नियोजित विकास की राजनीति नियोजन विकास पूंजीवादी और समाजवादी मॉडम मिश्रित अर्थव्यवस्था वामपंथी और दक्षिणपंथी योजना आयोग प्रथम पंचवर्षीय योजना द्वितीय पंचवर्षीय योजना कुषि बनाम उद्योग निजी क्षेत्र बनाम सार्वजनिक क्षेत्र भूमि सुधार हरित क्रांति श्वेत क्रांति नीति आयोग
★ नियोजित विकास की राजनीति :-
इस अध्याय में…
पिछले दो अध्यायों में हमने पढ़ा कि स्वतंत्र भारत के नेताओं ने कैसे राष्ट्र-निर्माण और लोकतंत्र कायम करने की चुनौतियों का सामना किया। आइए अब तीसरी चुनौती की ओर रुख करें। यह चुनौती आर्थिक विकास को थी, ताकि सबकी भलाई को सुनिश्चित किया जा सके।
● पहला दो चुनौतियों की तरह हमारे नेताओं ने इस मामले में भी कुछ अलग और तनिक कठिन रास्ता चुना।
● आर्थिक विकास के मामले में उन्हें एक सीमा तक ही सफलता मिली, क्योंकि आर्थिक विकास की चुनौती कहीं ज्यादा कठिन और गहरी थी।
● इस अध्याय में हम आर्थिक विकास के कुछ बुनियादी सवालों पर लिए गए राजनीतिक फ़ैसलों के बारे में पढ़ेंगे।
★ नियोजन :-
● एक निश्चित अवधि में देश के विकास के लिए जो योजना बनाई जाती है उसे नियोजन कहते हैं।
● नियोजन का आशय है उपलब्ध संसाधनों के श्रेष्ठतम प्रयोग के लिए भविष्य की योजना बनाना ।
● नियोजन के माध्यम से उत्पादन में वृद्धि, रोजगार के अवसरों में वृद्धि और आर्थिक स्थिरता आदि लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है ।
★ विकास :-
● विकास का अर्थ आर्थिक संवृद्धि और आर्थिक समाजिक न्याय दोनो ही है ।
● इस बात पर भी सहमति थी कि आर्थिक विकास और सामाजिक – आर्थिक न्याय को केवल व्यवसायी, उद्योगपति व किसानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता
● सरकार को प्रमुख भूमिका निभानी होगी आजादी के वक्त ‘विकास’ का पैमाना पश्चिमी देशों को माना जाता था ।
● आधुनिक होने का अर्थ था पश्चिमी औद्योगिक देशों की तरह होना ।
★ पूंजीवादी और समाजवादी मॉडम :-
◆पंजीवादी मॉडल :-
● इस मॉडल को अमेरिका ने अपनाया था।
● निजीकरण को महत्व दिया जाता है।
● इसमें खुली प्रतिस्पर्धा होती है।
● मजदूरों का शोषण किया जाता है।
● बाजारमूलक अर्थव्यवस्था होती है।
● अधिक से अधिक व्यापार पर ध्यान दिया जाता है।
◆ समाजवादी मॉडल :-
● सोवियत संघ ने इसे अपनाया था।
● निजीकरण का विरोध किया गया है।
● इसमें समानता पर बल दिया गया है।
● समाजवादी मॉडल सरकार का स्वामित्व होता है।
● सरकार नीति बनाती है।
● नेहरू जी समाजवाद के समर्थक थे।
★ भारतीय विकास के मॉडल :-
● विकास के दो मॉडल थे पहला :- पूँजीवादी मॉडल तथा दूसरा – समाजवादी मॉडल।
● भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल ( जिसमें सार्वजनिक व निजी क्षेत्र दोनों के गुणों का समावेश था ) को अपनाया ।
