अध्याय 2 : एक दल के प्रभुत्व का दौर / Era of One Party Dominance

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 एक दल के प्रभुत्व का दौर लोकतंत्र स्थापित करने की चुनौती पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन 17 करोड़ मतदाता प्रथम तीन चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व की प्रकृति कांग्रेस-प्रणाली  भारतीय जनसंघ (RSS-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) मतदान के बदलते तरीके 2004देश में ईवीएम का इस्तेमाल

 

इस अध्याय में…

पिछले अध्याय में हमने राष्ट्र-निर्माण की चुनौती के बारे में चर्चा की थी। राष्ट्र-निर्माण की चुनौती के तुरंत बाद हमारे सामने एक और चुनौती लोकतांत्रिक राजनीति की ज़मीन तैयार करने की थी। राजनीतिक दलों के बीच चुनावी प्रतिस्पर्धा आज़ादी के तुरंत बाद शुरू हो गई थी।

 

★ एक दल के प्रभुत्व का दौर:-

◆ लोकतंत्र स्थापित करने की चुनौती :-

● स्वतंत्र भारत के सामने शुरुआत से ही राष्ट्र-निर्माण की चुनौती थी।

● हमारे नेता लोकतंत्र में राजनीति की निर्णायक भूमिका को लेकर सचेत थे।

● हर समाज के लिए यह फ़ैसला करना ज़रूरी होता है कि उसका शासन कैसे चलेगा और वह किन कायदे-कानूनों पर अमल करेगा। चुनने के लिए हमेशा कई नीतिगत विकल्प मौजूद होते हैं।

● किसी भी समाज में कई समूह होते हैं। इनकी आकांक्षाएँ अकसर अलग-अलग और एक-दूसरे के विपरीत होती हैं। ऐसे में हम विभिन्न समूहों के हितों के आपसी टकराव से कैसे निपट सकते हैं? इसी सवाल का जवाब है-लोकतांत्रिक राजनीति ।

 

 

हमारा संविधान कैसे बना :-

● हमारा संविधान 26 नवम्बर 1949 को अंगीकृत किया गया। 

● 24 जनवरी 1950 को इस पर हस्ताक्षर हुए।

● यह संविधान 26 जनवरी 1950 से अमल में आया।

● देश का शासन लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार द्वारा चलाया जाए।

● संविधान ने नियम तय कर दिए थे और अब इन्हीं नियमों पर अमल करने की जरूरत थी।

 

 

चुनाव आयोग :-

● भारत के चुनाव आयोग का गठन 1950 के जनवरी में हुआ।

● सुकुमार सेन पहले चुनाव आयुक्त बने। 

● चुनाव आयोग ने पाया कि भारत के आकार को देखते हुए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष आम चुनाव कराने के लिए चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन ज़रूरी था।

● मतदाता सूची यानी मताधिकार प्राप्त वयस्क व्यक्तियों की सूची बनाना भी आवश्यक था।

● उस वक्त देश में 17 करोड़ मतदाता थे।

● इन्हें 3200 विधायक और लोकसभा के लिए 489 सांसद चुनने थे।

● इन मतदाताओं में महज 15 फीसदी साक्षर थे। इस कारण चुनाव आयोग को मतदान की विशेष पद्धति के बारे में भी सोचना पड़ा।

● चुनाव आयोग ने चुनाव कराने के लिए 3 लाख से ज्यादा अधिकारियों और चुनावकर्मियों को प्रशिक्षित किया।

 

 ● एक हिंदुस्तानी संपादक ने इसे :- इतिहास का सबसे बड़ा जुआ” करार दिया।

● आर्गनाइजर’ नाम की पत्रिका ने लिखा कि जवाहरलाल नेहरू :-  “ अपने जीवित रहते ही यह देख लेंगे और पछताएँगे कि भारत में सार्वभौम मताधिकार असफल रहा।

 

 

1952 का आम चुनाव :- 

● चुनावों को दो बार स्थगित करना पड़ा और आखिरकार 1951 के अक्तूबर से 1952 के फरवरी तक चुनाव हुए।

● बहरहाल, इस चुनाव को अमूमन 1952 का चुनाव ही कहा जाता है क्योंकि देश के अधिकांश हिस्सों में मतदान 1952 में ही हुए।

