अध्ययन 9 : अंतरराष्ट्रीय व्यापार

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 व्यापार

व्यापार का तात्पर्य वस्तुओं और सेवाओं के स्वैच्छिक आदान-प्रदान से होता है। व्यापार करने के लिए दो पक्षों का होना आवश्यक है। एक व्यक्ति पक्ष बेचता है और दूसरा खरीदता है। कुछ स्थानों पर लोग वस्तुओं का विनिमय करते हैं। व्यापार दोनों ही पक्षों के लिए समान रूप से लाभदायक होता है।

 

 

व्यापार दो स्तरों पर किया जा सकता है ?

1 अंतर्राष्ट्रीय : अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभिन्न राष्ट्रों के बीच राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान को कहते हैं। राष्ट्रों को व्यापार करने की आवश्यकता उन वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए होती है, जिन्हें या तो वे (देश) स्वयं उत्पादित नहीं कर सकते या जिन्हें वे अन्य स्थान से कम दामों में खरीद सकते हैं।

 

2 राष्ट्रीय : एक राष्ट्र के अंदर सेवाओ ओर वस्तुओ का आदान प्रदान राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है ।
 प्राचीन काल मे लोग वस्तु विनिमय प्रणाली के द्वारा व्यापार किया करते थे। जिस में लोग एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का लेनदेन करते थे ।

परंतु रुपये अथवा के आगमन के साथ ही विनिमय व्यवस्था की कठिनाइयों को दूर कर लिया गया।

 

 

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का इतिहास

 

प्राचीन समय में लंबी दूरियों तक वस्तुओं का परिवहन जोखिमपूर्ण होता था, इसलिए व्यापार स्थानीय बाजारों तक ही सीमित था। लोग तब अपने संसाधनों का अधिकांश भाग मूलभूत आवश्यकताओं- भोजन और वस्त्र पर खर्च करते थे।

 

 

रेशम मार्ग

रेशम मार्ग लंबी दूरी के व्यापार का एक आरंभिक उदाहरण है, जो 6000 कि.मी. लंबे मार्ग के सहारे रोम को चीन से जोड़ता था। व्यापारी भारत, पर्शिया (ईरान) और मध्य एशिया के मध्यवर्ती स्थानों से चीन में बने रेशम, रोम की ऊन दिया गया। व बहुमूल्य धातुओं तथा अन्य अनेक महंगी वस्तुओं का परिवहन करते थे।

 

 

रोमन साम्राज्य के विखंडन के पश्चात् 12वीं और 13वीं शताब्दी के दौरान यूरोपीय वाणिज्य में वृद्धि हुई। समुद्रगामी युद्धपोतों के विकास के साथ ही यूरोप तथा एशिया के बीच व्यापार बढ़ा तथा अमेरिका की खोज हुई

 

 

दास व्यापार

15वीं शताब्दी से ही यूरोपीय उपनिवेशवाद शुरू हुआ और विदेशी वस्तुओं के साथ व्यापार के साथ ही व्यापार के एक नए स्वरूप का उदय हुआ, जिसे ‘दाम व्यापार’ कहा गया।

 

पुर्तगालियों, डों, स्पेनिश लोगों व अंग्रेजों ने अफ्रीकी मूल निवासियों को पकड़ा और उन्हें बलपूर्वक बागानों में श्रम हेतु नए खोजे गए अमेरीका में परिवर्तित किया। इस व्यापार दो सौ वर्षों से भी अधिक समय तक एक लाभदायक व्यापार रहा जब तक कि यह 1792 में डेनमार्क में, 1807 में ग्रेट ब्रिटेन में और 1808 में संयुक्त राज्य में पूर्णरूपेण समाप्त नहीं कर दिया।

 

 

आधुनिक व्यापार :

औद्योगीकृत राष्ट्रों ने कच्चे माल के रूप में प्राथमिक उत्पादों का आयात किया और मूल्यपरक तैयार माल को वापस अनधीकृत राष्ट्रों को निर्यात कर दिया।

19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में प्राथमिक वस्तुओं का उत्पादन करने वाले प्रदेश अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं रहे और औद्योगिक राष्ट्र एक दूसरे के मुख्य ग्राहक बन गए

प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पहली बार राष्ट्रों ने व्यापार कर और संख्यात्मक प्रतिबंध लगाए। विश्व युद्ध के बाद के समय के दौरान ‘व्यापार व शुल्क हेतु सामान्य समझौता’ (GATT) जैसे संस्थाओं ने (जो कि बाद में विश्व व्यापार संगठन WTO बना शुल्क को पटाने में सहायता की )

 

 

 

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार अस्तित्व में क्यों है?

