अध्याय 2 : विश्व जनसंख्या वितरण, घनत्व और वृद्धि

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महत्वपूर्ण परिभाषाएँ :

 

जन्म दर : प्रति 1 हजार में जीवित शिशु संख्या

मृत्यु दर : प्रति 1 हजार जनसंख्या में मृत्यु संख्या

जीवित प्रत्याशा : प्रति हजार जनसंख्या पर उत्तरजीवी जनसंख्या अर्थात जनसंख्या के जीवित रहने की एक औसत आयु

जनसंख्या घनत्व : प्रति वर्ग किलोमीटर में रहने वाले लोगों की औसत संख्या

 

 

 

जनसंख्या वितरण के प्रारूप

 

जनसंख्या वितरण  शब्द का अर्थ : भूपृष्ठ पर लोग किस प्रकार वितरित हैं। इस बात से लगाया जाता है।

मोटे तौर पर विश्व की जनसंख्या का 90 प्रतिशत, इसके 10 प्रतिशत, स्थलभाग में निवास करता है। विश्व के दस सर्वाधिक आबाद देशों में विश्व की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है इन दस देशों में से छह एशिया में अवस्थित है।

 

 

 जनसंख्या का घनत्व : 

प्रति इकाई क्षेत्र पर निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या को जनसंख्या घनत्व कहते है। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा व्यक्त किया जाता है ।

 

                                       कुल जनसंख्या
जनसंख्या का घनत्व =  ——————-
                                        कुल क्षेत्रफल

 

उदाहरण के लिए ‘क’ प्रदेश का क्षेत्रफल 100 वर्ग कि.मी. है और जनसंख्या 150,000 है। जनसंख्या का घनत्व इस प्रकार निकाला जाएगा

घनत्व = 1,50,000/100 = 1500 व्यक्ति / वर्ग कि.मी.

 

 

 

जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारक

 

(1) भौगोलिक कारक

जल की उपलब्धता : जल जीवन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक है। अतः लोग उन क्षेत्रों में बसने को प्राथमिकता देते हैं जहाँ जल आसानी से उपलब्ध होता है। जल का उपयोग पीने, नहाने और भोजन बनाने के साथ-साथ पशुओं, फसलों, उद्योगों तथा नौसंचालन में किया जाता है। यही कारण है कि नदी घाटियाँ विश्व के सबसे सघन बसे हुए क्षेत्र हैं।

 

 

भू-आकृति: लोग समतल मैदानों और मंद ढालों पर बसने को वरीयता देते हैं इसका कारण यह है कि ऐसे क्षेत्र फसलों के उत्पादन, सड़क निर्माण और उद्योगों के लिए अनुकूल होते हैं। पर्वतीय और पहाड़ी क्षेत्र परिवहन तंत्र के विकास में अवरोधक हैं, इसलिए प्रारंभ में कृषिगत और औद्योगिक विकास के लिए अनुकूल नहीं होते। अतः इन क्षेत्रों में कम जनसंख्या पाई जाती है। गंगा का मैदान विश्व के सर्वाधिक सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में से एक है जबकि हिमालय के पर्वतीय भाग विरल जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं।

 

जलवायु : अति ऊष्ण अथवा ठंडे मरुस्थलों की विषम जलवायु मानव बसाव के लिए असुविधाजनक होती है। सुविधाजनक जलवायु वाले क्षेत्र जिनमें अधिक मौसमी जनसंख्या पाई जाती है।

 

मृदाएँ : उपजाऊ मृदाएँ कृषि तथा इनसे संबंधित क्रियाओं के लिए महत्त्वपूर्ण हैं इसलिए उपजाऊ दोमट मिट्टी वाले प्रदेशों में अधिक लोग निवास करते हैं क्योंकि ये मृदाएँ गहन कृषि का आधार बन सकती हैं।

 

 

 

2) आर्थिक कारक

 

खनिज : खनिज निक्षेपों से युक्त क्षेत्र उद्योगों को आकृष्ट करते हैं। खनन और औद्योगिक गतिविधियाँ रोजगार उत्पन्न करते हैं। अतः कुशल एवं अर्ध कुशल कर्मी इन क्षेत्रों में पहुँचते हैं और जनसंख्या को सघन बना देते हैं।