● चुनाव अभियान, मतदान और मतगणना में कुल छह महीने लगे। चुनावों में उम्मीदवारों के बीच मुकाबला भी हुआ ।

● औसतन हर सीट के लिए चार उम्मीदवार चुनाव के मैदान में थे। लोगों ने इस चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की।

●  1952 का आम चुनाव पूरी दुनिया में लोकतंत्र के इतिहास के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। दुनिया में कहीं भी लोकतंत्र पर अमल किया जा सकता है।

● टाइम्स ऑफ इंडिया ने माना कि :-  इन चुनावों ने “उन सभी आलोचकों के संदेहों पर पानी फेर दिया है जो सार्वभौम मताधिकार की इस शुरुआत को इस देश के लिए जोखिम का सौदा मान रहे थे। ” देश से बाहर के पर्यवेक्षक भी हैरान थे।

● हिंदुस्तान टाइम्स ने लिखा :- “यह बात हर जगह मानी जा रही है कि भारतीय जनता ने विश्व के इतिहास में लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रयोग को बखूबी अंजाम दिया ।

 

 

 

★ मतदान के बदलते तरीके :-

● इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल होता है। इसके जरिए मतदाता उम्मीदवारों के बारे में अपनी पसंद जाहिर करते हैं।

●पहले आम चुनाव में फ़ैसला किया गया था कि हर एक मतदान केंद्र में प्रत्येक उम्मीदवार के लिए एक मतपेटी रखी जाएगी और मतपेटी पर उम्मीदवार का चुनाव चिह्न अंकित होगा।

● इस काम के लिए तकरीबन 20 लाख स्टील के बक्सों का इस्तेमाल हुआ।

● शुरुआती दो चुनावों के बाद यह तरीका बदल दिया गया। अब मतपत्र पर हर उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिह्न अंकित किया जाने लगा।

● मतदाता को इस मतपत्र पर अपने पसंद के उम्मीदवार के नाम पर मुहर लगानी होती थी। यह तरीका अगले चालीस सालों तक अमल में रहा।

 

 

● सन् 1990 के दशक के अंत में चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल शुरू किया।

● 2004 तक पूरे देश में ईवीएम का इस्तेमाल चालू हो गया।

 

 

★ कांग्रेस के प्रभुत्व की प्रकृति :-

● कांग्रेस का जन्म 1885 में हुआ था। 

● यह नवशिक्षित, कामकाजी और व्यापारिक वर्गों का एक हित समूह भर थी

● लेकिन 20वीं सदी में इसने जनआंदोलन का रूप ले लिया।

● इस वजह से कांग्रेस जनव्यापी राजनीतिक पार्टी का रूप लिया और राजनीतिक व्यवस्था में इसका दबदबा – ने एक कायम हुआ।

● शुरू-शुरू में कांग्रेस में अँग्रेज़ीदाँ, अगड़ी जाति, ऊँचले मध्यवर्ग और शहरी अभिजन का बोलबाला था।

● लेकिन कांग्रेस ने जब भी सविनय अवज्ञा जैसे आंदोलन चलाए उसका सामाजिक आधार बढ़ा। कांग्रेस ने परस्पर विरोधी हितों के कई समूहों को एक साथ जोड़ा।

 

 

★ कांग्रेस दल के प्रभुत्व :-

1. कांग्रेस पहले से ही एक सुसंगठित पार्टी थी।

2. कांग्रेस को ‘अव्वल और एकलौता’ होने का फायदा मिला।

3. इस पार्टी के संगठन का नेटवर्क स्थानीय स्तर तक पहुँच चुका था।

4. उसकी प्रकृति सबको समेटकर मेलजोल के साथ चलने की थी।

 5.कांग्रेस पार्टी की सफलता की जड़ें स्वाधीनता संग्राम की विरासत में हैं

 

 

कांग्रेस-प्रणाली :-

★ कांग्रेस एक सामाजिक और विचारधारात्मक गठबंधन के रूप में :-

● कांग्रेस में किसान और उद्योगपति, शहर के बाशिंदे और गाँव के निवासी, मज़दूर और मालिक एवं मध्य, निम्न और उच्च वर्ग तथा जाति सबको जगह मिली। धीरे-धीरे कांग्रेस का नेतृवर्ग भी विस्तृत हुआ।

