हड़प्पा सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार प्रमुख स्थल पशुपालन शिल्प व्यापार सामाजिक स्थिति जीवन धार्मिक प्रथाएँ देवता जल निकास प्रणाली दुर्ग और निचला शहर हड़प्पा सभ्यता का पतन
ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ
★ हड़प्पा सभ्यता :- शब्द, स्थान तथा काल
● सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है।
● पुरातत्वविद ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली के होते हैं और सामान्यतया एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल-खंड से संबद्ध पाए जाते हैं।
● हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में इन विशिष्ट पुरावस्तुओं में मुहरें, मनके, बाट, पत्थर के फलक, और पकी हुई ईंटें सम्मिलित हैं।
● ये वस्तुएँ अफ़गानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान (पाकिस्तान) तथा गुजरात जैसे क्षेत्रों से मिली हैं। जो एक दूसरे से लंबी दूरी पर स्थित ।
● इस सभ्यता का नामकरण, हड़प्पा नामक स्थान, जहाँ यह संस्कृति पहली गई थी।
● इसका काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच किया गया है।
● इस क्षेत्र में इस सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरंभिक तथा परवर्ती हड़प्पा कहा जाता है। इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है।
★ सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार :-
● हड़प्पा सभ्यता भारत भूमि पर लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुई थी।
● यह त्रिभुजाकार स्वरूप में फैली हुई थी।
● यह उत्तर में ‘मांडा’ (जम्मू कश्मीर) तक, दक्षिण में ‘दैमाबाद’ (महाराष्ट्र) तक, पूर्व में ‘आलमगीरपुर’ (उत्तरप्रदेश) तक और पश्चिम में ‘सुत्कागेंडोर’ (पाकिस्तान) तक फैली हुई थी।
● भारत , पाकिस्तान , अफगानिस्तान तक फैली है।
★ सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल :-
◆ हड़प्पा :-
● यह स्थल वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में स्थित है।
● यहाँ सबसे पहले दयाराम साहनी उत्खनन कार्य किया गया था।
● यह रावी नदी के तट पर स्थित है।
● 1842 में एक अंग्रेज पर्यटक चार्ल्स मेशन ने सर्वप्रथम प्रकाश डाला।
● 1856 में अलेक्जेंडर कनिंघम ने हड़प्पा सभ्यता का सर्वे किया।
● 1921 में सर जॉन मार्शल ने दयाराम साहनी को हड़प्पा सभ्यता में उत्खनन करने हेतु नियुक्त किया।
● 1922 में सर जॉन मार्शल ने राखालदास बनर्जी को मोहनजोदड़ो का उत्खनकर्ता नियुक्त किया।
● इस स्थल पर आबादी वाले क्षेत्र के दक्षिणी भाग में एक कब्रिस्तान प्राप्त हुआ है, जिसे विद्वानों ने ‘कब्रिस्तान एच’ का नाम दिया है।
● हड़प्पा से हमें एक विशाल अन्नागार के साक्ष्य भी मिले हैं। यह सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में प्राप्त हुई तमाम संरचनाओं में दूसरी सबसे बड़ी संरचना है।
● हड़प्पा से हमें एक पीतल की इक्का गाड़ी मिली है। इसी स्थल पर स्त्री के गर्भ से निकलते हुए पौधे वाली एक मृण्मूर्ति भी मिली है।
