राष्ट्र राष्ट्र (Nation) शब्द की उत्पति राष्ट्रवाद क्या है राष्ट्र तथा राष्ट्रवाद राष्ट्र के विषय में मान्यताएं राष्ट्रवाद के मार्ग में आने वाली कठिनाइयाँ राष्ट्रवाद के दायरें राष्ट्रीय आत्म निर्णय
★राष्ट्र (Nation) शब्द की उत्पति :-
राष्ट्र शब्द का अंग्रेजी भाषा में नेशन (Nation) कहते है और इसका हिंदी अर्थ ” राष्ट्र” है। नेशन शब्द लैटिन भाषा के दो शब्दों ‘नेशियों’ (natio) और नेट्स (Natus) से निकला है, जिनका अर्थ क्रमश: है – ‘ जन्म या नस्ल ‘ और पैदा हुआ।
★ राष्ट्रवाद क्या है:-
● सामान्यतः यदि जनता की राय ले तो इस विषय में राष्ट्रीय ध्वज, देश भक्ति प्रदेश के लिए बलिदान जैसी बाते सुनेंगे। दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड़ भारतीय राष्ट्रवाद का विचित्र प्रतीक है।
● राष्ट्रवाद पिछली दो शताब्दियों के दौरान एक ऐसे सम्मोहक राजनीतिक सिद्धांत के रूप में उभरकर सामने आया है कि जिसने इतिहास रचने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसने अत्याचारी शासन से आजादी दिलाने में सहायता की है तो इसके साथ ही यह विरोध, कटुता और युद्धों की वजह भी रहा है।
● राष्ट्रवाद बड़े-बड़े साम्राज्यों के पतन में भागीदार रहा है। बीसवीं शताब्दी की शुरूआत में यूरोप में आस्ट्रेयाई-हंगेरियाई और रूसी साम्राज्य तथा इसके साथ एशिया और अफ्रीका में फ्रांसीसी, ब्रिटिश, डच और पुर्तगाली साम्राज्य के बंटवारे के मूल में राष्ट्रवाद ही था।
● इसी के साथ राष्ट्रवाद ने उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोप में कई छोटी-छोटी रियासतों के एकीकरण से वृहदत्तर राष्ट्र राज्यों की स्थापना का मार्ग दिखाया है।
◆ राज्य :- राज्य किसी निश्चित भू-प्रदेश पर निवास करने वाले मनुष्यों का राजनीतिक संगठन है, जबकि
◆ राष्ट्र :- राष्ट्र का आशय उन मनुष्यों से है जो समान भाषा, धर्म, सभ्यता और संस्कृति के सूत्र में बंधे रहते हैं।
◆ राष्ट्र तथा राष्ट्रवाद :-
● राष्ट्र :- राष्ट्र के सदस्य के रूप में हम राष्ट्र के अधिकतर सदस्यों को प्रत्यक्ष तौर पर न कभी जान पाते है और न ही उनके साथ वंशानुगत संबंध जोड़ने की जरूरत पड़ती है। फिर भी राष्ट्रों का वजूद है, लोग उनमें रहते हैं और उनका सम्मान करते हैं।
● राष्ट्रवाद :- राष्ट्र काफी हद तक एक काल्पनिक समुदाय है जो अपने सदस्यों के सामूहिक यकीन, इच्छाओं, कल्पनाओं विश्वास आदि के सहारे एक धागे में गठित होता है। यह कुछ विशेष मान्यताओं पर आधारित होता है जिन्हें लोग उस पूर्ण समुदाय के लिए बनाते हैं जिससे वह अपनी पहचान बनाए रखते हैं।
★राष्ट्र के विषय में मान्यताएं :-
1. साझे विश्वास :- एक राष्ट्र का आस्तित्व तभी बना रहता है जब उसके सदस्यों को यह विश्वास हो कि वे एक-दूसरे के साथ है।
2. इतिहास :- व्यक्ति अपने आपको एक राष्ट्र मानते हैं उनके अंदर अधिकतर स्थाई ऐतिहासिक पहचान की भावना होती है देश की स्थायी पहचान का ढांचा पेश करने हेतु वे किवंदतियों, स्मृतियों तथा ऐतिहासिक इमारतों तथा अभिलेखों की रचना के जरिए स्वयं राष्ट्र के इतिहास के बोध की रचना करते हैं।
3. भू-क्षेत्र :- किसी भू क्षेत्र पर काफी हद तक साथ-साथ रहना एवं उससे संबंधित साझे अतीत की स्मृतियां जन साधारण को एक सामूहिक पहचान का अनुभाव कराती है जैसे कोई इसे मातृभूमि या पितृभूमि कहता है तो कोई पवित्र भूमि ।
4. सांझे राजनीतिक विश्वास :- जब राष्ट्र के सदस्यों की इस विषय पर एक सांझा दृष्टि होती है कि वे कैसे राज्य बनाना चाहते हैं शेष
तथ्यों के अतिरिक्त वे धर्म निरपेक्षता, लोकतंत्र और उदारवाद जैसे मूल्यों और सिद्धांतों को स्वीकार करते हैं तब यह विचार राष्ट्र के रूप में उनकी राजनीतिक पहचान को स्पष्ट करता है।
5 साझी राजनीतिक पहचान :- व्यक्तियों को एक राष्ट्र में बांधने के लिए एक समान भाषा, जातीय वंश परंपरा जैसी सांस्कृतिक पहचान भी आवश्यक है। ऐसे हमारे विचार, धार्मिक विश्वास, सामाजिक परंपराए सांझे हो जाते हैं। वास्तव में लोकतंत्र में किसी खास नस्ल, धर्म या भाषा से संबद्धता की जगह एक मूल्य समूह के प्रति निष्ठा की आवश्यकता होती है।
★ राष्ट्रीय आत्म निर्णय :-
● सामाजिक समूहों से राष्ट्र अपना शासन स्वंय करने और अपने भविष्य को तय करने का अधिकार चाहते हैं दूसरे शब्दों मे वे आत्म निर्णय का अधिकार चाहते हैं।
● इस अधिकार के तहत राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मांग करता है कि मिन्न राजनीतिक इकाई या राज्य के दर्जे को मान्यता एंव स्वीकृति दी जाएं।
● उन्नीसवीं सदी में यूरोप में एक संस्कृतिः एक राज्य की मान्यता ने जोर पकड़ा। फलस्वरूप वर्साय की संधि के बाद विभिन्न छोटे एवं नव स्वतंत्र राज्यों का गठन हुआ। इस के कारण राज्यों की सीमाओं में भी परिवर्तन हुए, बड़ी जनसंख्या का विस्थापन हुआ, कई लोग सांप्रदायिक हिंसा के भी शिकार हुए।
● इसलिए यह निश्चित करना मुमकिन नहीं हो पाया कि नव निर्मित राज्यों में मात्र एक ही जाति के लोग रहें क्योंकि वहां एक से ज्यादा नस्ल और संस्कृति के लोग रहते थे।
● आश्चर्य की बात यह है कि उन राष्ट्र राज्यों ने जिन्होंने संघर्षों के बाद स्वाधीनता प्राप्त की, किंतु अब वे अपने भू-क्षेत्रों में राष्ट्रीय आत्म निर्णय के अधिकार की मांग करने वाले अल्पसंख्यक समूहों का खंडन करते है।
★ राष्ट्रवाद तथा बहुलवाद :-
● एक संस्कृति एक राज्य के विचार को त्यागने के बाद लोकतांत्रिक देशों ने सांस्कृतिक रूप से अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान को स्वीकार करने तथा सुरक्षित करने के तरीकों की शुरूआत की है। भारतीय संविधान में भाषायी, धार्मिक एंव सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए व्यापक प्रावधान हैं।
● यद्यपि अल्पसंख्यक समूहों को मान्यता एवं सरक्षण प्रदान करने के बावजूद कुछ समूह पृथक राज्य की मांग पर अड़े रहें, ऐसा हो सकता है। यह विरोधाभासी तथ्य होगा कि जहां वैश्विक ग्राम की बातें चल रही हैं वहां अभी भी राष्ट्रीय आकांक्षाएं विभिन्न वर्गों और समुदायों को उद्वेलित कर रही है। इसके समाधान के लिए संबंधित देश को विभिन्न वर्गों के साथ उदारता एवं दक्षता का परिचय देना होगा साथ ही असहिष्णु एक जातीय स्वरूपों के साथ कठोरता से पेश आना होगा।
★ राष्ट्रवाद के गुण :-
(i) राष्ट्रवाद की भावना में मुक्ति आन्दोलनों को प्रेरणा दी
(ii) राष्ट्रवाद ने विश्व को साम्राज्यवाद के चंगुल से बचाया
(iii) राष्ट्रीयता की भावना की नीव पर निर्मित राज्य हमेशा अधिक स्थायी होते हैं ।
(iv) राष्ट्रवाद प्रेरणा का जीवंत स्रोत है जो राष्ट्र हित के आवश्यक है ।
(v) राष्ट्रवाद से एकता की भावना बढती है |
◆ राष्ट्रवाद की कमियाँ :-
(i) आक्रामक राष्ट्रवाद घृणा को जन्म देता है |
(ii) राष्ट्रवाद के कारण विश्व के बहुत से भागों का अधिकाधिक एकीकरण हुआ है ।
(iii) एक राज्य के अन्दर भिन्न-भिन्न राष्ट्रीयता वाले लोग रहते है जिससे राष्ट्र-राज्य का आदर्श अनेक कठिनाईयाँ उत्पन्न कर सकता है |
★ राष्ट्र :- शब्द का अर्थ राज्य, देश, किसी निश्चित और विशिष्ट क्षेत्र में रहने वाले लोग जिनकी एक भाषा, एक से रीती-रिवाज तथा एक सी विचारधारा होती है, तथा किसी एक शासन में रहने वाले सब लोगों का समूह किया गया है।
★ भारत राष्ट्र है या राज्य :-
यदि भारतीय विचारधारा और संस्कृति का गम्भीरता से अध्ययन किया जाये, तो यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि भारत एक राष्ट्र है।
● हमारी राष्ट्र का नाम क्या है?
