अध्याय : 15 संविधान का निर्माण / Framing and the Constitution

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 संविधान का निर्माण संविधान सभा का गठन संविधान सभा में प्रमुख आवाजे भारतीय संविधान का उद्देश्य लोगों के अधिकार आदिवासी दलित पृथक निर्वाचन भारत में संघवाद  केन्द्र-राज्य संबंध राज्य की शक्तियां राष्ट्र की भाषा दी को राष्ट्रभाषा बनाने की दलील हिंदी के प्रभुत्व का डर भाषा नीति भाषायी राज्य

 

 

★  संविधान का निर्माण :- नए युग की शुरुआत

 

★ संविधान निर्माण :- संविधान निर्माण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसमें एक राष्ट्र या संघ के लिए एक संविधान बनाने का काम किया जाता है।

● संविधान एक राष्ट्र की संरचना, संसद, शासन, नागरिकों के अधिकार और कर्तव्यों, सरकार के अन्य संस्थानों, न्यायिक प्रक्रिया, आदि को निर्धारित करने का एक मूल दस्तावेज होता है।

● संविधान एक राष्ट्र के नागरिकों के अधिकारों, कर्तव्यों, सरकार की संरचना और शक्तियों, राष्ट्रीय संस्थाओं, न्यायपालिका, राजनीतिक प्रक्रिया और अन्य राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को विधि-स्तर पर संरचित करता है।

 

 

संविधान क्या है :-

● संविधान नियमों, उपनियमों का एक ऐसा लिखित दस्तावेज़ होता है, जिसके अनुसार सरकार का संचालन किया जाता है।

● यह देश की राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढाँचा निर्धारित करता है।

● प्रत्येक संविधान, उस देश के आदर्शों, उद्देश्यों व मूल्यों का दर्पण होता है।

● संवैधानिक विधि देश की सर्वोच्च विधि होती है, तथा सभी अन्य विधियाँ इसी पर आधारित होती हैं।

● संविधान एक जड़ दस्तावेज़ नहीं होता, बल्कि यह निरंतर पनपता रहता है। वर्षों से चली आ रही परम्परायें भी देश के शासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।

● संविधान राज्य की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की स्थापना, उनकी शक्तियों तथा दायित्वों का सीमांकन एवं जनता तथा राज्य के मध्य संबंधों का विनियमन करता है।

 

 

 

◆ भारत में संविधान सभा की माँग :-

● 1922 में ‘ महात्मा गाँधी ‘ संविधान सभा और संविधान निर्माण की मांग की।

● 1927 में कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन में मोतीलाल नेहरू ने एक प्रस्ताव पेश किया।

● 1934 में कांग्रेस कार्य समिति ने पहली बार संविधान सभा की औपचारिक रीति की माँग प्रस्तुत की।

●1940 में ‘ लॉर्ड लिनलिथगो ‘ ने प्रस्ताव स्वीकार किया कि भारतीय संविधान का निर्माण भारतीयों की प्रतिनिधि सभा द्वारा किया जायेगा।

● 1942 में स्टेफोर्ड क्रिप्स भारतीयों नेताओं से वार्ता करने भारत आये।

● 1946 में भारत के मंत्री पथिक लॉरेन्स , व्यापार मंडल के अध्यक्ष सर स्टेफोर्ड क्रिप्स और नौवहन विभाग के प्रथम लार्ड ए. वी. एलेक्जेंडर । इसे कैबिनेट मिशन के नाम से जाना जाता है।

● कैबिनेट मिशन ने ही संविधान सभा के कुल 389 ( 292 ब्रिटिश प्रान्तों से और 93 देशी राज्यों से और 4 प्रतिनिधि चीफ कमिशनर )

 

 

◆ संविधान सभा का गठन :-

● क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद 1946 में तीन सदस्यीय कैबिनेट मिशन (लॉर्ड पेथिक लॉरेंस, सर स्टैफर्ड क्रिप्स और ए.वी. अलेक्जेंडर) को भारत भेजा गया।

● कैबिनेट मिशन के एक प्रस्ताव के द्वारा अंततः भारतीय संविधान के निर्माण के लिये एक बुनियादी ढाँचे का प्रारूप स्वीकार कर लिया गया, जिसे ‘संविधान सभा’ का नाम दिया गया।

 

 

◆ कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार :-

● प्रत्येक प्रांत, देशी रियासतों व राज्यों के समूह को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें दी जानी थीं। सामान्यतः 10 लाख की जनसंख्या पर 1 सीट की व्यवस्था रखी गई।

● संविधान सभा की कुल 389 सीटों में से ब्रिटिश सरकार के प्रत्यक्ष शासन वाले प्रांतों को 296 सीटें तथा देशी रियासतों को 93 सीटें आवंटित की जानी थीं।

296 सीटों में 292 सदस्यों का चयन ब्रिटिश भारत के गवर्नरों के अधीन 11 प्रांतों तथा चार का चयन दिल्ली, अजमेर-मारवाड़, कुर्ग एवं ब्रिटिश बलूचिस्तान के 4 चीफ़ कमिश्नर के प्रांतों (प्रत्येक में से एक-एक) से किया जाना था।

● प्रत्येक प्रांत की सीटों को तीन प्रमुख समुदायों- मुसलमान, सिख और सामान्य (मुस्लिम और सिख के अलावा) में उनकी जनसंख्या के अनुपात में बाँटा जाना था।

● प्रत्येक विधानसभा में प्रत्येक समुदाय के सदस्यों द्वारा अपने प्रतिनिधियों का चुनाव एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से समानुपातिक प्रतिनिधित्व तरीके के मतदान से किया जाना था।

● देशी रियासतों के प्रतिनिधियों का चुनाव रियासतों के प्रमुखों द्वारा किया जाना था।

● संविधान सभा आंशिक रूप से चुनी हुई और आंशिक रूप से नामांकित निकाय थी।

● संविधान सभा हेतु ब्रिटिश भारत के प्रांतों को आवंटित 296 सीटों के लिये जुलाई-अगस्त 1946 में चुनाव हुए। 296 सीटों में से भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस को 208 सीटें, मुस्लिम लीग को 73 सीटें एवं 15 सीटें अन्य छोटे समूहों को प्राप्त हुई।

 

 

● 9 दिसम्बर 1946 संविधान सभा की पहली बैठक हुई।

● 10 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा की दूसरी बैठक हुई।

● 11दिसम्बर 1946 को संविधान सभा की तीसरी बैठक हुई।

 

 

● संविधान सभा :- संविधान बनाने का काम करने वाली सभा को संविधान कहा जाता है।

●कैबिनेट मिशन ने ही संविधान सभा के कुल 389 ( 292 ब्रिटिश प्रान्तों से और 93 देशी राज्यों से और 4 प्रतिनिधि चीफ कमिशनर )

● संविधान बनाने में 2 साल 11 महीने 18 दिन लगे।

● संविधान सभा के कुल बारह अधिवेशन हुए जिनमें 167 बैठके हुई।

● संवैधानिक सलाहकार बी.एन. राव थे।

● संविधान सभा प्रारूप समिति के अध्यक्ष – डॉ. भीम राव अम्बेडकर

● संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष – डॉ. राजेंद्र प्रसाद

● संविधान सभा के अस्थयी अध्यक्ष – सचिदानन्द सिन्हा

● संविधान सभा के उपाध्यक्ष – हरेन्द्र कुमार मुखर्जी और वी टी कृष्णाचारी

● मूल अधिकार और प्रांत समिति के अध्यक्ष – सरदार वल्लभ भाई पटेल

● संघ समिति के अध्यक्ष – जवाहरलाल नेहरू

 

 

★ संविधान सभा में प्रमुख आवाजे :-

● संविधान सभा के सभी 300 सदस्यों में से प० नेहरू वल्लभ भाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद, बीआर अंबेडकर, आईसीएम मुशी और अल्लादी कृष्ण स्वामी अय्यर जैसे कुछ सदस्यों का उल्लेखनीय योगदान था। प० जवाहरलाल नेहरू वल्लभ भाई पटेल और राजेद प्रसाद राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि थे।

● पं० जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय ध्वज के प्रस्ताव के साथ साथ महत्वपूर्ण ‘उद्देश्य संकल्प को पूरा किया जबकि वल्लभ भाई पटेल ने रियासतौ के साथ बातचीत करके इन रियासतों को भारत में मिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कई रिपोर्टों का मसौदा तैयार किया और विरोधी दृष्टिकोण को समेटने के लिए काम किया।