● इसका नेतृवर्ग अब उच्च वर्ग या जाति के पेशेवर लोगों तक ही सीमित नहीं रहा। इसमें खेती-किसानी की बुनियाद वाले तथा गाँव- गिरान की तरफ रुझान रखने वाले नेता भी उभरे।

● आज़ादी के समय तक कांग्रेस एक सतरंगे सामाजिक गठबंधन की शक्ल अख्तियार कर चुकी थी और वर्ग, जाति, धर्म, भाषा तथा अन्य हितों के आधार पर इस सामाजिक गठबंधन से भारत की विविधता की नुमाइंदगी हो रही थी। ।

●इनमें से अनेक समूहों ने अपनी पहचान को कांग्रेस के साथ एकमेक कर दिया। कई बार यह भी हुआ कि किसी समूह ने अपनी पहचान को कांग्रेस के साथ एकसार नहीं किया और अपने-अपने विश्वासों को मानते हुए बतौर एक व्यक्ति या समूह के कांग्रेस के भीतर बने रहे।

● कांग्रेस ने अपने अंदर क्रांतिकारी और शांतिवादी, कंजरवेटिव और रेडिकल, गरमपंथी और नरमपंथी, दक्षिणपंथी, वामपंथी और हर धारा के मध्यमार्गियों को समाहित किया।

● कांग्रेस एक मंच की तरह थी, जिस पर अनेक समूह, हित और राजनीतिक दल तक आ जुटते थे और राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते थे। आज़ादी से पहले के वक्त में अनेक संगठन और पार्टियों को कांग्रेस में रहने की इजाज़त थी।

इसी कारण भारतीय – राजनीति के इस कालखंड को ‘कांग्रेस-प्रणाली’ कहा जाता है।

 

 

★ गुटों में तालमेल और सहनशीलता :-

● पहली बात तो यही कि जो भी आए, गठबंधन उसे अपने में शामिल कर लेता है। हर मसले पर संतुलन को साधकर चलना पड़ता है। सुलह-समझौते के रास्ते पर चलना और सर्व-समावेशी होना गठबंधन की विशेषता होती है। इस रणनीति की वजह से विपक्ष कठिनाई में पड़ा। 

● दूसरे, अगर किसी पार्टी का स्वभाव गठबंधनी हो तो अंदरूनी मतभेदों को लेकर उसमें सहनशीलता भी ज्यादा होती है। विभिन्न समूह और नेताओं की महत्त्वाकांक्षाओं की भी उसमें समाई हो जाती है। इसी कारण, अगर कोई समूह पार्टी के रुख से अथवा सत्ता में प्राप्त अपने हिस्से से नाखुश हो तब भी वह पार्टी में ही बना रहता था। 

● पार्टी के अंदर मौजूद विभिन्न समूह गुट कहे जाते हैं। अपने गठबंधनी स्वभाव के कारण कांग्रेस विभिन्न गुटों के प्रति सहनशील थी और इस स्वभाव से विभिन्न गुटों को बढ़ावा भी मिला। लेकिन अकसर गुटों के बनने के पीछे व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा तथा प्रतिस्पर्धा की भावना भी काम करती थी। ऐसे में अंदरूनी गुटबाजी कांग्रेस की कमज़ोरी बनने की बजाय उसकी ताकत साबित हुई। 

● कांग्रेस की अधिकतर प्रांतीय इकाइयों विभिन्न गुटों को मिलाकर बनी थीं। ये गुट अलग-अलग विचारधारात्मक रुख अपनाते थे और कांग्रेस एक भारी-भरकम मध्यमार्गी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आती थी। दूसरी पार्टियाँ मुख्यतः कांग्रेस के इस या उस गुट को प्रभावित करने की कोशिश करती थीं। इस तरह बाकी पार्टियाँ हाशिए पर रहकर ही नीतियों और फ़ैसलों को अप्रत्यक्ष रीति से प्रभावित कर पाती थीं।