● नोट :- दोनों वर्गों की बात मानते हुए भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया जिसमें सार्वजानिक व निजी क्षेत्र दोनों के गुणों का समावेश था।
◆ मिश्रित अर्थव्यवस्था :-
● मिश्रित अर्थव्यवस्था में समाजवाद तथा पूंजीवाद दोनों की विशेषताओं को शामिल किया गया।
● देश में छोटे उद्योगों का विकास निजी क्षेत्र में किया गया तथा बड़े उद्योगों के विकास की जिम्मेदारी सरकार ने अपने कंधो पर ली।
★ वामपंथी और दक्षिणपंथी :-
◆ वामपंथी विचारधारा :-
1. इसमें गरीब व पिछड़े लोगों की तरफदारी की जाती है।
2. सरकार को ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे गरीब लोगों का फायदा हो।
3. गरीबों के हितों को ध्यान में रखकर विकास की नीतियां अपनानी चाहिए।
◆ दक्षिणपंथी विचारधारा :-
1. खुली स्पर्धा और बाजार मुल्क अर्थव्यवस्था हो।
2. सरकार अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप ना करें।
3. सरकार को व्यापार के नियम आसान बनाने चाहिए।
● नोट :-
● दोनों वर्गों की बात मानते हुए भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया।
● भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ विशेषताएं पूंजीवादी व्यवस्था से ली गई और कुछ विशेषताएं सामजवादी व्यवस्था से ली गई ।
● इस तरह भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का निर्माण किया ।
★ योजनाओं का इतिहास :-
● अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिये नियोजन के विचार को 1940 और 1950 के दशक में पूरे विश्व में जनसमर्थन मिला था।
● वर्ष 1944 में उद्योगपतियों का एक समूह एकजुट हुआ जिसने भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था की स्थापना हेतु एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे ‘बॉम्बे प्लान’ कहा जाता है।
● भारत की स्वतंत्रता के बाद ही नियोजित विकास को देश के लिये एक महत्त्वपूर्ण विकल्प के रूप में देखा जाने लगा।
● वर्ष 1951 से 2017 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का मॉडल पंचवर्षीय योजनाओं पर आधारित नियोजन की अवधारणा पर आधारित था।
● पंचवर्षीय योजनाओं को तैयार करने, कार्यान्वित करने तथा विनियमित करने का कार्य योजना आयोग नामक संस्था द्वारा किया गया।
● 2015 में योजना आयोग को नीति आयोग नामक थिंक टैंक द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
● यह सोवियत संघ से लिया गया है इसमें सरकार एक दस्तावेज तैयार करेगी जिसमें अगले 5 वर्ष के आमदनी और खर्च की योजना होगी।
★ योजना आयोग :-
● यह एक गैर संवैधानिक निकाय था।
● स्थापना 15 मार्च 1950 में हुई.
● अध्यक्ष- (प्रधानमंत्री ) जवाहर लाल नेहरू.
◆ योजना आयोग के कार्य ?
● पंचवर्षीय योजनाएं बनाना.
● विभिन्न राज्यों और मंत्रालयों को वित्त का आवंटन करना.
● आज तक कुल 12 पंचवर्षीय योजनाएं आईं है.
● 12 वी पंचवर्षीय योजना ( 2012 से 2017 तक चली ).