● राजेंद्र प्रसाद ने विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में रचनात्मक लाइनों के साथ चर्चा को आगे बढ़ाया और यह सुनिश्चित किया कि सभी सदस्यों को बोलने का मौका मिले।

● डॉ. बीआर अंबेडकर गांधीजी की सलाह पर कैबिनेट में शामिल हुए और कानून मंत्री के रूप में काम किया। वह संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष थे। केएम मुशी और अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर एक और दो वकील थे जिन्होंने संविधान के प्रारूपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

 

★ उद्देश्य प्रस्ताव :-

● जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान का उद्देश्य प्रस्ताव संविधान सभा की तीसरी बैठक में प्रस्तुत किया गया

● इस प्रस्ताव के अंतर्गत वह सभी बातें वर्णित थे जिनके आधार पर भारतीय संविधान का निर्माण किया जाना था

● इस प्रस्ताव के अंतर्गत भारत को एक स्वतंत्र एवं संप्रभु देश बनाने की घोषणा की गई

● जवाहरलाल नेहरू जी ने कहा कि भारतीय संविधान के द्वारा देश में सभी नागरिकों को न्याय, समानता एवं स्वतंत्रता प्रदान की जाएगी

● साथ ही साथ भारतीय संविधान देश के अल्पसंख्यक एवं पिछड़े वर्ग के विकास का भी ध्यान रखेगा

● इस संविधान का निर्माण देश में स्थित लोगों की जरूरतों और मांगों के आधार पर किया जाएगा

● यानी कि भारतीय संविधान, संविधान सभा के सदस्यों की मांगों और इच्छाओं की बजाय देश के लोगों की मांग और इच्छाओं के अनुसार बनाया जाएगा

 

 

 ★ भारतीय संविधान का उद्देश्य :-

● 13 दिसंबर, 1946 को, जवाहरलाल नेहरू ने “ उद्देश्य संकल्प “ की शुरुआत की। इसने भारत को एक ” स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य घोषित किया।

● जिसने अपने नागरिक न्याय, समानता, स्वतंत्रता की गारंटी दी और अल्पसंख्यकों, पिछड़े और आदिवासी क्षेत्रों, दबे और पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपायों पर आश्वासन दिया उद्देश्य संकल्प ने संविधान के आदर्शों को रेखांकित किया और संविधान निर्माण के लिए फ्रेम वर्क प्रदान किया।

● नेहरू ने अमेरिकी और फ्रांसीसी संविधान और इसके निर्माण से जुड़ी घटनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि हम सिर्फ उनकी नकल नहीं करने जा रहे हैं. इसके बजाय उन्होंने कहा कि इनसे सीखना जरूरी है, ताकि गलतियों से बचा जा सके।

● नेहरू ने कहा कि भारत में स्थापित की जाने वाली सरकार की प्रणाली को हमारे लोगों के स्वभाव के अनुरूप होना चाहिए और उन्हें स्वीकार्य होना चाहिए।

● भारतीय संविधान का उद्देश्य आर्थिक न्याय के समाजवादी विचार के साथ लोकतंत्र के उदार विचारों को फ्यूज करना और इन सभी विचारों को भारतीय संदर्भ के भीतर फिर से अनकलित करना होगा।

 

 

प्रस्तावना के मुख्य तत्त्व :-

◆ संविधान का स्रोत :-

• हम भारत के लोग. अर्थात् जनता संविधान का स्वरूप संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न

◆ संविधान का स्वरूप :-

• समाजवादी

• पंथनिरपेक्ष

• लोकतंत्रात्मक

• गणराज्य

◆ संविधान का उद्देश्य :-

• न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक)

• स्वतंत्रता ( विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म व उपासना )

• प्रतिष्ठा और अवसर की समता

• व्यक्ति की गरिमा

• राष्ट्र की एकता और अखंडता

• बंधुता

 

 

★ उद्देशिका :- नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य संकल्प में जो आदर्श प्रस्तुत किया गया उन्हें ही संविधान की उद्देशिका में शामिल कर लिया गया.

◆ प्रस्तावना की मुख्य बातें:-

● संविधान की प्रस्तावना को ‘संविधान की कुंजी’ कहा जाता है।

● 1946 को संविधान को संविधान सभा में पेश किए गए ‘ उद्देश्य प्रस्ताव ‘ पर आधारित है।

● 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा ‘ समाजवादी , ‘ पंथनिरपेक्ष ‘ और ‘ अखंडता ‘ जोड़ें गए।

 

 

 

 ★ लोगों के अधिकार :-

● लोगों के अधिकारों को परिभाषित करने का तरीका अलग था। विभिन्न समूहों के लोगों द्वारा अलग अलग मांगें की गई। इन मांगों, विचारों, विचारों पर बहस हुई, चर्चा हुई और परस्पर विरोधी विचारों को समेटा गया और फिर सामूहिक निर्णय लेने के लिए आम सहमति बनाई गई।

 

 ★ अधिकार क्या है :- अधिकार किसी व्यक्ति का अपने लोगों , अपने समाज और अपने सरकार से दावा है।

● दावा तार्किक होना चाहिए।
● दूसरों के अधिकारों का आदर करें।
● पूरे समाज से भी स्वीकृति मिलनी चाहिए।
● अदालतों द्वारा मान्यता मिली हो।

 

 

★ मौलिक अधिकार :- संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35 तक) में मौलिक अधिकारों का विवरण है।

◆ मौलिक अधिकार: भारत का संविधान छह मौलिक अधिकार प्रदान करता है:

● समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)

● स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)

●शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)

●धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)

●संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)

● संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)

 

 

 

★ पृथक निर्वाचन :-

● 27 अगस्त 1947 को मद्रास के बी. पोकर बहादुर द्वारा पृथक निर्वाचन क्षेत्र के पक्ष में एक भाषण दिया गया।

● इस भाषण में उन्होंने कहा कि हमें एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था की जरूरत है जहां पर अल्पसंख्यक भी अन्य लोगों की तरह समाज में समान रूप से रह सके एवं राजनीति में उनका पूरा प्रतिनिधित्व हो सके उनकी आवाज सुनी जाए और उनके विचारों पर ध्यान दिया जाए।

● इसीलिए उन्होंने पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की मांग की ताकि देश में सभी अल्पसंख्यकों को राजनीति में उनकी हिस्सेदारी मिल सके परंतु संविधान सभा के कई सदस्यों द्वारा इसका विरोध किया गया।

● सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा कि पृथक निर्वाचन क्षेत्र एक ऐसा विषय है जिसने देश में एक समुदाय को दूसरे समुदाय से लड़ने पर मजबूर कर दिया इसी वजह से देश के टुकड़े हुए और देश में इतने बड़े स्तर पर दंगे हुए अगर देश में शांति स्थापित करनी है तो इस विषय को यहीं छोड़ देना सही रहेगा।

 

 

 

★ पृथक-निर्वाचन मंडल :-

● स्वतंत्रता के पूर्व भी इस विषय पर बहस हुई थी और ब्रिटिश सरकार ने‘पृथक-निर्वाचन मंडल’ की शुरूआत की थी।

● इसका अर्थ यह था कि किसी समुदाय के प्रतिनिधि के चुनाव में केवल उसी समुदाय के लोग वोट डाल सकेगें। संविधान सभा के अनेक सदस्यों को इस पर शंका थी। उनका विचार था कि यह व्यवस्था हमारे उद्देश्यों को पूरा नहीं करेगी।

 

● पृथक निर्वाचन-मंडल :- पृथक निर्वाचन मंडल के अंतर्गत एक चुनाव क्षेत्र से अलग-अलग जाति के उम्मीदवार खड़े होते हैं तथा प्रत्येक मतदाता अपनी जाति के उम्मीदवार को ही वोट देता है।

 

 

★ संविधान का उद्देश्य :-

एनजी रंगा एक समाजवादी और किसान आंदोलन के एक नेता ने उद्देश्य संकल्प का स्वागत किया और आग्रह किया कि अल्पसंख्यक शब्द की आर्थिक अर्थों में व्याख्या की जाए। वास्तविक अल्पसंख्यक गरीब और दलित हैं।

एनजी रंगा ने अपने नागरिक को संविधान द्वारा दिए गए सभी कानूनी और नागरिक अधिकारों का स्वागत किया लेकिन कहा कि इन अधिकारों का आनंद केवल तभी लिया जा सकता है जब उपयुक्त स्थिति या अवसर प्रदान किए जाएं। इसलिए गरीबी और दलितों की हालत को बेहतर बनाने और उनकी रक्षा करने के लिए इस संकल्प से कहीं अधिक की जरूरत है।

● रंगा ने भारत की जनता और विधानसभा में उनके प्रतिनिधियों के बीच भारी अंतर के बारे में भी बात की संविधान सभा के अधिकांश सदस्य जनता से संबंधित नहीं है लेकिन वे उन्हें अपने ट्रस्टी उनके साथी और उनके लिए काम करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

आदिवासी जयपाल सिंह एक आदिवासी ने इतिहास के माध्यम से आदिवासी के शोषण उत्पीडन और भेदभाव के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने आगे कहा कि जनजातियों की रक्षा करने और प्रावधान करने की आवश्यकता है जो उन्हें सामान्य आबादी के स्तर पर आने में मदद करेंगे।

जयपाल सिंह ने कहा उन्हें मुख्यधारा में एकीकृत करने के लिए शारीरिक और भावनात्मक दूरी को तोड़ने की जरूरत है। उन्होंने विधायिका में सीट के आरक्षण पर जोर दिया क्योंकि यह उनकी मांगों को आवाज देने में मदद करता है और लोग इसे सुनने के लिए मजबूर होंगे।

 

 

★ आदिवासी :-

● मुख्य आदिवासी नेता जयपाल सिंह जी ने कहा कि आदिवासी संख्या के आधार पर अल्पसंख्यक नहीं है परंतु उन्हें संरक्षण की आवश्यकता है।

● शुरू से ही उन्हें संसाधनों से वंचित रखा गया है

● उन्हें आदिम और पिछड़ा मानते हुए समाज ने उनकी उपेक्षा की है।

● जिस वजह से वह पिछड़ा हुआ जीवन जीने के लिए मजबूर है ऐसे में उन्हें मुख्यधारा में शामिल करना और अधिकार उपलब्ध करवाना अत्यंत आवश्यक है।

 

 

 ★ दलित :-

● संविधान सभा में दलितों के विषय पर लंबी बहस हुई।

● राष्ट्रीय आंदोलनों के दौरान डॉ भीमराव अंबेडकर द्वारा दलित जातियों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की मांग की गई थी जिसका महात्मा गांधी ने विरोध किया था और कहा था कि ऐसा करने से दलित समुदाय बाकी समाज से पूरी तरह से कट जाएगा

● जै अंगप्पा ने कहा कि हरिजन अल्पसंख्यक नहीं है परंतु समाज के अन्य वर्गों द्वारा उन्हें हमेशा संसाधनों और राजनीतिक शक्ति से दूर रखा गया है जिस वजह से वह हमेशा पीड़ा का शिकार रहे हैं ना तो उन्हें शिक्षा के अवसर दिए गए ना ही शासन में साझेदारी दी गई

 

 

◆ इन सब तर्कों को सुनते हुए संविधान सभा में यह सुझाव दिया गया कि

● अस्पृश्यता का उन्मूलन किया जाएगा।

● हिंदू मंदिरों को सभी जातियों के लिए खोल दिया जाएगा।

● निचली जातियों के लोगों को विधायिका और सरकारी नौकरी में आरक्षण दिया जाएगा।

 

 

★ भारत में संघवाद :-

● भारतीय संविधान के भाग में अनुच्छेद 1 से 4 तक में भारतीय संघ एवं उसके राज्य क्षेत्र के बारे में उपबंध हैं।

● अनुच्छेद 1 (1) के अनुसार – ‘ भारत अर्थात इंडिया , राज्यों का संघ होगा ‘

● भारत का नाम ( भारत अर्थात इंडिया ) भारत राज्य का स्वरूप ( राज्यों का यूनियन ) ।

 

★ भारतीय संघवाद :-

◆ संघात्मक :- संघीय शासन व्यवस्था में शासन की समस्त शक्तियां संविधान द्वारा केन्द्र व राज्य सरकार के बीच विभाजित होती हैं।

● वर्तमान में अमेरिका , आस्ट्रेलिया , कनाडा , ब्राजील में संघात्मक शासन है।

 

 

★ राज्य की शक्तियां :-

● भारत में संसदीय शासन व्यवस्था को अपनाया गया जिस वजह से संविधान सभा इस बात पर तीखी बहस हुई कि

