अध्याय 8 : पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन / Environment and natural resources

Spread the love

पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन साझी संपदा पृथ्वी सम्मेलन रियो सम्मेलन क्योटो प्रोटोकॉल मूलवासी पर्यावरणीय समस्याएं आंदोलन भारत सरकार द्वारा पर्यावरण के लिए उठाए गए कदम

 

पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन :-  

● विश्व राजनीति में सन 1960 के दशक से पर्यावरण के मसले पर जोर दिया। विश्व राजनीति में पर्यावरण और संसाधनों के बढ़ते महत्त्व की चर्चा की गई है।

● कुछ महत्त्वपूर्ण पर्यावरण- आंदोलनों की तुलनात्मक चर्चा की गई है। हम साझी संपदा और ‘विश्व की साझी विरासत’ जैसी धारणाओं के बारे में भी पढ़ेंगे।

●  पर्यावरण से जुड़ी हाल की बहसों में भारत ने कौन-सा पक्ष लिया है। समकालीन विश्व राजनीति में हाशिए पर खड़ी मूलवासी जनता के इन सवालों से क्या सरोकार हैं और वह क्या सोचती है।

  ●  रॉस के अनुसार :- पर्यावरण कोई भी वह बाहरी शक्ति है, जो हमको प्रभावित करती है । इस प्रकार पर्यावरण से तात्पर्य, मनुष्य के चारों ओर की उन परिस्थतियों से है, जो उसकी क्रियाओं को प्रभावित करती है ।

 

★ पर्यावरण :- परि (ऊपरी)+आवरण (वह आवरण) जो बनस्पति तथा जीव जन्तुओं को ऊपर से ढके हुए है।

★ पर्यावरण :- पर्यावरण व स्थिति है जिसमें सभी जीव और व्यक्ति रहते हैं और जीवन जीते हैं।

 

★ संसाधन :- वह प्रत्येक चीज जिसका उपयोग हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करते हैं संसाधन कहलाती है। उदाहरण के लिए जल, वायु, जमीन आदि

 

★ प्राकृतिक संसाधन :- वह सभी संसाधन जो हमें प्रकृति से मिलते हैं प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। जैसे कि पेड़, हवा, जमीन आदि

 

★ प्राकृतिक संसाधन :-

● प्रकृति से प्राप्त मनुष्य के उपयोग के साधन | मानव जीवन का अस्तित्व, प्रगति एवं विकास संसाधनों पर निर्भर करती है। आदिकाल से मनुष्य प्रकृति से विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ प्राप्त कर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता रहा है। वास्तव में संसाधन वे हैं जिनकी उपयोगिता मानव के लिये हो।

 

★ विश्व में पर्यावरण प्रदूषण के उत्तरदायी कारक :-

• जनसंख्या वृद्धि।

• वनो की कटाई।

• औद्योगिकीकरण को बढ़ावा।

• संसाधनों का अत्याधिक दोहन।

• परिवहन के अत्यधिक साधन।

• उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा।

 

★ पर्यावरण प्रदूषण के संरक्षण के उपाय :-

• वन संरक्षण।

• जनसंख्या नियंत्रण।

• अर्न्तराष्ट्रीय सहयोग ।

• जन जागरूकता कार्यक्रम।

• पर्यावरण मित्र तकनीक का प्रयोग

•प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित प्रयोग।

• परिवहन के सार्वजनिक साधनों का प्रयोग।

 

 

पर्यावरण में विभिन्न समस्याएँ-

• कृषि योग्य भूमि घट रही है।

• चरागाह में चारे खत्म हो रहे हैं

• मतस्य भंडार घट रहा है

• जल प्रदूषण बढ़ रहा है

•विकासशील देशों में पीने का स्वच्छ पानी नहीं है

• वनों की अंधाधुंध कटाई हो रही है

• ओजोन परत में छेद हो रहा है

• UNEP – संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम

• UNEP ने पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर सम्मेलन करवाएं

• पर्यावरण की यह समस्याएं विभिन्न देशों की सरकारों के द्वारा ही सुलझाया जा सकता है

• विद्वानों के एक समूह क्लब ऑफ राम ने 1972 में लिमिट्स टू ग्रोथ नामक पुस्तक लिखी ‘ किस प्रकार से संसाधन ‘ घट रहे हैं