● सोवियत संघ की तरह भारत के योजना आयोग ने भी पंचवर्षीय योजनाओं का विकल्प चुना।
● योजना के अनुसार केंद्र सरकार और सभी राज्य-सरकारों के बजट को दो हिस्सों में बाँटा गया।
● भारत सरकार अपनी तरफ से एक दस्तावेज तैयार करेगी, जिसमें अगले पाँच सालों के लिए उसकी आमदनी और खर्च की योजना होगी।
★ प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) :-
1.प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि पर ज्यादा जोर दिया गया।
2. इसके योजनाकार और अर्थशास्त्री के. एन. राज थे।
3. इसमें धीमी गति से विकास प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया था।
4. बांध सिंचाई भाखड़ा नांगल परियोजना भूमि सुधार पर जोर दिया गया।
5. 1956 के अंत तक, पाँच भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान स्थापित किये गए।
★ द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) :-
1. दूसरी पंचवर्षीय योजना ने तीव्र उद्योगों पर ज्यादा जोर दिया गया।
2.इस योजना के योजनाकार और अर्थशास्त्री पी.सी. महालनोविस थे।
3. तेज गति से विकास करने का लक्ष्य रखा गया ।
4. और सार्वजनिक क्षेत्रों पर बल दिया।
5. सरकार ने देसी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क बिजली, रेलवे, इस्पात संचार पर ध्यान दिया गया।
★ केरल मॉडल :-
● केरल में विकास और नियोजन के लिए जो मॉडल अपनाया गया उसे केरल मॉडल के नाम से जाना जाता है।
● केरल मॉडल में सबसे ज्यादा जोर शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि सुधार, कारगर खाद्य वितरण और गरीबी उन्मूलन पर दिया गया।
★ मुख्य विवाद :-
◆ कुषि बनाम उद्योग :-
● भारत जैसी पिछड़ी अर्थव्यवस्था में कुषि और उद्योग के बीच किसमें ज्यादा संसाधन लगाए जाने चाहिए।
● औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर को तेज किए बगैर गरीबी के मकड़जाल से छुटकारा नहीं मिल सकता।
● राज्य ने भूमि-सुधार और ग्रामीण निर्धनों के बीच संसाधन के बँटवारे के लिए कानून बनाए।
● नियोजन में सामुदायिक विकास के कार्यक्रम तथा सिंचाई परियोजनाओं पर बड़ी रकम खर्च करने की बात मानी गई थी।
●नियोजन की नीतियाँ असफल नहीं हुईं। दरअसल, इनका कार्यान्वयन ठीक नहीं हुआ क्योंकि भूमि-संपन्न तबके के पास सामाजिक और राजनीतिक ताकत ज्यादा थी।
● दूसरी पंचवर्षीय योजना में कृषि के विकास की रणनीति का अभाव था और इस योजना के दौरान उद्योगों पर जोर देने के कारण खेती और ग्रामीण इलाकों को चोट पहुँची।
● इसके अतिरिक्त, ऐसे लोगों की एक दलील यह भी थी कि यदि सरकार कृषि पर ज्यादा धनराशि खर्च करती तब भी ग्रामीण गरीबी की विकराल समस्या का समाधान न कर पाती।
◆ निजी क्षेत्र बनाम सार्वजनिक क्षेत्र :-
● विकास के जो दो जाने-माने मॉडल थे, भारत ने उनमें से किसी को नहीं अपनाया।
● भारत ने विकास का समाजवादी मॉडल भी नहीं अपनाया जिसमें निजी संपत्ति को खत्म कर दिया जाता है और हर तरह के उत्पादन पर राज्य का नियंत्रण होता है।
● पूँजीवादी मॉडल में विकास का काम पूर्णतया निजी क्षेत्र के भरोसे होता है। भारत ने यह रास्ता नहीं अपनाया।
● इन दोनों ही मॉडल की कुछ एक बातों को ले लिया गया और अपने देश में इन्हें मिले-जुले रूप में लागू किया गया।
● इसी कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को ‘मिश्रित-अैर्थव्यवस्था’ कहा जाता है।
● खेती-किासन, व्यापार और उद्योगों का एक बड़ा भाग निजी क्षेत्र के हाथों में रहा।