 

नगरीकरण : नगर रोजगार के बेहतर अवसर, शैक्षणिक व चिकित्सा संबंधी सुविधाएँ तथा परिवहन और संचार के बेहतर साधन प्रस्तुत करते हैं। अच्छी नागरिक सुविधाएँ तथा नगरीय जीवन के आकर्षण लोगों को नगरों की ओर खींचते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में प्रवास होता है

 

औद्योगीकरण : औद्योगिक पेटियाँ रोजगार के अवसर : उपलब्ध कराती हैं और बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करती हैं। इनमें केवल कारखानों के श्रमिक ही नहीं होते बल्कि परिवहन परिचालक, दुकानदार, बैंककर्मी, डॉक्टर, जनसंख्या वाले अध्यापक तथा अन्य सेवाएँ उपलब्ध कराने वाले भी होते हैं। उदहारण , जापान का कोवे ओसाका प्रदेश अनेक उद्योगों की उपस्थिति के कारण सघन बसा हुआ है

 

 

3) सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक

कुछ स्थान धार्मिक अथवा सांस्कृतिक महत्त्व के कारण अधिक अंतराल के बीच ज लोगों को आकर्षित करते हैं। ठीक इसी प्रकार लोग उन क्षेत्रों को जनसंख्या की ऋणात्म छोड़ कर चले जाते हैं जहाँ सामाजिक और राजनीतिक अशांति होती है। कई बार सरकारें लोगों को विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बसने अथवा भीड़-भाड़ वाले स्थानों से चले जाने के लिए प्रोत्साहन देती हैं।

 

 

 

 जनसंख्या वृद्धि

जनसंख्या वृद्धि अथवा जनसंख्या परिवर्तन का अभिप्राय किसी क्षेत्र में समय की किसी निश्चित अवधि के दौरान बसे हुए लोगों की संख्या में परिवर्तन से है। यह परिवर्तन धनात्मक भी हो सकता है और ऋणात्मक भी इसे निरपेक्ष संख्या अथवा प्रतिशत के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है। जनसंख्या परिवर्तन किसी क्षेत्र को अर्थिक प्रगति, सामाजिक उत्थान, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का महत्त्वपूर्ण सूचक होता है।

 

 

जनसंख्या की वृद्धि : समय के दो अंतरालों के बीच एक क्षेत्र विशेष में होने वाली जनसंख्या में परिवर्तन को जनसंख्या की वृद्धि कहा जाता है।

 

जनसंख्या की वृद्धि दर : यह जनसंख्या में परिवर्तन है जो प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि: किसी क्षेत्र विशेष में दो समय अंतरालों में जन्म और मृत्यु के अंतर से बढ़ने वाली जनसंख्या को उस क्षेत्र की प्राकृतिक वृद्धि कहते हैं।

प्राकृतिक वृद्धि जन्म मृत्यु जनसंख्या की वास्तविक वृद्धि यह वृद्धि तब होती है। जब वास्तविक वृद्धि जन्म मृत्यु आप्रवास उत्प्रवास

जनसंख्या की ऋणात्मक वृद्धि :  यदि दो समय अंतराल के बीच जनसंख्या कम हो जाए तो उसे जनसंख्या की ऋणात्मक वृद्धि कहते हैं। वह तब होती है जब जन्म दर मृत्यु दर से कम हो जाए अथवा लोग अन्य देशों में प्रवास कर जाएँ।

 

 

 

 जनसंख्या परिवर्तन के घटक

 

जनसंख्या परिवर्तन के तीन घटक हैं : जन्म, मृत्यु और प्रवास।

 

अशोधित जन्म दर ( CBR) : प्रति हजार स्त्रियों द्वारा जन्म दिए जीवित बच्चों के रूप में व्यक्त किया जाता है।

अशोधित जन्म दर = किसी वर्ष विशेष में जीवित जन्म / किसी क्षेत्र विशेष में वर्ष के मध्य जनसंख्या × 1000

 

मृत्यु दर जनसंख्या परिवर्तन में सक्रिय भूमिका निभाती है। जनसंख्या वृद्धि केवल बढ़ती हुई जन्म दर से नहीं होती अपितु घटती हुई मृत्यु दर से भी होती है।