● इसके बावजूद विपक्षी पार्टियाँ लगातार कांग्रेस की आलोचना करती थीं, उस पर दबाव डालती थीं और इस क्रम में उसे प्रभावित करती थीं। गुटों की मौजूदगी की यह प्रणाली शासक दल के भीतर संतुलन साधने के एक औजार की तरह काम करती थी। इस तरह राजनीतिक होड़ कांग्रेस के भीतर ही चलती थी।इस अर्थ में देखें तो चुनावी प्रतिस्पर्धा के पहले दशक में कांग्रेस ने शासक दल की भूमिका निभायी और विपक्ष की भी। 

इसी कारण भारतीय – राजनीति के इस कालखंड को ‘कांग्रेस-प्रणाली’ कहा जाता है।

 

 

★ सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत :-

● हमारे देश के चुनाव प्रणाली में सर्वाधिक वोट पाने की जीत को अपनाया गया है।

●इस प्रणाली के तहत उस पार्टी को सरकार बनाने का न्यौता मिलता है जिस पार्टी को अन्य पार्टियों की तुलना में सबसे अधिक वोट मिला हो।

●ऐसी स्थिति को भारतीय राजनीति में सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत कहा जाता है।

 

★ 1952 के चुनाव के परिणाम :-

● भारत में लोकतंत्र सफल रहा।

● लोगो ने बढ़ चढ़ कर चुनाव में हिस्सा लिया

● चुनाव में उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुक़ाबला हुआ हारने वाले उम्मीदवारों ने भी परिणाम को सही बताया

● भारतीय जनता ने इस चुनावी प्रयोग को बखूबी अंजाम दिया और सभी आलोचकों के मुँह बंद हो गए।

● चुनावो में कांग्रेस ने 364 सीट जीती और सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी।

● दूसरी सबसे बड़ी पार्टी रही कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया जिसने 16 सीटें जीती

● जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री

 

★ दुसरा आम चुनाव 1957 :- 

●1957 में भारत में दूसरे आम चुनाव हुए इस बार भी स्तिथि पिछली बार की तरह ही रही और कांग्रेस ने लगभग सभी जगह आराम से चुनाव जीत लिए लोक सभा में कांग्रेस को 371 सीटे मिली।

● जवाहर लाल नेहरू दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने पर केरल में कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव दिखा और कांग्रेस केरल में सरकार नहीं बना पाई।

● 1957 में केरल में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया ने सरकार बनाई और ई एस नम्बूरीपाद मुख्यमंत्री बने पर 1959 में केंद्र सरकार (कांग्रेस) ने संविधान के आर्टिकल 356 का प्रयोग करके इनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया। इस फैसले पर भविष्य में बहुत विवाद भी हुआ।

 

 

★ तीसरा आम चुनाव 1962

● 1962 में भारत में तीसरा आम चुनाव हुआ जिसमे फिर से ही कांग्रेस बड़े आराम से लगभग सभी जगहों पर चुनाव जीत गई।

● इस चुनाव में कांग्रेस ने लोक सभा में 361 सीटे जीती और जवाहर लाल नेहरू तीसरी बार प्रधानमंत्री बने ।

 

★ प्रथम तीन चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व

प्रथम आम चुनाव (1951-52)  364सीटें

दूसरा आम चुनाव   (1957) 371 सीटें    

तीसरा आम चुनाव  (1962)361 सीटें      

★ भारत के प्रमुख चुनाव आयुक्त

●प्रथम :-सुकुमार सेन (1950)

● वर्तमान :-सुनील चंद्रा (2021)

 

 

 ★ सोशलिस्ट पार्टी 

स्थापना :- 1934 में
संस्थापक :-आचार्य नरेंद्र देव
उद्देश्य :-समाजवादी कांग्रेस को ज्यादा से ज्यादा परिवर्तन कर्मी और समतावादी बनाना चाहते थे।

 

 

★ इंस्टीट्यूशनल रिवॉल्यूशनरी पार्टी (PRI)

स्थापना :- 1929 में
संस्थापक :-प्लूटार्को इलिहास कैलस हार
PRI का स्वरूप :- मूल रूप से PRI में राजनेता और सैनिक नेता, मजदूर और किसान संगठन तथा अनेक राजनीतिक दलों समेत कई किस्म के हितों का संगठन था।