● राज्य ने अपने हाथ में उद्योगों को रखा और उसने आधारभूत ढ़ाँचा प्रदान किया।
★ भूमि सुधार :-
● भूमि सुधार के गंभीर प्रयास हुए। इनमें से सबसे मत्वपूर्ण और सफल प्रयास जमींदारी प्रथा को समाप्त करने का था।
● इस साहसिक कदम को उठाने से जमीन उस वर्ग के हाथ से मुक्त हो गई, जिसमें कृषि में कोई दिलचस्पी नहीं थी। इससे राजनीति पर दबदबा टिकने की जमींदारों की क्षमता भी घटी।
● जमीन के छोटे-दाढ़े को एक साथ करने का प्रयास किए गए ताकि खेती का काम सुविधजनक हो सके। यह प्रयास भी सफल रहा।
●भूमि सुधार :- जमींदारी प्रथा की समाप्ति, जमीन के छोटे छोटे टुकड़ों को एक साथ करना (चकबंदी) और जो काश्तकार किसी दूसरे की जमीन बटाई पर जोत- बो रहे थे, उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान करने व भूमि स्वामित्व सीमा कानून का निर्माण जैसे कदम उठाए गए।
★ हरित क्रांति :-
● हरित क्रांति 1960 के दशक में नॉर्मन बोरलॉग द्वारा शुरू किया गया था
● इन्हें विश्व में ‘ हरित क्रांति ‘ के जनक के रूप में जाना जाता है।
● भारत में हरित क्रांति का नेतृत्व मुख्य रूप से एम.एस. स्वामीनाथन द्वारा किया गया।
● हरित क्रांति खेती में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए की गई थी, जिसने विशेष रूप से गेहूं और चावल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरकार ने बीज, उर्वरक, कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े कम मूल्य पर देना शुरू किया। जिसे हरित क्रांति कहा जाता है।
◆ उद्देश्य :-
● दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत में भुखमरी की समस्या को दूर करने हेतु हरित क्रांति शुरू की गई थी।
● कृषि और औद्योगिक दोनों क्षेत्र के श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करना।
● गैर-औद्योगिक राष्ट्रों में प्रौद्योगिकी का प्रसार करना और प्रमुख कृषि क्षेत्रों में निगमों की स्थापना को प्रोत्साहित करना।
◆ सकारात्मक प्रभाव :-
1.कृषि क्षेत्र का विस्तार :- हरित क्रांति ने कृषि भूमि के विस्तार में सहायता प्रदान की है।
2. दोहरी फसल प्रणाली :- हरित क्रांति के तहत वर्ष में एक के बजाय दो फसल प्राप्त करने का निर्णय लिया गया।
3. उन्नत बीजों का उपयोग :- श्रेष्ठ बीजों का उपयोग करना हरित क्रांति का वैज्ञानिक पहलू था।
4.फसल उत्पादन में वृद्धि :- हरित क्रांति के दौरान गेहूंँ और चावल की अधिक उपज देने वाली किस्मों के तहत फसल क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई।
5. किसानों को लाभ :- किसानों को इस क्रांति से विशेष रूप से विभिन्न आदानों जैसे-HYV बीज, उर्वरक, मशीन आदि में बड़ी मात्रा में निवेश करने से लाभ प्राप्त हुआ।
6. औद्योगिक विकास :- हरित क्रांति ने बड़े पैमाने पर कृषि मशीनीकरण को बढ़ावा दिया जिससे ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेशर, कंबाइन, डीज़ल इंजन, इलेक्ट्रिक मोटर, पंपिंग सेट इत्यादि विभिन्न प्रकार की मशीनों की मांँग उत्पन्न हुई।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council for Agricultural Research) द्वारा उच्च उपज देने वाले बीज, मुख्य रूप से गेहूं , चावल, बाजरा और मक्का के बीजों की नई किस्मों को विकास किया गया।
◆ नकारात्मक प्रभाव :-
1. गैर-खाद्य अनाज शामिल नहीं :- कपास, जूट, चाय और गन्ना जैसी प्रमुख व्यावसायिक फसलें भी हरित क्रांति से लगभग अछूती रहीं।
2. क्षेत्रीय असमानताएँ :- हरित क्रांति प्रौद्योगिकी ने अंतर-क्षेत्रीय और अंतरा-क्षेत्रीय स्तरों पर आर्थिक विकास में असमानताओं को अधिक बढ़ाया।
