अध्याय 5 : खनिज एवं शैल

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पृथ्वी के संपूर्ण पर्पटी का लगभग 98 प्रतिशत भाग आठ तत्त्वों, जैसे ऑक्सीजन, सिलिकन एलुमिनियम, लौहा, कैल्शियम, सोडियम, पोटैशियम तथा मैगनीशियम से बना है तथा शेष भाग टायटेनियम, हाइड्रोजन, फॉस्फोरस, मैंगनीज, सल्फर, कार्बन, निकिल एवं अन्य पदार्थों से बना है।

 

खनिज

खनिज का निर्माण दो या दो से अधिक तत्त्वों से मिलकर होता है। लेकिन कभी-कभी सल्फर, ताँबा, चाँदी, स्वर्ण, ग्रेफाइट जैसे एक तत्त्वीय खनिज भी पाए जाते हैं।

खनिज एक ऐसा प्राकृतिक कार्बनिक एवं अकार्बनिक तत्त्व है, जिसमें एक क्रमबद्ध परमाणविक संरचना, निश्चित रासायनिक संघटन तथा भौतिक गुणधर्म होते हैं। स्थलमंडल का निर्माण करने वाले तत्त्वों की संख्या अत्यंत कम है, लेकिन आपस में उनका संयोजन विभिन्न तरीकों से होता है,भूपर्पटी पर कम से कम 2000 प्रकार के खनिजों को पहचाना गया है,

 

 

 

खनिज की भौतिक विशेषताएँ

 

 

(i) क्रिस्टल का बाहरी रूप – अणुओं की आंतरिक व्यवस्था द्वारा तय होती है- घनाकार, अष्टभुजाकार, षट्भुजाकार प्रिज़्म आदि।

(ii) विदलन सापेक्षिक रूप से समतल सतह बनाने के लिए निश्चित दिशा में टूटने की

(iii) विभंजन- अणुओं की आंतरिक व्यवस्था इतनी जटिल होती है कि अणुओं का कोई तल नहीं होता है

iv) चमक रंग के बिना किसी पदार्थ की चमक; प्रत्येक खनिज की अपनी चमक होती है जैसे- मेटैलिक, रेशमी, ग्लॉसी आदि।

(v) रंग कुछ खनिजों के रंग उन्ही परमाण्विक संरचना से निर्धारित होते हैं। जैसे- मैलाकाइट, एजूराइट, कैल्सोपाइराइट आदि

vi) धारियाँ किसी भी खनिज के पिसने के बाद बने पाउडर का रंग खनिज के रंग का या किसी अन्य रंग का हो सकता है- मेलाकाइट का रंग हरा होता है और उसपर धारियाँ भी हरी होती हैं.

vii) पारदर्शिता पारदर्शी : प्रकाश किरणें इस प्रकार आरपार जाती हैं, कि वस्तु सीधी देखी जा सकती है;

viii) संरचना प्रत्येक क्रिस्टल की विशेष व्यवस्था; महीन, मध्यम अथवा खुरदरे पिसे हुए तंतुयुक्त – पृथक करने योग्य, अपसारी विकरणकारी।

ix) कठोरता सापेक्षिक प्रतिरोध का चिह्नित होना; दस चुने हुए खनिजों में से दस तक की श्रेणी में कठोरता मापना। ये खनिज हैं। 1. टैल्क, 2. जिप्सम, 3. कैल्साइट, 4. फ़्लोराइट, 5. ऐपेटाइट, 6. फ़ेल्डस्पर 7. क्वार्ट्ज. 8. टोपाज़, 9 कोरंडम 10. हीरा

x) आपेक्षिक भार दी गई वस्तु का भार तथा बराबर आयतन के पानी के भार का अनुपात; हवा एवं पानी में वस्तु का भार लेकर इन दोनों के अंतर से हवा में लिए गए भार से भाग दें।

 

 

पृथ्वी के आंतरिक भाग में पाया जाने वाला मैग्मा ही सभी खनिजों का मूल स्रोत है। इस मैग्मा के ठंडे होने पर खनिजों के क्रिस्टल बनने लगते हैं और इस प्रक्रिया में जैसे-जैसे मैग्मा ठंडा होकर ठोस शैल बनता है,

 

खनिजों की क्रमबद्ध श्रृंखला का निर्माण होने लगता है। कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस जैसे खनिज कार्बनिक पदार्थ हैं तथा ये क्रमशः ठोस, तरल एवं गैस रूप में पाए जाते हैं।

 

 

धात्विक खनिज

इनमें धातु तत्त्व होते हैं, तथा इनको तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है-

 

(क) बहुमूल्य धातु स्वर्ण, चाँदी, प्लैटिनम आदि ।

(ख) लौह धातु : लौह एवं स्टील के निर्माण के लिए लोहे में मिलाई जाने वाली अन्य धातुएँ।

(ग) अलौहिक धातु : इनमें ताम्र, सीसा, टिन, एलुमिनियम आदि होते हैं।

 

 

अधात्विक खनिज

इनमें धातु के अंश उपस्थित होते हैं। गंधक, फ़ॉस्फ़ेट तथा नाइट्रेट अधात्विक खनिज हैं। सीमेंट अधात्त्विक खनिजों का मिश्रण है ।

 

 

 

शैलें

 

शैल का निर्माण एक या एक से अधिक खनिजों से मिलकर होता है। शैल कठोर या नरम तथा विभिन्न रंगों की हो सकती है। जैसे, ग्रेनाइट कठोर तथा शैलखड़ी नरम है। गैब्रो काला तथा क्वार्टज़ाइट दूधिया श्वेत हो सकता है।

शैलों में खनिज घटकों का कोई निश्चित संघटन नहीं होता है। शैलों में सामान्यतः पाए जाने वाले खनिज पदार्थ फेल्डस्पर तथा क्वार्ट्ज़ हैं।

 

निर्माण पद्धति के आधार पर तीन समूहों में विभाजित किया गया है-

 

 

 आग्नेय शैल

 

आग्नेय शैलों का निर्माण पृथ्वी के आंतरिक भाग के मैग्मा एवं लावा से होता है, अतः इनको प्राथमिक शैलें भी कहते हैं। मैग्मा के ठंडे होकर घनीभूत हो जाने पर आग्नेय शैलों का निर्माण होता है।

जब अपनी ऊपरगामी गति में मैग्मा ठंडा होकर ठोस बन जाता है, तो ये आग्नेय शैल कहलाता है। ठंडा तथा ठोस बनने की यह प्रक्रिया पृथ्वी की पर्पटी या पृथ्वी की सतह पर हो सकती है।

 

आग्नेय शैलों का वर्गीकरण इनकी बनावट के आधार पर किया गया है।

 

यदि पिघले हुए पदार्थ धीरे-धीरे गहराई तक ठंडे होते हैं, तो खनिज के कण पर्याप्त बड़े हो सकते हैं। सतह पर हुई आकस्मिक शीतलता के कारण छोटे एवं चिकने कण बनते हैं। शीतलता की मध्यम परिस्थितियाँ होने पर आग्नेय शैल को बनाने वाले कण मध्यम आकार के हो सकते हैं।

 

ग्रेनाइट, गैब्रो, पेरमैटाइट, बैसाल्ट, ज्वालामुखीय ब्रेशिया तथा टफ़ आग्नेय शैलों के कुछ उदाहरण हैं।

 

 

 

 अवसादी शैल

अवसादी अर्थात् (Sedimentary) शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द सेडिमेंटस से हुई है, जिसका अर्थ है, व्यवस्थित होना ।

ऐसे उपखंडों का विभिन्न बहिर्जनित कारकों के द्वारा संवहन एवं निक्षेप होता है। सघनता के द्वारा ये संचित पदार्थ शैलों में परिणत हो जाते हैं। यह प्रक्रिया शिलीभवन कहलाती है। बहुत सी अवसादी शैलों में निक्षेपित परतें शिलीभवन के बाद भी अपनी विशेषताएँ बनाए रखती हैं।

 

निर्माण पद्धति के आधार पर अवसादी शैलों का वर्गीकरण तीन प्रमुख समूहों में किया गया है-

 

(i) यांत्रिकी रूप से निर्मित उदाहरणार्थ, बालुकाश्म, पिंडशिला, चूना प्रस्तर, शेल, विमृदा आदि;

(ii) कार्बनिक रूप से निर्मित उदाहरणार्थ, गीज़राइट, खड़िया, चूनापत्थर, कोयला, आदि तथा

(iii) रासायनिक रूप से निर्मित उदाहरणार्थ, श्रृंग प्रस्तर, चूना पत्थर, हेलाइट, पोटाश आदि ।

 

 

 

कायांतरित शैल

 

कायांतरित का अर्थ है, ‘स्वरूप में परिवर्तन’ दाब, आयतन एवं तापमान में परिवर्तन की प्रक्रिया के फलस्वरूप इन शैलों का निर्माण होता है। यह शैलें दाब, आयतन तथा तापमान (पी.वी.टी.) में परिवर्तन के द्वारा निर्मित होती हैं।

जब ऊपरी शैलों के कारण निचली शैलों पर अत्यधिक दाब पड़ता है, तब कायांतरण होता है। कायांतरण वह प्रक्रिया है, जिसमें समेकित शैलों में पुनः क्रिस्टलीकरण होता है तथा वास्तविक शैलों में पदार्थ पुनः संगठित हो जाते हैं।

बिना किसी विशेष रसायनिक परिवर्तनों के टूटने एवं पिसने के कारण वास्तविक शैलों में यांत्रिकी व्यवध न एवं उनका पुनः संगठित होना गतिशील कायांतरित कहलाता है।

 

ऊष्मीय कायंतरण

ऊष्मीय कायंतरण के कारण शैलों के पदार्थों में रसायनिक परिवर्तन एवं पुनः क्रिस्टलीकरण होता है।

 

ऊष्मीय कायांतरण के दो प्रकार होते हैं

1) संपर्क रूपांतरण में शैलें गर्म, ऊपर आते हुए मैग्मा एवं लावा के संपर्क में आती हैं, तथा उच्च तापमान में शैल के पदार्थों का पुनः क्रिस्टलीकरण होता है।

 

2) प्रादेशिक कायांतरण में उच्च तापमान अथवा दबाव अथवा इन दोनों के कारण शैलों में विवर्तनिक दबाव के कारण विकृतियाँ होती हैं, जिससे शैलों में पुनः क्रिस्टलीकरण होता है।

 

 

 पत्रण :-

कायांतरण की प्रक्रिया में शैलों के कुछ कण या खनिज सतहों या रेखाओं के रूप में व्यवस्थित हो जाते हैं। कायांतरित शैलों में खनिज अथवा कणों की इस व्यवस्था को पत्रण (Foliation) या रेखांकन कहते हैं।

 

बैंडिंग :-

कभी-कभी खनिज या विभिन्न समूहों के कण पतली से मोटी सतह में इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं, कि वे हल्के एवं गहरे रंगों में दिखाई देते हैं। कायांतरित शैलों में ऐसी संरचनाओं को बैंडिंग कहते हैं

 

कायांतरित शैलें दो प्रमुख भागों में वर्गीकृत की जा सकती हैं पत्रित शैल अथवा अपत्रित शैल। पट्टिताश्मीय, ग्रेनाइट, सायनाइट स्लेट, शिस्ट, संगमरमर, क्वार्ट्ज़ आदि रूपांतरित शैलों के कुछ उदाहरण हैं

 

 

 

शैली चक्र

 

शैलें अपने मूल रूप में अधिक समय तक नहीं रहती हैं, बल्कि इनमें परिवर्तन होते रहते हैं। शैली चक्र एक सतत् प्रक्रिया होती है,

 

● आग्नये शैलों को कायांतरित शैलों में परिवर्तित किया जा सकता है।

●आग्नेय एवं कायांतरित शैलों से प्राप्त अंशों से अवसादी शैलों का निर्माण होता है। अवसादी शैलें अपखंडों में परिवर्तित हो सकती हैं

● निर्मित भूपृष्ठीय शैलें (आग्नेय, कायांतरित एवं अवसादी) प्रत्यावर्तन के द्वारा पृथ्वी के आंतरिक भाग में नीचे की ओर जा सकती हैं,

● तथा पृथ्वी के आंतरिक भाग में तापमान बढ़ने के कारण ये ही पिघलकर मैग्मा में परिवर्तित हो जाते जो आग्नेय शैलों के मूल स्रोत हैं

 

 

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