 

★ रियो सम्मलेन 1992 :- 

● 1992 में रियो सम्मेलन ब्राजील के रियो-डी- जनरियो में हुआ था

●UNO का पर्यावरण और विकास के मुद्दे परसम्मेलन

● इसमें 170 देश शामिल हुए

● इस सम्मेलन में हजारों स्वयंसेवी संगठन शामिल हुए इसमें कई बहुराष्ट्रीय निगम भी शामिल थे

● इसे पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit) भी कहा जाता है

● इस सम्मेलन से 5 वर्ष पहले 1987 में ” आवर कॉमन फ्यूचर” नामक रिपोर्ट छपी थी

● इस रिपोर्ट में यह बताया गया था कि आर्थिक विकास के चालू तौर-तरीके आगे चलकर टिकाऊ साबित नहीं होंगे

● विश्व के दक्षिणी हिस्से में औद्योगिक विकास की मांग अधिक प्रबल है

● रियो सम्मेलन में यह बात खुलकर सामने आ गई थी कि उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के देशों के सामने अलग अलग समस्याएं और चुनौतियां है

● उत्तरी गोलार्ध के देश विकसित और धनी देश दक्षिणी गोलार्ध के देश गरीब और विकासशील -देश

● उत्तरी गोलार्ध की मुख्य चिंता ओजोन परत में छेद और ग्लोबल वार्मिंग पर्यावरण प्रबंधन

●दक्षिणी गोलार्ध की मुख्य चिंता आर्थिक विकास गरीबी खत्म करना

● रियो सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, वानिकी के संबंध में कुछ नियमाचार निर्धारित हुए इसमें एजेंडा 21 के रूप में विकास के कुछ उपाय सुझाए गए

●सम्मेलन में इस बात पर सहमति बनी थी कि आर्थिक वृद्धि का तरीका ऐसा होना चाहिए कि जिससे पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचे इसे टिकाऊ विकास का तरीका कहा गया

● कुछ आलोचकों का कहना है कि एजेंडा 21 का – झुकाव पर्यावरण संरक्षण की बजाय आर्थिक वृद्धि की ओर है

 

 

★ ग्लोबल वार्मिंग ::-

● वायुमंडल के ऊपर ओजोन गैस की एक पतली सी परत है जिसमे से सूर्य की रोशनी छन कर पृथ्वी तक पहुँचती है यह सूर्य की हानिकारक पराबैगनी किरणों से हमे बचाती है।

● इस गैस की परत में छेद हो गया है जिससे अब सूरज की किरणें Direct पृथ्वी पर आ जाती है जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है तापमान बढ़ने के कारण ग्लेशियर की बर्फ तेजी से पिघल रही है जिसके कारण समुद्र का स्तर बढ़ रहा है इससे उन स्थान पर ज्यादा खतरा है जो समुद्र के किनारे बसे हैं ।

● कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, हाइड्रो फ्लोरो कार्बन ये गैस ग्लोबल वार्मिंग प्रमुख कारण है ।

 

 

पर्यावरण को लेकर विकसित और विकासशील देशों का रवैया :-

विकसित देश :- उत्तर के विकसित देश पर्यावरण के मसले पर उसी रूप में चर्चा करना चाहते हैं जिस दशा में पर्यावरण आज मौजूद है । ये देश चाहते हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में हर देश की जिम्मेदारी बराबर हो ।

 

● विकासशील देश :-विकासशील देशों का तर्क है कि विश्व में पारिस्थितिकी को नुकसान अधिकांशतया विकसित देशों के औद्योगिक विकास से पहुँचा है यदि विकसित देशों ने पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुँचाया है तो उन्हें इस नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी भी ज्यादा उठानी चाहिए। इसके अलावा विकासशील देश अभी औद्योगीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं और जरुरी है कि उन पर वे प्रतिबंध न लगें जो विकसित देशों पर लगाये जाने हैं ।

 

 

क्योटो प्रोटोकॉल :- 

● इसे 1992 में प्रस्तावित किया गया और यह 2005 से लागु हो गया है

● वह गैस जो विश्व में ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं उन्हें ही ग्रीन हाउस गैस कहते हैं

● मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड और क्लोटोफ्लोटोकार्बन कुछ मुख्य ग्रीन हाउस गैसें हैं

● इन गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए ही क्योटो प्रोटोकोल बनाया गया था

● यह एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जो कि देशों में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को कम करने के लिए बनाया गया

● ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन के कारण ओजोन की परत को पहुंच रहे नुकसान को देखते हुए क्योटो प्रोटोकोल बनाया गया

नोट :- विकासशील देशों का ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन विकसित देशों से काफी कम है इसी वजह से चीन एवं भारत जैसे विकासशील देशों को इस प्रोटोकॉल से बाहर रखा गया है यानी उन पर यह बाध्यता लागू नहीं होती

 

 

मूलवासी:

● मूलवासी – मूलवासी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और आदिवासी जन समुदाय को कहते हैं।

जनता का वह भाग जो किसी वन प्रदेश अथवा अन्य भू-भाग में आदिकाल से निवास करते चले आ रहे हों, वह सम्बन्धित क्षेत्र के मूलवासी लोग कहलाते हैं।

 

 

मूलवासी व उनके अधिकार :- 

●  मूलवासियों का प्रश्न पर्यावरण, संसाधन एवं राजनीति को एक साथ जोड़ देता है।

● सन् 1982 में दी गई संयुक्त राष्ट्र संघ की परिभाषा के अनुसार मूलवासी ऐसे लोगों के वंशज हैं जो किसी मौजूदा देश में बहुत दिनों से निवास करते चले आ रहे हैं।

● मूलवासी आज भी अपनी परम्परा, सांस्कृतिक रीति-रिवाज एवं अपने विशेष सामाजिक-आर्थिक तौर-तरीकों के अनुसार ही अपना जीवन-यापन करना पसन्द करते हैं।

● वर्तमान में भारत सहित विश्व के विभिन्न भागों में लगभग 30 करोड़ मूलवासी निवास कर रहे हैं। इनकी आवाज विश्व बिरादरी में बराबरी का दर्जा प्राप्त करने के लिए उठी है।

● भारत में मूलवासी के लिए अनुसूचित जनजाति अथवा आदिवासी शब्द प्रयुक्त किया जाता है।

● 1975 में वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इंडिजिनस पीपल का गठन किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सर्वप्रथम इस परिषद् को परामर्शदात्री परिषद् का दर्जा दिया गया। इसके अतिरिक्त आदिवासियों से सम्बन्धित 10 अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं को भी यह दर्जा दिया गया

 

 

पर्यावरण आन्दोलन :- 

● वर्तमान में विश्व भर में पर्यावरण आन्दोलन सर्वाधिक जीवन्त, विविधतापूर्ण और ताकतवर सामाजिक आन्दोलनों में शामिल किए जाते हैं।

● मैक्सिको, चिली, ब्राजील, मलेशिया, इण्डोनेशिया तथा भारत इत्यादि देशों में वन आन्दोलन पर बहुत दबाव है।

● पिछले तीन दशकों से पर्यावरण की रक्षा के लिए विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में जन आन्दोलन हुए हैं, जिनमें खनिज उद्योगों के नुकसानों, वनों की रक्षा तथा

● बड़े बाँधों के खिलाफ आन्दोलन प्रमुख हैं। विश्व का पहला बाँध-विरोधी आन्दोलन 1980 के दशक के शुरुआती तथा मध्यवर्ती वर्षों में आस्ट्रेलिया में फ्रैंकलिन नदी और इसके परिवर्ती वन को बचाने के लिए चला था।

● भारत में बाँधों के खिलाफ नर्मदा बचाओ आन्दोलन तथा वनों की रक्षा हेतु चिपको आन्दोलन प्रमुख हैं।

 

 

पर्यावरण पर भारत का पक्ष :- 

● भारत ने पर्यावरण सम्बन्धी क्योटो प्रोटोकॉल पर सन् 2002 में हस्ताक्षर किए तथा इसका अनुमोदन किया।

● विश्व में बढ़ते औद्योगीकरण के दौर को वर्तमान वैश्विक तापवृद्धि एवं जलवायु परिवर्तन का जिम्मेदार माना जाता है।