 

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार उत्पादन में विशिष्टीकरण का परिणाम है। यह विश्व की अर्थव्यवस्था को लाभान्वित करता है इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार वस्तुओं और सेवाओं के तुलनात्मक लाभ, परिपूरकता व हस्तांतरणीयता के सिद्धांतों पर आधारित होता है और सिद्धांततः यह व्यापारिक भागीदारों को समान रूप से लाभदायक होना चाहिए।

 

आधुनिक समय में व्यापार, विश्व के आर्थिक संगठन का आधार है और यह राष्ट्रों की विदेश नीति से संबंधित है।

 

 

 

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के आधार :

 

1) राष्ट्रीय संसाधनों में भिन्नता : भौतिक संरचना जैसे कि विज्ञान, उच्चावच मृदा व जलवायु में भिन्नता के कारण विश्व के राष्ट्रीय संसाधन असमान रूप से विपरीत है।

 

क) भौगोलिक संरचना खनिज संसाधन आधार को निर्धारित करती है और धरातलीय विभिन्नताएँ, फसलों व पशुओं की विविधता सुनिश्चित करतो हैं।

ख) खनिज संसाधन संपूर्ण विश्व में असमान रूप से वितरित हैं। खनिज संसाधनों की उपलब्धता औद्योगिक विकास का आधार प्रदान करती है।

(ग) जलवायु किसी दिए हुए क्षेत्र में जीवित रह जाने वाले पादप व वन्य जात के प्रकार को प्रभावित करती है। यह विभिन्न उत्पादों की विविधता को सुनिश्चित करता है।

 

 

2) जनसंख्या कारक : विभिन्न देशों में जनसंख्ह के आकार, वितरण तथा उसकी विविधता व्यापार की गई वस्तुओं के प्रकार और मात्रा को प्रभावित करते हैं।

 

क) सांस्कृतिक कारक विशिष्ट संस्कृतियों में कला. तथा हस्तशिल्प के विभिन्न रूप विकसित हुए हैं, जिन्हें विश्व भर में सराहा जाता है। उदाहरणस्वरूप चीन द्वारा उत्पादित उत्तम कोटि का पोर्सलीन (चीनी मिट्टी का बर्तन)

 

ख) जनसंख्या का आकार सघन बसाव वाले देशों में आंतरिक व्यापार अधिक है जबकि बाह्य व्यापार कम परिमाण वाला होता है, क्योंकि कृषीय और औद्योगिक उत्पादों का अधिकांश भाग स्थानीय बाजारों में ही खप जाता है।

 

3) आर्थिक विकास की प्रावस्था :

देशों के आर्थिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं में व्यापार की गई वस्तुओं का स्वभाव (प्रकार) परिवर्तित हो जाता है। कृषि की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण देशों में विनिर्माण की वस्तुओं के लिए कृषि उत्पादों का विनिमय किया जाता है, जबकि औद्योगिक राष्ट्र मशीनरी और निर्मित उत्पादों का निर्यात करते हैं तथा खाद्यान्न तथा अन्य कच्चे पदार्थों का आयात करते हैं।

 

4)विदेशी निवेश की सीमा : विदेशी निवेश विकासशील देशों में व्यापार को बढ़ावा दे सकता है जिनके पास खनन, प्रबंधन द्वारा तेल खनन, भारी अभियांत्रिकी, काठ कबाड़ तथा बागवानी कृषि के विकास के लिए आवश्यक पूंजी का अभाव है। विकासशील देशों में ऐसे पूँजी प्रधान उद्योगों के विकास द्वारा औद्योगिक राष्ट्र खाद्य पदार्थों खनिजों का आयात सुनिश्चित करते हैं

 

5) परिवहन 

समुचित साधनों का अभाव स्थानीय क्षेत्रों में व्यापार को प्रतिबंधित करता था। केवल उच्च मूल्य वाली वस्तुओं जैसे- रत्न, रेशम तथा मसाले का लंबी दूरियों तक व्यापार किया जाता था। परंतु आधुनिक समय मे परिवहन ने व्यापार को सुनिश्चित किया है।

 

 

 

व्यापार संतुलन :

 

व्यापार संतुलन, एक देश के द्वारा अन्य देशों को आपात एव इसी प्रकार निर्यात की गई वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा (परिमाण) का प्रलेखन करता है। यदि आपात का मूल्य, देश के निर्यात मूल्य की अपेक्षा अधिक है तो देश का व्यापार संतुलन ऋणात्मक अथवा प्रतिकूल है। यदि नियति का मूल्य आपात के मूल्य की तुलना में अधिक है तो देश का व्यापार संतुलन धनात्मक अथवा अनुकूल है।

 

 

 

 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रकार :

 

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

1) द्विपार्श्विक व्यापार : द्विपार्श्विक व्यापार दो देशों के द्वारा एक दूसरे के साथ किया जाता है। आपस में निर्दिष्ट वस्तुओं का व्यापार करने के लिए वे सहमति करते हैं

 

2) बहु पार्श्विक व्यापार : बहु पार्श्विक व्यापार बहुत से व्यापारिक देशों के साथ किया जाता है। वही देश अन्य अनेक देशों के साथ व्यापार कर सकता है। देश कुछ व्यापारिक साझेदारों को ‘सर्वाधिक अनुकूल राष्ट्र’ (MFN) को स्थिति प्रदान कर सकता है।

 

 

 

 मुक्त व्यापार की स्थिति :

व्यापार हेतु अर्थव्यवस्थाओं को खोलने का कार्य मुक्त व्यापार अथवा व्यापार उदारीकरण के रूप में जाना जाता है। यह कार्य व्यापारिक अवरोधों जैसे सीमा शुल्क को घटाकर किया जाता है। घरेलू उत्पादों एवं सेवाओं से प्रतिस्पर्धा करने के लिए व्यापार उदारीकरण सभी स्थानों से वस्तुओं और सेवाओं के लिए अनुमति प्रदान करता है।

 

भूमंडलीकरण और मुक्त व्यापार विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को उन पर प्रतिकूल थोपते हुए तथा उन्हें विकास के समान अवसर न देकर बुरी तरह से प्रभावित कर सकते हैं। परिवहन एवं संचार तंत्र के विकास के साथ ही वस्तुएँ एवं सेवाएँ पहले की अपेक्षा तीव्रगति से एवं दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुँच सकती है।

देशों को भी डंप की गई वस्तुओं से सतर्क रहने की आवश्यकता है, क्योंकि मुक्त व्यापार के साथ इस प्रकार की सस्ते मूल्य की डंप की गई वस्तुएँ घरेलू उत्पादकों को नुकसान पहुँचा सकती है।

 

 

 

 विश्व व्यापार संगठन :

 

विश्व व्यापार संगठन एकमात्र ऐसा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो राष्ट्रों के मध्य वैश्विक नियमों का व्यवहार करता है। यह विश्वव्यापी व्यापार तंत्र के लिए नियमों को नियत करता है और इसके सदस्य देशों के मध्य विवादों का निपटारा करता है।

 

1948 में विश्व को उच्च सीमा शुल्क और विभिन्न प्रकार को अन्य बाधाओं से मुक्त कराने हेतु कुछ देशों के द्वारा जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ (GATT) का गठन किया गया

1994 में सदस्य देशों के द्वारा राष्ट्रों के बीच मुक्त एवं निष्पक्ष व्यापार को बढ़ा प्रोन्नत करने के लिए एक स्थायी संस्था के निर्माण का निश्चय किया गया था तथा जनवरी 1995 से (GATT) को विश्व व्यापार संगठन (WTO) में रूपांतरित कर दिया गया।

 

2016 में 164 देश विश्व व्यापार संगठन के सदस्य मे भारत विश्व व्यापार संगठन के संस्थापक सदस्य में से एक रहा है। विश्व व्यापार संगठन का मुख्यालय जिनेवा में स्थित है।

 

डंप करना : लागत की दृष्टि से नहीं भिन्न-भिन्न कारणों से अलग-अलग कीमत को किसी को दो देशों में विक्रय करने की प्रथा डंप करना ही है

 

 

 

 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित मामले

 

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का होना राष्ट्रों के लिए पारस्परिक लाभदायक होता है, यदि यह प्रादेशिक विशिष्टीकरण, उत्पादन के उच्च स्तर उच्च रहन-सहन के स्तर वस्तुओं एवं सेवाओं की विश्वव्यापी उपलब्धता, कीमतों और वेतन का समानीकरण ज्ञान एवं संस्कृति के प्रस्फुरण को प्रेरित करता है।

 

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार देशों के लिए हानिकारक हो सकता है यदि यह अन्य देशों पर निर्भरता, विकास के असमान स्तर, शोषण और युद्ध का कारण बनने वाली प्रतिद्वंद्विता की ओर उन्मुख है।

 

 

 

पत्तन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार

 

पत्तन

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की दुनिया के मुख्य प्रवेश द्वार पोताश्रय तथा पतन होते हैं। इन्हीं पत्तनों के द्वारा जहाजी माल तथा यात्री विश्व के एक भाग से दूसरे भाग को जाते हैं।

 

एक पत्तन के महत्त्व को नौमार के आकार और निपटान किए गए जहाजों की संख्या द्वारा निश्चित किया जाता है। एक पतन द्वारा निपटाया नौमार, उसके पृष्ठ प्रदेश के विकास के स्तर का सूचक है।

 

 

पत्तन के प्रकार : सामान्यत: पत्तनों का वर्गीकरण उनके द्वारा सँभाले गए यातायात के प्रकार के अनुसार किया जाता है।