● समूची हड़प्पा सभ्यता में हमें सबसे अधिक अभिलेख युक्त मुहरें यहीं से ही प्राप्त हुई हैं।
◆ मोहनजोदड़ो :-
● मोहनजोदड़ो का सिंधी भाषा में शाब्दिक अर्थ होता है- ‘मृतकों का टीला’।
● यह वर्तमान पाकिस्तान में सिंध के लरकाना जिले में स्थित है। यह स्थल सिंधु नदी के तट पर स्थित है।
● इस स्थल पर उत्खनन कार्य 1922 में राखाल दास बनर्जी के नेतृत्व में हुआ था।
●इस स्थल से हमें एक विशाल स्नानागार के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। यहाँ सड़कों का जाल बिछा हुआ था।
● यहाँ पर सड़कें ग्रिड प्रारूप में बनी हुई थीं। यहाँ से मिली सबसे बड़ी इमारत विशाल अन्नागार है।
सर्वाधिक मुहरें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई हैं।
● हड़प्पा स्थल से सर्वाधिक अभिलेख युक्त मुहरें प्राप्त हुई हैं।
यहाँ से प्राप्त हुए अन्य प्रमुख अवशेषों में शामिल हैं- कांसे की नर्तकी की मूर्ति, मुद्रा पर अंकित पशुपति नाथ की मूर्ति, सूती कपड़ा, अलंकृत दाढ़ी वाला पुजारी, इत्यादि।
◆ चन्हूदड़ो :-
● चन्हूदड़ो वर्तमान में पाकिस्तान में सिंधु नदी के तट पर स्थित है।
●>यहाँ पर उत्खनन कार्य 1935 ईस्वी में अर्नेस्ट मैके के नेतृत्व में किया गया था।
● यहाँ पर शहरीकरण का अभाव था। इस स्थल से विभिन्न प्रकार के मनके, उपकरण, मुहरें इत्यादि प्राप्त हुई हैं।
● चन्हूदड़ो में मनके निर्माण का कार्य होता था। इसीलिए इस स्थल को सिंधु घाटी सभ्यता का औद्योगिक केंद्र भी माना जाता है।
● चन्हूदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता का एक मात्र ऐसा स्थल है, जहाँ से हमें वक्राकार ईटों के साक्ष्य प्राप्त होते हैं।
◆ लोथल :-
● लोथल वर्तमान में गुजरात के अहमदाबाद में भोगवा नदी के तट पर स्थित है।
● यह स्थल खंभात की खाड़ी के अत्यंत निकट स्थित है।
● इस स्थल की खोज 1957 ईस्वी में श्री एस. आर. राव द्वारा की गई थी।
● सिंधु घाटी सभ्यता का यह स्थल एक प्रमुख बंदरगाह स्थल था।
● सिंधु घाटी सभ्यता के इस बंदरगाह स्थल लोथल में एक विशाल गोदी बाड़ा मिला है।
● लोथल से धान व बाजरे, दोनों के साक्ष्य मिलते हैं। इस बंदरगाह स्थल से हमें तीन युगल समाधियों के साक्ष्य भी प्राप्त होते हैं।
◆ कालीबंगा :-
● कालीबंगा स्थल वर्तमान राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित है।
● यह प्राचीन ‘सरस्वती नदी’ के तट पर स्थित था। इस स्थल की खोज 1953 ईस्वी में अमलानंद घोष द्वारा की गई थी।
● कालीबंगा नामक स्थल से हमें जुते हुए खेत, एक साथ दो फसलों की बुवाई, अग्नि कुंड के साक्ष्य मिले हैं।
● यहाँ से जल निकासी प्रणाली के साक्ष्य नहीं मिलते हैं। यहाँ से बेलनाकर मुहरों, अलंकृत ईंटों के साक्ष्य मिले हैं।
◆ धौलावीरा :-
● धौलावीरा वर्तमान गुजरात के कच्छ जिले की भचाऊ तहसील में स्थित है।
● यह सिंधु घाटी सभ्यता कालीन स्थल मानहर व मानसर नदियों के पास स्थित है।
● धौलावीरा में अन्य सिंधु घाटी सभ्यता कालीन स्थलों के विपरीत नगर का विभाजन तीन हिस्सों में मिलता है।
● सिंधु घाटी सभ्यता कालीन अन्य नगरों का विभाजन दो हिस्सों में किया गया था।