● भारत के अनुसार ग्रीन हाउस गैसों के रिसाव की ऐतिहासिक एवं वर्तमान जवाबदेही विकसित देशों की है।

● विकासशील देशों की प्रथम एवं अपरिहार्य प्राथमिकता आर्थिक एवं सामाजिक विकास की है।

● 2 अक्टूबर, 2016 को भारत ने पेरिस जलवायु समझौते का अनुमोदन किया।

● भारत ने सन् 1997 में पृथ्वी सम्मेलन (रियो सम्मेलन) के समझौतों के क्रियान्वयन का एक पुनरावलोकन किया।

 

 

  पर्यावरण के मसले पर भारत के पक्ष :- 

●भारत ने सन 2002 में क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किया और इसका अनुमोदन किया भारत चीन और अन्य विकासशील देशों को क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यतो से छूट दी गई है क्योंकि उद्योगीकीकरण के दौर में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में इनका कुछ खास योगदान नहीं है।

● औद्योगिकीकरण के दौर को मौजूदा वैश्विक ताप वृद्धि और जलवायु परिवर्तन का जिम्मेदार माना जाता है बाहर हाल क्योटो प्रोटोकोल के आलोचकों ने या ध्यान दिलाया है कि अन्य विकासशील देशों सहित भारत और चीन भी जल्दी ही ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में विकसित देशों की भांति अलग सरकर में नजर आएंगे।

● सन 2005 के जून में G-8 के देशों की बैठक हुई इसमें भारत ने ध्यान दिलाया कि विकासशील देशों में ग्रीन हाउस गैसों की प्रति व्यक्ति उत्सर्जन पर विकासशील देशों की तुलना में नाम मात्र है।

● शादी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियों के सिद्धांत के अनुरूप भारत का विचार है कि उत्सर्जन दर में कमी करने की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी विकसित देशों की है क्योंकि उन देशों में 1 लंबी अवधि तक बहुत ज्यादा उत्सर्जन किया है।

● भारत में सन 2030 तक कार्बन का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन बढ़ाने के बावजूद विश्व के औसत 3 पॉइंट 8 टन प्रति व्यक्ति के आधे से भी कम होगा सन 2000 तक भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन जीरो पॉइंट 9 तथा और अनुमान है कि 2030 तक यह मात्रा बढ़ कर 1 पॉइंट 6 टन प्रति व्यक्ति हो जाएगी।

● भारत की सरकार ने विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए पर्यावरण से संबंधित वैश्विक प्रयासों में शिकायत की है और कर रही है मिसाल के लिए भारत ने अपनी नेशनल ऑटो फ्यूल पॉलिसी के लिए स्वच्छ इंधन अनिवार्य कर दिया है सन 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम पारित हुआ इसमें उर्जा के ज्यादा कारगर इस्तेमाल की गई है।

● सन 2003 में बिजली अधिनियम में 15 वा ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया हाल ही में प्राकृतिक गैस के आयात और स्वच्छ कोयले के उपयोग पर आधारित प्रौद्योगिकी को अपनाने की तरफ रुझान बढ़ा है इससे पता चलता है कि भारत पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से ठोस कदम उठा रहा है।

 

साझी संपदा की सुरक्षा :-

● साझी सम्पदा वे संसाधन होते हैं जिन पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का अधिकार होता है; जैसे-संयुक्त परिवार का चूल्हा, चरागाह, मैदान, कुआँ अथवा नदी आदि।

● विश्व के कुछ क्षेत्र किसी एक देश के संप्रभु क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं। इनका प्रबन्धन साझे तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा किया जाता है। इन्हें ‘वैश्विक सम्पदा’ अथवा ‘मानवता की साझी विरासत’ कहते हैं।

●ऐसे क्षेत्रों में पृथ्वी का वायुमण्डल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह एवं बाह्य अन्तरिक्ष सम्मिलित हैं।

● वैश्विक सम्पदा की सुरक्षा के लिए कई समझौते हो चुके हैं जिनमें अंटार्कटिका सन्धि (1959), मांट्रियल न्यायाचार (प्रोटोकॉल 1987) एवं अंटार्कटिका पर्यावरण न्यायाचार (1991) आदि प्रमुख हैं।