 

 

अशोधित मृत्यु दर: अशोधित मृत्यु दर को किसी क्षेत्र विशेष में किसी वर्ष के दौरान प्रति हजार जनसंख्या के पीछे मृतकों की संख्या के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है।

प्रवास : एक स्थान से दूसरे स्थान जनसंख्या का स्थानांतरण ।

उद्गम स्थान : जब लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं तो वह स्थान जहाँ से लोग गमन करते हैं उद्गम स्थान कहलाता है

 

गंतव्य स्थान : जनसंख्या जिस स्थान में आगमन करते हैं वह गंतव्य स्थान कहलाता है।

प्रवास स्थायी, अस्थायी अथवा मौसमी हो सकता है। यह गाँव से गाँव गाँव से नगर, नगर से नगर तथा नगर से गाँव की ओर हो सकता है।

 

आप्रवास- प्रवासी जो किसी नए स्थान पर जाते हैं, आप्रवासी कहलाते हैं।

उत्प्रवास प्रवासी जो एक स्थान से बाहर चले जाते हैं.. उत्प्रवासी कहलाते हैं। लोग बेहतर आर्थिक और सामाजिक जीवन के लिए प्रवास करते हैं।

 

 

प्रवास को प्रभावित करने वाले कारक :

 

प्रतिकर्ष कारक : बेरोजगारी, रहन-सहन की निम्न दशाएँ. राजनीतिक उपद्रव, प्रतिकूल जलवायु, प्राकृतिक विपदाएँ, महामारियाँ तथा सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन जैसे कारण उद्गम स्थान को कम आकर्षित बनाते हैं।

 

 

अपकर्ष कारक : काम के बेहतर अवसर और रहन-सहन की अच्छी दशाएँ, शांति व स्थायित्व, जीवन व संपत्ति की सुरक्षा तथा अनुकूल जलवायु जैसे कारण गंतव्य स्थान को उद्गम स्थान की अपेक्षा अधिक आकर्षक बनाते हैं।

 

 

 

 जनांकिकीय संक्रमण

 

जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत का उपयोग किसी क्षेत्र की जनसंख्या के वर्णन तथा भविष्य की जनसंख्या के पूर्वानुमान के लिए किया जा सकता है। यह सिद्धांत हमें बताता है कि जैसे ही समाज ग्रामीण खेतिहर और अशिक्षित अवस्था से उन्नति करके नगरीय औद्योगिक और साक्षर बनता है तो किसी प्रदेश की जनसंख्या उच्च जन्म और उच्च मृत्यु से निम्न जन्म व निम्न मृत्यु में परिवर्तित होती है
 

 

जनांकिकीय संक्रमण की अवस्थायें : जैसे-जैसे किसी देश का आर्थिक विकास बढ़ता है उसकी जन्म दर और मृत्यु दर में परिवर्तन होने लगते हैं। इस परिवर्तन को जनांकिकीय संक्रमण कहते हैं।

 

प्रथम अवस्था (First Stage) : यह आदिकालीन जनांकिकीय संक्रमण काल की है जिसमें उच्च जन्मदर एवं मृत्यु दर तथा धीमी वृद्धि दर होती है। यह आर्थिक विकास की आरम्भिक अवस्था से पहले की है।

 

दूसरी अवस्था (Second stage) : यह युवा जनांकिकीय अवधि है जिसमें मृत्यु दर में तेजी से कमी तथा जन्म दर में स्थिरता रहती है और वृद्धि दर उच्च हो जाती है। यह आर्थिक विकास की आरम्भिक अवस्था है।

 

तीसरी अवस्था (Third Stage) : इस अवस्था में आर्थिक विकास के स्तर में वृद्धि होती है। इसके कारण जन्म दर और मृत्यु दर में भारी कमी के कारण जनसंख्या वृद्धि दर में हास की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है।

 

चौथी अवस्था (Fourth Stage) : यह अवस्था परिपक्व जनांकिकीय की है। इसमें जन्मदर में अत्यधिक कमी तथा मृत्युदर अपेक्षाकृत उच्च होने से जनसंख्या वृद्धि ऋणात्मक होती है

 

 

 

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