● धौलावीरा में हमें बाँध अथवा कृत्रिम जलाशय के साक्ष्य मिले हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि इस नगर में जल प्रबंधन की उत्कृष्ट व्यवस्था मौजूद थी।
★ नगर योजना और संरचनाएँ :-
● हड़प्पा संस्कृति की प्रमुख विशेषता इसकी नगर योजना प्रणाली थी। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों नगरों के अपने-अपने दुर्ग थे।
● नगरों में भवनों के बारे में विशिष्ट बात यह थी कि ये (ग्रिड) की तरह व्यवस्थित थे। सड़कें एक-दूसरे को समकोण बनाते हुए काटती थीं तथा नगर अनेक खंडों में विभक्त थे।
● घरों का निर्माण एक सीध में सड़कों के किनारे व्यवस्थित रूप में किया जाता था। दरवाजे गलियों या सहायक सड़कों की ओर खुलते थे। भवन दो मंजिले भी थे। घरों में कई कमरे, रसोईघर, स्नानागार तथा बीच में आँगन की व्यवस्था थी।
● मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है। यह 11.88 मी. लम्बा, 7.01 मी. चौड़ा और 2.43 मी. गहरा है। इसमें उतरने के लिये उत्तर तथा दक्षिण की और सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। स्नानागार का फर्श पकी ईंटों का बना है एवं इसके मध्य में स्नानकुंड स्थित था।
● इस विशाल स्नानागार का उपयोग सार्वजनिक रूप से धर्मानुष्ठान सम्बंधी स्नान के लिए होता था।
● जॉन मार्शल ने विशाल स्नानागार को विश्व का आश्चर्यजनक निर्माण बताया था। यह जलपूजा का एकमात्र साक्ष्य है।
● मोहनजोदड़ो में एक अन्नागार मिला है, जो 45.71 मीटर लम्बा और 15.23 मीटर चौड़ा है।
● हड़प्पा के दुर्ग में छह अन्नागार मिले हैं, जो ईंटों के बने चबूतरों पर दो पंक्तियों में खड़े हैं। प्रत्येक अन्नागार 15.23 मीटर लम्बा और 6.09 मीटर चौड़ा है।
● मोहनजोदड़ो की जल निकास प्रणाली अद्भुत थी। लगभग सभी नगरों के प्रत्येक छोटे या बड़े मकान में प्रांगण और स्नानागार होते थे।
● कालीबंगा के अनेक घरों में कुएँ पाये गये हैं। घरों का पानी बहकर सड़कों तक आता था, जहाँ इनके नीचे मोरियाँ बनी हुई थीं। ये मोरियाँ ईंटों और पत्थरों की तख्तियों से ढकी रहती थीं। सड़कों की इन मोरियों में नरमोखे (मेनहोल) भी बने थे।
◆ कृषि :-
● सिंधु प्रदेश में वर्तमान में पहले की अपेक्षा बहुत कम वर्षा होती थी।
● यहाँ के समृद्ध देहातों और नगरों को देखने से ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में यह प्रदेश अत्यधिक उपजाऊ था।
● गाँव की रक्षा के लिए खड़ी की गई पकी ईंटों की दीवारों से स्पष्ट होता है कि बाढ़ प्रत्येक वर्ष आती थी।
● सिंधु सभ्यता के लोग बाढ़ उतर जाने पर नवंबर के महीने में बाढ़ वाले मैदानों में बीज बो देते थे और अगली बाढ़ के आने से पहले अप्रैल महीने में गेहूँ और जौ की फसल काट लेते थे।
● कालीबंगा में प्राक् हड़प्पा काल के जो कूड़ (हलरेखा) देखे गए हैं, उनसे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा काल में राजस्थान में हल का प्रयोग होता था।