● सन् 1992 में हुए पृथ्वी सम्मेलन (रियो सम्मेलन) में अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून के निर्माण, प्रयोग तथा व्याख्या में विकासशील देशों की विशिष्ट जरूरतों को ध्यान में रखे जाने के तर्क को मान लिया गया तथा इसे ‘साझी परन्तु अलग-अलग जिम्मेदारियों का सिद्धान्त कहा गया।

●क्योटो प्रोटोकॉल एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौता है जिसके अन्तर्गत औद्योगिक देशों के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करने के लक्ष्य तय किए गए हैं।

● सन् 1997 में जापान के क्योटो शहर में इस प्रोटोकॉल पर सहमति बनी थी। कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन तथा क्लोरो-फ्लोरो कार्बन गैसें वैश्विक तापवृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) में अहम् भूमिका का निर्वहन करती हैं।

 

 

पर्यावरण का महत्त्व :- 

●  संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व विकास रिपोर्ट 2016 के अनुसार विकासशील देशों की 66.3 करोड़ जनता को स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं होता है। विश्व में स्वच्छ जल की कमी तथा स्वच्छता के अभाव की वजह से लगभग 30 लाख से अधिक बच्चे प्रतिवर्ष असमय ही मौत के मुंह में चले जाते हैं

● विश्व राजनीति में पर्यावरण के मुद्दे ने 1960 के दशक से राजनीतिक स्वरूप हासिल किया, जिसके समाधान हेतु विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय प्रयास हुए, जिनमें सन् 1992 का पृथ्वी सम्मेलन प्रमुख है।

● सन् 1992 का संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण तथा विकास सम्बन्धी सम्मेलन अथवा पृथ्वी सम्मेलन ब्राजील के रियो-डी-जेनेरियो में हुआ जिसमें 170 देशों के प्रतिनिधियों तथा हजारों स्वयंसेवी संगठनों ने हिस्सा लिया।

● रियो सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता एवं वानिकी के सम्बन्ध में कई नियमों का निर्धारण किया गया। इसमें एजेंडा-21 के तहत विकास के कुछ तौर-तरीके भी सुझाए गए।

 

 

साझी जिम्मेदारी लेकिन अलग भूमिका :-
● पर्यावरण के संरक्षण को लेकर दक्षिणी गोलार्ध के देशों के रवैया में अंतर उत्तर के विदेश पर्यावरण के मसले पर उसी रूप में चर्चा करना चाहते हैं जिस दशा में आयोजित पर्यावरण मौजूद यह देश चाहते हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में हर देश की जिम्मेदारी एक बराबर हो।

● दक्षिण एशिया के देशों का तर्क है कि विश्व में पारिस्थितिकी को नुकसान अधिकांश विकसित देशों औद्योगिक विकास से पहुंचा है यदि विकसित देशों ने पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है तो उन्हें इस नुकसान की जिम्मेदारी भी उठानी चाहिए।

 

 

● UNEP क्या है?

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है जो पर्यावरण से सम्बंधित गतिविधियों का समन्वय करती है. यह पर्यावरण की दृष्टि से उचित नीतियों एवं पद्धतियों का कार्यान्वयन करने में विकासशील देशों को सहायता प्रदान करती है.

 

● UNFCCCक्या है?

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा सम्मेलन (United Nations Framework Convention on Climate Change (UNFCCC) ; युनाइटेड नेशंस फ़्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लायमेट चेञ्ज ) के ढाँचे में आयोजित वार्षिक सम्मेलन हैं।

 

★ अंटार्कटिक :-

● अंटार्कटिक महादेशीय इलाका। करोड़ 40 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। विश्व के निर्जन क्षेत्र का 26 प्रतिशत हिस्सा इसी महादेश के अंतर्गत आता है।

●स्थलीय हिम का 90 प्रतिशत हिस्सा और धरती पर मौजूद स्वच्छ जल का 70 प्रतिशत हिस्सा इस महादेश में मौजूद है। अंटार्कटिक महादेश का 3 करोड़ 60 लाख वर्ग किलोमीटर तक अतिरिक्त विस्तार समुद्र में है।

