अध्याय 4 : मानव बस्ती

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मानव बस्ती

 

मानव बस्ती का अर्थ : है किसी भी प्रकार और आकार के घरों का संकुल जिनमें मनुष्य रहते हैं। इस उद्देश्य के लिए लोग मकानों और अन्य इमारतों का निर्माण करते हैं और अपने आर्थिक पोषण- आधार के लिए कुछ क्षेत्र पर स्वामित्व रखते हैं।

 

बस्ती की प्रक्रिया में मूल रूप से लोगों के समूहन और उनके संसाधन आधार के रूप में क्षेत्र का आवंटन सम्मिलित होते हैं। बस्तियाँ आकार और प्रकार में भिन्न होती हैं। उनका परिसर एक पल्ली से लेकर महानगर तक होता है। आकार के साथ बस्तियों के आर्थिक अभिलक्षण और सामाजिक संरचना बदल जाती है

 

 

 

गाँव :

विरल रूप से अवस्थित छोटी बस्तियाँ, जो कृषि अथवा अन्य प्राथमिक क्रियाकलापों में विशिष्टता प्राप्त कर लेती हैं, गाँव कहलाती हैं

 

 

नगरीय बस्तियाँ :

बड़े अधिवास द्वितीयक और तृतीयक क्रियाकलापों में विशेषीकृत होते हैं जो इन्हें नगरीय बस्तियाँ कहा जाता है।

 

 

ग्रामीण और नगरीय बस्तियों में आधारभूत अंतर :

 

1) आर्थिक क्रियाएँ :

ग्रामीण बस्तियाँ की आवश्यकताओं की पूर्ति भूमि आधारित प्राथमिक आर्थिक क्रियाओं से करती हैं नगरीय बस्तियाँ एक ओर कच्चे माल के re प्रक्रमण और तैयार माल के विनिर्माण तथा दूसरी ओर विभिन्न प्रकार की सेवाओं पर निर्भर करती हैं।

 

2) नगर आर्थिक वृद्धि के नोड (node) के रूप में कार्य करते हैं और न केवल नगर निवासियों को बल्कि अपने पश्च भूमि की ग्रामीण बस्तियों को भी भोजन और कच्चे माल के बदले वस्तुएँ और सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं।

 

3) नगरीय और ग्रामीण बस्तियों के बीच प्रकार्यात्मक संबंध परिवहन और संचार परिपथ के माध्यम से स्थापित होता है।

 

4) ग्रामीण और नगरीय बस्तियाँ सामाजिक संबंधों अभिवृत्ति और दृष्टिकोण की दृष्टि से भी भिन्न होती हैं।

 

 

 

 ग्रामीण बस्तियों के प्रकार :

भारत में कुछ सौ घरों से युक्त संहत अथवा गुच्छित गाँव विशेष रूप से उत्तरी मैदानों में एक सार्वत्रिक लक्षण है।

 

ग्रामीण बस्तियों के विभिन्न प्रकारों के लिए अनेक कारक और दशाएँ उत्तरदायी हैं। इनके अंतर्गत-

1) भौतिक लक्षण – भू-भाग की प्रकृति, ऊँचाई, जलवायु और जल की उपलब्धता,

2) सांस्कृतिक और मानवजातीय कारक – सामाजिक संरचना, जाति और धर्म,

3) सुरक्षा संबंधी कारक – चोरियों और डकैतियों से सुरक्षा करते हैं

 

 

भारत की ग्रामीण बस्तियों को चार प्रकारों में रखा जा सकता है –

1) गुच्छित संकुलित अथवा आकेंद्रित

2) अर्ध-गुच्छित अथवा विखंडित पल्लीकृत

3) परिक्षिप्त अथवा एकाकी

 

 

 

1) गुच्छित बस्तियाँ

● गुच्छित ग्रामीण बस्ती घरों का एक संहत अथवा संकुलित रूप से निर्मित क्षेत्र होता है। इस प्रकार के गाँव में रहन-सहन का सामान्य क्षेत्र स्पष्ट और चारों ओर फैले खेतों खलिहानों और चरागाहों से पृथक होता है।

● संकुलित निर्मित क्षेत्र और इसकी मध्यवर्ती गलियाँ कुछ जाने-पहचाने प्रारूप अथवा ज्यामितीय आकृतियाँ प्रस्तुत करते हैं जैसे कि आयताकार अरीय, रैखिक इत्यादि ।

● ऐसी बस्तियाँ प्रायः उपजाऊ जलोढ़ मैदानों और उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाई जाती है। कई बार लोग सुरक्षा अथवा प्रतिरक्षा कारणों से संहत गाँवों में रहते हैं,

● इन के उदाहरण है : मध्य भारत, के बुंदेलखंड प्रदेश और नागालैंड में

 

 

 

2) अर्ध-गुच्छित बस्तियाँ :

● अर्ध-गुच्छित अथवा विखंडित बस्तियाँ परिक्षिप्त बस्ती के किसी सीमित क्षेत्र में गुच्छित होने की प्रवृत्ति का परिणाम है।

●ऐसा प्रारूप किसी बड़े संहत गाँव के संपृथकन अथवा विखंडन के परिणामस्वरूप भी उत्पन्न हो सकता है।

● ग्रामीण समाज के एक अथवा अधिक वर्ग स्वेच्छा से अथवा बलपूर्वक मुख्य गुच्छ अथवा गाँव से थोड़ी दूरी पर रहने लगते हैं।

● ऐसी स्थितियों में, आमतौर पर जमींदार और अन्य प्रमुख समुदाय मुख्य गाँव के केंद्रीय भाग पर आधिपत्य कर लेते हैं जबकि समाज के निचले तबके के लोग और निम्न कार्यों में संलग्न लोग गाँव के बाहरी हिस्सों में बसते हैं।

● ऐसी बस्तियाँ गुजरात के मैदान और राजस्थान के कुछ भागों में व्यापक रूप से पाई जाती हैं।

 

 

पल्ली बस्तियाँ :

● कई बार बस्ती भौतिक रूप से एक-दूसरे से पृथक अनेक इकाइयों में बँट जाती है किंतु उन सबका नाम एक रहता है।

● विभिन्न भागों में स्थानीय स्तर पर पान्ना, पाड़ा, पाली, नगला, ढाँणी इत्यादि कहा जाता है।

● किसी विशाल गाँव का ऐसा खंडीभवन प्रायः सामाजिक एवं मानवजातीय कारकों द्वारा अभिप्रेरित होता है।

● ऐसे गाँव मध्य और निम्न गंगा के मैदान, छत्तीसगढ़ और हिमालय की निचली घाटियों में बहुतायत में पाए जाते हैं।

 

 

 

3) परिक्षिप्त बस्तियाँ :

● भारत में परिक्षिप्त अथवा एकाकी बस्ती प्ररूप सुदूर जंगलों में एकाकी झोपड़ियों अथवा कुछ झोपड़ियों की पल्ली अथवा छोटी पहाड़ियों को ढालों पर खेतों अथवा चरागाहों के रूप में दिखाई पड़ता है।

● इन बस्तियों का यह स्वरूप प्रायः भू-भाग और निवास योग्य क्षेत्रों के भूमि संसाधन आधार को अत्यधिक विखडित प्रकृति के कारण होता है।

● मेघालय, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और केरल के अनेक भागों में बस्ती का यह प्रकार पाया जाता है।

 

 

 

नगरीय बस्तियाँ :

 

● ग्रामीण बस्तियों के विपरीत नगरीय बस्तियाँ सामान्यतः संहत और विशाल आकार की होती हैं। ये बस्तियाँ अनेक प्रकार के अकृषि आर्थिक और प्रशासकीय प्रकार्य में सलग्न होती है।

● नगर अपने चारों और के क्षेत्रों से प्रकार्यात्मक रूप में जुड़ा हुआ होता है। अतः वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय कई बार प्रत्यक्ष रूप से और कई बार मंडी शहरों और नगरों की श्रृंखला के माध्यम संपन्न होता है

● इस प्रकार नगर गाँवों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से जुड़े होते हैं और से परस्पर भी जुड़े हुए होते हैं।

 

 

भारत में नगरों का विकास :

भारत में नगरों का अभ्युदय प्रागैतिहासिक काल से हुआ है। यहाँ तक कि सिंधु घाटी सभ्यता के युग में भी हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे नगर अस्तित्व में थे।

18वीं शताब्दी में यूरोपियों के भारत आने तक आवधिक उतार-चढ़ावों से भरा रहा।

 

 

भारत मे नगरो का विकास :

प्राचीन नगर : भारत में 2000 से अधिक वर्षों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाले अनेक नगर है। इनमें से अधिकांश का विकास धार्मिक अथवा सांस्कृतिक केंद्रों के रूप में हुआ है। वाराणसी इनमें से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगर हैं। प्रयाग (इलाहाबाद) पाटलिपुत्र (पटना). मदुरई

 

मध्यकालीन नगर :

100 नगरों का इतिहास मध्यकाल से जुदा है। इनमें से अधिकांश का विकास रजवाड़ों और राज्यों के मुख्यालयों के रूप में हुआ ये किला नगर हैं जिनका निर्माण प्राचीन नगरों के खंडहरों पर हुआ है। ऐसे नगरों में दिल्ली हैदराबाद, जयपुर, लखनऊ, आगरा और नागपुर महत्त्वपूर्ण है।

 

आधुनिक नगर : अंग्रेजो और अन्य यूरोपियों ने भारत में अनेक नगरों का विकास किया। तटीय स्थानों पर अपने पैर जमाते हुए उन्होंने सर्वप्रथम सूरत, दमन, गोआ, पांडिचेरी इत्यादि

 

● अंग्रेजों ने बाद में तीन मुख्य नोडों मुंबई , चेन्नई और कोलकाता (कलकत्ता) पर अपनी पकड़ मजबूत की और उनका अंग्रेजी शैली में निर्माण किया  1850 के बाद आधुनिक उद्योगों पर आधारित नगरों का भी जन्म हुआ। जमशेदपुर इसका एक उदाहरण है।

 

● स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्, अनेक नगर प्रशासनिक केंद्रों, जैसे- चंडीगढ़, भुवनेश्वर, गांधीनगर, दिसपुर इत्यादि और औद्योगिक केंद्रों जैसे दुर्गापुर, भिलाई, सिंदरी, बरौनी के रूप में विकसित हुए।
● कुछ पुराने नगर महानगरों के चारों ओर अनुषंगी नगरों के रूप में विकसित हुए जैसे दिल्ली के चारों ओर गाज़ियाबाद, रोहतक और गुरुग्राम इत्यादि।

 

 

 

भारत में नगरीकरण :

 

नगरीकरण : नगरीकरण के स्तर का माप कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में किया जाता है। वर्ष 2011 में भारत में नगरीकरण का स्तर 31.16 प्रतिशत था जो विकसित देशों की तुलना में काफ़ी कम है।

 

20वीं शताब्दी के दौरान नगरीय जनसंख्या 11 गुना बढ़ी है। नगरीय केंद्रों के विवर्धन और नए नगरों के आविर्भाव ने देश में नगरीय जनसंख्या की वृद्धि और नगरीकरण में सार्थक भूमिका निभाई है

 

 

नगरों का प्रकार्यात्मक वर्गीकरण :

अपनी केंद्रीय अथवा नोडीय स्थान की भूमिका के अतिरिक्त अनेक शहर और नगर विशेषीकृत सेवाओं का निष्पादन करते हैं। कुछ शहरों और नगरों को कुछ निश्चित प्रकार्यों में विशिष्टता प्राप्त होती हैं और उन्हें कुछ विशिष्ट क्रियाओं, उत्पादनों अथवा सेवाओं के लिए जाना जाता है।