3.रसायनों का अत्यधिक उपयोग :- हरित क्रांति के परिणामस्वरूप उन्नत सिंचाई परियोजनाओं और फसल किस्मों हेतु कीटनाशकों और सिंथेटिक नाइट्रोजन उर्वरकों का बड़े पैमाने पर उपयोग हुआ।
4. मृदा और फसल उत्पादन पर प्रभाव :- फसल उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने हेतु बार-बार एक ही फसल चक्र को अपनाने से मृदा में पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है।
5. बेरोज़गारी :- पंजाब को छोड़कर और कुछ हद तक हरियाणा में हरित क्रांति के तहत कृषि यंत्रीकरण ने ग्रामीण क्षेत्रों में खेतिहर मज़दूरों के मध्य व्यापक स्तर पर बेरोज़गारी को बढाया है।
6. स्वास्थ्य पर प्रभाव :- रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे- फॉस्फामिडोन, मेथोमाइल, ट्रायज़ोफोस और मोनोक्रोटोफॉस के बड़े पैमाने पर उपयोग के परिणामस्वरूप कैंसर, गुर्दे का फेल होना, मृत शिशुओं और जन्म दोषों सहित कई गंभीर स्वास्थ्य बीमारियाँ उत्पन्न हुईं।
◆ निष्कर्ष :-
कुल मिलाकर हरित क्रांति कई विकासशील देशों, विशेष रूप से भारत के लिये एक बड़ी उपलब्धि थी जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक रही। यह कृषि में उस वैज्ञानिक क्रांति के सफल अनुकूलन और हस्तांतरण का प्रतिनिधित्व करती है जिसे औद्योगिक देशों ने पहले ही अपने यहाँ विनियोजित कर लिया था।
★ श्वेत क्रांति :-
● गुजरात का आनंद शहर दूध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है इसमें गुजरात के 25 लाख दूध उत्पादक जुड़े हुए।
●ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन के साथ से शुरू किया गया अमूल सहकारी आंदोलन को श्वेत क्रांति के नाम से जाना जाता है
● ‘मिल्कमैन ऑफ़ इंडिया’ के नाम मशहूर वर्गीज कुरियन ने गुज़रात सहकारी दुग्ध एवं विपणन परिसंघ की विकास कथा में केंद्रीय भूमिका निभायी और ‘अमूल’ की शुरुआत की।
● गुज़रात का एक शहर है ‘आनंद’। सहकारी दूध उत्पादन का आंदोलन अमूल इसी शहर में कायम है।
● इस ‘मॉडल’ के विस्तार को श्वेत क्रांति के नाम से जाना जाता है।
● 1970 में ‘ऑपरेशन फ्लड’ के नाम से एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम शुरू हुआ था। ‘ऑपरेशन फ्लड’ के अंतर्गत सहकारी दूध उत्पादकों को उत्पादन और विपणन के एक राष्ट्रव्यापी तंत्र से जोड़ा गया।
● बहरहाल, ‘ऑपरेशन फ्लड’ सिर्फ़ डेयरी – कार्यक्रम नहीं था। इस कार्यक्रम में डेयरी के काम को विकास के एक माध्यम के रूप में अपनाया गया था ताकि ग्रामीण लोगों को रोज़गार के अवसर प्राप्त हों, उनकी आमदनी बढ़े तथा गरीबी दूर हो।
● सहकारी दूध उत्पादकों की सदस्य संख्या लगातार बढ़ रही है। सदस्यों में महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है। महिला सहकारी डेयरी के जमातों में भी इजाफा हुआ है।
◆प्रमुख कृषि क्रान्ति व उनके उद्देश्य :-
1. हरित क्रान्ति – खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाना।
2.श्वेत क्रान्ति – दुग्ध उत्पादन बढ़ाना।
3.पीली क्रान्ति- तिलहन उत्पादन बढ़ाना।
4. नील क्रान्ति – मत्स्य उत्पादन बढ़ाना।
● विकास का केरल मॉडल :- केरल में विकास और नियोजन के लिए अपनाए गए इस मॉडल में शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि सुधार, कारगर खाद्य-वितरण और गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया जाता रहा है।
● जे. सी. कुमारप्पा :- गाँधीवादी अर्थशास्त्रीयों ने विकास की वैकल्पिक योजना प्रस्तुत की, जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर
ज्यादा जोर था।
● चौधरी चरण सिंह :- भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केन्द्र में रखने की बात प्रभावशाली तरीके से उठायी।
★ नीति आयोग :-
● 1 जनवरी, 2015 को योजना आयोग के स्थान पर केंद्रीय मंत्रिमंडल के एक संकल्प पर नीति आयोग का गठन किया गया।
●अध्यक्ष :- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी
● उपाध्यक्ष :- प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त वर्तमान में सुमन बेरी इसके उपाध्यक्ष
● संचालन परिषद :- सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल।
● क्षेत्रीय परिषद :- विशिष्ट क्षेत्रीय मुद्दों को संबोधित करने के लिये प्रधानमंत्री या उसके द्वारा नामित व्यक्ति मुख्यमंत्रियों और उपराज्यपालों की बैठक की अध्यक्षता करता है।
● तदर्थ सदस्यता :- अग्रणी अनुसंधान संस्थानों से बारी-बारी से 2 पदेन सदस्य।
● पदेन सदस्यता :- प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय मंत्रिपरिषद के अधिकतम चार सदस्य।
● मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) :- भारत सरकार का सचिव जिसे प्रधानमंत्री द्वारा एक निश्चित कार्यकाल के लिए नियुक्त किया जाता है।
● विशेष आमंत्रित :- प्रधानमंत्री द्वारा नामित विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ।
1. टीम इंडिया हब- राज्यों और केंद्र के बीच इंटरफेस का काम करता है।
2. ज्ञान और नवोन्मेष हब- नीति आयोग के थिंक-टैंक की भाँति कार्य करता है।
3. नीति आयोग ने तीन दस्तावेज़ जारी किये हैं, जिसमें 3 वर्षीय कार्य एजेंडा, 7 वर्षीय मध्यम अवधि की रणनीति का दस्तावेज़ और 15 वर्षीय लक्ष्य दस्तावेज़ शामिल हैं।
◆ नीति आयोग का उद्देश्य :-
● नीतियों के क्रियान्वयन को तेज करना।
● केंद्र राज्य समन्वय को बढ़ावा देना।
● योजना आयोग के केंद्रीकृत नीति की जगह क्षेत्रीय नीति को बढ़ावा देना।
● भारत में ग्रामीण स्तर पर योजनाएं बनाना।
● राष्ट्रीय विकास के लिए राज्यों की भागीदारी बढ़ाना।
● नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया थे तथा वर्तमान में सुमन बेरी इसके उपाध्यक्ष हैं और परमेश्वरन अय्यर CEO हैं)
★ योजना आयोग और नीति आयोग में अंतर :-
◆ योजना आयोग :-
● यह एक गैर संवैधानिक निकाय था
● स्थापना 15 मार्च 1950 –में हुई
● अध्यक्ष- (प्रधानमंत्री) ज.लाल नेहरू
● भारतीय मॉडल पर सोवियत संघ के मॉडल पर आधारित.
● केंद्र की भूमिका अधिक थी सरकार की भूमिका आधारित.
◆ नीति आयोग :-
● यह एक गैर संवैधानिक निकाय था.
● स्थापना 1 जनवरी 2015 में हुई.
● अध्यक्ष (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी जी.
● केंद्र और राज्य की भूमिका
● सरकार के साथ निजी क्षेत्र की भूमिका.
★ राष्ट्रीय विकास परिषद :-
● राष्ट्रीय विकास परिषद की स्थापना 1952 में हुई थी.
● योजना के निर्माण में राज्यों की भागीदारी हो. इसलिए राष्ट्रीय विकास परिषद बनाया गया यह देश की पंचवर्षीय योजना का अनुमोदन करता था.
● इसके अध्यक्ष देश के प्रधानमंत्री होते है.
●भारत के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और योजना आयोग के सदस्य. इसके भी सदस्य होते थे.
(संरचना).
1) अध्यक्ष प्रधान मंत्री.
2) राज्यों के मुख्यमंत्री.
3) केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासक.
4) योजना आयोग के सदस्य.
5) कैबिनेट मंत्री.
pdf
notes ke liye whatsapp par contact kre