● सीमित स्थलीय जीवन वाले इस महादेश का समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र अत्यंत उर्वर है जिसमें कुछ पादप समुद्री स्तनधारी जीव, मत्स्य तथा कठिन वातावरण में जीवनयापन के लिए अनुकूलित विभिन्न पक्षी शामिल हैं। 

● अंटार्कटिक प्रदेश विश्व की जलवायु को संतुलित रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस महादेश की अंदरूनी हिमानी परत ग्रीन हाऊस गैस के जमाव का महत्त्वपूर्ण सूचना स्रोत है।

●विश्व के सबसे सुदूर ठंढ़े और झंझावाती महादेश अंटार्कटिका पर किसका स्वामित्व है? इसके बारे में दो दावे किये जाते हैं।

● कुछ देश जैसे ब्रिटेन, अर्जेन्टीना, चिले, नावें, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने अंटार्कटिक क्षेत्र पर अपने संप्रभु अधिकार का वैधानिक दावा किया।

● अन्य अधिकांश देशों ने इससे उलटा रुख अपनाया कि अंटार्कटिक प्रदेश विश्व की साझी संपदा है और यह किसी भी देश के क्षेत्राधिकार में शामिल नहीं है।

●इस मतभेद के रहते अंटार्कटिका के पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के नियम बने और अपनाये गए। ये नियम कल्पनाशील और दूरगामी प्रभाव वाले हैं। अंटार्कटिका और पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्र पर्यावरण सुरक्षा के विशेष क्षेत्रीय नियमों के अंतर्गत आते हैं।

●1959 के बाद इस इलाके में गतिविधियाँ वैज्ञानिक अनुसंधान, मत्स्य आखेट और पर्यटन तक सीमित रही हैं।लेकिन इतनी कम गतिविधियों के बावजूद इस क्षेत्र के कुछ हिस्से अवशिष्ट पदार्थ जैसे तेल के रिसाव के दबाव में अपनी गुणवत्ता खो रहे हैं

 

 

 

महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ :- 

● 1959: वैश्विक सम्पदा की सुरक्षा के मुद्दे पर अंटार्कटिका सन्धि हुई।

● 1960: सन् 1960 के दशक से पर्यावरण के मुद्दे पर तीव्र गति से चर्चा होने लगी।

●1970: सन् 1970 के दशक में अफ्रीकी महाद्वीप में अनावृष्टि से पाँच देशों की उपजाऊ भूमि बंजर हो गयी और उसमें दरारें पड़ गईं।

● 1972 : इस वर्ष ‘क्लब ऑफ रोम’ द्वारा ‘लिमिट्स टू ग्रोथ’ नामक पुस्तक प्रकाशित की गई, जिसमें विश्व की बढ़ती जनसंख्या से होने वाले प्राकृतिक संसाधनों के विनाश की सम्भावना व्यक्त की गयी।

●1975: ‘वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इंडिजिनस पीपल’ का गठन, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ में सबसे पहले परामर्शदात्री परिषद का दर्जा दिया गया।

● 1980: के दशक के मध्य में अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छेद की खोज एक आँख खोल देने वाली घटना है। विश्व का पहला बाँध विरोधी आन्दोलन दक्षिणी गोलार्द्ध में चला।

●1982: संयुक्त राष्ट्र संघ ने मूलवासियों की एक परिभाषा दी।

● 1992: इस वर्ष ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण एवं विकास के मुद्दे पर एक सम्मेलन का आयोजन हुआ।

● 1997: भारत में पृथ्वी सम्मेलन (रियो) के समझौतों के क्रियान्वयन का एक पुनरावलोकन किया।

● 2001: भारत में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम पारित हुआ।

●2002: भारत ने पर्यावरण सम्बन्धी क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए।

● 2003: भारत में बिजली अधिनियम में पुनर्नवा ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया है।

●2005: जून में ग्रुप-8 के देशों की बैठक हुई। इसमें भारत ने ध्यान दिलाया कि विकासशील देशों में ग्रीन हाउस गैसों की प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दर विकसित देशों की तुलना में नाममात्र को है।

●2016: इस वर्ष प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों की 66.3 करोड़ जनता को स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं होता है और यहाँ की 2-40 अरब जनसंख्या स्वच्छता सम्बन्धी सुविधाओं से वंचित है।

 

अध्याय 9 : वैश्वीकरण / Globalisation

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *