोनों ही बातें ठीक है। यह बात सही है कि हमें एक विधान विरासत में मिला है। इस विधान की हमारे देश की परिस्थितियों के अनुकूल है।

● हमारे संविधान में इस बात को स्वीकार करके चला गया है कि समय के जरूरतों के अनुकूल संविधान में संशोधन किये जा सकते है।

● संविधान के व्यावहारिक कामकाज में इस बात की पर्याप्त गुंजाइश रहती है कि किसी संवैधानिक बात की एक से ज्यादा व्याख्याएँ हो सकें। कहने का मतलब यह है कि हमारा संविधान लचीला है

● अदालती और राजनीतिक व्यवहार और बरताव दोनों संविधान के अमल में अपनी परिपक्वता और लचीलेपन का परिचय दिया है।

● इन्हीं वजहों की वजह से हमारा संविधान कानूनों बंद और जड़ किताब न बनकर दस्तावेज के रूप में विकसित हो सका है।

 

 

★ संविधान दिवस :-

● संविधान दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य भारत के नागरिकों में संविधान के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना और संवैधानिक मूल्यों को याद करने के साथ-साथ जीवन में उतारने के लिए प्रेरित करना है।

 

★ संवैधानिक व्याख्या :-

● संविधान कोई जड़ दस्तावेज़ नहीं होता, बल्कि वह एक गतिशील दस्तावेज़ है, जो समाज की बदलती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समय के साथ विकसित और बदलता रहता है।

● संसद द्वारा जिन कानूनों को पारित किया जाता है उन्हें आसानी से लागू किया जा सकता है और उतनी ही आसानी से उन्हें निरस्त भी किया जा सकता है

● संविधान की प्रकृति कानून से अलग होती है। संविधान का निर्माण भविष्य को ध्यान में रखकर किया जाता है और उसे निरस्त करना अपेक्षाकृत काफी कठिन होता है। इसीलिये मौजूदा परिस्थितियों के अनुसार, इसकी व्याख्या की जानी आवश्यक होती है।

 ● भारतीय संविधान आज़ादी के 70 वर्षों बाद भी एक जीवंत दस्तावेज़ की तरह अपना अस्तित्व बनाए हुए है। भारतीय न्यायपालिका और संवैधानिक व्याख्या की प्रक्रिया अनवरत विकास कर रही है।

 

 

★ संसद को पूर्ण शक्ति :-

● स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘शंकरी प्रसाद बनाम भारत सरकार मामला’ (1951) और ‘सज्जन सिंह बनाम राजस्थान सरकार मामला’ (1965) जैसे मामलों में निर्णय देते हुए संसद को संविधान में संशोधन करने की पूर्ण शक्ति प्रदान की गई।

 

 

★ मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं :-

● जब सत्तारूढ़ सरकारों ने अपने राजनीतिक हितों के लिये संविधान में संशोधन करना चाहा तब ‘गोलकनाथ बनाम पंजाब सरकार’ (1967) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “संसद अनुच्छेद 368 के अधीन मौलिक अधिकारों को समाप्त या सीमित करने की शक्ति नहीं रखती है।

 

 ★ संसद और न्यायपालिका के बीच टकराव :-

◆ 1970 के दशक की शुरुआत में तत्कालीन सरकार द्वारा ‘आरसी. कूपर बनाम भारतीय संघ (1970), ‘मदनराव सिंधिया बनाम भारत संघ (1970) आदि मामलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णयों को बदलने के लिये संविधान (24, 25, 26 और 29 वें) में व्यापक संशोधन किये गए।

● यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि ‘आरसी कूपर’ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी सरकार के ‘बैंकों के राष्ट्रीयकरण’ करने के निर्णय को अवैध घोषित किया गया था। जबकि ‘माधवराव सिंधिया’ मामले में पूर्व शासकों को दी जाने वाली ‘प्रिवी पर्स’ को समाप्त करने संबंधी संशोधन को अवैध घोषित किया गया था।