संविधान में हमारे राष्ट्र का उल्लेख भारत तथा इण्डिया नाम से किया गया है।
● राज्य आवश्यक तत्व :-
जनसंख्या, भूमि, सरकार और संप्रभुता राज्य के चार आवश्यक तत्व हैं। इनके बिना राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
● राष्ट्र आवश्यक तत्व :-
राष्ट्र को इन तत्वों की आवश्यकता नहीं है, बल्कि साझा धर्म, सामान्य भाषा, सामान्य रीति रिवाज, सामान्य इतिहास और भावनात्मक एकता की भावना की आवश्यकता है।
★ राष्ट्रवाद का उदय :-
● सामूहिक अपनेपन का भाव :- वे कारक जिन्होंने भारतीय लोगों में सामूहिक अपनेपन की भावना को जगाया तथा सभी भारतीयों लोगों को एक किया।
● चित्र व प्रतीक :- भारत माता की प्रथम छवि ‘ बंकिमचन्द्र ‘द्वारा बनाई गई। इस छवी के माध्यम से राष्ट्र को पहचानने में मदद मिली।
● लोक कथाएँ :- राष्ट्रवादी घूम घूम कर इन लोक कथाओं का संकलन करने लगे ये कथाएँ परंपरागत संस्कृति की सही तस्वीर पेश करती थी तथा अपनी राष्ट्रीय पहचान को ढूढ़ने तथा अतीत में गौरव का भाव पैदा करती थी
● चिन्ह :- उदाहरण झंडा – बंगाल में 1905 में स्वदेशी आंदोलन के दौरान सर्वप्रथम एक तिरंगा ( हरा, पीला, लाल ) जिसमें 8 कमल थे। 1921 तक आते आते महात्मा गांधी ने भी सफ़ेद, हरा और लाल रंग की तिरंगा तैयार कर लिया था।
● इतिहास की पूर्णव्याख्या:- बहुत से भारतीय महसूस करने लगे थे कि राष्ट्र के प्रति का भाव जगाने के लिए भारतीय इतिहास को अलग ढंग से पढ़ाना चाहिए बाकी भारतीय गर्व का अनुभव कर सके।
● गीत जैसे वंदे मातरम :- 1870 के दशक में बंकिम चन्द्र ने यह गीत लिखा मातृभूमि की स्तुति के रूप में । यह गीत बंगाल के स्वदेशी आंदोलन में खूब गया गया।
★ भारत में राष्ट्रवाद का उदय एवं विकास :-
• औपनिवेशिक प्रशासन
• भारतीय पुनर्जागरण
• पाश्चात्य शिक्षा एवं चिन्तन
• प्रेस तथा समाचार-पत्रों की
• समकालीन यूरोपीय आंदोलन का प्रभाव
• तात्कालिक कारण
★ भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारण :-
• शोषणकारी आर्थिक नीति • प्रशासनिक एकीकरण
• यातायात एवं संचार के साधनों का विकास
• प्रेस एवं साहित्य की भूमिका
• सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन
• जातीय भेदभाव
• लार्ड लिटन की नीति
• इल्बर्ट बिल विवाद
• विभिन्न संस्थाओं की स्थापना
★ भारत में राष्ट्रवाद की टाइमलाइन :-
• 1857 : भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम
• 1867 : कलकता में हिन्दू मेला
• 1870 के दशक में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा वन्दे मातरम् की रचना
• 1875 : आर्य समाज की स्थापना
• 1882 : आनन्दमठ का प्रकाशन
• 1885 : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
• 1905 : स्वदेशी आन्दोलन
• 1913: गदर आन्दोलन
• 1916 : होम रूल आन्दोलन • मार्च 1931 भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव
• मार्च 1942: टोकियो में रास बिहारी बोस द्वारा भारतीय
स्वतंत्रता लीग की स्थापना
• अक्टूबर 1943: सुभाष चन्द्र बोस द्वारा आजाद हिन्द की
स्थापना
• 1946 : जलसेना का विद्रोह
• 1947: भारत बना स्वतंत्र