● सिंधु सभ्यता के लोग गेहूँ, जौ, राई, मटर आदि अनाज पैदा करते थे। उन्हें नौ प्रकार की फसलों का ज्ञान था। वे दो किस्म का गेहूँ और जौ उगाते थे। इसके अतिरिक्त वे तिल और सरसों भी उगाते थे।
● सबसे पहले कपास पैदा करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगों को जाता है। चूँकि कपास का उत्पादन सबसे पहले सिंधु क्षेत्र में हुआ, इसलिए यूनान के लोग इसे सिन्डन (Sindon) कहने लगे।
● चावल के उत्पादन के साक्ष्य लोथल व रंगपुर से मिले हैं। गन्ना
का कोई साक्ष्य नहीं मिला है। लोथल एवं सौराष्ट्र से बाजरे की खेती एवं रोजदी (गुजरात) से रागी के विषय में साक्ष्य मिले हैं।
● सिंधुवासी हल के प्रयोग से परिचित थे। कालीबंगा के प्राक् सिंधु काल के हल से जुते हुए खेत तथा उनमें सरसों की खेती के साक्ष्य मिले हैं।
● पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में बहावलपुर जिले में स्थित चोलिस्तान व भारत के हरियाणा राज्य के फतेहाबाद जिले में स्थित बनावली से का बना हुआ खिलौना हल मिला था।
● नहर द्वारा सिंचाई का प्रमाण नहीं मिलता है।
★ पशुपालन :-
● हड़प्पाई लोग बैल, गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर पालते थे। इन्हें कूबड़ वाला साँड़ विशेष प्रिय था। इसके अतिक्ति ये गधे और ऊँट भी रखते थे।
● कुत्ते प्रारम्भ से ही पालतू जानवरों में थे। बिल्ली भी पाली जाती थी। कुत्ता और बिल्ली दोनों के पैरों के निशान मिले हैं।
● सिंधुवासी हाथी व घोड़े से परिचित तो थे, लेकिन वे उन्हें पालतू बनाने में सफल नहीं हो सके थे, क्योंकि हाथी व घोड़े पालने के साक्ष्य प्रमाणित नहीं हो सके हैं।
● घोड़े के अस्तित्व का संकेत मोहनजोदड़ो की ऊपरी सतह से तथा लोथल में मिली एक संदिग्ध मृण्मूर्ति (टेराकोटा) से मिला है।
● हड़प्पा काल में गैंडा का प्रमाण (भारतीय गैंडा का एकमात्र प्रमाण) आमरी से मिला है। बंदर, भालू, खरहा आदि जंगली जानवरों का भी ज्ञान था। इसकी पुष्टि मुहरों, ताम्र तश्तरियों आदि पर अंकित इनके चित्रों से होती है। शेर का कोई साक्ष्य नहीं मिला है।
● गुजरात के पश्चिम में अवस्थित सुरकोटदा में घोड़े के अवशेषों के मिलने की पुष्टि हुई है। हड़प्पाई लोगों को हाथी का ज्ञान था और ये गैंडे से भी परिचित थे।
★ शिल्प और तकनीकी ज्ञान :-
● हड़प्पाई लोग काँस्य के निर्माण और प्रयोग से भली-भाँति परिचित थे। सामान्यतः काँसा, ताँबे में टिन को मिलाकर धातु शिल्पियों द्वारा बनाया जाता था।
● ताँबा, राजस्थान की खेतड़ी के ताम्र-खानों से मंगाया जाता था। टिन अफगानिस्तान से मँगाया जाता था।
● हड़प्पाई स्थलों में जो काँसे के औजार व हथियार मिले हैं, उनमें टिन की मात्रा अत्यन्त कम है।
● हड़प्पा समाज के शिल्पियों में कसेरों (काँस्य-शिल्पियों) के समुदाय का महत्वपूर्ण स्थान था।
● मोहनजोदड़ो से बुने हुए सूती कपड़े का एक टुकड़ा मिला है। तथा कई वस्तुओं पर कपड़े की छाप देखने में आई है। कताई के लिए तकलियों का इस्तेमाल होता था।
● ईंटों की विशाल इमारतें बताती हैं कि स्थापत्य (राजगीरी) महत्वपूर्ण शिल्प था। हड़प्पाई लोग नाव बनाने का काम भी करते थे। मिट्टी की मुहरें बनाना और मिट्टी की पुतलियाँ बनाना भी
महत्वपूर्ण शिल्प थे।
● स्वर्णकार चाँदी, सोना और रत्नों के आभूषण बनाते थे। सोना, चाँदी संभवतः अफगानिस्तान से और रत्न भारत से आते थे।
● कुम्हार के चाक का अधिक प्रचलन था तथा हड़प्पाई लोगों के मृद्भांडों की अपनी प्रमुख विशेषताएँ थीं। ये मृदभांडों को चिकना और चमकीला बनाते थे।
★ व्यापार :-
● हड़प्पाई लोग सिंधु सभ्यता क्षेत्र के भीतर पत्थर, धातु और हड्डी आदि का व्यापार करते थे।
● वे धातु के सिक्कों का प्रयोग नहीं करते थे। संभवतः वे सभी प्रकार के आदान-प्रदान विनिमय द्वारा करते हों। वे पहिया से परिचित थे तथा हड़प्पा में ठोस पहियों वाली गाड़ियाँ प्रचलित थीं।
● मोहनजोदड़ो से मिट्टी व काँसे की दो पहियों वाली खिलौना गाड़ी एवं चन्हुदड़ो से मिट्टी की चार पहियों वाली खिलौना गाड़ी मिली है। लोथल से अलवेस्टर पत्थर का एक बड़ा पहिया व बनावली से सड़कों पर बैलगाड़ी के पहिये के निशान मिले हैं।
● उन्होंने उत्तरी अफगानिस्तान में अपनी वाणिज्यिक बस्ती स्थापित की थी, जिसकी सहायता से उनका व्यापार मध्य एशिया के साथ चलता था।
● बहुत-सी हड़प्पाई मुहरें की खुदाई में निकली हैं, जिससे प्रतीत होता है कि हड़प्पाई लोगों ने मेसोपोटामियाई नागरिकों के कई प्रसाधनों का अनुकरण किया है।
● हड़प्पाई लोगों ने लाजवर्द मणि (लापिस लाजूली) का सुदूर व्यापार किया था।
● मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर नाव के चित्रांकन व लोथल से प्राप्त मिट्टी निर्मित खिलौना नाव से यह अनुमान होता है कि सिंधुवासी आंतरिक व बाह्य व्यापार के लिए मस्तूल वाली नावों का उपयोग करते थे।
● सिंधु सभ्यता के काल में पोत निर्माण एवं नावों द्वारा समुद्री व्यापार होने की पुष्टि लोथल से प्राप्त गोदीबाड़ा के साक्ष्य से होती है।
★ सामाजिक स्थिति :-
● यह समाज मातृसत्तात्मक रहा होगा। इतिहासकारों के अनुसार, समाज चार वर्गों में विभक्त था- विद्वान, योद्धा, श्रमिक और व्यापारी।
● ये लोग शाकाहार और माँसाहार, दोनों ही तरह के भोजन का प्रयोग करते थे। ये ऊनी और सूती, दोनों ही प्रकार के वस्त्रों का उपयोग करते थे। पुरुष और महिलाएँ, दोनों ही आभूषण पहनते थे।
● सिंधु घाटी सभ्यता के लोग शांतिप्रिय लोग थे। यहाँ से तलवार, ढाल, शिरस्त्राण, कवच इत्यादि के साक्ष्य नहीं मिले हैं।
★ सामाजिक जीवन :-
● समाज की इकाई परम्परागत तौर पर परिवार थी। मातृदेवी की पूजा तथा मुहरों पर अंकित चित्र से यह परिलक्षित होता है कि हड़प्पा समाज सम्भवतः मातृसत्तात्मक था।
● नगर नियोजन दुर्ग, मकानों के आकार व रूपरेखा तथा शवों के दफनाने के ढंग को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि सैन्धव समाज अनेक वर्गों जैसे पुरोहित, व्यापारी, अधिकारी, शिल्पी, जुलाहे एवं श्रमिकों में विभाजित रहा होगा ।
● सैन्धव सभ्यता के लोग युद्ध प्रिय कम शान्ति प्रिय अधिक थे। सिन्धु सभ्यता के निवासी
● शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों थे। भोज्य पदार्थों में गेहूँ, जौ, मटर, तिल, सरसों, खजूर, तरबूज के साथ गाय, सूअर, बकरी, मछली, घड़ियाल, कछुआ आदि का मांस प्रमुख रूप से प्रयोग में लाया जाता था।