 

 

★ आधारभूत संरचना का सिद्धांत :-

● केशवानंद भारती की संवैधानिक पीठ में, सदस्यों के बीच गंभीर वैचारिक मतभेद देखने को मिले तथा पीठ ने 7-6 से निर्णय किया कि संसद को संविधान के ‘आधारभूत संरचना’ में बदलाव करने से रोका जाना चाहिये।

● सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 368; जो संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्तियाँ प्रदान करता है, के तहत संविधान की आधारभूत संरचना में बदलाव नहीं किया जा सकता है।

 

 

★ भारतीय संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया :-

● संविधान में संशोधन की प्रक्रिया केवल संसद में प्रारंभ कर सकती हैं।

● संविधान के अनुच्छेद 368 भारतीय संविधान में संशोधन की पूरी प्रक्रिया को समझाया गया है।

 

 

★ संविधान में संशोधन कैसे किया जाता हैं।

● पहला :- संसद में सामान्य बहुमत के आधार पर संविधान के अनुच्छेदों में निर्दिष्ट प्रक्रिया के अनुसार संशोधन कर सकती हैं।

● दूसरा :- संसद के दोनों सदनों में अलग-अलग विशेष बहुमत के आधार पर संविधान में संशोधन का प्रस्ताव ला सकती हैं।

● तीसरा :- विशेष बहुमत और राज्यों के आधी विधायकों के सहमति के साथ अनुच्छेद 368 की प्रक्रिया का पालन करते हुए किया जाता हैं।

 

 

★ भारतीय संविधान में संशोधनों के प्रकार :-

1.प्रशासनिक संशोधन :- संविधान में कुछ संशोधन प्रशासनिक दृष्टिकोण से प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक होते है।

2. संविधान की व्याख्या :- दूसरे प्रकार के संशोधन की संविधान की व्याख्या से संबंधित संशोधन होते है।

3. राजनीतिक की आम सहमति :- तीसरे राजनीतिक की आम सहमति से उत्पन्न संशोधन होते है।

 

 

 ★ संविधान में किए गए प्रमुख संशोधन :संविधान में समय-समय पर आवश्यकता होने पर संशोधन होते रहे हैं. विधायिनी सभा में किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा उसे निर्दोष बनाने की प्रक्रिया को ‘ संशोधन ‘ कहा जाता है।

 

  संविधान संशोधन सूची (List of Amendment in Indian Constitution)

1. पहला संशोधन 1951 : यह संविधान का प्रथम संशोधन था। इसमें नवीन अनुच्छेद अर्थात् 31 क और 31ख को संविधान में अंतः स्थापित किया गया है। इसके द्वारा संविधान में एक नवीन अर्थात् नौवीं अनुसूची जोड़ी गई।

 

2. दूसरा संशोधन  1952 :– संविधान का दूसरा संशोधन, 1952: इस संशोधन के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 81 में संशोधन किया गया। यह संशोधन विधेयक संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व में परिवर्तन से संबंधित था।अतः इस विधेयक के अनुच्छेद 368 की अपेक्षाओं के अनुरूप भाग क और भाग ख में निर्दिष्ट राज्यों में से आधे राज्यों के विधान मंडल का समर्थन प्राप्त किया गया है।

 

4. चौथा संशोधन 1955 :- इस संशोधन अधिनियम के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 31 ए, 31 क और 305 तथा संविधान की नौवीं अनुसूची में संशोधन किया गया।

 

5. पांचवा संशोधन (1955): इस संशोधन में अनुच्छेद 3 में संशोधन किया गया, जिसमें राष्ट्रपति को यह शक्ति दी गई कि वह राज्य विधान- मंडलों द्वारा अपने-अपने राज्यों के क्षेत्र, सीमाओं आदि पर प्रभाव डालने वाली प्रस्तावित केंद्रीय विधियों के बारे में अपने विचार भेजने के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित कर सकते हैं.