● केंद्र और राज्य सरकार को कौन-कौन से अधिकार दिए जाने चाहिए।

● संविधान सभा के कई नेता एवं जवाहरलाल नेहरू ताकतवर केंद्र के पक्ष में थे।

● वह चाहते थे कि केंद्र सरकार को राज्य सरकार से ज्यादा शक्तियां दी जाए

 

 

इसी को देखते हुए संविधान में तीन सूचियों का निर्माण किया गया

1. संघ सूची (Union List ) :- संघ सूची में प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग, संचार और मुद्रा जैसे राष्ट्रीय महत्व के विषय हैं। पूरे देश के लिए इन मामलों में एक तरह की नीतियों की ज़रूरत है। इसी कारण इन विषयों को संघ सूची में डाला गया है। संघ सूची में वर्णित 97 विषयों के बारे में कानून बनाने का अधिकार सिर्फ़ केंद्र सरकार को है।

2. राज्य सूची ( State List ) :- राज्य सूची में पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि और सिंचाई जैसे प्रांतीय और स्थानीय महत्व के विषय हैं। राज्य सूची में 66 वर्णित विषयों के बारे में सिर्फ़ राज्य सरकार ही कानून बना सकती है।

3. समवर्ती सूची ( Concurrent List ) :- समवर्ती सूची में शिक्षा, वन, मजदूर- (संपादक और उत्तराधिकार जैसे वे विषय है जो केंद्र के साथ राज्य सरकारों को साझी दिलचस्पी में आते है। इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों और केंद्र सरकार दोनों को ही है। लेकिन जब दोनों के कानूनों में टकराव हो तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया कानून हो मान्य होता है। वर्णित विषय 47 हैं।

 

 

 ★ केंद्र और राज्य की शक्तियों पर संथानम का दृष्टिकोण:-

के संथानम ने कहा कि राज्य को मजबूत बनाने के लिए न केवल राज्य बल्कि केंद्र को भी सत्ता में लाना जरूरी है उन्होंने कहा कि अगर केंद्र जिम्मेदारी से आगे बढ़ता है तो यह ठीक से काम नहीं कर सकता है इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि राज्य को कुछ शक्तियां हस्तांतरित की जाएं ।

● फिर के, संथानम ने कहा कि राज्यों को उचित वित्तीय प्रावधान दिए जाने चाहिए ताकि वे स्वतंत्र रूप से काम कर सकें और उन्हें मामूली खर्च के लिए केंद्र पर निर्भर रहने की आवश्यकता न हो यदि सही तरीके से आवंटन नहीं किया गया तो संथानम और कई अन्य लोगों ने अंधेरे भविष्य की भविष्यवाणी की उन्होंने आगे कहा कि प्रांत केंद्र के खिलाफ विद्रोह कर सकता है और केंद्र टूट जाएगा, क्योंकि अत्यधिक शक्ति संविधान में केंद्रीकृत है ।

 

 

 ★ राष्ट्र की भाषा :-

● संविधान सभा में राष्ट्रभाषा के मुद्दों पर महीनों से तीव्र बहस हुई। भाषा एक भावनात्मक मुद्दा था और यह विशेष क्षेत्र की संस्कृति और विरासत से संबंधित था।

● 1930 के दशक तक कांग्रेस और महात्मा गांधी ने हिंदुस्तानी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार किया। हिंदुस्तानी भाषा को समझना आसान था और भारत के बड़े हिस्से के बीच एक लोकप्रिय भाषा थी। विविध संस्कृति और भाषा के मेल से हिंदुस्तानी का विकास हुआ।

● हिंदुस्तानी भाषा मुख्य रूप से हिंदी और उर्दू से बनी थी. लेकिन इसमें दूसरी भाषा के शब्द भी थे लेकिन दुर्भाग्य से भाषा भी सांप्रदायिक राजनीति से पीड़ित हुई।

● धीरे धीरे हिंदी और उर्दू अलग होने लगी। हिंदी ने संस्कृत के अधिक शब्दों का उपयोग करना शुरू कर दिया. इसी तरह उर्दू और अधिक दृढ हो गई। फिर भी महात्मा गांधी ने हिंदुस्तानी में अपना विश्वास बनाए रखा।

● उन्होंने महसूस किया कि हिंदुस्तानी सभी भारतीयों के लिए एक समय भाषा थी।

 

 

★ हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की दलील :-

आर.वी. धुलेकर, संविधान सभा के सदस्य ने हिंदी को राष्ट्रभाषा और भाषा बनाने के लिए एक मजबूत दलील दी जिसमें संविधान बनाया जाना चाहिए। इस दलील का प्रबल विरोध हुआ।

● असेंबली की भाषा समिति ने एक रिपोर्ट तैयार की जिसमे उसने यह तय करने की कोशिश की कि देवनागरी लिपि में हिंदी एक आधिकारिक भाषा होगी लेकिन हिंदी दुनिया के लिए संक्रमण एक क्रमिक प्रक्रिया होगी और स्वतंत्रता के बाद शुरुआती 15 वर्षों तक, अंग्रेजी को आधिकारिक के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। 

● प्रांत के भीतर आधिकारिक कार्यों के लिए प्रांतों को एक भाषा चुनने की अनुमति थी।

 

 

★ हिंदी के प्रभुत्व का डर :-

● संविधान सभा के सदस्य एसजी दुर्गाबाई ने कहा कि दक्षिण भारत में हिंदी के खिलाफ तीव्र विरोध है।

● भाषा के संबंध में विवाद के प्रादुर्भाव के बाद प्रतिद्वंद्वी में एक डर है कि हिंदी प्रांतीय भाषा के लिए विरोधी है और यह प्रांतीय भाषा और इसके साथ जुड़ी सांस्कृतिक विरासत की जड़ को काटती है।

● उसने हिंदुस्तानी को लोगों की भाषा के रूप में स्वीकार किया था लेकिन भाषा बदली जा रही है। उर्दू और क्षेत्रीय भाषाओं के शब्द हटा दिए गए। यह कदम हिंदुस्तानी के समावेशी और समय चरित्र को मिटा देता है और इसके कारण, विभिन्न भाषा समूहों के लोगों के मन में चिताएं और भय विकसित होता है।

● कई सदस्यों ने महसूस किया कि राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी के मुद्दे को सावधानी से व्यवहार किया जाना चाहिए और आक्रामक कार्यकाल और भाषण केवल गैर हिंदी भाषी लोगों में भय पैदा करेगा और इस मुद्दे की और जटिल करेगा। विभिन्न हितधारकों के बीच आपसी समझ होनी चाहिए।

 

 

★ संघीय व्यवस्था कैसे चलती है :-

◆ भाषायी राज्य :- स्वाधीनता के बाद, 1950 के दशक में भारत के कई पुराने राज्यों की सीमाएँ बदली। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया कि एक या एक ही प्रकार की संस्कृति, भूगोल वा जातीयताओं को मानने वाले लोग एक ही राज्य में रह सके।

◆ भाषा नीति :- हमारे संविधान में किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया।

● जबकि हिन्दी की राजभाषा माना गया पर केन्द्र सरकार ने हिन्दी को उन राज्यों पर नहीं थोपा, जो कोई और भाषा बोलते हैं। भारतीय संविधान में हिन्दी के अलावा अन्य 21 भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है।

● केन्द्र-राज्य संबंध केन्द्र राज्य संबंधों में लगातार आए बदलाव से पता लगता है कि व्यवहार में संघवाद किस तरह मजबूत हुआ है। जबकि भारतीय संविधान ने केन्द्र तथा राज्य सरकारों की शक्तियों को बॉट रखा है, परन्तु फिर भी कई प्रकार से केन्द्र सरकार राज्य सरकारों पर प्रभाव जगा सकती है।

● भाषा राज्य राज्य पुनर्गठन अधिनियम दिसम्बर 1953 में फजल अली के नेतृत्व मै राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया था।

● इस आयोग ने 30 सितम्बर 1955 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट के आधार पर राज्य पुनर्गठन अधिनियम को 1956 में पारित किया गया।

● एक अक्टूबर 1953 को आप प्रदेश आभावी आधार पर गठित होने वाला देश का पहला राज्य बना था।

● नवंबर 2000 की छत्तीसगढ़ 26वां राज्य 9 नवंबर 2000 में उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) 27 [राज्य] 15 नवंबर 2000 को इरखंड

● 28वां राज्य और 02 जून 2014 को तेलंगाना को भारत का 29वां राज्य बनाया गया।

 

 

★ भाषा नीति :- भाषा नीति यह है कि सरकार या तो आधिकारिक तौर पर कानून अदालत के निर्णय या नीति के माध्यम से भाषाओं का उपयोग कैसे किया जाता है.

● राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक भाषा कौशल विकसित करना या भाषाओं का उपयोग और रखरखाव करने के लिए व्यक्तियों या समूहों के अधिकार स्थापित करना है।

● हिंदी को राजभाषा माना गया पर हिंदी सिर्फ 40 फीसदी भारतीयों की मातृभाषा है।

● संविधान में 22 भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है। 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को भारत की
आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया था।

● भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत हिंदी भारत की ‘राजभाषा’ यानी राजकाज की
भाषा मात्र है।

● दूसरी भाषा हिंदी भाषी राज्यों में दूसरी भाषा कुछ अन्य आधुनिक भारतीय भाषा या अंग्रेजी होगी, और गैर-हिंदी भाषी राज्यों में दूसरी भाषा हिंदी या अंग्रेजी होगी।

 

 

 

◆ संविधान सभा में तीन सौ सदस्य थे लेकिन इनमें कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल व राजेन्द्र प्रसाद सहित छः सदस्यों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण थी जिनमें से राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे। अन्य तीन सदस्यों में बी. आर. अम्बेडकर (संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष), के. एम. मुंशी व अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर शामिल थे।

◆ इन छः सदस्यों को दो प्रशासनिक अधिकारियों-बी.एन. राव व एस. एन. मुखर्जी- ने महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की। राव भारत सरकार के संवैधानिक सलाहकार थे, जबकि मुखर्जी की भूमिका मुख्य योजनाकार की थी।

◆सरदार वल्लभभाई पटेल ने संविधान सभा में कहा कि अंग्रेज तो चले गए मगर जाते-जाते शरारत का बीज ब्रो गए। वहीं पृथक निर्वाचिकाओं की माँग का जवाब देते हुए गोविन्द वल्लभ पन्त ने कहा कि “मेरा मानना है कि पृथक निर्वाचिका अल्पसंख्यकों के लिए आत्मघाती सिद्ध होगी।”

◆ राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने दलित जातियों के लिए पृथक निर्वाचिकाओं की माँग की थी जिसका महात्मा गाँधी ने यह कहते हुए विरोध किया था कि ऐसा करने से ये समुदाय स्थायी रूप से शेष समाज से कट जायेगा।

 

★  संविधान का निर्माण :- नए युग की शुरुआत

 

★  काल-रेखा :-

◆ 1945

● 26 जुलाई :- ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार सत्ता में आती है।

दिसंबर-जनवरी भारत में आम चुनाव

◆ 1946

● 16 मई :- कैबिनेट मिशन अपनी संवैधानिक योजना की घोषणा करती है।

● 16 जून :- मूस्लिम लीग कैबिनेट मिशन की संवैधानिक योजना पर स्वीकृति देती है

● 16 जून :- कैबिनेट मिशन केंद्र में अंतरिम सरकार के गठन का प्रस्ताव पेश करता है।

● 16 अगस्त :- मुस्लिम लीग द्वारा ‘प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस’ का एलान

● 2 सितंबर :- कांग्रेस अंतरिम सरकार का गठन करती है जिसमें नेहरू को उपराष्ट्रपति बनाया जाता है मुस्लिम लीग अंतरिम सरकार में शामिल होने का फैसला लेती है

◆13 अक्तूबर :-

● 3-6 दिसंबर :- ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली कुछ भारतीय नेताओं से मिलते हैं। इन वार्ताओं का कोई नतीजा नहीं निकलता।

● 9 दिसंबर :-संविधान सभा के अधिवेशन शुरू हो जाते हैं

◆1947 :-

● 29 जनवरी :- मुस्लिम लीग संविधान सभा को भंग करने की माँग करती है।

● 16 जुलाई :- अंतरिम सरकार की आखिरी बैठक

● 11 अगस्त :- जिन्ना को पाकिस्तान की संविधान सभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया जाता है।

● 14 अगस्त :- पाकिस्तान की स्वतंत्रता: कराची में जश्न

● 14-15 अगस्त मध्यरात्रि भारत में स्वतंत्रता का जश्न

◆ 1949

● दिसबंर :- संविधान पर हस्ताक्षर

 

 

 

 

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