● वस्त्र सूती एवं ऊनी दोनों प्रकार के पहने जाते थे। आभूषणों का प्रयोग पुरुष एवं महिलाएँ दोनों करते थे।
● मनोरंजन के लिए पासे का खेल, नृत्य, शिकार, पशुओं की लड़ाई आदि प्रमुख साधन थे। धार्मिक उत्सव एवं समारोह समय-समय पर धूम-धाम से मनाये जाते थे।
★ धार्मिक प्रथाएँ :-
● हड़प्पा में पकी मिट्टी की स्त्री-मूर्तियाँ बड़ी संख्या में मिली हैं। एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है। यह संभवतः उर्वरता की देवी का प्रतीक है और इसका निकट सम्बंध पौधों के जन्म और वृद्धि से रहा होगा।
◆ सिंधु घाटी के पुरुष देवता:-
● पुरुष देवता को एक मुहर पर चित्रित किया गया है। उसके सिर पर तीन सींग हैं। इसमें एक योगी को ध्यान मुद्रा में एक पैर पर दूसरा पैर रखकर बैठे हुए (पद्मासन मुद्रा) दिखाया गया है। उसके चारों ओर एक हाथी, एक बाघ और एक गैंडा है, आसन के नीचे एक भैंसा तथा पैरों के पास दो हिरण हैं।
● मुहर पर चित्रित देवता को पशुपति महादेव कहा गया है। सिन्धु सभ्यता में लिंग-पूजा का प्रचलन मिलता है , जो कालांतर में शिव की पूजा से गहन रूप से जुड़ गई थी।
★ सिंधु घाटी सभ्यता का पतन :-
● सिंधु घाटी सभ्यता का पतन कैसे हुआ, इसके संबंध में विभिन्न विद्वानों के अनेक मत हैं। लेकिन उनमें से कोई भी मत सर्वसम्मति से स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि ये सभी मत सिर्फ अनुमानों के आधार पर दिए गए हैं।
● गार्डन चाइल्ड, मॉर्टिमर व्हीलर, पिग्गट महोदय जैसे विद्वानों ने सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण आर्य आक्रमण को माना था, लेकिन विभिन्न शोधों के आधार पर अब इस मत का खंडन किया जा चुका है और यह सिद्ध किया जा चुका है कि आर्य बाहरी व्यक्ति नहीं थे, बल्कि वे भारत के ही मूल निवासी थे। इसलिए आर्यों के आक्रमण के कारण सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के मत को वैध नहीं माना जा सकता है।
● इसके अलावा, विभिन्न विद्वान जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा, प्राकृतिक आपदा, पारिस्थितिकी असंतुलन, प्रशासनिक शिथिलता इत्यादि को सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के लिए उत्तरदायी कारक मानते हैं।
★ हड़प्पा सभ्यता की जल निकास प्रणाली :-
● हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशेषताओं में से एक ध्यान पूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी।
● सड़कों तथा गलियारों को लगभग एक ‘ग्रीड पद्धति’ में बनाया गया था और यह एक दूसरे को संपूर्ण पर काटती थी।
● ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों का निर्माण के साथ-साथ गलियों को बनाया गया था और उसके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया।
● यदि घरों के गंदे पानी को गलियारे की नालियों से जोड़ना था तो प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था। नालियों की ऊंचाइयां कम से कम 4-5 फिट होती थी।
★ हड़प्पा सभ्यता क्या हैं?