 

6. छठा संशोधन (1956): इस संशोधन द्वारा सातवीं अनुसूची के संघ सूची में परिवर्तन कर अंतर्राज्यीय बिक्री कर के अंतर्गत कुछ वस्तुओं पर केंद्र को कर लगाने का अधिकार दिया गया है.

 

7. सातवां संविधान संशोधन, 1956 : यह संविधान संशोधन राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और परिणामिक परिवर्तनों को शामिल करने के उद्देश्य से किया गया था। मोटे तौर पर तत्कालीन राज्यों और राज्य क्षेत्रों का राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के रूप में वर्गीकरण किया गया। इस संशोधन में लोकसभा का गठन, प्रत्येक जन गणना के पश्चात पुनः समायोजन, नए उच्च न्यायालयों की स्थापना और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों आदि के बारे में उपबंधो की व्यवस्था की गई है।

 

8. आठवां संशोधन (1959): इसके अंतर्गत केंद्र एवं राज्यों के निम्न सदनों में अनुसूचित जाती, अनुसूचित जनजाति एवं आंग्ल भारतीय समुदायों के आरक्षण संबंधी प्रावधानों को दस वर्ष तक बढ़ा दिया।

 

9. नौवीं संशोधन (1960): इसके द्वारा संविधान की प्रथम अनुसूची में परिवर्तन करके भारत और पाकिस्तान के बीच 1958 की संधि की शर्तों के अनुसार बेरुबारी, खुलना आदि क्षेत्र पाकिस्तान को दे दिया।

 

10. दसवां संशोधन (1961): इसके अंतर्गत भूतपूर्व पुर्तगाली अंतः क्षेत्रों दादर एवं नगर हवेली को भारत में शामिल कर उन्हें केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया।

 

11वां संविधान संशोधन, 1961: इस संविधान संशोधन के अंतर्गत उपराष्ट्रपति के निर्वाचन की विधि मान्यता को प्रश्नगत करने के अधिकार को संकुचित बना दिया गया।

 

12वां संविधान संशोधन,1962: इसके अंतर्गत संविधान की प्रथम अनुसूची में संशोधन कर गोवा, दमन और दीव को भारत में केंद्र शासित प्रदेश के रूप में शामिल कर लिया गया।

 

13वां संविधान संशोधन, 1962: इस संविधान संशोधन के द्वारा एक नवीन अधिनियम अर्थात् 371 क संविधान में स्थापित किया गया। इसके द्वारा नागालैंड के संबंध में विशेष प्रावधान अपना कर उसे एक राज्य का दर्जा दे दिया गया ।

 

14 वां संविधान संशोधन 1963: इस संविधान संशोधन के द्वारा केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुदुचेरी को भारत में शामिल किया गया तथा संघ राज्य क्षेत्रों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व 20 से बढ़ाकर 25 कर दिया गया।

 

15वाँ संविधान संशोधन, 1963: इस संशिधान अंतर्गत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवामुक्ती की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दिया गया।

 

16वाँ संविधान संशोधन, 1963: इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 19 में संशोधन करके संसद को यह शक्ति दी गई कि वह देश की संप्रभुता और अखंडता के हित मे प्रश्नगत करने वाली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विधि द्वार प्रतिबंध लगाए।

 

18वां संविधान संशोधन,1966: इस अधिनियम द्वारा भाषा के आधार पर पंजाब का विभाजन करके पंजाब का विभाजन करके पंजाब और हरियाणा नमक। दो प्रथक राज्य बनाने का उपबंध किया गया।

 

19वां संविधान संशोधन, 1966: इसके अंतर्गत चुनाव आयोग के अधिकारों में परिवर्तन किया गया तथा उच्च न्यायालयों को चुनाव याचिकाएं सुनने का अधिकार दिया गया।

 

20वां संविधान संशोधन, 1966: इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 233 क संविधान में स्थापित कर के जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति विधिमान्य घोषित किया गया।

 

21वां संविधान संशोधन, 1967: इस संविधान संशोधन के द्वारा सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची के अंतर्गत 15वीं भाषा के रूप में शामिल किया गया।

 

22वां संविधान संशोधन, 1969: इसके द्वारा असम राज्य को छठी अनुसूची के भाग 2 क में विनिर्दिष्ट कुछ क्षेत्र को मिलाकर एक अलग नया राज्य मेघालय बनाया गया।

 

23वां संशोधन (1969): इसके अंतर्गत विधान पालिकाओं में अनुसूचित जाती एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण एवं आंग्ल भारतीय समुदाय के लोगों का मनोनयन और दस वर्ष के लिए बढ़ा दिया।

 

24वां संविधान संशोधन 1971: इस संशोधन के अंतर्गत संसद की इस शक्ति को स्पष्ट किया गया की वह संशोधन के किसी भी भाग को, जिसमें भाग तीन के अंतर्गत आने वाले मूल अधिकार भी हैं संशोधन कर सकती है, साथ ही यह भी निर्धारित किया गया कि संशोधन संबंधी विधेयक जब दोनों सदनों से पारित होकर राष्ट्रपति के समक्ष जाएगा तो इस पर राष्ट्रपति द्वारा संपत्ति दिया जाना बाध्यकारी होगा।

 

25वाँ संशोधन अधिनियम, 1971

संपत्ति के मौलिक अधिकार में कटौती की गई। यह भी व्यवस्था की गई कि अनुच्छेद 39 (ख) या (ग) में वर्णित नीति-निर्देशक तत्वों को प्रभावी करने के लिये बनाए गये किसी विधि को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि वह अनुच्छेद 14, 19 और 31 द्वारा मौलिक अधिकारों के संदर्भ में दी गई गारंटी का उल्लंघन करता है।

 

27वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1971  इसके अंतर्गत मिजोरम एवं अरूणाचल प्रदेश को केन्द्र शासित प्रदेशों के रूप में स्थापित किया

 

26वां संशोधन (1971): इसके अंतर्गत भूतपूर्व देशी राज्यों के शासकों की विशेष उपाधियों एवं उनके प्रिवी पर्स को समाप्त कर दिया गया.

 

29वां संविधान संशोधन 1972: इस अधिनियम द्वारा केरल राज्य के भूमि सुधार से संबंधित दो विधायकों की नौवीं अनुसूची में रखा गया।

 

31वां संविधान संशोधन 1973: इस अधिनियम के द्वारा अनुच्छेद 81 ए, 330 और 332 में संशोधन किया गया और लोक सभा में निर्वाचित सदस्य की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 कर दी गई।

 

32वां संविधान संशोधन 1974: संसद एवं विधान पालिकाओं के सदस्य द्वारा दबाव में या जबरदस्ती किए जाने पर इस्तीफा देना अवैध घोषित किया गया एवं अध्यक्ष को यह अधिकार है कि वह सिर्फ स्वेच्छा से दिए गए एवं उचित त्यागपत्र को ही स्वीकार करे।

 

33वां संविधान संशोधन, 1974: इस संशोधन के अंतर्गत संसद के सदस्यों और राज्य विधानमंडलों द्वारा बनाए गए 20 और काश्तकारी व भूमि सुधार कानूनों को नवम अनुसूची में शामिल किया गया।

 

34वां संविधान संशोधन, 1974: इसके अंतर्गत विभिन्न राज्यों द्वारा पारित 20 भू सुधार अधिनियम को 9वी अनुसूची में प्रवेश देते हुए उन्हें न्यायालय द्वारा संवैधानिक वैधता के परीक्षण से मुक्त कर दिया गया ।

 

35वां संविधान संशोधन, 1974: इस संविधान संशोधन के तहत सिक्किम का संक्षिप्त राज्य का दर्जा समाप्त कर उससे संबद्ध राज्य के रूप में भारत में प्रवेश दिया गया।

 

36वां संविधान संशोधन, 1975: इस संविधान संशोधन के अंतर्गत सिक्किम को भारत का 22 वा राज्य बनाया गया।

 

37वां संविधान संशोधन, 1975: इस संविधान संशोधन के अंतर्गत आपात स्थिति की घोषणा और राष्ट्रपति, राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनिक प्रधानों द्वारा अध्यादेश जारी किए जाने को अविवादित बनाते हुए न्यायिक पुनर्विचार से उन्हें मुक्त रखा गया।

 

39वां संविधान संशोधन,1975: इसके संविधान संशोधन द्वारा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवादों के न्यायिक परीक्षण से मुक्त कर दिया गया।

 

40वां संविधान संशोधन, 1976: इस अधिनियम के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई कि भारत के राज्यक्षेत्र सागर खंड अथवा महाद्वीपीय मग्न तट भूमि अथवा अनन्य आर्थिक संघ समुद्र के नीचे की समस्त भूमि, खनिज आदि निहित होंगे। संसद को यह अधिकार होगा कि वह राज्यक्षेत्रीय सागर खंड या महाद्वीपीय मग्न तट आदि भूमि को निश्चित या नियत करे।

 

41वां संविधान संशोधन, 1976: इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद- 316 का संशोधन करके संयुक्त आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई।

 

42 वाँ संविधान संशोधन

यह संविधान संशोधन अब तक किए गए संविधान संशोधनों में सबसे व्यापक संशोधन है। इसे लघु संविधान कहा गया है।

यह संविधान संशोधन स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए किया गया था।

 इस संशोधन के द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘प्रभुत्वसंपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य’ शब्दों के स्थान पर प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, 6 लोकतंत्रात्मक गणराज्य’ शब्द और ‘राष्ट्र की एकता’ शब्दों के स्थान राष्ट्र की एकता और अखंडता शब्द रखे गए।

इस अधिनियम के द्वारा लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष कर दिया गया।

इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद- 356 को संशोधित करके किसी भी राज्य में राष्ट्रपति द्वारा प्रशासन की अवधि, एक समय में एक वर्ष से घटाकर 6 महीने कर दी गई।

 

44वां संविधान संशोधन, 1978: इसके तहत राष्ट्रीय आपात स्थिति लागू करने के लिए “आंतरिक अशांति” के स्थान पर “सैन्य विद्रोह” का आधार रखा गया और आपात स्थिति संबंधी अन्य प्रावधानों में परिवर्तन लाया गया , जिससे उनका दुरुपयोग ना हो। इसके द्वारा संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के भाग से हटाकर विधिक ( कानूनी ) अधिकारों की श्रेणी में रख दिया गया।लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की अवधि 6 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष कर दी गई। उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवाद को हल कने की अधिकारिता प्रदान की गई ।

 

45वां संविधान संशोधन, 1980: इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 334 में उपबंधित आरक्षणों की अवधि को 30 वर्ष से बढ़ाकर 40 वर्ष कर दिया गया। इस अधिनियम पर भी आधे से अधिक राज्य विधानमंडलों का अनुमोदन प्राप्त किया गया।

 

50वां संशोधन 1984

 इसके द्वारा अनुच्छेद 33 में संशोधन कर सैन्य सेवाओं की पूरक सेवाओं में कार्य करने वालों के लिए आवश्यक सूचनाएं एकत्रित करने, देश की संपत्ति की रक्षा करने और कानून तथा व्यवस्था से संबंधित दायित्व भी दिए गए. साथ ही, इस सेवाओं द्वारा उचित कर्तव्यपालन हेतु संसद को कानून बनाने के अधिकार भी दिए गए।

 

51 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1984

 इस संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद- 330 को संशोधित करके नागालैण्ड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम की अनुसुचित जनजातियों के लिए संसद में तथा अनुच्छेद 332 में संशोधन करके नागालैंड और मेघालय की विधानसभाओं में स्थान आरक्षित किए गए।

 

52वां संविधान संशोधन,1985: इसके द्वारा राजनीतिक दल – बदल पर अंकुश लगाने का लक्ष्य रखा गया । इसके अंतर्गत संसद या विधानमंडलों के उन सदस्यों को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा , जो उस दल को छोड़ते हैं जिसके चुनाव चिन्ह पर उन्होंने चुनाव लड़ा था । लेकिन यदि किसी दल की संसदीय पार्टी की एक तिहाई सदस्य अलग दल बनाना चाहते हैं तो उन पर अयोग्यता लागू नहीं होगी । दल बदल विरोधी इन प्रावधानों की संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत रखा गया ।

 

 55वां संविधान संशोधन, 1986: इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 371 ज को अंतःस्थापित करके अरुणाचल प्रदेश को राज्य बनाया गया ।

 

56वां संविधान संशोधन, 1987: इसके अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 371 झ अंतःस्थापीत किया गया। इसके द्वारा गोवा को एक राज्य का दर्जा दिया गया और दमन और दीव को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में ही रहने दिया गया ।

 

57वां संविधान संशोधन, 1987: इसके अंतर्गत अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के संबंध में मिजोरम , मेघालय , अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड की विधानसभा सीटों का परिसीमन इस शताब्दी के अंत तक के लिए किया गया।

 

58वां संविधान संशोधन, 1987: इसके द्वारा संविधान में अनुच्छेद 394 क अंतःस्थापित किया गया। इसके अलावा संविधान का हिंदी संस्करण प्रकाशित करने के लिए अधिकृत किया गया ।

 

60वां संविधान संशोधन, 1988: इसके अंतर्गत व्यवसाय कर की सीमा ₹250 से बढ़ाकर ₹2500 प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष कर दी गई।

 

61वां संविधान संशोधन, 1989: इसके संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 376 में संशोधन करके मतदान के लिए आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष लाने का प्रस्ताव था।

 

65वां संविधान संशोधन,1990: इसके द्वारा अनुच्छेद 338 में संशोधन करके अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है।

 

69वां संविधान संशोधन, 1990: इसके तहत अनुच्छेद 54 और 368 का संशोधन करके दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र बनाया गया एवं दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद का उपबंध किया गया।

 

70वां संविधान संशोधन 1962: इसके तहत और पुदुचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की विधानसभाओं के सदस्यों को राष्ट्रपति के लिए निर्वाचक मंडल में सम्मिलित किया गया।

71वां संविधान संशोधन, 1992: इस संविधान संशोधन में आठवीं अनुसूची में कोंकणी, नेपाली और मणिपुरी भाषा को सम्मिलित किया गया ।

 

73वां संविधान संशोधन, 1992: इसके अंतर्गत संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़ी गई । इसके पंचायती राज संबंधी प्रावधानों को सम्मिलित किया गया । इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग 9 जोड़ा गया। इसमें अनुच्छेद 243 और अनुच्छेद 243 क से 243 ण तक अनुच्छेद हैं।

 

74वें संविधान संशोधन, 1993: इस संशोधन के अंतर्गत संविधान में 12वीं अनुसूची शामिल की गई । जिसमें नगर पालिका, नगर निगम और नगर परिषदों से संबंधित प्रावधान किए गए हैं । इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग 9 क जोड़ा गया । इसमें अनुच्छेद 243 से अनुच्छेद 243 यद तक के अनुच्छेद हैं ।

 

76वां संविधान संशोधन, 1994: इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान की नौवीं अनुसूची में संशोधन किया गया और तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 69% आरक्षण का उपबंध करने वाली अधिनियम को 9वी अनुसूची में शामिल कर दिया गया है।

 

77वां संविधान संशोधन, 1995: सरकारी सेवाओं में प्रोन्नतियों में अनुसूचित जातियों वा अनुसूचित जनजातियों का कोटा सुरक्षित किया गया।

 

78वां संविधान संशोधन, 1995: संविधान का अनुच्छेद 31वीं नौवीं अनुसूची में शामिल उन कानूनों को इस आधार पर चुनौती देने से संवैधानिक छूट प्रदान करता है कि इससे संविधान के खंड 3 में सुरक्षित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। इस अनुसूची में विभिन्न राज्यों की सरकारें और केंद्रीय सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों की सूची हैं।

 

79वां संविधान संशोधन, 1999: इस संशोधन के अंतर्गत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि 25 जनवरी 2010 तक के लिए बढ़ा दी गई है । इसके माध्यम से व्यवस्था की गई कि अब राज्यों को प्रत्यक्ष केंद्रीय करों से प्राप्त कुल धनराशि का 29% हिस्सा मिलेगा।

 

80वां संविधान संशोधन, 2000: केंद्रीय करों की निबल प्राप्तियों का 26% भाग राज्यों को हस्तांतरित किए जाने का प्रावधान।

 

81 वां संविधान संशोधन, 2000: इस संशोधन के द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की 50% की सीमा, जो उच्चतम न्यायलय द्वारा निर्धारित की गई थी, को समाप्त कर दिया गया। इस प्रकार अब एक वर्ष में न भरी जाने वाली बकाया रिक्तियों को एक प्रथक वर्ग मना जाएगा और अगले वर्ष में भरा जाएगा, भले ही उसकी सीमा 50% से अधिक हो इसके लिए अनुच्छेद 16 खंड 4(क) के बाद एक नया खाद 4(ख) जोड़ा गया।

 

82वां संविधान संशोधन,2000: इस संशोधन के द्वारा राज्यों को सरकारी नौकरियों में आरक्षित रिक्त स्थानों की भर्ती हेतु प्रोन्नति के मामलों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम प्राप्तांक को में छूट प्रदान करने की अनुमति प्रदान की गई है। इससे पूर्व उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय के परिणामस्वरूप 1997 में इस छूट को वापिस ले लिया गया था।

 

83वां संविधान संशोधन, 2000: इस संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान न करने की छूट प्रदान की गई है । अरुणाचल प्रदेश में कोई भी अनुसूचित जाति ना होने के कारण उसे यह छूट प्रदान की गई है।

 

84वां संविधान संशोधन, 2001: इसके द्वारा लोकसभा और विधानसभाओं की सीटों की संख्या में वर्ष 2026 तक कोई परिवर्तन ना करने का प्रावधान किया गया है।

 

85वां संविधान संशोधन, 2001: इस संविधान संशोधन के अंतर्गत सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था की गई है ।

 

 86वां संविधान संशोधन, 2002: इस संशोधन अधिनियम द्वारा देश के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया है । इसे अनुच्छेद 21(क) के अंतर्गत संविधान में जोड़ा गया है । इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 45 और अनुच्छेद 51(क) में संशोधन किए जाने का प्रावधान है।

 

87वां संविधान संशोधन, 2003: इसके परिसीमन में जनसंख्या का आधार 1991की जनगणना के स्थान पर 2001 तक कर दी गई।

 

88वां संविधान संशोधन, 2003: इसमें सेवाओं पर कर का प्रावधान किया गया।

 

89वां संविधान संशोधन, 2003: इस संविधान संशोधन के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति के लिए पृथक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की व्यवस्था की गई।

90वां संविधान संशोधन, 2003: इस संशोधन के अंतर्गत असम विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर अनुसूचित जनजातियों का

प्रतिनिधित्व बरकरार रखते हुए बोडोलैंड, टेरिटोरियल कौंसिल क्षेत्र, गैर जनजाति के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा का प्रावधान है।

 