 

 

★ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (CPI)
स्थापना :-  1941 में
संस्थापक :- A.k. गोपालन
उद्देश्य :- देश की समस्या के समाधान के लिए साम्यवाद की राह अपनाना ही उचित होगा

 

 

★ स्वतंत्र पार्टी :-
स्थापना :- 1959 में
संस्थापक :- सी राजगोपालाचारी
चिन्ह :- चांद का सितारा
स्वतंत्र पार्टी के मुख्य उद्देश्य :- 
1. पार्टी का मानना था कि सरकार अर्थव्यवस्था में कम से कम हस्तक्षेप करें।
2. इसका मानना था कि समृद्धि समृद्धि सिर्फ व्यक्तिगत स्वतंत्रता के जरिए ही आ सकती है।

 

 

 

★ भारतीय जनसंघ (RSS-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) :-
स्थापना :- 1951 में
संस्थापक :- श्यामा प्रसाद मुखर्जी, केशव राव बलिराम, डेडगेवार ने कि थी जो RSS के प्रत्यक्ष अध्यक्ष भी थे।
उद्देश्य :- RSS का मानना था कि भारत को एक देश, एक संस्कृति और एक राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ना चाहिए।

भारतीय जनसंघ के पहले “अध्यक्ष मोहन” भागवत थे।
भारतीय जन संघ का मुख्यालय नागपुर में है।

 

 

●  भारतीय जनसंघ की पृष्ठभूमि :

1.भारतीय जनसंघ का मानना था कि देश भारतीय संस्कृति और परंपरा के आधार पर आधुनिक प्रगतिशील और ताकतवर बन सकता है।

2.जनसंघ ने भारत और पाकिस्तान को एक करके अखंड भारत बनाने की बात कही अंग्रेजी को हटाकर हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के आंदोलन में यह पार्टी सबसे आगे रही।

3.इस पार्टी ने धार्मिक और सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को रियासत देने की बात का विरोध किया।भारतीय जनसंघ को प्रथम चुनाव में कुल 3 सीटें और दूसरे आम चुनाव में कुल 4 सीटें मिली।

4.पहली गठबंधन सरकार (राष्ट्रीय मोर्चा) जनता पार्टी वाम मोर्चा भाजपा (BJP)

 

 

 

 ★ विपक्षी पार्टियों का उद्भव :- 

 ● भारत में विपक्षी पार्टियों का भी गठन हुआ। कई पार्टियों का निर्माण आम चुनावों से पहले ही हो चुका था।

●  सन् 1950 के दशक में विपक्षी दलों को लोकसभा अथवा विधानसभाओं में नाममात्र का प्रतिनिधित्व मिल पाया लेकिन इन दलों की उपस्थिति ने हमारी शासन व्यवस्था के लोकतांत्रिक स्वरूप को बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।

 ● विपक्षी पार्टियों ने शासक दल की सकारात्मक आलोचना कर उस पर अपना अंकुश बनाये रखा। इन दलों ने लोकतांत्रिक, राजनीतिक विकल्प की संभावनाओं को जीवित रखा।

● स्वतंत्रता के पश्चात् के शुरुआती वर्षों में कांग्रेस और विपक्षी दलों के नेताओं के मध्य पारस्परिक सम्मान का गहरा भाव था जो दलगत प्रतिस्पर्धाओं के तीव्र होने के कारण लगातार कम होता चला गया।

 

 

 

★ इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) :-

● वर्तमान चुनावों में इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का ही प्रयोग होता है। इसके द्वारा मतदाता उम्मीदवारों के बारे में अपनी पसन्द व्यक्त करते हैं। सन् 1990 के दशक के अन्त में चुनाव आयोग ने ईवीएम का इस्तेमाल शुरू किया। सन् 2004 तक सम्पूर्ण देश में ईवीएम का इस्तेमाल प्रारम्भ हो गया।

 

 ★ सार्वभौम मताधिकार :-

● इसका अर्थ है कि भारत में सभी वयस्क (18 वर्ष एवं इससे अधिक आयु के) नागरिकों को वोट देने का अधिकार है।

 

 

 

 

 

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