 

 

 

 भारतीय नगरों का वर्गीकरण :

 

प्रशासन शहर और नगर : उच्चतर क्रम के प्रशासनिक मुख्यालयों वाले शहरों को प्रशासन नगर कहते हैं, जैसे कि चंडीगढ़, नई दिल्ली, भोपाल, शिलांग, गुवाहाटी, इंफाल, श्रीनगर, गांधी नगर, जयुपर, चेन्नई इत्यादि ।

 

औद्योगिक नगर : मुंबई, सेलम, कोयंबटूर, मोदीनगर, जमशेदपुर, हुगली, भिलाई इत्यादि के विकास का प्रमुख अभिप्रेरक बल उद्योगों का विकास रहा है।

 

परिवहन नगर : ये पत्तन नगर जो मुख्यतः आयात और निर्यात कार्यों में संलग्न रहते हैं, जैसे- कांडला, कोच्चि, कोझीकोड, विशाखापट्नम, इत्यादि अथवा आंतरिक परिवहन की धुरियाँ जैसे धुलिया, मुगलसराय इटारसी, कटनी इत्यादि हो सकते हैं।

 

 वाणिज्यिक नगर : व्यापार और वाणिज्य में विशिष्टता प्राप्त शहरों और नगरों को इस वर्ग में रखा जाता है। कोलकाता, सहारनपुर, सतना इत्यादि कुछ उदाहरण हैं।

 

खनन नगर : ये नगर खनिज समृद्ध क्षेत्रों में विकसित हुए हैं जैसे रानीगंज, झरिया, डिगबोई, अंकलेश्वर, सिंगरौली इत्यादि ।

 

गैरिसन (छावनी) नगर :  इन नगरों का उदय गैरिसन नगरों के रूप में हुआ है, जैसे, अंबाला, जालंधर, महू, बबीना, उधमपुर इत्यादि ।

 

 धार्मिक और सांस्कृतिक नगर : वाराणसी, मथुरा, अमृतसर, मदुरै, पुरी, अजमेर, पुष्कर, तिरुपति, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, उज्जैन अपने धार्मिक / सांस्कृतिक महत्त्व के कारण प्रसिद्ध हुए।

 

शैक्षिक नगर : मुख्य परिसर नगरों में से कुछ नगर शिक्षा केंद्रों के रूप में विकसित हुए जैसे रुड़की, वाराणसी, अलीगढ़, पिलानी, इलाहाबाद।

 

पर्यटन नगर : नैनीताल, मसूरी, शिमला, पचमढ़ी, जोधपुर, जैसलमेर, उडगमंडलम (ऊटी), माउंट आबू कुछ पर्यटन गंतव्य स्थान हैं। नगर अपने प्रकार्यों में स्थिर नहीं है उनके गतिशील स्वभाव के कारण प्रकार्यों में परिवर्तन हो जाता है।

 

 

 

स्मार्ट सिटी मिशन

स्मार्ट सिटी मिशन का उद्देश्य शहरों को बढ़ावा देना है जो आधारभूत सुविधा, साफ तथा सतत पर्यावरण और अपने नागरिकों को बेहतर जीवन प्रदान करते हैं। स्मार्ट शहरों की एक विशेषता आधारभूत सुविधाओं और सेवाओं के लिए स्मार्ट समाधानों को लागू करना है। जिससे क्षेत्रों को प्राकृतिक आपदाओं के कम जोखिम वाले क्षेत्रों के रूप में बनाया जा सके, साथ ही साथ कम संसाधनों का उपयोग तथा सस्ती सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा सकें। इस योजना में सतत तथा समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस योजना का उद्देश्य एक ऐसे सघन क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना है जो एक मॉडल के रूप में अन्य बढ़ते हुए शहरों के लिए लाइट हाऊस का काम करे।

 

 

 

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