91वां संविधान संशोधन, 2003: इसके तहत दलबदल व्यवस्था में संशोधन, केवल संपूर्ण दल के विलय को मान्यता, केंद्र तथा राज्य में मंत्री परिषद के सदस्य संख्या क्रमशः लोकसभा एवं विधानसभा की सदस्य संख्या का 15% होगा।

 

92वां संविधान संशोधन, 2003: इस संविधान संशोधन में संविधान की आठवीं अनुसूची में डोगरी, बोडो, संथाली, मैथिली भाषाओं का समावेश

 

93वां संविधान संशोधन, 2006: इसमें शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति / जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के नागरिकों के दाखिले के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की गई और संविधान के अनुच्छेद 15 की धारा 4 के प्रावधानों के तहत की गई।

94वां संविधान संशोधन, 2006: इस संशोधन के द्वारा बिहार राज्य को एक जनजाति कल्याण मंत्री नियुक्त करने के उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया गया और इस प्रावधान को झारखंड एवं छत्तीसगढ़ राज्यों में लागू करने की व्यवस्था की गई साथ ही, मध्य प्रदेश और ओडिशा राज्य में यह प्रावधान पहले से ही लागू है।

 

95वां संविधान संशोधन,2009: इस संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 334 में संशोधन कर लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण तथा आंग्ल भारतीयों को मनोनीत करने संबंधी प्रावधान को 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।

 

96वां संविधान संशोधन, 2011: इसमें संविधान की आठवीं अनुसूची में “उड़िया” के स्थान पर “ओड़िया” लिखा गया।

 

97 वां संविधान संशोधन, 2011: इस संशोधन के द्वारा सहकारी समितियों को एक संवैधानिक स्थान तथा सरंक्षण प्रदान किया गया। इस संशोधन द्वारा संविधान में निम्न तीन बदलाव किए गए
(a) सहकारी समिति बनाने का अधिकार एक मौलिक अधिकार बन गया| [ अनुच्छेद-19 (1)(c)
(b)”सहकारी समितियां” नाम से एक नया भाग – IX-ख संविधान में जोड़ा गया। [ अनुच्छेद 243 ZH से 223ZT]
(c) राज्य की नीति में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने का एक नया नीति निदेशक सिद्धांत का समावेश [ अनुच्छेद 43 ख]

 

98वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2012: इस संविधान संशोधन में अनुच्छेद 371(J) शामिल किया गया । इसका उद्देश्य कर्नाटक के राज्यपाल को हैदराबाद – कर्नाटक क्षेत्र के विकास हेतु कदम उठाने के लिए सशक्त करना था।

 

101 संविधान संशोधन (2016):बिल बिल का प्रावधान (जीएसटी बिल प्रावधान)

 

102 संविधान संशोधन (2018): ओबीसी आयोग को मिला संविधान का ढांचा।

 

103 संविधान संशोधन (2019): ईडब्ल्यूएस सेक्शन के लिए 10% का आरक्षण (EWS सेक्शन में 10% का आरक्षण)

 

104 संविधान संशोधन (2019): अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति का समय 10 साल के लिए (एससी/एसटी आरक्षण में वृद्धि)

 

108वां संविधान संशोधन (2021): महिलाओं के लिए लोकसभा व विधान सभा में 33% आरक्षण।

 

109वां संविधान संशोधन: पंचायती राज्य में महिला आरक्षण 33% से 50%.

 

110वां संविधान संशोधन: स्थानीय निकाय में महिला आरक्षण 33% से 50% .

 

114वां संविधान संशोधन: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की आयु 62 बर्ष से 65 बर्ष।

 

115वां संविधान संशोधन: GST (वस्तु एवं सेवा कर)

 

117वां संविधान संशोधन: SC व ST को सरकारी सेवाओं में पदोन्नति आरक्षण।

 

 

प्रमुख संविधान संशोधन, संशोधन सूची 2023 PDF for UPSC

 

 

 

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