● पहले ऐसा माना जाता था कि मेसोपोटामिया की सभ्यता, मिस्र की सभ्यता, चीन की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से है | लेकिन 1920 के दशक में हड़प्पा सभ्यता की खोज हुई उसके बाद यह ज्ञात हुआ कि हड़प्पा सभ्यता जैसी कोई सभ्यता अस्तित्व में थी इस सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है |
★ दुर्ग और निचला शहर
◆ दुर्ग :-
● दुर्ग आकार में छोटा था
●इसे ऊंचाई पर बनाया गया था
● दुर्ग को चारों तरफ दीवार से घेटा गया था
● यह दीवार ही इसे निचले शहर से अलग करती थी
◆ निचला शहर :-
● निचला शहर आकार में दुर्ग से बड़ा था
● यह सामान्य लोगों के लिए बनाया गया था
● यहां की मुख्य विशेषताएं इसकी जल निकासी प्रणाली थी
◆ हड़प्पा सभ्यता का पतन :-
ऐसा माना जाता है कि हड़प्पा सभ्यता का अंत किसी प्राकृतिक आपदा के कारण हुआ जैसे कि
● भूकंप
● सिंधु नदी का रास्ता बदलना
● जलवायु परिवर्तन
● वनों की कटाई
● आर्यों का आक्रमण
◆ हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु घाटी सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस सभ्यता के अधिकांश स्थलों का विकास सिन्धु नदी की घाटी में हुआ था।
● पुरातत्वविदों द्वारा हड़प्पा सभ्यता का समय 2600 ई. पू. से 1900 ई. पू. के मध्य निर्धारित किया गया है।
● रेडियो कार्बन-14 (सी-14) जैसी नवीनतम विश्लेषण पद्धति द्वारा हड़प्पा सभ्यता का समय 2500 ई. पू. से 1750 ई. पू. माना गया है, जो सर्वाधिक मान्य है।
◆ हड़प्पा की दुर्दशा :-
यद्यपि हड़प्पा की खोज सबसे पहले हुई थी। लगभग 150 साल पहले जब पंजाब में पहली बार रेलवे लाइनें बिछाई जा रही थीं तो इस काम में जुटे इंजीनियरों को अचानक यह पुरास्थल मिला जो आधुनिक पाकिस्तान में है। उन्होंने सोचा कि यह एक ऐसा खंडहर है, जहाँ से अच्छी ईंटें मिलेंगी। यह सोचकर वे हड़प्पा के खंडहरों से हजारों ईंटें उखाड़ ले गए जिससे उन्होंने रेलवे लाइनें बिछाईं। इस कारण कई प्राचीन इमारतें पूरी तरह नष्ट हो गईं।
◆ बी. सी. : अंग्रेजी में बी. सी. (हिन्दी में ई. पू.) का आशय बिफोर क्राइस्ट (ईसा पूर्व) से है।
◆ ए. डी. : यह ऐनो डॉमिनी नामक दो लेटिन शब्दों से बना है जिसका तात्पर्य ईसा मसीह के जन्म के वर्ष से है हिन्दी में ए. डी. को ईस्वी (ई.) लिखा जाता है।
● मातृदेवी :- हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त आभूषणों से लदी नारी की मृण्मूर्तियाँ, जिनके शीर्ष पर पंखे की आकृति बनी होती थी को मातृदेवी की संज्ञा दी गई।
● आद्य शिव :- हड़प्पा से प्राप्त पशुपति शिव के अंकन वाली मुद्रा जिस पर शिव (पशुपति) की आकृति बनी हुई
● पुरोहित राजा :- गाय मोहनजोदड़ो से प्राप्त पुजारी के सिर वाली प्रतिमा को पुरोहित राजा की संज्ञा दी जाती है।
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