 

निपटाए गये नैभार के अनुसार पत्तनों के प्रकार

 

i) औद्योगिक पत्तन : ये पतन थोक नौमार के लिए विशेषीकृत होते हैं जैसे अनाज, चीनी, अयस्क, तेल, रसायन और इसी प्रकार के पदार्थ

 

(2) वाणिज्यिक पत्तन : पत्तन सामान्य नीभार संवेष्टित उत्पादों तथा विनिर्मित वस्तुओं का निपटान करते हैं। ये पतन यात्री यातायात का भी प्रबंध करते हैं।

 

3) विस्तृत पतन : से पत्तन बड़े परिमाण में सामान्य नीभार का थोक में प्रबंध करते हैं। संसार के अधिकाश महान पत्तन विस्तृत पत्तनों के रूप में वर्गीकृत किए गए हैं।

 

 

 

अवस्थिति के आधार पर पत्तनों के प्रकार :

 

1) अंतर्देशीय पत्तन : ये पत्तन समुद्री तट से दूर अवस्थित जोते हैं। ये समुद्र से एक नदी अथवा नहर द्वारा जुड़े होते हैं। ऐसे पत्तन चौरस तल वाले जहाज या बजरे द्वारा ही गम्य होते हैं। उदाहरणस्वरूप मानचेस्टर एक नहर से जुड़ा है; मॅफिस मिसीसिपी नदी पर अब स्थित है: राइन के अनेक पतन है जैसे मैनहोम तथा इयूसबर्ग और कोलकाता हुगली नदी जो गंगा नदी की एक शाखा है, पर स्थित है।

 

(2) बाह्य पतन : में गहरे जल के पत्तन हैं जो वास्तविक पत्तन से दूर बने होते हैं। ये उन जहाजों, जो अपने बड़े आकार के कारण उन तक पहुँचने में अक्षम हैं, को ग्रहण करके पैतृक पतनों को सेवाएँ प्रदान करते हैं। उदाहरणस्वरूप एथेंस तथा यूनान में इसके बाहा पत्तन पिरेइअस एक उच्चकोटि का संयोजन है।

 

 

 

 विशिष्टीकृत कार्यकलापों के आधार पर पत्तनों के प्रकार

 

(i) तैल पत्तन :  ये पत्तन तेल के प्रक्रमण और नौ- परिवहन का कार्य करते हैं। इनमें से कुछ टैंकर पत्तन हैं तथा कुछ तेल शोधन पत्तन हैं। वेनेजुएला में माराकाइबो, ट्यूनिशिया में एस्सखीरा, लेबनान में त्रिपोली टैंकर पत्तन हैं। पर्शिया की खाड़ी पर अबादान एक तेलशोधन पत्तन है।

 

ii) मार्ग पत्तन (विश्राम पत्तन) : ये ऐसे पत्तन हैं, जो मूल रूप से मुख्य समुद्री मार्गों पर विश्राम केंद्र के रूप में विकसित हुए, जहाँ पर जहाज़ पुन: ईंधन भरने, जल भरने तथा खाद्य सामग्री लेने के लिए लंगर डाला करते थे। बाद में, वाणिज्यिक पत्तनों में विकसित हो गए। अदन, होनोलूलू तथा सिंगापुर इसके अच्छे उदाहरण हैं

 

iii) पैकेट स्टेशन : इन्हें फेरी-पत्तन के नाम से भी जाना जाता है। ये पैकेट स्टेशन विशेष रूप से छोटी दूरियों कोतय करते हुए जलीय क्षेत्रों के आर-पार डाक तथा यात्रियों के परिवहन (आवागमन) से जुड़े होते हैं। ये स्टेशन जोड़ों में इस प्रकार अवस्थित होते हैं कि वे जलीय क्षेत्र के आरपार एक दूसरे के सामने होते हैं। उदाहरणस्वरूप – इंग्लिश चैनल के आरपार इंग्लैंड में डोवर तथा फ्रांस में कैलाइस |

 

(iv) आंत्रपो पत्तन : ये वे एकत्रण केंद्र हैं, जहाँ विभिन्न देशों से निर्यात हेतु वस्तुएँ लाई जाती हैं। सिंगापुर एशिया के लिए एक आंत्रपो पत्तन है, रोटरडम यूरोप के लिए और कोपेनहेगेन बाल्टिक क्षेत्र के लिए आंत्रपो पत्तन हैं।

 

(v) नौ सेना पत्तन : ये केवल सामाजिक महत्त्व के पत्तन हैं। ये पत्तन युद्धक जहाजों को सेवाएँ देते हैं तथा उनके लिए मरम्मत कार्यशालाएँ चलाते हैं। कोच्चि तथा कारवाड़ भारत में ऐसे पत्तनों के उदाहरण हैं।

 

 

 

 

 

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